म sigue " मध्यमा उंगली द्वाisiones माला चलाई जाने पर अंगुष्ठ के साथ मध्यमा का परस्पर घर्षण होत है है, इस घ¶ के प प favor यह विद्युत ऊर्जा अनामिका एवं अंगुष्ठा द्वाisiones एक वर्तुल (bucle) बनने से एक चक्र में घूमती रहती है और साधक के शरीर में मंत मंत् razón जनित ऊरbar ज आत uto होती होती हती है। है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है. यहाँ यह ब siguez
मंत्र जप करते समय अंगुष्ठ, मालeccion एवं मध्यमा उंगली का परस्पर संघर्षण होता है, जिससे विलक्षण विद्युत ऊर्जा प्रवाह उत्पन होता है।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। है है है है है है है है है है है है होत होत होत होत. यह विद्युत प्रवाह मध्यमा उंगली के पोर से होत mí यहाँ यह ब siguezTERMINACIONES NERVIOSAS) ार के प्रवाह अथवा (IMPULSO) केलिये ग्राहृ होती
शरीर में हृदय को ही भगवान का निवास स्थान माना गया है, इसी कारणवश मधutar.
मंत्र जप का हृदय चक्र से सम्बन्ध होने के कारण ही अनुभवी साधक माdos
एक व्यकorar मात्र सम्बनorar ही बहिन, पत्नी का कार्य कर सकती है।
ठीक यही बात साधना के नियमों में भी लागू होती है। मालाये तो सभी किसी न किसी प्रकार के पत्थर की ही होती हैं, अथवा लाल, पीले या नीले रंगों की होती हैं, परन्तु प्रतguna स marca धन-अलग म म ल क क Nija है हत है। favor इसका कारण भी वही है है, मालाये तो सभी एक सी ही हैं, परन्तु जिस साधना विशेष के लिये जिस माला को सिद्ध किया गया है, उस साधनाधनाधन के लिये वही म म क क युकella गय युक युक युकella हो हो हो हो हो हो हो। युक युकella बगलामुखी स sigue "
जो मुख्य बात होती है है, वह माला के पदारternथ में नहीं अपितु इस बात में होती है है, कि किन किन मंत्रों से और किस तंत्र पद्धति से प्र sigue महत्व मंत्र ऊर्जा एवं प्रija का का ही होता है, बाकी माला का पदार्थ तो अत्यन्त गौण तथ्य है है है है है है है है यही बात यंत hubte इन स sigue " उच्च कोटि की स sigue " किसी विशेष माला को सिद्ध करने के लिये यह आवश्यक है, कि माला को चैतन्य करने वाला योगी उस साधना का सिद्ध आचार्य हो। यही कारण है, कि यह यंत्र व सामग्रियां अत्यन्त दुû होती है।।।।।।।।।।।।।।। Ver más यंत्र और मालाये मिलती है, परन्तु वे मात्र तांब े के टुकड़े और पत्थर,,, चेतना के नाम पर वे शून्यवत और निष्प्राण होती है ं और इसी कारण साधना के लिये निरुद्देश्य भी होती हैं।
आर्य ऋषियों ने इस बात को अनुभव किया कि ब्रह्माण्ड में निरन्तर चारों दिशाओं में घूमती हुई नक्षत्र माला का मानव जीवन पर पूर्ण रुप से प्रभाव पड़ता है और यही ज्योतिष शास्त्र का आधार भी है, कि इन नक्षत्रों की गतिविधियों से ही मानव जीवन में उतार चढाव आते हैं। ग्रहों के प्रभाव को नकारा नहीं जा सकता। 4 puntos de vista 27 días में विभक्त किया है। इन 4 दिशाओं और 27 नक्षत्रों के प्रभाव को नियंत्रित करने के उद्देश्य से ही म mí. 27 x 4 = 108 Las cuentas estaban dispuestas.
इसके साथ ही जिस नक्षत्omin con इस तरह 27 नक्षत् porta यहां एक रोचक बात और यह भी है, कि जिस प्रकok sirt म mí. अतः इस माला को उस नक्षत्र माला के प्रतिरुप में ही धा así की गई।।।।।।।।।।।।
माला में 108 मनके होने के पीछे एक अन्य महत्वपूenas कारण और भी है।।।।।।।।।।।। वह है माला के दानों की संख्या का मनुष्य की श्वास संख्या से सम्बन्ध।।।।। '' चूड़ामणी उपनिषद 'के अनुस mí अनुस दिन दिन और ominó
24 घण्टे में यही आधा समय शयन शयन, भोजन अन्यान्य सांसारिक कृत्यों का मान लिया जाये, तो 21600 श्वासों के आधे 10800 श्व Chr. इसलिये साधक को उतने जप करने ही चाहिये। इसके साथ ही शास्त्रोक्ति है-'उपांशु स्यात् शतगुणः अर्थात एक 'उपांशु जप' 100 वाचिक जप के बर marca होता है है है है है है है है है है है है है है। है। है है है है है।। है है है. इस प्रकार यदि मात्र 108 बार उपांशु जप कर लिया जाये, तो पूág sea उस कारणवश ही माला में 108 मनकों की संख्या का निर्धारण किया गया है, जिससे बिना मंत्र को गिने मात् razón
'शतपथ ब्र sigueal इसे मनुष्य की पूर्णायु 10800 वर्ष पर घटित करने से 100 संख्या आती है।।।।।।।।। कम से कम इतना नित्य जप करने से वेद पंक्ति पाठों के समान फल की ध fl.
दार plardin सच्चिदानन्द ब्रह्म ही सुमेरु स्वरुप हैं और उसके प्रagaendo. भूमि, जल, तेज, व mí.
इसके अतिरिक्त अपरा नामक प्रकृति है, जो जीव रुप धारण करके संसार को धारण करती है।।।।।।। है अष्टधा प्रकृति के पदार्थ विभिन्न गुणों से युतथह सृष्टि के मूल में स्थित ब्रह्म से अव्यतक्त उत्पन्न होता है, जो निû है है। है है है है।।। है है है है है इसके अलावा इस गुण के एक आवरण शक्ति का भी प्रagaधान्य होता है, जिससे उसका स्वभाव दो प्रकार का हो जाता है।।।।।।।।। है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है uto इससे आगे महत् है, जिसमें दो गुणों के अतिरिक्त विक्षेप शक्ति का भी समावेश है, इसलिये यह त्रिगुणात्मक हुआ।।।।।।। इसी प्रकार अहंकार ब्रह्म का चतुर्थ विकार है और चoque गुणो से युत्तफ़ है।।।।।
इस रीति से अष्टता प्रकृति वरorar. जगत को धारण करने व mí. फलतः यह सुमेरु रुप ब् Est. अब यहाँ यह कहा जा सकता है, कि मंत्र जप का प्रलय-सृष्टि से क्या सम्बन्ध। पenas यह यह नहीं भूलना चाहिये, कि जप का उद्देश्य माया जनित को विच विच्छद कर जीव को ब्रह्म स्वरुप बना देने है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है eléctrica यदि म marca म जप संख्या को गिनने का ही उद्देश्य होता तो माला में 2 दानों भी रखे जा सकते थे।।।।।।।।।।।।। इसी प्रकार के आध्यात्मिक आधारों के कारण ही माला में 3 मनकों का विधान है।।।।
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