मेरे नगर के बहुत बड़ा न होने के कारण यह असम्भव था, कि को शीघthág. उनके समकutar इसी कराणवश वे मुझे भय-घृणा मिश्रित भाव से मिला थइ थइ इस काल के मध्य मुझे अनेक प्रकार की सलाह-मशवरे और झिडकियां मिलीं, लेकिन सबसे अदutar
मैं आश्चर्य से उनको देखता ही रह गया कि साधना और देवी के विषय में लोगों ने कैसी-कैसी धारणाये बन sigue खी है।। तंत्र के विषय में जो धारणाये प्रचलित हैं हैं, उनका तो फिर भी एक बार तर्क की दृष्ट स्य म म मguna विचा न • सकत है ऐस सिद uto देवी देवी क iones विषय में है, तो कितने अधिक खेद की बात है।
यह सत्य है कि देवी साधना अत्यन्त दुष्कर होती है, उसको सम्पन्न करते समय अनेक विशिष्ट आचार-विचारों का दृढ़ता से पालन करना ही होता है, किन्तु यदि इसी आधार पर देवी साधना को भयंकर, हानिप्रद, अनिष्टकारी और विपरीत प्रभावकारी वर्णित किया जाये तो विचार करना पड़ जाता है। मैं यहां वही रटी-corresponde ट बात भी नहीं कहने जा रहok कि माता कुमात न भवतिthतु यही बात इस आधा rodendr । यह किसी भी देवी या देवता के स्वभाव का अंग नहीं हो जिस देवत्व के आधार पर हम सामान्य बोलचाल में कहते हैं कि अमुक व्यक्ति एकदम देवता है या अमुक स्त्री बिल्कुल देवी है, उसका यही तो तात्पर्य है, कि वह व्यक्ति या स्त्री प्रत्येक दशा में कल्याणकारी है, उसके अन्दर से राग-द्वेष, घृणा- हिंसा की भ sigue.
वस्तुतः देवी साधना या महाविद्या साधना के विषय में एक विशिष्ट प्रकार के संयम एवं आचार-विचार का प्रावधान केवल इस कारणवश किया गया था, जिससे साधक, साधना की उच्च भाव भूमि पर आसीन होते समय च्युत न हो सके और इस तथ्य का निरूपण इस प्रकार से किया गया कि देवी साधना या महाविद्या साधना में अमर्यादा युक्त काisiones इस विशेष सutar
इस भ्रमात्मक स्थिति को उत्पन्न करने में उन पंडितों-पुरोहितों की भी बहुत बड़ी भूमिका रही है, जो पूजन-अर्चन से सम्बन्धित कर्मकांड को अपनी पैतृक सम्पत्ति बनाये रखना चाहते थे और यह तभी सम्भव था जब सामान्य जन के मध्य भ्रम एवं भय व्याप्त हो सके । आज भी अनेक पढ़े-लिखे और अन्यथा प्रबुद्ध साधकों को यह कहते प mí सम्भवतः भ्रम की इससे अधिक कोई भी पराकाष्ठा नहीं हो।।
जिस प्रकार एक भीरू व्यक्ति ही लड़ाई के लिए पैंतरे बदलते अधिक दिखता है, उसी पgonenda दीन-हीन-पतित की मानसिकता से से युक्यक ही अधिक जोर-शोर से बढ़क ढोलक ढोलक ढोलक पीटत पड़त razón। दिख दिख अधिक अधिक अधिक अधिक।। दिख। ई।।।. वह वास्तव में दया का पात्र ही होता है, क्योंकि उसे साधना का मर्म जानकर अपने जीवन को निशि्ंचतता नहीं दी है वरन इस प्रकार से वह अपने भय को छिपाने का असफल प्रयास ही तो कर रहा है। यहीं शक्ति साधना का महत्त्व स्वयमेव स्पष्ट हथजा जॾ यदि यह कहा ज siguez आवश्यकता है तो केवल इस बात की, कि साधक अपने विभ्रमों से मुक्त होने की क्रिया करे तथा उसे उचित साधना-विधि प्राप्त हो सके, क्योंकि प्रायः उचित साधना-विधि प्राप्त न होने के कारण एवं तदनुसार असफल रह जाने के कारण ही व्यक्ति के मन में यह ध sigue, प्रबल हो जाती है, कि शक्ति साधना में सभी को प्रवेश का अधिकार नहीं।।।।।।।।।।।।।।।। यदि कोई आठ वर्ष का बालक स्नातक स्तर की पाठ्यपुस्तक को पढ़ कर न औ औecer.
किन्तु योग्य साधक वही होता है, जो अपने स्तर, अप नी क्षमता को ईमानदारी से स्वीकार कर, अपने ही स्त र एवं क्षमता की विधि प्राप्त करने की चेष्टा में रत रहता है तथा उसे सम्पन्न कर भविष्य में उच्चको टि की साधनाओं की ओर अग्रसर रहता है।
यद्यपि साधना जगत में उच्चकोटि अथवा निम्न कोटि जैसा कोई भेद नहीं है। प्रत्येक साधना ही अपने स्थान पर श्रेष्ठ है, वंदनीय है, फिर भी कुछ साधनाये शक्ति प्रagaप sup की होती हैं औ औ कुछ शक्ति-सिद्धि की।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। eléctrico eléctrica प्रagaacho में में शक्ति प्रagaप्ति की ही साधनाये करनी पड़ती है, जिस्रकार एक डायनेमो पहले बाह्य रूप में में्ति प्तguna जya ज।।।।।। -क।।।। -क।।।।।।।।।।।।।।।।।। त त त त त त त त त त त त त त त त त त त त त त त त त त त त त त त त त त त त त त त त त त त।।।. इसी कारणवश केवल प्रagaacho स साधक ही नहीं अपितु साधना पथ पर काफी आगे बढ़ चुके साधक भी आत्मविवेचन कर इस प्रकendr
प्रस्तुत लेख इसी इसी श्रेणी की एक प्रagaaga qued a यह भगवती दुर्गा की विशेष फलप्रदा जया साधना है। भगवती दुर्गा की साधना अपने आप में पूर्ण शक्ति प्राप्ति की साधना है और मूलतः यही जगत की समस्त क्रियाओं की संचालिका है, किन्तु प्रारंभ में सीधे भगवती दुर्गा की साधना करने से साधक को कोई भी लाभ नहीं हो सकता, क्योंकि कोई भी साधना प्रथम दिन से ही उस भावभूमि और चैतन्यता पर आसीन नहीं होता, कि वह सहज ही भगवती दुû की साधना को सिद्ध कर ले।।
यद्यपि पूर्वजन्म की संचित साधना एवं संस्कारों के फलस्वरूप, साधक ऐसी साधना में प्रवृत्त अवश्य होता है, किन्तु यहाँ एक बात ध्यान में रखने योग्य है, कि भले ही साधक के कितने ही पूर्वजन्मों के संस्कार क्यों न हो, उसे भी वर्तमान जन्म में अपने को जाग्रत करने की क्रियाये करनी ही पड़ती हैं, क्याेंकि जहाँ एक ओर इस चित्त पर पूû पू वजन uto के संस संस्कendr. इसी कारणवश प्रस्तुत साधना न केवल प्रagaagaacho भिक साधकों के लिये है अपितु अपितु साधना के पथ पर कुछ समय से गतिशील साधकों के लिये भी सम सम सम timo से से।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।.
यह भगवती दुरorar. धना हेतु आवश hubte तक शक्ति की कोई भी साधना सफल हो ही नहीं सकती, चा हे वह कोई भी महाविद्या साधना हो अथवा गा की साधना।
भगवती जय mí
अर्थात् जिनके अंगों की आभा श्यामवर्णीय मेघ के समान है, जो अपने कटाक्षों से शत्रुसमूह को भय प्रदान करती है तथा अपने मस्तक पर आबद्ध चन्द्रमा की रेखा से शोभा पाती है, हाथ में शंख, चक्र, कृपाण और त्रिशूल धारण करने वाली, तीन नेत्रें से युक्त, सिंह के कंधों पर आसीन, अपने तेज से तीनों लोकों को आपूरित करने वाली उन जया नाम की दुर्गा का ध्यendr.
उपरोक्त ध्यान से यह पूर्णतयः प्रकट होता है, कि भगवती दुर्गा का ही वरदायक स्वरूप जया है।।।।।।।। यह भगवती दुर्गा की कृपा है, कि जहाँ एक ओर वे साधना के माध्यम से दुःसाध्य कही है, वहीं वे एक एक अन अनguna कल्य पूguna स जय जय. जय म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म ण ण tan. देवी एवं देवता भय की स्थिति नहीं है वरन वे तो स्वयं आतुर हैं हैं, कि कब उन्हें उचित आधार और वेर वे अपने कल्याणकारी स्व के चेतन औ देवी देवत य य tima होती है। साधक उचित साधना के द्वाisiones
स्वयं को प्रत्येक ढंग से परिपूर्ण बना लेना और जीवन की दुर्गतियों का समापन कर सकना, ये दुर्गा की साधना के सहज फल होते हैं और साधक इसे और भी सरल रूप में सिद्ध करना चाहे, तो प्रस्तुत साधना के माध्यम से सिद्ध कर सकता है। किसी भी माह की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा या 30 जून 2022 को सम्पन्न की जाने वाली इस साधना का मूल प्रellos इस साधना के माध्यम से ही साधक महाविद्या साधनाओं में प्रवेश का केवल अधिकारी ही नहीं वरन सुपात्र भी हो जाता है तथा भगवती जया की विशिष्ट जयप्रद शक्ति के कारण सहज ही उन बाधाओं से मुक्त रहता है, जिनकी साधना प्रत्येक महाविद्या साधक को करनी ही पड़ती है । इस साधना को सम्पन्न करने हेतु साधक के पास ताम्रपत्र पर अंकित जयादुर्गा यंत्र होना अति आवश्यक होता है, क्योंकि उनकी शक शक क uto व gas इस महतutaros
साधक ल siguez यंत्र तथा तांत्रोंक्त फल को स्थापित कर दोनों का पूजन कुंकुम और अक्षत से करें। तदुपरांत हकीक माला से निम्न मंत्र की पांच माला मंत्र जप करें-
यदि स mí. केवल जया दुर्गा की सिद्धि की कामना रखने वाले साधकों के लिये पांच माdos मंत्र जप के उपर gaste
इस अद्भूत चैतन्य, शक्तिदायी एवं सिद्धिप्रद सा धना को सम्पन्न कर साधकगण स्वयं अनुभव कर ं, कि देवी की साधना अपने आप में कितना अधिक प्रवा ह, तृप्ति एवं मधुरता लिये हुये है साथ ही मातृस्व रूपा होने के कारण वे अपने साधकों के उन दुःखों क ो भी समाप्त करने में समर्थ हैं ही, जिनको साधक प्रकट करें अथ वा न प्रकट करें।
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