मकर संक्रagaन्ति का महत्व पौराणिक शास्त्रें में विस्तृत रूप से आया है।।।।।। भारतीय खगोल शास्त्रियों ने पृथ्वी की घूमने की गति और सूर्य की स्थिति के अनुसार यह गणना की है कि मकर संक्रान्ति के दिन अर्थात् 14 जनवरी को सूर्य हेमन्त ऋतु से शिशिर ऋतु में प्रवेश करता है तथा यह दक्षिणायन से उत्तरायण में आता है। महाभारत काल में यह भी विवेचन आया है कि भीष्म पितामह को इच्छा मृत्यु का वरदान था और युद्ध में जब वि दक्षिण Dav "थ थ तो घ होक razón गिर पड़े।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।.
लेकिन ब mí. पृथ्वी सूर्य के छः महीने उत्तर में तथा छः महीने दक्षिण में रहती है।। इसीलिये श्रेष्ठ साधनाये रवि उत्तरायण में हो तब तो अवश्य ही सम्पन्न करनी चाहिए। साधक वर्ष भर में 21 साधनायें सम्पन्न करने का संकल्प मकर संक्रagaन्ति के दिन अवश्य ही लें।।।।।।।।।।।।।।। क्योंकि उत्तर दिशा उदय का प्रतीक मानी गई है तथा दक्षिण दिशा अस्त की प्रतीक मानी गई है।।।।।।।।।।।।।।
मकर संक्रagaन्ति से ही देवताओं का ब्रह्म मुहूर्त प्रagaendo. इसीलिये श sigue. ज्योतिष शास्त्omin con मकर संक्रagaन्ति का महत्व यह भी है कि इस समय शीत ऋतु समाप्त हो जाती है और दिन बड़े होने लगते हैं, वसंत का शुभागमन होना प Davidamente होत होत है।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। eléctrico। elécger
इस दिन से ही सूर्य का प्रकाश और प्रagaणदायिनी ऊष्मा निरंतर वृद्धि की ओर अग्रसर होकर पूरे संसार को आनन्द से भ देते।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। eléctrico eléctrico आनन demás मकर संक्रagaन्ति के दिन ही गंगासागर पर वरूण देव की कृपा से समुद्र के बीचों-बीच टापू उभरता है जहां नाव या जहाज पर जाकर लाखों भक्त स्नान क हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।. यह ठीक उसी प्عaga है कि जिस प्रकार वर्ष में एक बार अमरनाथ गुफा में बर्फ से पूर्ण शिवलिंग का निर्माण होता है।।। है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है a है है है है है है है है है है है है है है है a है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है. मकर संक्रagaन्ति माघ मास में आती है और इस दिन सूर्य मकर र gaste
मकर संक्रान्ति दान का दिवस है और इस दिन अपनी इच्छानुसार योग्य व्यक्ति को दान करना चाहिये, तीर्थ स्थानों पर स्नान करना चाहिये, पंजाब में तो यह मकर संक्रान्ति के एक दिन पूर्व 'लोहड़ी' के रूप में सम्पन्न किया जाता है। उस दिन अग्नि देवत mí
गुजरात और महार marca में में सौभाग्य दिवस के रूप में मनाया जाता है।।।। सौभ sigue. तमिलनाडु, आंध्रaga, केरला में यह पोंगल पर्व के रूप में मनाया जाता है जो कि दक्षिण भारत क mí
एक विशेष बात यह है कि प्रagaचीन भारत में ऋषि आश्रमों में, गुरूकूल में वेद अध्ययन का तीसरा सत्र शुरू होता था तथ इस प वसन वसन पंचमी तक लोग अपने बच बच ° Estaje दक्षिण भारत में तो विद्याध्ययन का प्रagaagaega म बालकों को अक्षर आरम्भ पोंगल (मकर संक्रagaन demás) के दिन ही सम्पन्न कियातातात va है।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। eléctrica
उपरोक्त विवचेन से यह स्पष्ट है कि मकर संक्रagaन्ति उतना ही महत्वपूरorar सबसे विशेष बात यह है कि यह सूर्य सिदutar इस कारण सूर्य साधना के साथ-साथ गायत्री साधना, विष्णु साधना तथा अन्य महत्वपूर्ण साधनाओं का संकल्प दिन लेना चाहिये।।।।। च च चacho. साधना के लिए दो पर्व विशेष रूप से महत्वपूba ender
मकर संक्रagaन्ति ही ऐसा अकेला भारतीय पर्व है, जो अंग्रेजी तारीख में प्रत्येक 14 जनवरी को ही आता है।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। जब सूर्य मकर ¢ ेख स्पर्श करता है तब संक्रagaन्ति घटित होती है और सूर्य की के केरूप ही सौर वς वर्ष अर importa थ्य प razón इसके विपरीत अन्य तिथिय sigue. इस कारण से मकर संक्रagaन्ति को सूर्य साधना के लिए श्रेष्ठ मुहूर्त बताया गया है।।।।।
सब ग्रहों में सूर्य ही प्रधान देव हैं, सू¢ के के बिन जीवन की कल्पना ही की ज जा है है, सूर्य ही जीवन तत कोguna ततر कguna करने व व प Nija, क uto प S.
