जिस समय गोरखनाथ का जन्म हुआ था, देश में अनेक मत प्रचलित थे पाशुपत, सौर, गणपत्य, दत्तात्रेय तथा कौल आदि, किन्तु सभी मतों में मांस, मद्य, मैथुन की प्रधानता थी, योनि पूजा का जोर था, योगिनी कौल मार्ग को दूध जैसा स्वच्छ, दही जैसा, स्निग्ध, मदिरा जैसा मादक, मांस जैसा स्वादिष्ट एवं मैथुन जैसा सहजानन्दमय समझा जाता था। एक हाथ में गर्म-गर्म सुअर का मांस, एक हाथ में मदिरा पात्र एवं भैरवी से समागम करते हुए निरन्तर मंत्रोच्चारण करते रहना ही साधना बन गया था। इस मत का प्रचार विशेष रूप से कामरूप देश मे था।
इसके अतिरिक्त डाकिनी, हाकिनी, यक्ष पद्धति, राक्षस पद्धति का भी प्रचलन था। न देश काल का नियम था, न भक्ष्याभक्ष्य का, दिन हो या रात, किसी भी समय में नकली भैरव (तांत्रिक पुरूष) मांस खाकर, मदिरा पीकर भैरवी (तांत्रिक स्त्री) से संभोग करते हुए मंत्र का जप किया करते थे। ‘विजयाधूर्णितलोचन भैरव’ सदा मांस-मदिरा का उल्लासी रहता था एवं सिन्दूर का तिलक लगाता था। मुण्डमाला, शवासन, वैश्वावृत्ति उसे अतिप्रिय होता था, सदा पान चबाता रहता था, स्नान के नाम पर मानस स्नान, तर्पण भी मानस ही होता था।
कभी न नहा कर, सदा भोजन करके देवी पूजन करना तथा मांस, मत्स्य, दधि, क्षौद्ररस, आसव, पान खाना ही इस युग का साधन भजन था। त्रिपुर भैरवी, चैतन्य भैरवी, भुवनेश्वर भैरवी, कमलेश्वर भैरवी, सत्यप्रदा भैरवी, कौलेश भैरवी, षट्कूटा भैरवी, नित्या भैरवी, रूद्र भैरवी, कुरूकुल्ला, पारमिता, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी एवं छिन्नमस्ता आदि देवियों की पूजा भी इसी तरह करते थे। भैरवी चक्र तांत्रिकों के सर्वोत्कृष्ट आकर्षण का केन्द्र होता था। उसमें स्त्री-पुरूष सभी नग्न होकर प्रवेश करते थे। पुरोहित भैरव बन जाता था। सिंदूर रंजित नारी भैरवी बनती थी। वे एक दूसरे के गुप्त स्थानों की पूजा करते थे, फिर भैरव शराब पीता था, स्त्री-पुरूष की मर्यादा टूटती थी।
इस पंथ का इतना अधिक प्रभाव था, कि स्वयं गोरखनाथ के गुरू ‘मत्स्येन्द्रनाथ’ स्त्री देश में फंस गए थे और योगिनी कौल धर्म में आ गए थे और स्वयं गोरखनाथ ने उनको उबारा था।
गोरखनाथ ने इस अमर्यादित साधना के विरोध में आवाज उठायी। विकृत साधनाओं, नरबलि, जादू टोना, देवी-देवताओं की निकृष्ट साधनाओं को टोका। वाम मार्ग के विरूद्ध आवाज उठाकर गोरखनाथ ने स्त्री समाज की मर्यादा बढ़ाई।
गोरखनाथ ने सभी प्राणियों को समाज में समान माना, जाति प्रथा को कृत्रिम माना, हिन्दुओं तथा मुसलमानों को समान स्तर पर लाकर खड़ा कर दिया और समाज को ऐक्य की ओर बढ़ाया। उन्होंने योग मार्ग को सर्वश्रेष्ठ बताया योग मार्ग में जाति और वर्ण का भेद न था। इस प्रकार समाज को विकास का नया मार्ग दिखाया। योग मार्ग में विकास कर कोई भी व्यक्ति उच्चता के शिखर पर पहुंच सकता है। इसका समाज पर प्रभाव पड़ा। योनि पूजा के अतिवाद के विरोध में स्त्री की घोर निन्दा प्रतिवाद के रूप में की, किन्तु महा पुरूष अपने देशकाल की स्थितियों में सीमाबद्ध होता है। तुलसी, कबीर आदि के युग में यदि योनि पूजा की अति होती, तो शायद वे भी स्त्री की घोर निन्दा करते।
यह कहना कि गोरखनाथ का जनता पर आंतक का भाव था एवं कबीर से प्रेम भाव सर्वथा गलत सिद्ध होता है। गोरखनाथ महान योगी थे कि उनका प्रभाव उनके 500 वर्ष बाद तक बना रहा और आज भी है। वे बड़े जागरूक थे। शैव और योग मार्ग वाले सम्प्रदायों को एक किया, वेद के वे विरोधी थे, किन्तु उनका स्वप्न प्लेटो जैसा था। उनका विचार था, कि निष्पक्ष शासन दार्शनिक ही दे सकता है। उन्होंने उपदेशक योगी सम्प्रदाय चलाया था, जिसमें बड़ी व्यापक भूमि को लिया गया था।
वाम मार्ग को गोरखनाथ ने भारत से खदेड़ डाला तथा उन्होंने अपने प्रभाव से समस्त अनार्य मत को मिलाकर एक किया, जिसके कारण वे इस्लाम की क्रोड में नहीं आए। बाद में ये सब अपने को हिन्दू कहने लगे। गोरखनाथ ने समस्त अनार्या उपासना तथा योग मार्ग को परिष्कृत कर दर्शन और पातंजल योग के निकट लाकर खड़ा कर दिया। यद्यपि वे वेद के विरोधी थे। तुलसी जैसे जागरूक ने तभी कहा था –
गोरखनाथ ने जो भी कार्य किया, वह एक ‘जाति-समभाव’ समाज के प्रति विद्रोह था। अपने युग में गोरखनाथ का भी कुछ कम विरोध नहीं हुआ था। सिंध के पीर से गोरखनाथ के युद्ध की कथा स्पष्ट करती है, कि पीर का प्रजा पर आतंक था। जबरदस्ती भिक्षा लो या मारो, उसका नारा था उसका बल तोड़कर गोरखनाथ ने जनहित का कार्य किया था। गोरखनाथ ने त्रिशूल उठाकर प्रजा की रक्षा की। योगियों के हाथ में खड्ग देने का श्रेय गोरखनाथ को ही है। इस प्रकार गोरखनाथ एक समाज सुधारक नेता थे। उन्होंने धर्म को सही मार्ग पर लगाया। योग मार्ग को ही सर्वोत्कृष्ट मार्ग बतलाकर मानव के अन्तर में छिपी हुई उसकी दिव्य शक्तियों से परिचित कराया। इन सुधारों को देखते हुए गोरखनाथ के समाज पक्ष को व्यक्ति पक्ष कहना अनर्गल प्रलाप ही है। यह दुर्भाग्य का विषय है, कि गोरखनाथ के इतने महान कार्यों को भुला दिया गया।
गुरू गोरखनाथ ने समाज को सभी तांत्रिक साधनाओं की सरलतम विधि साबर साधनाओं के रूप में दिया, जिससे आम-जन अपनी बोल-चाल की भाषा में मंत्र अनुष्ठान सम्पन्न कर सकता है। ये साधनायें अन्य साधनाओं की अपेक्षा शीघ्र फलदायी और तीव्र प्रभावकारी होते हैं।
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