पराजित व्यक्ति तब होता है, जब वह अपने आपको दुर्बल अनुभव करने लगता है— और जो दुर्बल है, उसका जीवन व्यenas है है।।।।।।।।।।।।।।।।।। प्रत्येक व्यकorar पसंद नहीं है।
मनोवैज्ञानिकों के कथनानुसार इस महत्त्वबोध की भावना को जीवन की श्रेष्ठता कहा गया है और महत्त्वहीनता के एहसास को हीन भावना कहा गया है, निम्नता गया गय है।।।।।।।।।।।।।। भावना कहा गया है, निम poster उच्चता प्राप्त करने की आकांक्षा सर्वप्रथम बाल्यावस्था में ही उत्पन्न होने लगती है, जो धीरे-धीरे बढ़ती उम्र के साथ उसके अन्दर महत्वकांक्षा का रूप धारण कर लेती है और जब व्यक्ति अपनी महत्वकांक्षा को पूरा नहीं कर पाता है, तब वह निराश होता है, दुःखी और संतप्त होता है, क्योंकि वह अपने अन्दर उस तत्व का, उस शक्ति का, उस का अभाव महसूस कgunaza है है जिसकेnas
अवरोधों को दूर कर बाधाओं को लांघते हुए निरन्तर उन्नति की ओर अग्रसर होना कोई सरल कार्य नहीं है, क्योंकि आपाधापी के इस युग में जहाँ सिर्फ ईर्ष्या, द्वेष, वैमनस्य के कारण ही परस्पर विरोधी प्रत्याघात किये जाते हैं, ऐसे में अपराजित होना एक दुष्कर कार्य है, वस Nuestzo कहने को तो यह छोटा सा जीवन है, किन्तु इस जीवन को जीवंतता के साथ, सम्पन्नता के साथ, पू demás के साथ जीने में लम्बा समय ज जguna है।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। ज ज. हो सकता है कि यह जीवन यात्omin.
भौतिकवादी युग में म siguez जब वह व्यवस्था क्रम को पार करने में भली प्रकार सफल हो जाता है, तभी वह सही अर्थों में पूर्ण मानव कहलाता है, परन्तु प्रतिस्पर्धावादी इस युग में निरन्तर उन्नति के पथ पर गतिशील हो उन सभी कार्यों को पूर्णता देना, बिना शक्ति तत्व के प्रादुर्भाव के एक असम्भव सा कार्य है।
वस्तुतः व्यक्ति अत्यधिक परिश्रम करने के बाद भी जीवन में सफलता प्राप्त नहीं कर पाता, ऐसा भी नहीं है कि वह प्रयत्न नहीं करता हो, ऐसा भी नहीं है, कि वह किसी प्रकार की न्यूनता बरतता हो, परन्तु फिर भी वह सफलता अर्जित नहीं कर पाता ।
यह बात तो निश्चित है, कि व्यक्ति अपने प् Est.
जो कायर होते हैं, निर्बल होते हैं, वे ही पर gaste इस यंत्र को धारण करने के बाद जीवन में आये दुःख, दैन्यता, अभाव रूपी समस्त शत्रुओं को आसानी से पर marca किय किय tomar जा सकत।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।. इस यंत्र के माध्यम से हर छोटी-बड़ी मुश्किलों को सरलता से दूर किया जा सकता है।
चाहे जीवन का कोई भी क्षेत्र हो, अपराजिता सिद्धि विजयदशमी की महत्ता को ग ग्रंथों, शास्त्रों में एक सgon. से ह किय क है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है. को, ब mí.
método de meditación
यह साधना अपर marca सिद्धि विजयदशमी दिवस को की जा सकती है। इस साधना को किसी भी माह में किसी भी शुक्रवार के दिन प्रellas
इस साधना के लिये आवश्यक सामग्री है- अपर gaste
जिस दिन साधना करनी हो, उस दिन प्रagaतः काल 5 बजे से 7 बजे के बीच में स demás. अपने सामने जमीन पर यदि आपको अल्पना (रंगोली) बनानी आती हो, तो बनायें अथवा गुलाल से स्वास्तिक अंकित करें। स्वास्तिक के मध्य में पांच पीले पुष्प रखें और उनके ऊपर यंत्ág. यंत्र का पंचोपचार पूजन करें। स्वस्तिक की दाहिनी और किसी पात्र में चक्र को इख॥ चक्र का भी पुष्प, अक्षत से पूजन करें। दाहिने हाथ में जल लेकर आप जिस कार्य के लिये इस साधना को सम्पन्न कर ominal हैं।।।।।।।। उसका उच्चारण कर जल जमीन पर छोड़ दें।
51 XNUMX बार निम्न मंत्र का -
फिर हाथ जोड़कर इस जगत के प mí उपरोक्त क्रम के अनुसार ही तीन दिन तक साधना करहै तीसरे दिन यंत्र एवं चक्र को मिट्टी के बर्तन में ¢ पुष caso औár.
इस साधन razuar
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