शिष्य सुजान बनना है और गुरु में आत्मैक्य हो ज mí.
शिष्य को विश्वस्त तथ mí
शिष्य के लिये गुरु आज्ञा से बढ़कर कोई साम्प्रदायिक ग्रंथ श्रेष्ठ नहीं।।।।।।।।।
शिष्य सदैव गुरु के सम्पर्क में रहकर गुरु के शेष काisiones
शिष्य को गुरु की सेवा कर ज्ञान रूपी कृपा प्र sigue.
शिष्य को सदा गुरु-चरणों का चिन्तन करते रहना चाहिये तभी शिष्य ज्ञानोदय होकर दिव्य दृष्टि प्रagaप demás कर सकता है है है है है है है है
सौभाग्यशाली शिष्य वही है जो प् Est.
शिष्य गुरु को प्राप्त कर ही माया से मुक्त हो साक।
श्रेष्ठ शिष्य सदा अपने आपको गुरु को समर्पित कर देने का प्रयास करता रहतok है क्योंकि समर्पण ही गुरु को प प्ya करने की क क्रिय।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।.
शिष्य भव-सागर को सहजता से पार कर लेने का माध्यम एकमoque सेतु श्री गुरु ही।।।।।।।।।।।।।।।।।।।
शिष्य द्वंद्व धर्मों से प्रताडि़त रहतok है, गुरु चिन्तन, ध्यान कर शिष्य उस द्वंद्व से छुटकारaga पा लेने का प Davágस करना है।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। eléctrica
शिष्य के मन, बुद्धि एवं वाणी को पवित्र करने का एकमात्र उपाय गुरुचरणों में निरन्तर नमन युक्त हो सेवanzas
शिष्य को सदutar.
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