निश्चित ही बीजों के साथ की गई मेहनत की फसल काट इं अक्सर फ़ासला इतना हो जाता है कि हम सोचते हैं, बीज तो हमने बोये थे अमृत के के न मालूम कैसा दुर posterir
लेकिन इस जगत में जो हम बोते हैं उसके gres हम वही पाते हैं जो हम अपने को निर्मित करते हम वही पाते हैं जिसकी हम तैयारी करते हैं। हम वहीं पहुंचते हैं जहां की हम यात्रा करते हैं। हम वहां नहीं पहुंचते जहां की हमने यात्रा ही न ही हो यद्यपि हो सकत mí मैं नदी की तरफ़ नहीं जा रहा हूं। मन में सोचता हूं कि नदी की तरफ़ जा ominó सोचने से नहीं पहुंचता है आदमी। किन रास्तों पर चलना है उनसे पहुंचता है। मंजिलें मन में तय नहीं होती, रास्ते पर तय होती है
आप कोई भी सपना देखते रहें, अगर बीज आपने नीम के बो दिये हैं और सपने में शायद यह सोच रहे हो कि उससे आपको कोई स स्वादिष्ट मधुर फल मिलेगा ।ा। • ¡Adelante! फल आपके बोये बीजों से निकलते हैं। इसीलिए आखिर में जब नीम के कड़वे फल हाथ में आते हैं तो शायद आप दुःखी होते हैं, पछताते हैंatar ध्यान रहे, फल ही कसौटी है, परीक्षा है बीज की। फल ही बताता है कि बीज आपने कैसे बोये थे। आपने कल्पना क्या की थी, उससे बीजों को कोई प्रयोजन नहीं है। हम सभी आनंद लेना चाहते हैं जीवन में लेकिन आता कहां है आनंद आनंद आनंद आनंद आनंद आनंद आनंद! हम सभी शांति चाहते हैं जीवन में, लेकिन मिलती कहां है शांति! हम सभी चाहते हैं कि सुख, महासुख ही बरसे, पर बरसता कभी नहीं। तो इस संबंध में एक ब siguez हम चाहते कुछ हैं, बोते कुछ हैं। हम बोते जहर है और चाहते अमृत हैं। इसलिये जब फल आते है तो जहर के ही आते हैं, दुःख और पीड़ा के ही आते हैं, नरक ही फलित होता है।।।।।।।।।। हम सब अपने जीवन को देखें तो ख्याल में जीवन भर चलकर हम सिवाय दुःख के रास्ते पर और कहीं भी नहीं पहुँचते हैं।।।।।। हैं हैं रोज दुःख घना होता चला जाता है। रोज रात कटती नहीं और बड़ी होती चली जाती है। रोज मन पर संत siguez पैरों में पत्थर बंध जाते हैं दुःख के, पैर नृत्य नहीं कर पाते हैं उस खुशी में जिस खुशी की हम तलाश में है। क्योंकि कहीं न कहीं हम, हम ही- क्योंकि और कोई नहीं है- कुछ गलत बो लेते हैं।।।।।।।।।।। उस गलत बोने में ही हम अपने शत्रु सिद्ध होते हैं।
जो हम बोयेंगे वही हमको मिलेगा। जीवन में चारों ओर हमारी ही फैंकी हुई ध्वनियां प्रतिध्वनित होकर हमें मिल जाती हैं।।।।।।। थोड़ा समय अवश्य लगता है। ध्वनि टकराती है बाहर की दिशाओं से, और लौट आती है॥ जब तक लौटती है तब तक हमें ख्याल भी नहीं रह जाता कि हमने जो गाली फैंकी थी वही वापस लौट रही है।।।।।।।।।
बुद्ध का एक शिष्य रास्ते से गुजर रहा था। उसके साथ दस-पंद्रह सन्यासी थे। उसके पैर में जोर से पत्थuestos उसके साथी भिक्षु हैर marca ¿Está bien? पैर में चोट लगी, पत्थर लगा, खून बहा और आप कुछ इस प्रकाendr हाथ जोड़े हुये थे जैसे को धन्यवाद दे हे हों हों।।।। हों हों हों हों हों हों हों हों हों हों हों हों हों हों शिष्य ने कहा, बस यह एक मेरा विष का बीज बाकी रह गथा किसी को कभी पत्थर मारा था, आज उससे छुटकारा हो गथााया आज नमस्का rod कárta
