गुरू क्या करते हैं, इस बात पर शिष्य को ध्यान नहीं होना चाहिये। श्रेष्ठ शिष्य वही है जो कि गुरू कहते हैं, वह करेू जो कुछ करते हैं, गुरू करते हैं, यह सब क्रिया कलाप उन्हीं की माया का हिस्स लेत, तो म मguna उनका द मन्त क razón हूं लेत लेत जो जो -जो जो जो प razón. ।
गुरू से बढ़कर न शास्त्र है न तपस्या, गुरू से बढ ़कर न देवी व देव और न ही मंत्र जप या मोक्ष। एक मात्र गुरूदेव ही सर्वश्रेष्ठ हैं।
जो इस वाक्य को अपने मन में बिठ mí गुरू जो भी आज्ञा देते हैं, उसके पीछे कोई रहस्य अवश्य होता है। अतः शिष्य को बिना किसी संशय के गुरू की आज्ञा का पूर्ण तत्पisiones ही करा सकता है।
शिष्य को न तो गुरू-निंदा करनी चाहिये और न ही निंदा सुननी चाहिये। यदि कोई गुरू की निंदा करता है तो शिष्य को चाहिये कि या तो अपने वाग्बल अथवा सामर्थ से उसको पû प razón क कguna दे दे यदि ऐस ऐस न न प ión गुरू-निंदा सुन लेना भी उतना ही दोषपूenas है, जितना कि गुरू निंदा करना।
गुरू की कृपा से आत्मा में प्रकाश संभव है। यही वेदों में भी कह mí शिष्य वह है, जो गुरू के बत mí.
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