यदि इसी जीवन में भौतिक और आध्यात्मिक रूप से पूर्णत्व प्राप्त करना है, हर कार्य में सफल होना हैं, अपने जीवन को ऊर्ध्वगामी बनाना है तथा समस्त पाप-दोष, बाधाओं को समाप्त कर, मानवीय जीवन के लिये अपेक्षित समस्त सुख और भोगों को प्राप्त करना है, अपने आप को पूरorar क्योंकि कई जन्मों की तृष्णायें, वासनायें, कर्म, पाप राशि, पुण्य कार्यों को मिलाकर ही एक नये जन्म का सृजन होता है। व्यक uto केवल अपने व balteador इसी के क sigue poreses
क्योंकि जीवन क mí उसकी दृष्टि के समक्ष जो कुछ होत mí उसको हम नकार नहीं सकते। इसका सीधा सा उदाहरण है, कि व्यक्ति को अपने जीवन के प्रagaendo. उसी प्रकार जीवन के कई-कई जन्म-जन्मान्तरों के पाप, दोष होते ही है जो हमारे हर कार्य में बाधा और परेशानियां बनकर आते है।
मृत्यु जीवन का अंत नहीं है, अपितु नये जीवन का निर्माण है, फलस्वuestos से कभी निकल ही नहीं पाता, अपितु और ज्यादा उसमें उलझता ही चला जाता है इसीलिये जीवन में सद्गुरूदेव का होना अत्यन्त आवश्यक है क्योंकि गुरू ही अपने शिष्य को समस्त बन्धनों और बाधाओं से बाहर निकाल कर धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को प्रदान करते है ।
सद्गुरूदेव अपने शिष्य की भावभूमि को जान जाते है, कि वह केवल भौतिक उन्नति के लिये ही गुरू से जुड़ा है और वह अपनी आध्यात्मिक उन्नति के लिये भी तत्पelar है।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। गुरू जान जाते हैं कि शिष्य का उद्देश्य इसीलिये गुरू शिष्य को श्रवण नक्षत्र युक्त चैत् Estatero जिससे शिष्य अपने जीवन में सभी दृष्टि से पूर्णता प्रagaप्त करता है और मंत्र साधना के माध्यम से शिष्य स धक के-कई म म प प क क favor
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