साधक का मन कलपतरू है मन के समुद्र भावनाये आत्मिक शक्ति में परिवर्तन हो जाती है। यदि साधक का मन पूर्ण विश्वास, निर्भय , आशा और क ल्याण कारी भावों से भरा होता है तो उसे अनंत वरद ान मिलते है। यदि वह विपरीत स्थितियों से भयभीत हो जाता है और अमूल्य विश्वास को खो बैठता है तो वह स्वयं को ही खो देता है तथा सदा के लिये नष्ट हो जाता
वस्तुओं के त्याग में भक्ति नहीं है। वहतो व्यक्ति की बहुमुखी प्रतिभा ्ति है। धर्म कभी भी मनुष्य को दैनिक कार्यो का त्याग क रने को नहीं कहता, वह अर्थात् धर्म उसे केवल मानसि क असंतुलन, नैतिक बुराईयो तथा आत्मिक अज्ञान से छ ुटकारा पाने को कहता है।
साधना तो सुबह से रात्री तक अथक परिश्रम नचर्या है। केवल होठों से मंत्र बुद-बुदाने से साधना नहीं ह ोती।
साधक से अधिक संसार में कोई भी सुखी-व्यक्ति नही ं है। क्यो ंकि सामान्य व्यक्ति अविद्या ता है। अविद्या से अहंकार उत्पन्न होता है। अहंकार से भय उत्पन्न होता है। भय से संशय उत्पन्न होता है। संशय किसी विषय से होता है विषय से भोग की होती है। और, कामना से भोग उत्पन्न होता है। भोग से संस्कार बनते है। संस्कारों से ही जन्म मृत्यु और पुनर्जन्म तीन स्थितियां मनुष्य के भीतर दुःख और अशांति लाते है ।
वास्तव में सुखी रहने के लिये अविद्या, संशय और अ हंकार की जड़ों को गुरू द्वारा बतलाये गये साधना त्मक मार्ग से पूर्ण रूप से काटना आवश्यक है।
प्रार्थना और मन की भाव अभिव्यक्ति, ऐसी स्वच्छ कर देने वाली औषधि है जो हमारे मन की गंदी त और सड़ी हुई वस्तुओं को साफ कर देती है।
इसका तात्पर्य है सद्गरू रूपी प्रभू ात मत छिपाओं उनसे सब कुछ कह दो यद्यपि सद्गुरू सब कुछ जानते है। फिर भी तुम्हें अपने मन की गंदगी निकाल डालने के लिए सब कुछ कहना ही पड़ेगा। उनके सामने अपने सब कार्य और दोष कह डालो अर्थात ् गुरू के सामने बिल्कुल शून्य ओर अवधूत बनकर जाओ ं।
तुम कही भी रहो जब तक तुम्हारा मन श्रेष्ठ न साधना और उसके साथ गुरू कार्य में लगा है तो तुम मेरे शिष्य हो।
Es obligatorio obtener Gurú Diksha del venerado Gurudev antes de realizar cualquier Sadhana o tomar cualquier otra Diksha. Por favor contactar Kailash Siddhashram, Jodhpur a Correo electrónico , Whatsapp, Teléfono or Enviar para obtener material de Sadhana consagrado, energizado y santificado por mantra, y orientación adicional,
Compartir vía: