यह चिन्तन किसी पशु, पक्षी, कीट, पतंग आदि में नहसू ासॕ देवताओं और राक hablo
परन्तु जिसके जीवन में यह चिन्तन नहीं है कि मुझे प्रभु ने क्यों जन्म दिया है, मेरे जीवन की क्या गति है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है जिसमें यह धा rodendr
उस पशु जीवन से केवल गुरू ही उठा सकता हैं। मनुष्य जीवन का क्या उद्देश्य है इसे देवता भी नहीं बता सकते, क्योंकि जिन्होंने जन्म लिया ही नहीं इस इस मर्म को नहीं सकते।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। परन्तु गुरू ने जन्म लिया है और जन्म लेकर पूर्णता तक पहुँचा है, इसलिये वह शिष्य को जगह तक पहुँचा सकता है है।।।। है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है
जो पूर्णता का चिन्तन स्पष्ट करे, उसे गुरू कहा है९ जिस क्षण गुरू तुम्हें दीक्षा देता है, जिस क्षण वह तुम्हें अपने मुँह से शिष्य कह देता है, ठीक उसी क्षण तुम्हारा नया जन्म होता है, उसी क्षण वह ब्रह्मा बनकर तुम्हारी उत्पत्ति करता है, वही क्षण तुम्हारे जीवन का स्वर्णिम प्रभात होता है, वहीं से तुम्हारा नवजीवन शुरू होता है।
गुरू तुम्हें मात्omin गुरू तुम्हें एक चिन्गाisiones
मैंने तुम्हें उसी पगडण्डी पर अग्रसर किया है, जह siguee मैं तुम्हें ऐसा ही आशीर्वाद दे रहok हूँ कि तुम्हें जीवन में पूर्णता और श्águestos
मेरा स्वप्न यह है कि मेरे शिष्य सिद्धाश्रम की पवित्र भूमि को स्पर्श कर अपने जीवन को धन्य कर उसकी चेतना से ओतप्रोत होकर वहां के सानिध्य में तरल होकर, वहां की पावनता में पवित्र होकर, वहां की ज्योत्सना से शुभ होकर इस समाज को यह बता सकें कि बिन mí
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