शिष्य जितना गुरू से एकाकार होता है उतना ही गुरू उसको आगे धकेलता ¢ है।।।।।। शिष्य पर नि¢ है कि वह अपने आप को पूर्ण समर्पित करता है या अधूरा समर्पित करता है।।।।
इस ढंग से कोई हीरे नहीं लुटाता, जिस ढंग से मैं ज्ञान आप पर लुटा रहok हूँ, यह आपका सौभाग्य, कि मैं आपको उस जगह ले ज सफलताहत च च अपने अपने आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप मैं मैं मैं मैं मैं मैं मैं मैं मैं मैं मैं मैं मैं मैं मैं मैं मैं मैं मैं मैं मैं मैं मैं मैं मैं मैं मैं मैं मैं मैं — शब्दों पर दृढ़ हूँ और मैं आपको अद्वितीय बना रहॾ रहॾ
समुंद्र खुद आगे चलकर गंगोत्री के पास नहीं जायेगा, कि गंगा तुम मुझे मिल लो लो, गंगोत्री से गंगा खुद उतर कर समुद्र तक जायेगी। उस गंगा को जाना है समुद्र तक, यदि गंगा नहीं जायेगी, बीच में सूख जायेगी तब भी समुद्र अपनी जगह को नहीं छोड़ेगा। समर्पण तो शिष्य को ही करना पडे़गा।
जुदाई तो अपने आप में एक तपस demás है, किसी का इंतजार है, अपने में में पूर्ण साधना है।।।।।।।।।। किसी को याद करना, किसी के चिंतन में डूबे ivamente, अपने आप में ईश्वर की साधना है।।।।।।
अगर भगवान को साक्षात् देखना है, उस प्रभु के सामने साक्षात् नृत्य करना है, उस प्रभु को अपनी आंखों में बसा लेने क् razón िय sigue स्त्री का अर्थ है, जिसका हृदय पक्ष जाग्रत हो, क्योंकि हृदय पक्ष को जाग्रत करने की क्रिया से प्रेम है।।।। है है।।। है है है है है है है है है है है है है।।।।।।।।।।।।।।।
प्रेम का तात्पर्य है ईश्वर और जब तक प्रेम के रस में भीगोगे नहीं, ईश्वर की प्राप्ति नहीं ी गुरूदेव से साक्षात्कार नहीं हो सकता—- और यह अंद र उतर कर प्रभु से साक्षात्कार करने की क्रिया ही तो प्रेम है।
गुरू कृपा प्रagaप्त होते ही शिष्य की आत्मा पूर्णरूप से ब्रह्म स्वरूप बन जाती है और उसका जीवन सार्थक एवं धन्य हो जाता है।।।। देवता भी इस प्रकार की कृपा प्रagaप्ति के लिये लालायित रहते है।।।।
मंद व दुर्भाग haba
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