मेरे पास युवा समस्या लेकर आते हैं। मैं कहता हूं, तुम इतने दुःखी क्यों ¿? जीवन में प् Est. जो आदमी ivamente अध्यात्म खुद को निगेटिव से पॉजि़टिव विचार वाले में परिवर्तित करने की विधि।।।।।।।।।।।।।।।।।
हमारे जीवन के संदेह, मोह और भ्रम मिटते हैं। जन्म और मृत्यु हमारे हाथ में नहीं लेकिन जीवन हमारे हाथ में हैं।।।।।।।।। तो इस जीवन को नकारात्मक सोच से बर्बाद करने की बजाय सकारात्मक सोच से हम समृद्ध करें। आज के समय में हम धैर्य रखेंगे तब ही सकारात्मक स्वरूप में सभी धारण tomar.
मनुष्य का इतिह siguez उठकर! जीवन की ओर नई आशा से, नई ऊर्जा से देखा है। हर विपत्ति का हमने धैर्य, विवेक और कर्मठता से सामना किया है। यह दौर भी वैस mí यह समय हमें नए अनुभव दे रहा है। थोड़ा ठहरकर ध्यान लगाना है, जो आत्मकल्याण में सहायक हो और इसके लिए बैठकर आत्मचिंतन करना होगा। अपने प्रति, अपने परिवार के प्रति और दूसरों के प्रति, देश के प demás।।। के के प प।।
एक तरह का मानव निर्मित स्वभाव या आदत, जो व्यक्तित्व का अंग बन जाए, उसे वutar कह हैं। हर व्यसन क mí फिर इसकी पकड़ से छूट पाना भी उतना ही कठिन होता है देखा जाए तो जीवन का सबसे बड़ा व्यसन भोजन नहीं मिले तो व्यक्ति अनर्गल गाली-गलौज, मार-पीट, अपशब्द भाषा का प्रयोग प्रagaendo. कुछ व्यसन व्यक्ति की परिस्थितियों के कारण होने व siguez कुछ व्यसन भोग की प्रवृत्ति के कारण होते हैं। कुछ लोग अधिक खाने के शौकीन होते हैं। धूम्रपFन करना अथवा तम्बाकू का सेवन करना, मदिरा पीना, नशे में ही ¢, हर समय तatar व्यसन न तो कभी नकारात्मक होता है, न ही सकारात्मक हर व्यसन के पीछे व्यक्ति की इच्छा शक्ति कार्य ह व्यक्ति अपने मन को खुश करने के लिये अनेक तरह के अर्नगल व्यसन करता है और यही भाव विचार endr साथ ही सकार sigueal इसीलिए व्यसनों क tomará
सभी व्यसन य mí गांव का बालक छोटी उम्र में ही बीड़ी पीना सीख जाै वह कुछ तो घर में देखता है, कुछ संगत का प्रभाव हॾतह साथ ही इसमें अज्ञानता का अंश अधिक होता थोड़े से स्व नियंत hubte बड़ी उम्र के व्यसनों में मन की अभावग्रस्त दशा अधिक झलकती है। व्यक्ति की म siguez जिसे अन्य भ siguez छात्रव tomará यौनाचार इसका भयंकरतम रूप है। जीवन को नारकीय बनाकर ही छोड़ता है। उनके भविष्य निû endr परिणाम में भी केवल पशुभाव ही मिलता है। आज विश्व का यह सबसे बड़ mí लाखों की संख्या में इसने मनोरोगी पैदा कर दिए हैै टी-वी- इंटरनेट ने आग में घी का ही काम किया है। यह भोगवादी संस्कृति का चरम बिन्दु बन गया। आज-कल तो इंटरनेट और मोबाइल फोन से लोगों से चैट करना, फिल्में देखना भी युवाओं में एक वutar अनर्गल क marca औ Est. शिक्षा व्यक्ति परक न होकर विषय परक हो गई। व्यक्ति स्वयं के जीवन का आकलन कर ही नहीं प mí. यदि बीस वर्ष का बालक कहता है कि मैं गरीब हूं तो इसका तात्पर्य परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत न्यून है और यदि वही बालक 30 वर्ष की उम्र में कहता है कि मैं गरीब ही हूं तो वह निर्धन रूप में न्यूनता उस बालक की स्वयं की है क्योंकि जीवन क mí तात demás यही यही है कि उसमें संघर्ष की भावना, इच्छा नहीं है और वह कर्म करने से भाग रहok है।।।।।।।।।।।