लेकिन अगर आप को ¢ filzos ऐसा नहीं सोच पायेंगे, संभावना यही है कि रास्ते पर पड़े हुये पत्थर को भी आप एक गाली जरूर देंगे।।।।।।।।। पत्थर को भी गाली और कभी ख्याल भी न करेंगे कि पत्थर को दी गई गाली, फिर बीज बो रहे हैं आप! पत्थर को दी हुई गाली भी बीज बनेगी। सवाल यह नहीं है कि किसको गाली दी। सवाल यह है कि आपने गाली दी, वह वापस लौटेगी।
गांव में एक साधारण ग्रagaमीण किसान बैलों को गाली देने में बहुत ही कुशल था, वह अपनी बैलगाड़ी में क कर गांव की तû आ ह थ raztan उसी रास्ते से एक ऋषि निकल रहे थे । वह आदमी अपने बैलों को बेहूदी गालियां दे बड़े आंतरिक संबंध बना रहा है गालियों से। ¿? वह आदमी कहता है कि ¢ बैल मुझे गाली वापस तो नहीं लौटा देंगे, मेरा क्या बिगड़ेगा। वह आदमी ठीक कहता है। हमारा गणित बिल्कुल ऐसा ही है। जो आदमी गाली व sigue. इसलिये अपने से कमजोर को देख कर हम सब गाली देतइ है हम बेवजह गाली देते हैं, जब कोई जरूरत भी न हो। कमजोर दिखा कि हमारा दिल मचलता है कि थोड़ा इसकऋ ॸा ॸा
ऋषि ने कहा, बैलों को गाली तू दे रहा है, अगर वे गाली लौटा सकते तो कम खतरा था, क्योंकि समझौता अभी हो जाता। लेकिन वे गाली नहीं लौटा सकते, लेकिन गाली तो लौगे तू महंगे सौदे में पडे़गा। यह गाली देना छोड़! ऋषि की तरफ़ उस आदमी ने देखा, ऋषि की आंखों को देखा, उनके आनंद को, उनकी शांति को देखा। उसने उनके पैág.
ऋषि दूसरे गांव चले गये। दो-चार दिन आदमी ने बड़ी मेहनत से अपने को रोका, लेकिन से से दुनिया में कोई ivamente रुकावट होती है समझ से! दो-चार दिन में प्रभाव क्षीण हुआ। वह आदमी अपनी जगह वापस लौट आया। उसने कहा, छोड़ो भी, ऐसे तो हम मुसीबत में पड़ जांयेजांये बैलगाड़ी से आना मुश्किल हो गया। हिसाब बैलगाड़ी चलाने का रखें कि गाली न देने काा॰ बैलों को जोते की अपने को जोते। बैलों को सम्भालें कि खुद को संभाले यह तो एक मँहथ ो
गाली उसने वापस देनी शुरू कर दी। चार दिन जितनी रोकी थी उतनी एक दिन रफ़ा-दफ़ा हुआ, मामला हल्का हुआ, उसका मन शांत हुआ॥ कोई तीन- चार महीने बाद ऋषि उस गांव में वापस निथइ थेह उनको पता भी नहीं था कि वह आदमी फिर मिल जायेगा साथ् वहधुआंधार गालियां दे रहा है बैलों को। ऋषि ने खड़े होकर कहा? उसने देखा ऋषि को और जल्दी ही बात बदली। उसने कहा बैलों से, देखो बैल, ये मैने तुम्हे गालियां दी, ऐसी मैं तुम्हे पहले दिया करता था। अब मेरे प्यारे बेटो!
ऋषि ने कहा, तू बैलों को ही धोख mí ऋषि ने कहा, हो सकता है मैं दुबारा इस गांव, मैं मान ही ले रहा हूं कि तू बैलों को गालियां नहीं दे रहok था, सिर्फ पुरानी गालियां बैलों को याद दिला रहok था था थ va ¿Está bien? तू मुझे धोखा दे कि तू बैलों को धोखा दे, इसका बहुत अenas नहीं है है, लेकिन तू अपने को ही धोखा दे रहा है।।।।।।।।।।
जीवन में जब भी हम कुछ बुरा कर ominal प्राथमिक रूप से हम अपने ही साथ कर रहे हैं। क्योंकि अंतिम फल हमें भोगने हैं। वह जो भी हम बो रहे हैं, उसकी फसल हमें काटनी इंच-इंच का हिसाब है। इस जगह में कुछ भी बेहिसाब नहीं जाता है। हम अपने शत्रु हो जोते हैं। हम कुछ ऐसा करते हैं जिससे हम अपने को ही दुःख में डालते हैं, स्वयं ही दुःख में उतरने की सीढि़य mí.
तो ठीक से देख लेना, जो आदमी अपना शत्रु है वही आदमी अधû है है और जो अपना शत्रु है किसी किसी का मित्र तो कैसे हो सकेगा? जो अपना भी मित्र नहीं, जो अपने लिये ही दुःख के आधार बना ¢ ह, वह सबके लिये दुःख के आधार बना देगा। पहला पाप अपने साथ शत्रुता है, फिर उसका फैलाव हैै
फिर अपने निकटतम लोगों के साथ शत्रुता बनती है, फिर दूरतम लोगों के साथ। फिर जहर फैलता चला जाता है, हमें पता भी नहीं चलता॥ ¡Adelante! चोट पड़ते पड़ते ही पत SOWS लहरें चलती जाती हैं अनंत तक। ऐसे ही हम जो करते हैं, हम तो करके चूक भी जाते हैं, आपने ग sigue वे न मालूम कितने दूर के छोरों को छुऐगी और जितना अहित उस गाली से होगा उतने सारे अहित के लिये आप जिम्मेवार हो गये गये गये! आप कहेंगे? मैं कहता हूं, अकल्पनीय अहित हो सकता है और जितना अहित हो ज mí. आपने उठाईं वे लहरें। आपने ही बोया वह बीज। अब वह चल पड़ा। अब वह दूर-दूर तक फैल जायेगा। एक छोटी सी दी हुई गाली से क्या-क्या हो सकता है। अगर आपने अकेले में गाली दी हो औág. लेकिन इस जगह में कोई भी घटना निष्परिणामी नहीं है उसके परिणाम होंगे ही। आप बहुत सूक्ष्म तरंगें पैदा करते हैं अपने चारों ओर वे तरंगें फैलती हैं।।।।।।।। उन तरंगों के प्रभाव में जो भी लोग आएंगे वे गलत ivamente
अभी बहुत कम चलता है सूक्ष्मतम तरंगों पर और ख्याल में आता है अगatar हिस्सा है वह ऊपर आ जाता है और जो ठीक हिस्सा है वह दब दब जाता है।।।।। दोनों हिस्से आपके भीतर हैं। अगर कुछ अच्छे लोग बैठे हों एक जगह प्रभु का स्मरण करते हों, प्रभु का गीत ग mí आपका गलत हिस्सा नीचे दब ज mí. आपकी संभ sigue "
एक छोटा सा गलत बोला गया शब्द कितनी दूर तक कांटों को बो जायेगा, हमें पत पता नहीं।।।।।।।।।।।।।।। बुद्ध अपने भिक्षुओं से कहते थे की तू चौबीस घंटे, राह पर कोई देखे, उसकी मंगल की कामना करना। वृक्ष भी मिल जाये तो उसकी मंगल कि क mí. पहाड़ भी दिख ज siguez एक भिक्षु ने पूछा? बुद्ध ने कहा, इसके दो फ़ायदे हैं। पहला तो यह कि तुम्हें गाली देने का अवसर न मिलेगा तुम्हें बुरा ख्याल करने का अवसर न मिलेगा। तुम्हरी शक्ति नियोजित हो जायेगी मंगल की दिशा में और दूसरा फ़ायदा यह जब जब तुम किसी के लिये कि कामना करते हो तो तुम उसके भीतxto भी प्रतिध्वनि पैदा क। हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो eléctrico eléctrica तुम उसके भीत eléc ha प demás प elécgen वह भी तुम्हारे लिये मंगल की कामना करता है।
इसलिये भारतवर्ष में राह पर चलते हुये अनजान आदमी को भी राम-a कहने की प प्रक demás बनाई थी।।।।।।।।। उस आदमी को देख कर हमने प्रभु का स्मरण तो ठीक से नमस्कार करना जानते हैं वे सिर्फ उच्चारण नहीं करेंगे, वे उस आदमी में ¢ र की प्रतिमा को भी देख कर गुजर जायेंगे।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।. उन्होंने उस आदमी को देख कर प्रभु का स्मरण किया। उस आदमी की मौजूदगी प्रभु के स्मरण की घड़ी पैदा की गई और हो सकता है आदमी आदमी शायद ¢ र को मानता भी हो औ और जानता भी हो हो हो लेकिन उतरuela में कहेग कहेग कहेग कहेग कहेग कहेग म म।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। उसके भीतर भी कुछ ऊपर आयेगा।
