सद्गुरु भी ठीक प्रकृति के समान ही प्रतिक्षण अपना स्वरूप पûendrza उनकी आंखों में आकाश की नीलिम mí उनके हास्य में सरस, सघन, लचीली टहनियों की कोमलता होती है, तो पुष्प की की की भांति उनके श्रीमुख से आशीर्वचन से शिष्य सुशोभित हैं।।
कभी वे पिता रूप में दिखाई देते है तो अगले ही क्षण मातृ रूप में वात्सल्य से भरे हुए।।।।।।। कभी हंसकर सखा बनकर हाल-च mí और ढ़ाढस भी देते हैं, इसी से प्रत्येक व्यक्ति यह कहते हुए तृप्त नहीं होता कि गुरुदेव को केवल और केवल वही वास्तविक रूप से जानता है, क्योंकि पूज्य गुरुदेव का व्यक्तित्व ही प्रकृति के समान इसी प्रकार से है, जो प्रत्येक को आश्वस्त व संतोष देने में सहायक है। समाज के अनेक वरorar.
वस्तुतः गुηgres किसी ने उनमें कृष्ण को देखा और किसी ने उनमें साक demás ष को।। एक व्यक्तित्व की विर gaste
प्रकृति भी इसी प्रकार सभी को अपने आपमें समेट लेती है जिस प्रकार समुद्र पूर्ण सूखे तट को अपने हृदय से लगा लेना चाहता है, उसी प्रकार गुरु की फैली हुई बांहे भी अपने प्रत्येक शिष्य को सीने से लगाने के लिए, उसको भिगो देने के लिए निरन्तर उमड़ती-घुमड़ती रहती हैं। उनके सारे शरीर और आंखों से इन्ही मौन तरंगों का वेग आकर प्रकृति के समान सरस और चैतन्यता देने वाला होता है। है। है है है है है है है है है है है है है है है
केवल व्यक्तित्व के ही नहीं, ज्ञान-विज्ञान के भी अनेक पक्ष उनके व्यक्तित्व में यों समाहित होते हैं कि वे उनके द्वारा अद्भुत प्रतीत होते हैं, चाहे वह ज्योतिष की बात हो या तंत्र की, मंत्र विज्ञान की जटिलतायें हों या आयुर्वेद का व्यापक क्षेत्र भारतीय ज्ञान का तो अनेक पक्ष हैं और वे सभी सभी ternय गुरुदेव के विराट ज्ञान balte
सद्गुरुदेव समुद्र के समान होते हैं, जिसमें सभी छोटी-बड़ी नदियां, गंदे नाले सब उनमें सम mí. अर्थात् सद्गुरु रूपी समुद्र में समाहित होने के बाद यह ज्ञात नहीं किया जा सकता है कि कौन छोटी नदी है अथवा बड़ी और कौन गंदा नाला है, सभी को एक ही स्वरूप में सद्गुरुमय निर्मित कर देते हैं।
Hay agua en la olla, hay agua en la olla, agua dentro y fuera
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सद्गुरु की पैनी अन्तर्दृष्टि शिष्य में समाहित संभावनाओं का अवलोकन कर उसमें नर से नाisiones 'गुरु गुड़, चेला शक्कर' रूपी परिणाम सद्गुरु को गौण नहीं वरन् नित्य वन्दनीय बना कर शिष्य के हृदय में श्रदguna की अजस्ellas ध favor
गुरुर्ब्रह्मा, गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो मशथेव
गुरुः साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमःे
गुरु सृष्टि का रचनाकeccion sirve अतः इस धारा पर परम शक्ति परम तत्व सर्व शक्तिमान ईश्वर की अनुभूति का सुनिश्चित सोपान गुरु ही।।।।।।।।।।।।।।।।।।। इतिहास इस तथ्य का साक्षी है कि जो जिज्ञासु अपनी तपस्या एवं साधना के बल से सिद्धि प्राप्त कर सिद्ध हो जाते हैं, वे मुक्त तो हो ही जाते हैं परन्तु सांसारिकता से घोर निर्लिप्त एवं तटस्थ होकर लोक मंगल की भावना से युक्त होकर पीडि़त मानवता के कल्याण की भावना से अपने शिष्यों से आत्मीयता पूर्ण समान व्यवहार कecer शिष्य जब अज्ञान व भ्रम का शिकार होकर ईश्वर को ढूंढने की असफल चेष्टा करता है तो गुरु का स्नेहपूuestos
सम्पूर्ण यात्रा में, उसके जन्म से लेकर मृत्यु तक और मृत्यु के उपरान्त अनन्त ब्रह्माण्ड में ज ाकर लाखों-करोडों आत्माओं के बीच में विलीन अस्ति त्व को सद्गुरु अपनी दृष्टि की XNUMXीमा बांधे रखते हैं और उसके कल्याण का मार्ग प्रशस्त करते रहते हैं।
सत्य तो यही है कि एकमात demás गुरु ही शिष्य के सच्चे शुभचिंतक हैं, श्रेष्ठ मार्गदर्शक हैं, उसके जीवन को सफल बनाने में सबसे अधिक सह सह हैं हैं। हैं।।।। हैं। हैं हैं हैं हैं हैं। हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं। हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं। सह सह सह सह सह सह सह सह सह सह सह सह objetivoitar उन्हीं सद्गुरु नार marca
सद्गुरुदेव निखिलेश्वरानन्द जी के अवतरण दिवस पर सर्व शक्ति प्रदायक बमलेश्वरी महामाया भूमि द (छ-ग-) में सद्गुरुदेव कैलाश श्रीमाली सानिध्य में 19-20-21 अप्रैल क ो सद्गुरु निखिल शक्ति तत्वाभिषेक जन्मोत्सव मे ं सिद्धाश्रम संस्पर्शित निखिल तत्वाभिषेक राजयोग अक्षय सौभाग्य धन लक्ष्मी शक्तिपात दीक ्षा व साधना सम्पन्न कर साधक अपने जीवन में धन लक् ष्मी गणपति कार्तिकेय रिद्धि-सिद्धि व-महामाया शक्ति चेतना से युक्त हो सकेंगे, जिससे अक्षय धन लक्ष्मी, कार्य व्यापार, संतान स ुख, सौभाग्य शक्ति व शत्रु विहीन जीवन निर्मित होगा।
साधको की सुविध mí
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- शिविर स्थलः दशहरा मैदान हुडको भिलाई
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