मां-बाप के चंगुल से भागना चाहता है। अपराध से होने वाली ग्लानि की चर्चा भी किसी से नथा व्यसन में समा जाना चाहता है। मानव स्वभाव से पशु होता है। पशु योनियों से चलता-चलता ही मानव योनि में आता है उसके सभी संस्कार उसके साथ आते हैं। मानव समाज पाशविक संस्कारों को नकारता रहा हैं। क्रोध, हिंसा, लोभ आदि सभी वृत्तियां तो प्राकृऀिथह इन वृत्तियों को स्वीका así. इन वृत्तियों को दबाना भी हिंसा का ही रXNUMX व्यक्ति पहले स्वयं के प्रति हिंसक होता है, फिर दूसरों के प्रति। जिस वृत्ति को भी व्यक्ति दब mí. फिर वह जाग्रत होकर भीतर ही प्रस्फुटित होती है।
किसी भी एक भ siguez दबी हुई वृत्ति ही भय का कारण बनती है। भय के क sigueará हमारी सारी की सारी चेतना इन्हीं दबी हुई वृत्तियों का संग्रहालय है। वृत्ति के दब siguez अपनी कमजोरी को स्वीकार करना ही श्रेष्ठ मार्ग है साथ ही उस न्यूनता से निकलने का भाव-चिंतन भी होना चाहिये तब ही जो उसकी कमजोरी है वह समाप्त हो।।।।।।।।। - तब नारायणमय बनने का मार्ग खुलेगा।
हर व्यसन के साथ एक भय भी होता है। यह भय मन को द्वन्द् की स्थिति में खड़ा कर देता है मन की इच्छाशक्ति इस पाशविक शक्ति के आगे हार जा।ह इच्छाशक्ति से अधिक शक्तिशाली होती तो नहीं है। मूल बात यह है कि व्यसन व्यक्तित्व की एक खणutar इससे मुक्त होना पूर्णता का मार्ग है। अपूर्ण व्यक्तित्व को भारी कीमत भी चुकानी पड़ती है यह तो व्यसन की गहनता पर ही निर्भर करेगा। इस कीमत से ही व्यसन मुक hubte एक भय को दबाने के लिए व्यसन शुरू होता है। मुक्त होने के लिये भय क mí प्रकृति के तीन कड़वे नियम, जो सत्य है। प्रकृति का पहला नियमः यदि खेत में बीज न डालें जाएं, तो कुदरत उसे घास-फूस से भर देती हैं।।।।।।।।।। ठीक उसी तरह से दिमाग में सकारात्मक विचार न भरे जाएँ, तो नकाisiones
प्रकृति का दूसरा नियमः जिसके पास जो होता है, वह वहीं बांटता है।।
1-सुखी सुख बांटता है। 2-दुःखी दुःख बांटता है। 3-ज्ञानी ज्ञान बांटता है। 4-भ्रमित भ्रम बांटता हैं। 5-भयभीत भय बांटता हैं। प्रकृति का तीसरा नियमः आपको जीवन में जो भी मिल -
1- Cuando los alimentos no se digieren aumentan las enfermedades. 2- Cuando el dinero no se digiere, presumir de aumentos. 3- Cuando no se digiere el asunto, aumentan las habladurías. 4- Cuando no se digieren los elogios, aumenta el ego. 5- Cuando no se digiere la crítica, aumenta la enemistad. 6- Si no se digiere el secreto, el peligro aumenta. 7- Cuando no se digiere la pena, aumenta la desesperación. 8-El pecado aumenta cuando no se digiere la felicidad.