मकर संक्रagaन्ति का महत्व इस कारण सबसे अधिक बढ़ जाता है, कि उस समय सूर्य उस कोण पर आ जाता है, जब वह अपनी सम सम्पूacionण ender. मिय मिय म म razón उत da,।।।।।।।।. इन ivamente को किस किस प्रकार से ग्रहण कर लिया जाये, इसके लिए साधक का चैतन्य होना आवश्यक है।।।। तभी ये ivamente सूरorar
मकर संक्रagaन्ति का पर्व हिन्दू परम्परículo में प्रagaचीन काल से ही अत्यन्त श्रद्धा से मनाया जाने वाला पί है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है eléctrico eléctrico ज्योतिष की गणन mí यद्यपि संक्रमण तो पूरे वरorar. ज्योतिष की दृष्टि से क्यों इसी संक्रमण का विशेष महत्व माना गया है, यह पृथक वर्णन और विवेचना का विषय।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। कैसे इस पर्व विशेष का अधिकतम लाभ प्रagaप्त किया जाये यही लेख लेख की विषय वस्तु है।।।।।।।।।।।।।
पूज्यपाद गुरूदेव ने कई वर्ष पूर्व इस पर्व से स म्बन्धित एक गोपनीय रहस्य का उद्घाटन किया था कि इस दिवस पर तांत्रोक्त, मांत्रोक्त अथवा किसी पद्धति की कोई भी साधना सम्पन्न की जाये तो उसका निश्चय ही शीघ्रगामी फल प्राप्त होता है।
यह तो किसी भी साधक की अपनी भावना हो सकती है, कि उसके मानस में किस स mí. भगवान सूर्य से सम्बन्धित साधना को ही सम्पन्न किया जाये तो विशेष अनुकूल रहतok है।।।।।।
शास्त्रों में वर्णित है कि पौष माह में भगवान सूर्य अपने पूषा नामक आदित्य स्वरूप में रहकर समस्त मंत्रों में पुष्टि का कार्य करते है तथा पौष के पश्चात् माघ माह में भग के स्वरूप में अवस्थित हो समस्त पृथ्वी व पर्वतों में समाहित हो जाते हैं। मकर संक्रान्ति का पर्व एक प्रकार से पौष व माघ माह के संक्रमण काल पर घटित होने वाला पर्व है और कदाचित यही मकर संक्रान्ति को सर्वोच्च संक्रान्ति मानने का कारण भी है, क्योंकि इस अवसर पर समस्त मंत्रे को पुष्ट व जाग्रत कर भगवान सूर्य का आगमन इस धenas पर होता है या दूसरे शब्दों में पूरी की पूरी धरा मंत्रमय होने की दशा में आ चुकी होती है।।।।।।।।। ऐसी स्थिति में यह स्वाभाविक ही होगा, कि साधक किसी भी साधना को सम्पन्न करे, उसे पूर posterir
आगे की पंक्तियों में भगवान सूर्य के इन्हीं द्वादश आदित्य रूपों से सम्बन्धित साधना विधान को प्रस्तुत किया जा रहा है, जिससे साधक को सम्पूर्ण वर्ष भर के लिए एक प्रकार की सर्वांगीणता प्राप्त हो सके या अधिक स्पष्ट रूप से कहें, तो उसके लिए सम्पूर्ण वर्ष ही मंत्रमय, साधनामय होने की दशा निर्मित हो सके। प्रस्तुत साधना विधि की यह विशेषता है, कि यदि इसे मकर संक्रagaन्ति के अवसर पर सम्पन्न किया जाता है तो स सर्व अनुकूल अनुकूल।।। है है है है न न N pero कियella योग्य साधकों को तो इसी साधना विधि का प्रत्येक संक्रagaन्ति के अवसर पर पुनर marca • करते देखा गया है।।।।।।।।।।।।।।।
सूर्य की निरन्तर साधना करने से व्यक्तित्व में तेजस्विता आती।।।।।।।।।।।।।। मनुष्य के मन में व्याप्त निराशा दूर हो जाती है। सूरorar.
सूर्य साधना से नेत्रों की ज्योति श्रेष्ठ हो जाती है, निरन्तर सूर्य साधना, सूर्य नमस्काendrza जिसके फलस्वरूप ज्योति तीव्र होकर चश्मा भी उतर जा ा
सूenas साधना से पेट सम्बन्धी बीमारियां बिल्कुल दूर हो जाती हैं।।।।
सूenas साधना से शनि सम्बन्धी दोष पूर्ण रूप से समाप्त हो जाते हैं क्योंकि शनि सूर्य पुत्र है।।।।।।। अतः शनि की साढे़ स siguez
सूर्य साधना से व्यक्ति में क्रोध की भावना कुछ अवश्य बढ़ जाती है लेकिन श्रेष्ठ दिशा में क्रोध व्यक्ति को â â ति की ओर ले जguna है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है objetivo
सूर्य साधना से साधक का पराक्रम जoque ज होने से से शत्रु अपने आप शांत होने हैं।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।
सूर्य साधना से सौभाग्य की वृद्धि होती है और स्त्रियों द्वाisiones
Ver más Ver más में उन्न्ति प्राप्त करने के इच्छुक साधकों को 14-01-2022 को प्रातः सूर्योदय से पहले उठकर स्नान आदि नित्य कर्म कर या तो श्वेत वस ्त्र धारण करें तथा गुरू चादर ओढ़ लें। पूर्व की ओर मुख करके बैठ जाये। जिस रंग का वस्त्र धारण करें उसी रंग का आसन व यं त्र को स्थापित करने का वस्त्र भी होना
अपने समक्ष किसी तामपत्र में 'सूर्य यंत्र' स्थापित कर उसके चारों ओर सूर्य के द्वादश स्वरूप 'द्वादश आदित्य हकीक' को स्थापित करें तथा यंत्र व द्वादश आदित्यों का पूजन कुकुंम, अक्षत, पुष्प, धूप व दीप से कर, सम्पूर्ण वर्ष के लिए तेजस्विता प्रagaप्ति एवं दुःख दैत्य के नाश की प्रagaagaacho थन कर 'लाल हकीक म mí.
मंत्र जप के पश्चात् नेत्र बंद करके, अपने आसन पर बैठे-बैठे ही भावना करें कि सूर्य भगवान अपनी सम्पूर्ण तेजस्विता के साथ उदित होते हुए अपनी रश्मियों के माध्यम से आपके सम्पूर्ण शरीर व प्राणों में समाहित हो रहे हैं और एक प्रकार के आवहान की भावना से सम्पूर्ण शरीर आप्लावित होता जा रहा है। इसी स्थिति में बैठे-बैठे म sigue.
इस प्रकार से इस दिवस पर यह साधना सम्पूर्ण होतै ह सायंकाल यंत्र, हकीक पत्थर व माला को किसी पवित्र स्थान पर विसर्जित कर दें।।।। यथा सम्भव आगे भी नित्य अथवा प्रत्येक रविवार एवं प् Est.
यह कोई चमत्कार प्रधान साधना विधि नहीं है, किन्तु इसे सम्पन्न करने के पश्चात् आपके में हो हो रहे पûendr
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