अenas का वृक्ष भारत में लगभग सभी स्थानों पर पाया जाता हैं।।।।।। विशेषकर उत्तár. इसके वृक्ष जंगलों में पैदा होते हैं जो बहुत बड़े होते है। बाग-बगीचों एवं के के किनारे भी इसके वृक्ष लगाये जाते हैं, इसके वृक्ष की ऊँचायी 60 से 70 फीट होती है।।।।।।।।।।।।।। वृक्ष की ऊपरी छाल सफेद सी होती है किन्तु आन्तरिक छाल गुलाबी रंग की मोटी होती।।।।।।।।।।।। इसके पत्ते का आकार मनुष्य की जीभ के समान होता है पत्तों के पीछे डंठल पर दो गांठें होती है जो बाहर से दिखायी नहीं देती।। 3 6 2 XNUMX XNUMX XNUMX XNUMX XNUMX पत्तों का अगला भाग चिकना होता है। अधिकांशतः जब पत्ते आते हैं तब उनके साथ ही शाखाओं पर इसके गुच hubte
वैशाख एवं ज्येष्ठ में इसमें फूल आते है। अर्जुन में पारदर्शक, साफ-सुनहरा, भूरा गोंद भी होता है जो खाने के काम आता है।।।।।।। यह हृदय के लिये हितकारी होता है।
partes útiles प्रायः औषधि के तौर पर इसके तने की छाल ही प्रयुक्त की जाती है।।।।।
Recopilación- इसकी छाल को सुख sigue. इस तरह संग hubte
Cantidad de consumo- इसके छाल की चूर्ण की मात्र 9 a 3 20 40 6 15 XNUMX XNUMX XNUMX XNUMX XNUMX XNUMX XNUMX XNUMX XNUMX XNUMX XNUMX XNUMX XNUMX XNUMX दूध में पकाकर भी यह उपयोग में लायी जाती है। XNUMX XNUMX XNUMX XNUMX XNUMX XNUMX XNUMX XNUMX XNUMX XNUMX XNUMX
इसे हिन्दी में अर्जुन, कोह, कौह, संस्कृत में अर्जून, मराठी में सारढोल, गुजराती में कडायो, बंगाली में अर्जुन गाछ, तैलिंगी में चेट चेट uto चेट क कella चेट चेट चेट चेट चेटella. ग ेन ेन ेनella.
propiedades- यह पौष्टिक, शक्तिवर्द्धक, हृदय के लिये हितकारी, रक्त स्तम्भक, कफनाशक, व्रणशोधक, पित्त, श्रम एवं तृषानिवारक है।।।। इसके सेवन से हृदय के स्वाभाविक कार्य को बल मिल।ह अतः हृदय व रक्तवाहिनियों की शिथिलता, नाडी की क्षीणता आदि में लाभप्रद है। यह सभी प्عaga के शोथ शोथ, मेदवृद्धि, मोटापा, जीर्ण कास-श्व eflo
यह बल वृद्धि के साथ-साथ शारीरिक कान्तिवर्धक है है ै यह कफ विका rod " रक्त परिभ्रमण प्रक demás को सुचारू रूप से चलाने में भी लाभप्रद है।।।।।। पुरूषों के प्रमेह रोग में हितकारी है। हड्डी टूटने पर उस अंग की हड्डी को स्थिर करके रक्त संचार को सुचा rodendr
आयुर्वेद ग्रन्थों के अनुसार- अर्जुन कसैला, उष्ण, मधुर, शीतल, कान्तिजनक, बलकारक, हलका, व्रण शोधक तथा अस्थिभंग, क Davidamente, कफ विषब uto, डु् razón रूधिरविकार, पसीना, श्वास आदि रोगों का नाश करतै ॹ
tos crónica- यदि खांसी पुरानी हो एवं उपचार द्वार marca ठीक हो तो अatar अर्जुन की छाल को कूट-पीसकर महीन कपड़छन चूल्ण बन॥ा चूenas को खरल में डालकर उसको अच्छी तरह गीला करने के लिये अडूसे के पीले पत्तों का रस डाल दें।।।।। यदि अडूसे के पीले पतutar एक ग्रagaम मात्रaga में दिन में उबालकर इससे चार गुना मिश्री डालकर एवं साथ ही 2 चम्मच शहद मिलाकर सेवन करें।।।।।।। कफ में खून आता हो तो इसे चटाना हितकारी
Gracias अenas की छाल का काढ़ा बनाकर एक माह निरन्तर सेवन करने से लाभ होता है।।।।।।
Diarrea- अû की की छाल को बकरी के दूध में पीसकर उसमें दूध एवं शहद मिलाकर पिने से लाभ मिलता है।।।।।।।।।।
Sanguinario अर्जुन की छाल को रात में जल में भिगोकर रखें। प्रagaतः उसको मलकर, छानकर या उसको उबालकर काढ़ा बनाकर पीने से ivamente
हड्डी टूटना, घाव, जख्म आदि- शरीर के किसी अंग की हड्डी टूटने पर अर्जुन की छाल लाभ करती है कutar हड्डी टूटने पर तुरन्त इसकी ताजी छाल, यदि त mí डुलाया न जाये।
उपरोक्त उपचार के अलावा अर्जुन की छाल का चूर्ण 3 ग्रagaम को 6 ग्रagaम घी ग 6 ग्रagaम शक्कenas कुछ दिनों तक निरन्तर इसे खाते रहने से टूटी हड्डी जुड़ जाती है। पट्टी बार-बार खोलनी नहीं चाहियें ध्यान पूर्वक हर तीसरे दिन सावधानी से नया लेप लगाते रहें किन्तु अंग कि कि स वैसी ही ही अ razón थ थ उसे उसे स silimo ज sigue. हृदय के लिये हितकारी हैं।
विभिन्न शोधों द्वाisiones यह हृदय की दुर्बलता, घबराहट, बेचैनी आदि सभी में प्रभावी है। हृदय की घबराहट-
अर्जुन की छाल को कूट-पीसकर महीन चूर्ण बनालर रखथ इसमें से 3 ग्रagaम चूर्ण एवं 15 ग्रagaम मिश्री मिलाकर पावभर दूध में डालकर नियमित रूप से प्रातः के सेवन क करें।
अर्जुन की छाल को कूट-पीसकर कपड़छन चूर्ण बलाकर रर यह तैयार किया 200 ग्रagaम चूर्ण लें एवं इसमें 400 गाम मिश्री का बूरा एवं इतना ही घी अच्छी तरह मिलाकर कांच की शीशी में अच्छी तरह बन्द करके लें।।।।।।।
यह एक औषधीय वृक्ष है और औषधि की तरह, अर्जुन के पेड़ की छाल को चूर्ण, काढा, पाक, अरिष्ट आदि के तरह इसक सेवन किया जाता है।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।.
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