आदमी खुद तो अंधेरे में जीता है, इस बात को भुलाने के लिए अक्सर दूसरों से प्रकाश की बात करने लगता है।।।।।।।।।।।।।। इससे थोडे़ सावधान होने की जरूरत है। आपको पता ही नहीं होता वह बात भी आप दूसरे को बताने लगते।। लेकिन ऐसा आदमी खोजना मुश्किल है। जो इतना नियम मानता हो, इतना संयम और मर्यादा ominó गुरू अपने को गुरू समझत mí
इसलिए साधक जब खोजने जाता हैं, गुरू तो जिस जगह वह अपने गुरू के पास रहतok है। उसको कहते है, गुरूकुल-द फॅमिली ऑफ द मास्टर। वह केवल गुरू का परिवार है, उसमें जाकर वह सम्मिलित हो जाता है। पर यह निकटता दोहरी है, सभी निकटताएं दोहरी होतै ह इसलिए गुरू कहता है, हम दोनों एक साथ पुरूषार्थ करें, पर gaste गुरू भी एक बड़ी साधना है। सभी जानने वाले गुरू नहीं हो पाते। इस जमीन पर बहुत लोग ज siguez एक राजा को राज भोगते हुये अनेक वर्ष व्यतीत हो इ॥ बाल भी सफेद होने लगे थे तथ mí
उत्सव को रोचक बनाने के लिये राज्य की सुप् Est. सारी ¢ नृत्य चलता रहok, ब्रह terc मुहुर्त की बेला आयी नर्तकी ने देखा कि मेर marca तबले व व व व लिये क N. दे है क है दे दे है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है — नenas ने एक एक दोहा पढ़ा- बहुबीती थोड़ी रही पल-पल गयी बिताई एक पल के कारने ना कलंक लग जाई ।। अब इस दोहे को वहां देख रहे व्यक्तियों ने अलग-अलग अपने अनुरुप अर्थ निकाला तबले वाला अब सतर्क होकर बजाने लगा। जब यह दोह sigue. दोहा सुनते ही राजा की लड़की ने भी अपन mí दोहा सुनते ही ¢ ज के पुत्र युवराज ने भी अपना मुकुट उतार कर नर्तकी को समर्पित कर दिया।
राजा सिंहासन से उठा और न¢ को को बोला एक दोहे द्वाisiones जब यह बात ¢ ज के राजगुरु ने सुनी तो गुरु के नेत् Estatán राजा इसको नीच नर्तकी मत कहो, यह अब मेरी गुरु बन गई है, क्योंकि इसने दोहे से मेरी आंखे खोल दी हैं।।।।।।।।।। दोहे से यह कह ही है कि मे bal स सा Estó महाराज! मैं तो चला। यह कहकर गुरुजी तो अपना कमण्डल उठाकर जंगल की तल चल राजा की लड़की ने कहा- पिताजी! मैं जवान हो गयी हूं, आप आंखे बंद किये बैठै हैं हैं, मेरी शादी नहीं कû थे थे और आज ¢ र मैं मह मह मह मह के स, भागक razón मत कर कभी तो तेरी श mí
युवराज ने कहा- पिताजी आप वृद्ध हो चले है फिर भी ¢ नहीं नहीं दे रहे थे मैंने आज ¢ र ही सिप सिपguna से मिलकर आपका कत्ल करवा देना था।। ¡Adelante! आज नहीं तो कल आखिर राज तो तुम्हें ही मिलना है। क्यों अपने पिता के खून क mí जब ये सब ब siguez Balticzo ने तुरन्त फैसला लिया क्यों ना मैं अभी युवराज का राज तिलक कर दूं, फिर क्या था उसी समय राजा ने युवर sigue द¢ ब में से से बढ़कर एक युवा राजकुमाdos आये हुये हैं हैं, तुम अपनी इच्छा से किसी भी ¢ endr. राजकुमारी ने ऐस mí यह सब देख कर नर्तकी ने सोचा मेरे एक दोहे से ऐसे श्रेष्ठ व्यक्तियों में सुधार आ गया लेकिन मैं क्यों नही सुधर पायी? उसी समय नर्तकी में भी वैराग्य आ गया, उसने उसी समय निर्णय लिया कि आज से मैं अपना बुर gaso नृत्य बंद करती हूं और कहा कि '' हे प्रभु! मेरे पापो से मुझे क्षमा करना बस आज से मैं सिर्फ तेरा नाम सुमिरन करुंगी ''
Bahubiti se quedó un rato pasó cada momento
No te estigmatices por un momento.
