जीवन में शक्ति तत्व के महत्व को कोई भी उपेक्षित नहीं कर सकता। दुर्बल व्यक्ति का जीवन पग-पग पर अपमानित होता हैै उसे इस संसार और समाज में तो कोई श्रेयता मिलती नहीं, उसके लिये आत्मज्ञान का पथ भी अवरूद होता है।।।।।। 'नायम् आत्मा बलहीने लभ्यः' अर्थात दुर्बल व्यक्ति को आत Davhe शक्ति तत्व जीवन में दान से नहीं मिल सकता, उसे भक्ति से भी नहीं प्रagaप्त किया जा सकता है।।।।।। उसे तो अपने दृढ़ संकल्प से, अपने पौरूष से अर्जित करना पड़ता है।
शक्ति का विक marca उनसे सम्बन्धित मंत्र, अक्षरों के एक समूह भर न होकर एक प demás के संकेत होते।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।
जीवन की कोई समस्या छोटी नहीं कही जा सकती और न किसी मनोकामना को हेय कहा जा सकता है। ये समाज की बन siguez 'विद्या समस्तास Estamente
जितने भी साधक हुये है, उन्होंने किसी न किसी रूप में दुर्गा की साधना अवश्य सम्पन्न की है और उसके बाद ही वे सिद्ध पुरूष बन सके सके उनमें उनमें तेजस तेजस uto आ।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। eléctrico eléctrico सिद demás सिद demás 'रामकृष्णदेव परमहंस' जिन्होंने मां काली को स्वयं में आत्मसात कर लिया था, वे काली शक्तिमय बन।।।।।।
तंत्र शास्त्omin con उच्चकोटि के साधनात्मक ग्रंथों का निष्कर्ष यही है, कि विभिन्न साधनाओं और यौगिक क्रियाओं के म Dav.
शंकर marca • के जीवन की एक घटना-अपने भ्रमण के दौरान शंकराचार्य एक बार काशी पहुँचे।।।।।।।। वहां वे किसी रोग से ग्रस्त हो गये, जिसके कारण उनमें अत्यधिक कमजोरी आ।।।।।।।।।।। उस समय तक वे शक्ति साधनाओं से विमुख थे। उसी अवस्था में वे गंगा तट पर गये, जहां एक स्त्री ने उनसे टोकरी उठाने हेतु मदद म mí. मेरे अन्दर इस क्षण सामantemente है नहीं है है है है कि आपकी आपकी सहायता कर सकूं।।।।।।।
प्रत्युत्तर से उसी स्त्री ने कहा- कि साम¢ इतना कहकर वह अदृश्य हो गई। शंकराचार्य इस घटना से स्तम्भित रह गये, वे विचार करने लगे, कि उनमें शायद यही न्यूनता रह गई होगी, जिस का rodajoso इस घटन mí
इससे स्पष्ट होता है, कि बिन mí रामकृष्ण परमहंस ने जीवन भर अपनी पत्नी को शक्ति का स्वरूप ही माना। तांत्रिक ग्रंथों में शक्ति उप mí va
ऐसे क्षणों में नवरात्रि के दिनों का अत्यन्त महत्त्व है, जब सम्पूisiones
ज्ञानी साधक, योगी, यति निरन्तर प्रयत्नशील रहते हैं, कि प्रत्येक श्रेष्ठ अवसर पर वह भगवती दुर्गा का साक्षात्कार करें परन्तु जो साधना के आयामों से अपरिचित हैं, साधना के गूढ़ रहस्यों से अनभिज्ञ हैं, उनके लिये तो गुरू का सानिध्य आवश्यक हो ही जाता है । गुηgres
गुरू ही एक मात्र कड़ी है, जो साधक को उसके लक्ष्य तक पहुँचाने का हेतु बनती।।।।।।।।।।।।।। साधक के लिये भी यह अनिवारorar
जिस प्रकार माँ अपने शिशु की प्रत्येक आवश्यकता को पूर्ण करने के लिये तत्पर रहती है, उसी प्रकाgres भगवती दुर्ग अपने स स की पículo supriba क को को कriba क क। है है है है है है।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।. जिससे उसे जगत जननी की कृपा प्रagaप्त हो गई, उसे फिर किस बात की चिन्ता।
ऐश्वर्यमयी, परमशक्ति स्वरूपा भगवती के आश्रय में जब साधक प्रस्तुत हो जाता है, तो फिर वह श्रीहीन, शक्तिहीन रह ही नहीं सकत।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं उसको धन-धान्य, समृद्धि, यश, प्रतिष्ठा, ऐश्वisiones
दुर्गा का यह स्वisiones देवी दुर्गा कल्याणी स्वरूप है, जिनके तीव्र प्रभाव से दुष्टात्माओं का नाश हो जाता है और प्रबल से प्रबल शत्रु भी वश होक होकर दास स razón
método de meditación
पूर्ण तांत्रोक्त साधना है और नवरात्रि में ही Ver más ामग्री तथा विशेष अनुष्ठान, सामग्री सहित सभी व्यवस्था पहले से कर लेनी चाहि ये, साधना के बीच में उठने का विधान वर्जित है।
Ver más स्त्र धारण करें, अपने पूजा स्थान में अथवा एकान् त कमरे में यह साधना सम्पन्न कर सकते हैं, अपने साम ने देवी का विकराल स्वरूप का चित्र स्थापित कर सि न्दूर से चित्र पर तिलक कर स्वयं भी तिलक लगायें और आसन ग्रहण करें।
अपने सामने राज राजेश्वरी यंत्र शुद्ध रूप से धो कर सिन्दूर लगा कर काले तिलों की ढ़ेरी पर स्थापित करें, एक ओर एक कलश स्थापित कर उस पर नारियल रखे, सर्व प्रथम कलश पूजन सम्पन्न कर भैरव का ध्यान कर मौली बांध कर एक सुपारी भैरव स्वरूप स्थापित करें, अब एक ओर धूप तथा दूसरी ओर दीपक जला कर एक कटोरे में देवी के सामने खीर का प्रसाद रखें, अब इस साधना में साधक वीर मुद्रा में बैठ कर पूजन कार्य प्रारम्भ करें, साधक का मुंह दक्षिण दिशा की ओर होना चाहिये, सर्वप्रथम देवी से प्रagaacho थन कर पूजन की सफलता प्रagaप्ति का ध्यान करें और अपने सामने यंत्र पर तoque तांत Davidamente फल फल सgon.
ध्यान मंत्र को बोलते हुये काले तिल, सरसों सिन्दूर मिलoque क sigue
दुरorar. जब साधना पूर्ण हो जाये तो प्राagaellas सामने रखे हुये खीर के प्रसाद को ग्रहण करना चाहेि तांत्रोक्त फल, सरसों तथा तिल को दूसरे दिन किसी एकान्त स्थान पecer
प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवन में निरन्तर प्रयास कर उन्नति और प्रगति की ओर अग्रसर होने की तीव्र इच्छा से अपने जीवन पथ पर गतिशील रहता है परन्तु अनेक कारणों से वह अपने जीवन में निरन्तर असफलता, कष्ट-पीड़ा, बाधाओं से ग्रस्त रहता है जिसके कारण मानसिक और शारीरिक परेशानियों से त्रस्त होकर वह अपने जीवन का अधिकांश समय परेशानियों बाधाओं से ही बिताता है और अपने जीवन में सुस सुस हेतु वह नित नित नूतन नूतन प icio प गतिशील गतिशील हत।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। हेतु हेतु नित नित icio. यदि साधक अपने जीवन में आ रही निरन्तर कष्ट-बाधाओं को पूर्णता से निराकरण हेतु दैविय शक्ति को आत्मसात कर जीवन में गतिशील हो सके तो उसके जीवन में निश्चय रूप से श्रेष्ठता और उज्जवलता प्राप्त करने हेतु राज-राजेश्वरी दुर्गा शक्ति दीक्षा अवश्य ही ग्रहण करें।
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