कोई साधना में सिद्धि प्रagaप्त करना इतना कठिन काम नहीं है।।।।।। एक सामान्य व्यक्ति भी कर सकता है। कठिन कार्य है समर्पण, पूर्ण विश्वास और आस्था अपने मन में पैदा करना।
गुरू हर क्षण देने को तत्पर है आवश्यक है कि आप बढ़ कर उनसे प्रagaप demás करें। सागर आप तक चल कर नहीं आयेगा, आपको सागर तक चल कर जाना होगा और उसमें छलांग लगाकर उसमें मोती मोती निकालने होंगे।।।।।।।।।।।।।।
सागर कभी मना नहीं करता कि मोती मत निकालो, गुरू भी अपना ज्ञान प्रदान करने के लिये कभी मना नहीं करता। मगर प्र sigueal आस्था और विश्वास ही साधनाओं में सफ़लता की कुंजै
सद्गुरू एक सूर्य के समान, एक दीपक के समान शिष्य के जीवन में प्रवेश कûendr
शिष्य जितना गुरू से एकाकार होता है उतना ही गुरू उसको आगे धकेलता ¢ है।।।।।। शिष्य पर नि¢ है कि वह अपने आप को पूर्ण समर्पित करता है या अधूरा करता है।।।।।।।
प्रेम का तात्पर्य है ईश्वर और जब तक प्रेम के रस में भीगोगे नहीं, ईश्वर की प्राप्ति नहीं हो सकती, गुरूदेव से साक्षात्कार नहीं हो सकता और यह अंदर उतरकर प्रभु से साक्षात्कार करने की क्रिया हो तो प्रेम है। प्रेम को प siguez
गुरू चेतना का पुंज है, एक चेतना का स्रोत है, एक चेतना का सागर है। जब आप उसके निरतंर सम्पर्क में endró उससे जुड़कर आपका भी जीवन सुगंधिात और दिव्य हा जा
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