अर्थात् जीवन में जो भी सुकृत और श्रेष terc Chredo तात्पर्य यही कि छोटी सी गलती से भी जीवन कलंकित हो जाता है। जो पूरे जीवन को अस्त-व्यस्त कर देता है। कलंक रहित जीवन के लिए निरन्तर सुकर्म करने से ही जीवन में सर्वेाच haba भारतीय उपनिषदों और पुर marca इसी से जीवन में नूतन दृष्टिकोण औecer मानसिक चिन्तन का व्रत व्यक्ति के जीवन की न्यूनता को तेजी से समाप्त करता है।।।।।।। अतः व्रत का तात demás भूख भूखा-प्यासा नहीं रहनendr जिस तरह से साधारण स्वरूप में व्रत के समय अन्न का परित्याग करते हैं, ठीक उसी तरह जीवन के विकारों और व्यसनों को समाप्त करने के लिये व्रत रूपी संकल्प लें साथ ही दृढ़ता से अपने आत्मशक्ति को मजबूत करते हुये अटल रहें कि मेरे विकार और व्यसन पुनः जीवन में लौट कर नहीं आयेंगे। सही अर्थो में यही व्रत का भाव चिन्तन वही मन के विकार रूप में अनर्गल व्यसनों और कुविकारों स्वरूप में आलस्य, प्रमाद, कर्महीनता, अनर्गल खान-पान, स्वयं के प्रति लापरवाहमय स्थितियां क्रोध व दूसरों पर आधिपत्य बना कर रखना ये सभी कुस्थितियां जीवन में निरन्तर बिखराव उत्पन्न करती है और जीवन का कोई श्रेष्ठ हेतु, उद्देश्य निर्मित नहीं होत mí अतः सही स्वरूप में व्रत का भाव-चिंतन अपने आपमें सुप demás
बुद Sसे से किसी ने ने आक sig पूछtan एक दिन दिन दिन दिन दिन कि ये दस दस दस Sहज medic भिक Sहैं हैं हैं हैं आपके पास व sig से से आप आप इन Sइन uto समझtan हैं हैं हैं हैं सिख हैं हैं हैं हैं चल हैं हैं हैं। हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं. हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं. हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं चल. ¿Está bien, está bien, está bien, está bien? कितने लोग बुद्ध बन गये? स्वभावत प्रश demás बिलकुल उचित था, बुद्ध की परीक्षा है इसमें कि कितने लोगों को बुद्ध बनाया। बुद्ध ने कहा कि इनमें बहुत लोग बुद्ध हो गये हैं। तो उस आदमी ने पूछा कि एक भी दिखाई नहीं पड़त mí जाग जाना एक बात है, लेकिन दूसरे को जगाना बिलकुल दूसरी बात है है हैendr. उन्हीं अंधेरी घाटियों में, उन्हीं लोगों के निकट जो भटक रहे है। उन्हीं का हाथ हाथ में लेकर। कई बार तो उसे उस यात demás पर भी थोड़ी दूर तक उनके साथ जाना पड़ता है, जहां नर्क के और कुछ नहीं नहीं।।।।।।।।।।।।।।। नहीं।।। अगर मैं आपका हाथ पकड़कर थोड़ी दूर आपके साथ चलूं, तो ही इतना भरोसा पैदा होता है, कि कल अगर मैं अपने र íbO शिष्य के स siguez और बहुत बार शिष्य को ऐसे रास्ते पर चलना पड़ता है, जिस पर उसे नहीं चलना चाहिए था, जिसे बदलना है उसके प fl.
इसलिए गुरू कहता है, हम दोनों साथ ही पर gaste हम दोनों साथ ही साधना करें। और गुरू वहीं हो सकता है जो शिष्य के स mí वहां से शुरू कर सकता है, जहां से उसे अब शुरू के करने की कोई जरूरत नहीं।।।।। नहीं।। जो मंजिल पर खड़ा है, औ sigue. इसलिए गुरू कहते है, हम दोनों साथ ही पुरूषार्थ इरररर हम दोनों की विद्या तेजस्वी हो।
Si no funciona después de intentarlo, ¿qué pasa?
यानी यत्न करने के ब sigue. कई बार मनुष्य कार्य सिद्ध नहीं होने के फलस्वरूप यही विचार करता है कि मृत्यु को प्रagaप हो हो जायें, जबकि क कguna हो में अव के के के tercriba सही अû में इन इन अवरोधों का सामना तीन चीजों से किया जा सकता है- धैर्य, दूरदर्शिता और हिम्मत। इन तीनों की मदद से ही व्यक्ति समस्याओं से उबर सका कुछ लोग जीवन में एक आदर्श के रूप में अपना मारorar कोई ध्यानमा¢ है है, कोई भक्तिमारorar., कोई कर्मयोगी लेकिन इसके साथ-साथ जीवन समग्रत tomar जबकि अधिकांश सांसारिक मनुष्यों का कोई ध्येय, उद्देशorar ऐसे मनुष्यों के जीवन का कोई हेतु, उद्देश्य नहहथाााा इसीलिये उनका जीवन अंशातमय, दरिद्रता और न्यूनता स्वisiones वर्तमान में अदृश्य बीमारी से पूरा विश्व पीडि़त है, इस समय हमारा जोर रोग प्रतिártical इसके लिए रोज कम से कम एक-एक घंटे सुबह-श gaste आयुर्वेद के ऊपर भी ज्यादा भरोसा बढ़ाने की जरतह॥ यह समय अपनी सेहत सुधारने क mí शरीर, मन, विचार, भावनाओं के दिव्य आत्म-परिवर्तन के लिए इस समय का उपयोग करें। अपने आप को और तैयार कर लें। इस वक्त का, उपयोग हम अपने व्यक्तित्व विकास मेंं े इस दौ sigtanO हमें दिव्य परिवरículo की प्रकumarado िय सेरकर दिव्य व्यक्तित्व और दिव्य जीवन की प्रagaप्ति करनी चाहिए अर्थात् जीवन को पूर्णenas अंधकार से निकालकर जाज्वल्यमान प्रकाशमय निर्मित कenas न है।।।।।।
जब हम कहते हैं कि प्रagaacho करों तो हम उच्च ऊर्जा वाले विचार बनाते हैं।।।।।।। Ver más प्रार्थना के समय यही भावना हो कि मुझे मेरी प्रार्थना को प्रैक्टिकल में लाना है अर्थात् प्रार्थना में जो भी भाव-चिंतन है, उसे जीवन में पूर्णरूपेण उतारने की क्रिया करनी है तब ही हमारे द्वारा प्रार्थना करना सार्थक होगा और उस सार्थकता से ही उच्च ऊर्जा वाले विचारों से युक्त व्यक्व का निर्माण कर सकेंगे क्योंकि संकल्प से सृष्टि बनती हैं संकल्प की शक्ति से ही जीवन ध धारण ध इच इच favor सर्व शक्तिमान परमात्मा ने हमारी रचनok ही इस प्रकार की हैं हैं कि हमें दिन और ¢ ¢ दोनों की अनुभूति आवश्यक हैं।।। हैं।। हैं हैं।। हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं इसलिए आज का यह घनघोर अंधकार कल नव प्रभात लेकर आएा इसलिए हर परिस्थिति में सकारात्मक रहकर इस कठिन समय में उपजी कुण्ठा, आशंका और निराशा से बाहर निकलें और स्वस्थ, सम्पन्न जीवन की ओर बढ़ें यह आपके साथ देश को भी नए अवसरों की ओर ले जाएगा।
संघर्षमय जीवन का उपसंहार ही हर्षमय होता है। एक-दूसरें के प्रति प्रेम ही जीवन की सार्थकता है॥ इसलिए पहले आपको चिंत mí इसलिए चिंता छोड़ो साहस को जोड़ों जब आप यात demás करते हैं और गाड़ी खराब हो जाती है तो क्या करते हैं? यात्र marca हमें इसे मिलकर ठीक करना है। साहस से ही गाड़ी आगे की ओर बढ़ चलेगी। लेकिन इसके लिए व्यक्तिगत, परिवार और सामाजिक स्तर पecer अगर रास haber इसका आपको अंदाजा भी नहीं है। आप देखिए कि आप अपने ही पास आ गए हैं, अपने परिवार के पास, अपने वातावantemente के पास आ हैं हैं।।।।।।।।
सबसे अच्छा जीवन तभी जिय mí जीवन में वह समय भी आता है, जब जवाबों को खोजने की जरूरत पड़ती है और कभी ऐसा वक्त भी आता है सवालों को उसी स्थिति में छोड़ देना ही बेहतर हो हो ज है है।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। eléctrico अगर हर जवाब अगले सवाल भी बढ़ते जाएं तो फिर यह उलझनों, मानसिक अशांति औ debe और अगर जिंदगी इन्हीं उलझनों और त्रagaस में फंसी रहीं, तो जीवन के असली आनंद को महसूस कीजिए और पूरे आनंद अपन अपना जीवन जिएं।।।।।।।।। हमारे ज्ञान, असीमित बुद्धिमत्ता से भी हम जीवन के बारे में कुछ खास नहीं समझ।।।।।।।।।।।।।। आप जीवन के सार को खोजने के लिए भले ही हर संभव प्रयास करते हैं, वह सब कुछ कatar निर्वाण, मोक्ष या ठहराव तो दरअसल जीवन के विरोधाभासों को संतुलित करने से ही मिलेगा। जीवन-मृत्यु, लेना-देना, आत्मकेंद्रित या जुडे़ रहनok, साम्य या बिखराव सारा जीवन ही विरोधाभासों से भरा हुआ।।।।।।।।।।।।।।।।।।। सवाल है कि इन सब विरोधाभासों के भंवर में बीच का uestos इन सब उलझनों और विरोधाभासों के बीच झूलते हुए, जिंदगी में सबकुछ हासिल करने के बाद भी महसूस होता है कि जैसे हमें जीवन का मूल ही समझ नहीं आय आय लगत है आज भी वहीं हैं हैं हैं खड़े खड़े खड़े खड़े खड़े हैं हैं शु शु शु हुई हुई हुई।।।।। वहीं खड़े खड़े खड़े जह शु शु हुई।।।।।।।।
आप इस खोज में जीवन की दौड़ में भागे जा रहे हैं। क्योंकि आपको लगता है कि इस जीवन के अंतिम पड़ाव से भी आगे कोई नयी शुenas है जहां से शुरू किया था, वहीं फिर से वापस आने के लिए आप भागे जा रहे हैं।।।।।। जैसे कि महान दार्शनिक उमर खय्याम ने कहा था- मैं उसी दरवाजे से बाहर आया हूं जिससे मैं भीतर गया था। इस दुनिया की आपसे अपेक्षायें, खुद की खुद से उम्मीदें असीम हैं, अनंत हैं, इनका कोई ओर-छोर नहीं।।।।।।।।।।।।।।।। ये उम्मीदें फिर उसी मानसिक अशांति को ओर ले जागीूगूे ¿Está bien? ¿Está bien? फिलहाल एक काम कीजिए-एक गहर mí शांति! यानी भविष्य की चिंता छोड़कर वर्तमान को भरपूर यू हां, यह बात बिल्कुल ठीक है कि सुनहरे भविष्य की कल्पना करना बुरा नहीं है।।।।।।। जीवन अच्छे भविष्य की कामना के साथ भी जिया जाना थाथाथाथह हमें इस क्षण को भी महसूस करना शुरू करना होगा। अभी मुस्कराइयें, क्योंकि खुशी-प्रसन्नता इसी क्षण सामने है और अभी है।।।।।।।। खुशी चेहरे पर आने से, मुस्कराहटों को होंठों पर आने से मत रोकियें। जो कुछ होगा इसी क्षण में घटित होगा होने अब फिर से एक गहरी सांस लिजियें। चेहरे पर कोई तनाव मत लाइये, रिलेक्स कीजियें और खुद को हल्का महसूस कीजियें।।।।।।।।
आइयें जीवन के हर क्षण को महत्वपूर्ण बनायें। इस क्षण के लिए सजग, जीवंत और सचेत हो जायें। भले ही आपने जिंदगी बहुत अच्छी गुजाisiones हम अपने साथ जो करते हैं, वही हमारे साथ जाता है और जो दूसरों के लिए करते हैं वह सब यहीं, इस दुनिया में ह ज fl. हर क्षण के ब mí.
जीवन अच्छे भविष्य की कामना के साथ जिया जाना चाहियें, लेकिन सब में में मौजूदा वक्त, इस क्षण को जीना भूलना नहीं चाहियें। वहां जैसी कोई जगह नहीं है, जहां पहुंचने की बात की जाती है। कोई अंत नहीं है, कोई शुरूआत नहीं है। जीवन एक सतत प्रवाह हैं। इसके हर पल को जिये, इसके हर पल का पूरा उपयोग करें फिलहाल एक काम करें-एक गहरी श्वास लें और धीरे से कहें, शांति! शांति! यानी चिंता छोड़ वर्तमान को भरपूरजियें। अभी मुस्कुरenas, क्योंकि खुशी-पgonenderado इसी क्षण में है, जो सुखद अनुभूति अनुभूति सामने घट रहीं है, उसे महसूस करके प्रसन्न होइयें।। होइयें होइयें।। होइयें होइयें होइयें होइयें होइयें होइयें होइयें। होइयें होइयें होइयें भविष्य कल घटित होगा। यह क्षण सामने है और अभी है।
Sadgurudev más respetado
Sr. Kailash Shrimali
Es obligatorio obtener Gurú Diksha del venerado Gurudev antes de realizar cualquier Sadhana o tomar cualquier otra Diksha. Por favor contactar Kailash Siddhashram, Jodhpur a Correo electrónico , Whatsapp, Teléfono or Enviar para obtener material de Sadhana consagrado, energizado y santificado por mantra, y orientación adicional,
Compartir vía: