- यदरोदी व तस्मव रुद्र अर्थात् जो रोया वह रुद्र है। यहां रुदन का अर्थ भूख से है, प्रत्येक प्राणी रु द्र का रूप है। जब व्यक्ति अपने मनोकामनाओं के लिये व्याकुल हो जाता है तब रुदन करता है, तब यह अत्यंत आवश्यक हो जाता है कि उसकी अभिलाषाओं को पूर्ण कर उसे तृप्त किया जाये, भगवान शिव का रूद्रावतार इन्हीं अभिल ाषाओं की पूर्ति करता है। भैरव के हाथ में भिक्षा या कपाल इसी बात का संकेत है, जब भैरव को अन्न अथवा जल प्राप्त हो जाता है, त ो वह तृप्त हो जाते हैं। मानव भी एक भैरव के समान ही भगवान रूद्र के ख अपने अभिलाषाओं की पूर्ति के लिये जब इसी रूप म Ver más ी पूर्ण होती हैं।
भगवान शिव की प्राणी मात्र पर असीम अनुकम्पा ही है। जिस प्रकार भीषण रोग से व्याकुल व्यक्ति को देख कर चिकित्सक करूणा से ओत-प्रोत हो औषधि जैसे कड़व ी शस्त्र का उपयोग करता है, ठीक वैसे ही दीन-हीन, सं तप्त, पीडि़त व्यक्ति, के लिये भगवान ा के वशीभूत होकर उसके हित में सभी उन पक्षों Ver más ्रकार ममतामयी मां अपने शिशु के फोड़े को पत्थर ह ृदय बनकर चिरवाती है। उसी प्रकार दया के सागर विश्वनाथ दुःखों ्रस्त मानव का उसके कल्याण हेतु दुःखो का संहार क रते हैं।
रुद्र की महिमा का वर्णन करते हुये वेदों में कह ा गया है, भगवान शिव सभी विद्याओं तथा कलाओं के आच ार्य हैं। व्याकरण शास्त्र भगवान शिव के चौदह सूत्र से नि र्मित है। संगीत की सभी विधायें उनके डमरू की ध्वनि है और तांडव के वही एकमात्र अधिदेव हैं हैं। आयुर्वेद, धनुर्वेद प्रभूति समस्त ज्ञान उनके द ्वारा ही मानव और देवताओं को प्राप्त हुये हैं। स्वेताश्वर उपनिषद् में, सबके जनक, संहारक और देवताओं के भी जन्म दाता माने गये हैं तथा कहा गया है कि इन्हीं परम ब्रह्म सर् वव्यापी रूद्र, शिव की चेतना आत्मसात करने से ही म ानव जीवन का कल्याण है। अबला, वृद्ध को आरोग्य रखने, पशुओं को निरोगी रखन े तथा सभी प्रकार की औषधियों के अधिष्ठाता होने क े कारण भगवान शिव को 'वैद्यनाथ' भी कहते हैं। धन, संतान सुख, समृद्धि, गृहस्थ सौभाग्य की पूर्ण चेतना प्रदान करने वाले एकमात्र देव सदाशिव ही ह ैं।
भगवान शिव शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं, इसलिये उन ्हें आशुतोष भी कहा जाता है। अम्बिका के पति होने के कारण यह अम्बिकेश्वर के नाम से भी जाने जाते हैं। शिव पुराण में शिव स्वयं कहते हैं, व, वह शिव, सब कुछ शिवमय है। शिव के सिवा कुछ भी नहीं है। यह काया ही मंदिर है तथा माया से विरक्ति पाने पर जीव ही सदाशिव है।
वर्ष के सभी मासों में श्रावण मास अपना एक विशेष महत्त्व रखता है। क्योंकि श्रावण माह श्रवण नक्षत्र सोमवार से भग वान शिव श्रीहरि के साथ मिलकर पृथ्वी पर विभिन्न लीलायें रचते हैं। श्रावण मास में अन्य पर्वों जैसे नाग पंचमी, पुत ्रदा एकादशी और रक्षाबंधन पर्व के अलावा श्रावण के सभी तिथि पूर्णतया चैतन्य व सिद्धि ं। इस माह में निश्चय ही साधक भगवान सदाशिव करूणा की चेतना को अपने रोम-रोम स्थापित करनी चाह िये, जिससे वह जीवन के सभी संतप्तों से मुक्त होक र पूर्ण आनन्दमय गृहस्थ जीवन व्यतीत कर सके।
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