मैं जगाकर तुम्हें उस आनन्द को दिXNUMX तो तुम कहां से देखोगे, क्योंकि देखने हारे पास नहीं है और उसे देखने के भाव के लिये तुम ्हें सूक्ष्म जगत में जाना पड़ेगा।
अन्दर जो कुछ सुप्त ावस्था में है उसको क्रिया को 'कुण्डलिनी जागरण' कहते है। सूक्ष्म जगत में व्यक्ति कुण्डलिनी के माध्यम स े जाता है, उस गुरू की कृपा से, ठोकर से, चेतना से, उ सके विचार से, उसके व्यवहार से, उसके कहने र।
जब तुम सूक्ष्म में जाओंगे तब तुम्हारे देखने क ा भाव कुछ और होगा, तब तुम्हें देखने का आनन्द आगेद ा। जिस दिन तुम्हारें अन्दर ऐसा भाव आयेगा। तुम अपने आप सूक्ष्म जगत में चले जाओंगे।
मनुष्य सुख और आनन्द तभी अनुभव कर सकता है जब वह आन्तरिक रूप से भी सुखी व सफल हो, और आन्तरिक रूप स े सुखी होने के लिये यह आवश्यक है कि वह धर्म का आस रा ले, शास्त्र का आसरा ले।
सातों शरीरों को भेदन करने की क्रिया जीवन की अन ुभूत क्रिया है। वह चाहे भूः लोक हो भुवः लोक हो स्वः लोक हो लोक हो, जनः लोक हो, तपः लोक हो और चाहे सत्यं लोक ह ो, ये समस्त लोक शरीर के अन्दर के लोक और सातवें द् वार पर पहुँचने की क्रिया को अध्यात्म कहते है ।
विज्ञान की एक लिमिट है, एक सीमा है, वह बाहरी जीव न के चिन्तन को तो दे सकता है, पर आन्तरिक जीवन के आ नन्द को वह प्रदान नहीं कर सकता ——– और आन्तरिक के आनन्द को प्रदान करने की क्रिया को ही '' कहते है, ''साधना'' कहते है, ''समाधि'' कहते है। इस ध्यान, समाधि और साधना को जीवन का आवश्यक तत्व और अनिवार्य तत्व माना गया है।
मनुष्य पूर्ण आनन्द है——— मैं 'आनन्द' शब्द का प्रय ोग कर रहा हूँ, 'सुख' शब्द का नहीं। सुख तो बाहरी वस्तुओं से प्राप्त हो सकता, ्द नहीं। आनन्द तो आन्तरिक अनुभूतियों से प्राप्त हो सकत ा है और आन्तरिक अनुभूतियाँ जब हम सातवें द्वार त क पहुँचते है, तब प्राप्त हो सकती हैं।
Es obligatorio obtener Gurú Diksha del venerado Gurudev antes de realizar cualquier Sadhana o tomar cualquier otra Diksha. Por favor contactar Kailash Siddhashram, Jodhpur a Correo electrónico , Whatsapp, Teléfono or Enviar para obtener material de Sadhana consagrado, energizado y santificado por mantra, y orientación adicional,
Compartir vía: