भगवान श्रीर marca अपार गुणों के धनी हैं, विष्णु स्वरूप नारायण अवतार भगवान श्रीर marca वीर्यव Dav, आजानु लम Dav.
वे धर्म निष्ठा, सत्य वाचक और लोक कल्याणकारी भावों से युक्त हैं।।।।।। श्रीराम सम्पन्नता, धर्म रक्षा, धर्म के अनुकूल आचरण करने वाले गुणों से विभूषित और वेद, वेदांग, धनुर्वेद एवं समस समस्त शास्तbar uto वे समुद्र की भांति गम्भीर, हिमालय के समान धैर्यवान, चन्द्रमा के समान मनोहर, क्षमा में पृथ्वी के सदृश, त्य में कुबे कुबे razón औ sig. व sigue.
श्री ¢ का व्यक्व्व आदर्श पुत्र, आदर्श भ्रaga, आदर्श पति, आदर्श मित्र एवं आदû endr.
भगवान श्री ¢ का जीवन सर्वथा अनुकरणीय एवं सदाचार से समन्वित है, वेद विहित आचरण ही उन्हें मर्यादा पुरूषोत्तम के के में प प्ya क कecer. उनका सम्पूisiones
श्री राम के द्वाisiones जीवन की प्रत्येक अवस्था में माता सीता ने प्عL. यहां तक कि जब भगवान राम 14 वर्षो के लिये वनवास जा रहे थे, तब सीता ने राजसी सुख-सुविधाओं का त्याग कर श्रuto के संगिनी बनी वनव ज ने नेellas पीड़ा, दुख सहने के पश्चात् भी अपने स्वामी से आत्मिक भाव से जुड़ी ही।।।।।।।। कठोर समय में भी उनका चिन्तन, विचार, श्रद्धा, विश्वास तनिक भी विचलित नहीं।।।।।।।।।।।।।।
अशोक वाटिका के असहनीय पीड़ा में भी वे प्रत्येक क्षण ¢ नाम की ही ट लगाती रही।।।।। रावण के अनेक प्रलोभन, भयभीत करना जैसे उपाय भी उन्हें जरा सा भी डग-मग नहीं कर सके। उनके विराट व्यक्तित्व ने समाज को मर्यादा और धर्म का अनुसरण कर आदर्श युक्त जीवन जीने की प्σेár. केवल उनके जीवन चरित्र को पठन-प mí वास्तव में उनके उनके द्वारículo स्थापित नियम और आदर्शों को हम जीवन में जगह दें दें, आत्मसात करे तो जिस रículo म-र की व व favor
आज प् Est. व्यक्ति इतना अधिक स्वाisiones पति-पत्नी के मध्य राम-सीत mí पहले के समय में जहां माता-पित mí युवा वर्ग में माता-पिता का सम्मान या सेवा का भाव समाप्त सा हो गया हैं।।।।।।।।। अर्थात् माता-पिता के उपकार को वर्तमान सन्तान पूरी तरह नकारने की ओर बढ़ रही है।।।।।
अतः पाisiones जैसे श्री राम ने अपने जीवन में विजय पूर्ण स्थितिय्थितिय प् razónguna
माता सीता क marca उनके जीवन में पराई स्त्री नहीं आयेगी। सीता ने भी वचन दिय mí र sigueal समरorar. दोनों एक-दूसरे के सुख की चिंता करते थे।
वर्तमान में सर्वाधिक रिश्ते व्यक्तिगत रूचि और अहंकार के कारण ही खण्डित होते।।।।।।।।।।।।।।।। रिश्तों में समर्पण की भावना समाप्त सी हो गई हैं, और यदि हम वैवाहिक जीवन के मूल तत्व समर्पण व भरोसे को पुनः जीवन्त बना लें, अपने व्यक्तिगत स्वार्थ से परे हटकर अपने कर्तव्यों का निर्वाह करें, तो हमारा गृहस्थ जीवन राम-सीता की तरह सपफ़ल -सुखद और शांतिदायक हो सकता है।
वर्तमान में बहुत सी स्त्रियां ऐसी मिल जायेंगी, जो पति की ¢ पर संतुष्ट नहीं होती है उनकी इच्छायें नित्य बढ़ती ही हती है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है eléctrica सास, बहू और बेटे के बीच मतभेद और कलह-क्लेश प्रतिदिन होते रहते हैं।। इन सभी का कारण अधिकार और कर्तव्य निर्वाह मुख्य रूप से होता है, सभी लोग अपने-अपने अधिकार की बाते करते हैं, परन्तु कर्तव्य निर्वाह की ओर कम ही ध्यान जाता है, ये बाते पति-पत्नी, सास सभी पर समान रूप से लागू होती है। यदि किसी में भी कर्तव्य निर्वाह की भावना प्रबल रूप से है, तो उसे अधिकार स्वत: ही धीरे-धीरे प्रagaप हो ज जाता हैं।।।।।।।।।। हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं. अधिकारों को प्रagaप demás करने के लिये किसी संघर्ष की आवश्यकता नहीं होती है।।।।।।।। इसके लिये अनिव sigue, केवल इतनी ही है कि आप अपने कर्तव्य का निर्वाह निष्ठा पूर्वक करें।
रामचरितमानस के इस प्रसंग से स्पष्ट उल्लेखित है कि पति-पत्नी के मध्य ठीक इसी प्रकार की समझ होनी चाहिये। दोनों दोनों के बीच बीच तtan-मेल बहुत बहुत महत Sमहत demás है है है है है यह एक एक ऐसtan तथ्य है है जो सम सम।।।।।।।। गृहस गृहस गृहस जीवन को एक अलग ही ही ही आनन आनन आनन आनन आनन. से युक युक। वैवाहिक जीवन में दोनों की आपसी समझ जितनी मजबूत होगी, गृहस्थ जीवन उतन mí
राम सीता के गृहस्थ जीवन में ऐसे कई तत्व हैं, जिसे सभी को अपने दाम्पत्य जीवन सम सम्मिलित करना चाहिये, जिससे आपकgon गृहस्थ जीवन प म गृहस गृहस. सुख-शांतिमय व्यतीत कर सकेंगे।
भगवान श्री ¢ के जन्म और कर्म दोनों वासन्तीक व शारदीय नवरात्रि से सम्बन्धित हैं।।।।।। हिन्दु नववर्ष के प्रagaendo. ताकि बाधायें सम sigue. शारदीय नवर marca, विजया दशमी में साधना सम्पन्न करते है, जिससे कि जीवन में रावण ¢ endr
मार्गशीर्ष शुक्ल पक्षीय विवाह पंचमी जो कि प्रभु श्ágamientos इन पुरूषोत्तममय शक्ति दिवसों में साधनायें और शक्तिपात दीक्षा ग्रहण करने से निश्चित रूप से भगवान श्रीर gaste
Debido a lo cual el cabeza de familia podrá lograr Vijayashree en la batalla de la falsedad, la injusticia, el enemigo, la enfermedad, el engaño, la traición, la pobreza, los poderes demoníacos, al igual que Maryada Purushottam Shri Ram, así como el buscador podrá ser llenado. con todos los placeres del cabeza de familia y tener paz mental en la vida.Y se puede alcanzar la excelencia.
पुenas शक्ति हेतु जहां जीवन में पौरूषमय शक्ति नहीं, वह जीवन अधूरा होता है।।।।।।।। शक्ति और प्रेम की अधिष्ठात्री देवी गौरी माता सीता को मanzas गया है।।।।।। गौरी का स्वरूप ही यौवनमय, कान्तिमय तथा प्रणय से ओत-प्रोत है। प्रेम जीवन का आधारभूत सत्य है।
साधक किसी भी शनिवार को पूर्व की ओर मुख करके पूजा स्थान में बैठ जाये। गुरू और गणपति पूजन कर। एक ताम्रपात्र में चावल कि ढे़री पर 'पुरूषोत्तम शक्ति यंत्र' को स्थापित कecer इसके पश्चात् निम्न मंत्र का 5 दिन तक नित्य 5 माला मंत्र जप 'प्रेम flavor
साधना समाप्ति के ब sigue.
बल, बुद्धि, पराक्रमी, संकटो का नाश करने व siguez मन के स siguez वही पूर्ण सफ़ल होता हैं।
साधक किसी भी रविवokrag को उत्तर दिशा की ओर मुंह करके लाल आसन पर प्र्agaतः काल किसी पात्र में क्लीं यंत्र को स्थ Davथ कर संक्षिप पूजन क कecerta।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। ।guna. इसके बाद मह sigue.
साधना समाप्ति के ब sigue.
सौभाग्य के क्षण जीवन में बहुत कम आते हैं, और जो व्यक्ति इन महत्वपूर्ण क्षणों को पकड़ ले तो अपने जीवन की दिशा को बदल सकता है है है है सकत है है है है है सकत सकत है है है है है है है है है है है है है है है है सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत जीवन के अभिश siguez
साधना समाप्ति के ब sigue.
षोडश कला पूर्ण का तात्पर्य है कि व्यक्ति में वो सोलह कलाये जाग्रत हो जो भगवान श्रीर marca में थी थी।।। थी थी थी थी थी थी थी थी थी थी थी वही धैर्य, सहनशीलता, वीरता, प्रेम, सम्मोहन, नीति, मर्यादा, आचरण, शीत चरित्र साधक के जीवन में भी स्थापित हो और उसका जीवन भी पूरbarya हो।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।
साधक किसी भी सोमवार को साधना प्रagaaga podega करें और गुलाबी रंग कें वस्त्रों का उपयोग करें। त sigue. फिर निम्न मंत्र की 5 माला मंत्र जप नित्य 7 दिनों तक षोडश माला से सम्पन्न करें-
साधना समाप्ति के ब sigue.
मार्गशीर्ष मास जो कि पुरूषोत्तम साधनात्मक मास कहा जाता है साथ ही इसी मास में भगवान श्रीराम व सीता माता का परिणय पर्व उत्सव रूप में सम्पन्न करते है अतः उक्त सभी साधनायें इन्हीं पर्व स्वरूप दिवसों में सम्पन्न करने से जीवन की असुर राक्षसीमय रावणरूपी विषमतायें समाप्त हो सकेगी ।
Es obligatorio obtener Gurú Diksha del venerado Gurudev antes de realizar cualquier Sadhana o tomar cualquier otra Diksha. Por favor contactar Kailash Siddhashram, Jodhpur a Correo electrónico , Whatsapp, Teléfono or Enviar para obtener material de Sadhana consagrado, energizado y santificado por mantra, y orientación adicional,
Compartir vía: