जिस प्रकार पुष्प में गंध, चन्द्र में शीतलता, सूर्य में प्रभा सिद्ध है।।।।।।। उसी प्रकार शिव में शकutar शिव पुरूष रूप है तो उम mí
भगवान शिव आध्यात्मिकता के देव हैं तो भौतिकता के भी देव हैं, भौतिक जगत में व्यक्ति को में पatar शक्ति स्वenas उमा सदा उनके साथ रहती है, जहां शिव है वहीं भगवती है, शिव आराधना से ही भगवती की कृपा प्रagaप्त की जा सकती।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। eléctrica सांसारिक प्रagaणी सदैव यम अर्थात् मृत्यु रोग भय से बचने का प्रयत्न करता है और केवल शिव ही काल से मह महाकाल मृतguna है जीवन में मृत बच बच बच बच।। Nहै।।।।।।। Nहै अमृत अमृत अमृत अमृत अमृत अमृत अमृत अमृत अमृत अमृत अमृत अमृत अमृत अमृत अमृत अमृत अमृत अमृत अमृत अमृत अमृत अमृत अमृत अमृत अमृत अमृत अमृत अमृत अमृत अमृत अमृत अमृत अमृत अमृत अमृत अमृत अमृत अमृत अमृत अमृत अमृत अमृत अमृत अमृत अमृत अमृत अमृत अमृत अमृत अमृत अमृत अमृत अमृत अमृत अमृत अमृत अमृत अमृत अमृत अमृत अमृत अमृत अमृत अमृत अमृत अमृत अमृत अमृत अमृत अमृत अमृत अमृत अमृत अमृत अमृत अमृत अमृत अमृत अमृत अमृत अमृत अमृत अमृत अमृत अमृत अमृत XNUMXla
श्रीविद्या दीक्षा का अर्थ है कि साधक का जो शरीर है, उसे ही श्रीयुक्त बना दिया जाये, साधक के शरीर को ही श्रीयंत्र बना दिया जाये, यही श्रीविद्या दीक्षा का सार है और श्री का तात्पर्य है- जीवन की पूर्णता, यश, वैभव, प्रतिष्ठा , ऐश्वर्य, धन-धान्य और वह सब कुछ जो हमारे जीवन की आवशutar है।।।।।।।। वह सब कुछ प्राप्त हो, उसे श्री कहते हैं। अभाव युक्त, दरिद्रतामय जीवन को श्री नहीं कहा सा ाा जीवन की सभी गतिविधियों के हम संचालक हो, हम निर्धाisiones से अपने रोम-रोम में आत्मसात् कर सकें।
इस दीक्षा को ग्रहण करने के बाद साधक शरीर ही श्री यंत्र का एक रूप बन जाता है, यदि इस शरीर में ही श्री यंत्र के तत्व समाहित हो जायेंगे तो सर्वस्व हर प्रकार की उन्नति, श्रेष्ठता स्वतः ही प्राप्त हो जायेगी। जीवन के सभी ततutar है जीवन सर्व सौभाग्य सहस्त्र लक्षorar
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