शिष्य निरन्तर गुरू चिन्तन करना अपना परम कर्त्तव्य समझता है।।।।।।। इससे न केवल उसे आध्यात्मिक बल प्रagaप्त होता है, मन शुद्ध रहतok है अपितु बाहरी दूषित वातावरण भी उसके मन पर प्रतिकूल प Davág seaव नहीं नहीं प पellas
शिष्य कोई अन्य मंत्र जप करने की अपेक्षा गुरू मंत्र को अपने में में प्रधendr
गुरू शिष्य से किसी भे ंट उसे तो केवल निश्छल प्रेम द्वारा अपना बनाया जा सा सा सा सा एक शिष्य गुरू को धन धन, यश, प्रतिष्ठा भेंट आदि द्वारículo प्रभावित करने की अपेक्षा श्रद् avor
शिष्य व्यक्ति तब कहलाता है जब वह गुरू के कार्यों को पूर्णता प्रदान करने में अपना तन-मन लगा देता है।।।।।।।।।।।।।।।।।।। गुरू को वह शब्दों द्वाisiones
शिष्य का सर्वोच्च गुण है गुरू में श्रद्धा। केवल गुरू मंत्र जप करने से श्रद्धा प्रमाणित ऀहो ऀहो सच्ची श्रद्धा तो वह है कि शिष्य पर कितनी ही विकट समस्याये क्यों न टूट वह निडû endr केवल यह कहने से कि मुझे गुरू पर विश्वास है, श्रद demás व्यक्त नहीं।।।।।।।।। श्रद्धा तो तब व्यक्त होती है जब विषम से विषम स्थिति में भी शिष्य निष्कंप तथा अविचलित बना रह सके।।।।।
शिषutar नहीं कर सकता। क्योंकि तब गुरू स्वयं उसे सही मार्ग पर बर marca
शिष्य नाम या यश प्रagaप्त करने के लिये गुरू का कार्य नहीं करता, उसका नाम हो य य नहीं हो गुendr.
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