El Gurú trata de hacer que el discípulo sea igual a él mismo y por esta razón él mismo tiene que asumir la forma del discípulo primero, pero esta es la ignorancia del discípulo, que ve al Gurú en general, tal pensamiento es desafortunado para él. .
जब गुरू हृदय में स्थापित है तो कुछ अन्य हृदय में प्रवेश कर ही नहीं सकता। फिर ब sigue. ¡Adelante! उस के मुख पर एक ही शब्द हो गुरू।
गुरू से बड़ा मित्र, गुरू से श्रेष्ठ सलाहकार, गुरू से अच्छा मार्गदर्शक और गुरू से अचguna छ स Dav. इसलिये शिष्य को सदा गुरू के शब्दों का पालन करना ही चाहिये। वहीं उसके लिये श्रेयष्कर है, श्रेष्ठ है।
जीवन का मूलभूत तात्पर्य ही विरह है और विरह के माध्यम से ही एक शिष्य पूर्ण रूप से अपने गुरू में आत्मस Chrriba हो सकत है।।।। है है है है है है है है है है है है है है है है सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकतanda. गुरू तक पहुँचने के लिये शिष्य के अन्दर एक वेग, एक तीव्रता होनी चाहिये, मन में एक ज्वार होना चाहिये कि औ और मिल जाऊँ।।।।।। ।guna.
हजारों लाखों व्यक्तियों में कोई विरला होता है जो सद्गुरू की अंगुली पकड़कर आगे बढ़ता है, जो उनकी वाणी को समझ सकता है, वही शिष शिष्यत्व के गुण प्रículoप क क razón सकत है।।।।।।।।।
गुरू के ज्ञान को किसी प्रकार खरीदा नहीं केवल गुरू कृपा से वासutar
यथा संभव व demás की चatar. दूसरे की आलोचना अथवा निन्दा करने से शिष्य का जो बहुमूल्य समय अपने कल्याण में लगाना चाहिये, वह व्यरbar हो हो जा है उसक पbar भija भ उसकेguna ।र। razón
गुरू के पास बैठे रहने मात्र से ही स mí अतः शिष्य को च siguez जिस प्रक marca एक दीपक से दूसरा दीपक पास लाने मात्र से ही जल जाता है, उसी तरह गुरू के सानिध्य मात्र से ही शिष शिष क कल uto य हो ज जija है।। मnas
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