जीवन बहुत छोटी-छोटी घटनाओं से निर्मित होता है। मंगल की कामना या प्रभु का स्मरण आपके भीतर जो श्रेष्ठ है उसको ऊपर लाता है।।।।।।।।। जब आप किसी के सामने दोनों हाथ जोड़ कecer और झुकने से बड़ा अवसर इस जगत में दूसरा नहीं है क्योंकि झुका हुआ सिर कुछ बुरा नहीं प पाता, झुका हुआ सिर गाली नहीं दे पा और जब कί नमसellas करके सिर झुकायें और कल्पना भी करे कि परमात haber वह आदमी आपके प siguez हम सम्बन्धों में जीते हैं, हम अपने चारों तरफ़ अगर पारस का काम करते हैं यह असंभव है कि बाकी लोग हमारे लिये पारस न ज ज ज।।।।।।।।।।।।।।।। वे भी हो जाते हैं।
अपना मित्र वही है जो चारों ओर मंगल का फैलाव करता है, अपने चारों ओर शुभ की कामना करता है, जो अपने चारों ओर नमन से भरा हुआ है, अपने चारों ओर कृतज्ञता का ज्ञापन करता चलता है,और जो व्यक्ति दूसरों के लिये मंगल से ¿Está bien? जो दूसरों के लिये सुख की कामना से भर gaste वह अपना मित्र हो जाता है और अपना मित्र हो जाना बहुत बड़ी घटना है।।।।। जो अपना मित्र हो गया वह धार्मिक हो गया। अब वह ऐसा कोई भी काम नहीं कर सकता जिससे स्वयं को दुःख मिले तो अपना हिस siguez दिन में हम हजार काम कर रहे हैं जिनसे हम दुःख पाते हे हजार बार पा चुके हैं। लेकिन कभी हम ठीक से तर्क नहीं समझ पाते हैं जीवन में हम इन क sigue वही बात जो आपको हजार बार मुश्किल में डाल चुकी है, वही व्यवहार जो आपको हजाtern ब sigue. ¡Adelante!
हम एक क्षण भर अगर रूक के सोचे तो हमें ज्ञात ही नहीं कि हमें कहां पहुंचना है? हमने तो चाँद के चंद टुकड़ो को इकट्ठा करने की क्रिया को जीवन जीवन मान लिया। दो-चार मकान बना लेने की जीवन पद्धति को ही जीवन मान लिया है। यह तो जीवन का एक प्रकार है, कि भौतिक दृष्टि में, चाहे निर्धनता में जियें, चाहे अमीरी में, वैभव जियें।।।।।।।।।।।।।। जब तक जीवन के इस मूल चिन्तन को नहीं समझेंगे तब तक हम सही अर्थों में भी नहीं नहीं हो पाएंगे, तो फिर जीवन की परिभाषा को समझायेगा कौन? ¿Está bien? ¿Está bien? क्या हर समय व्यस्त रहने और तनाव में गुजरने की क्रिया को ही जीवन कहते है है है है है है है है है है है है है शास्त्रों में तो इसको जीवन नहीं कहा जाता है। श sigue. इस चिन्तन को सोचा-समझा ही नहीं और नहीं सोचा-समझा, तो जीवन का आनन्द भी लिय लिया जा सकता। जीवन का आनन्द तो वे लेते हैं, जो जीवन को समझते हैे जो कभी म sigue. जो छोटी-छोटी तलैय siguez
मेंढक जब कुएं के किनारे से चलना शुरू कर के और पूरा चक्कर लगाकर फिर उसी स्थान पर आ जाए और कहे-पूरा विश्व है, तो उसके हिसाब से तो वही विश्व है, क्योंकि उसने पूरा चक्कर काटा है मगर यदि कभी मेंढक को तालाब में डाल दिया जाये तो उतने अथ sigue. मैंने तो कुछ नहीं देखा था, दुनिया तो कुछ और है, संसार तो कुछ और है, और यदि वह से भी उस उस तालाब का पूर marca चक्कर लगा औ लिय bal लिय पू पू पgunaador जीवन देख लिया है, अब इससे बड़ mí यह तो बहुत लम्बा-चौड़ा तालाब है और मैंने प्रयत्न करके इसका पूरा एक चक्कisiones लगाय है है तो जीवन है और यदि स सguna में औ छोट ज ज razón सा हिस्सा था, वह जीवन था ही नहीं।
तुम्हाisiones पत्नी है, एक-दो पुत्र है, थोडा-स mí कभी देखा ही नहीं कि इससे बड़ mí एक विवशता है, एक मजबूरी है। समाज में जिन्दा रहना तुम्हारी मजबूरी है। परिवार का पालन-पोषण करना तुम्हारी मजबूरी है। समाज सदैव तुम्हाisiones
जब डाकू थे 'वालutar एक बार नारद उनके हाथ में पड़ गये, नारद तो वीणा बजाते हुये नारायण-नारायण करते चले जा रहे थे और वाल्मीकि ने उन्हें पकड़ लिया, सुबह से कोई शिकार मिला ही नहीं, बडी मुश्किल से यह आदमी नजर आया, वाल्मीकि ने उनकी वीणा छीन ली।
नारद् ने कहा- अरे! तुम एक साधु को लूट रहे हो, तुम ये क्या कर रहे हो। उसने कह siguez ही जायेगा और तुम्हारे कपड़े भी खोल लूं, ये भी भी ब sigue. उचित तो नहीं मगर यह करूंगा जरूर, क्योंकि मुझें अपने परिवार का पालन-पोषण करना है।।।।। नारद ने कहा- क्या तुम्हार marca परिवok sirt तुम्हार marca व sigue. अपने परिवार के लिये कर रहा हूं। परिवार मेरा साथ देगा ही।
नारद् ने कहा पहले तुम अपने परिवार वालों से पूछ ॲ व sigue. बूढ़ी मां से पूछा तू मुझे बता, कि मैं जो छीना-झपटी, लूट-खसोट, हत्यायें करहा हूं।।।।।।। क्या यह पाप है और क्या तुम भी मेरे पाप में भागबथथ यह पाप तो है ही। मां ने कहा-बेटा जरूर पाप है। वाल्मीकि ने कहा मैं इससे तुम लोगो को रोटी खिला रहok हूं, अन्न दे रहok हूं, आवास दे रहा हूं तो तुम भी पाप में भागीदार हो।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। uto मां ने कहा-मैं तो प mí कहा भी नहीं, मैं इसमें भागीदार नहीं हो XNUMX
व sigue. लूटना, मारना पाप है। पत्नी ने कहा-निःसन्देह पाप है। व marca ender में भागीदार हो। पत्नी ने कहा- मैं तो पाप में भाdos ।
वाल्मीकि वापस आ गए गए, नारद को पेड़ से खोला और छोड़ दिया, उसी क्षण उन्होंने पाप पूर्ण डाकू का कार्य छोड़ करके, का-झपटीा का Paraenderque ¿Está bien? क्या तुम छीना-झपटी नहीं कर रहे? छल नहीं कर रहे? झूठ, कपट, और असत्य नहीं कर रहे? और यह सब तुम परिवार वालों के लिए कर रहे हो, और तुम्हें यह गलतफहमी है, कि ऐसा करने पर परिवार वाले तुम्ह Dav no सendr. पाप में भागीदार तो वे नहीं होंगे, असत्य और अधर्म के वे भागीदok नहीं।।।।।।।।।।। तुम्हें अकेले ही यह प siguez
फिर तुम कब इस चेतना को? ¿Está bien? ¿Está bien? ¿Está bien? कि यह जीवन नहीं है, जो तुम कर रहे हो। जब तक तुम ऐसा करोगे तब तक जीवन में तुम्हें कुछ मिलेग mí युक्त पाप पूर्ण कार्य बेकार है।
जिस रास्ते पर तुम चल रहे हो उस रास्ते से तो शमशान की यात्रaga ही हो सकेगी सकेगी, यह कफन ओढ़ ओढ़atar नहीं कû हे हो जो कुछ तुम प्रagaप्त कर रहे हो यह मकान, यह धन, ये चांदी के, ये क • के चंद नोट, यह यह पत थ चलेंगे चलेंगे ये तो तुम के स तुम तुम तुम तुम तुम तुम तुम तुम तुम तुम तुम तुम तुम तुम तुम तुम तुम तुम तुम तुम तुम तुम तुम तुम तुम तुम तुम तुम तुम तुम तुम तुम तुम तुम तुम तुम. नहीं, तुम्हारे साथ उनकी य sigue. वे तुम्हारे सहयोगी नहीं है। साथ तो तुम्हाisiones
यदि तुम ऐसा चिन्तन करते हो, यदि तुम्हाisiones , जो तुम्हे समझा सके, कि तुम जो कुछ कर रहे हो वह तुम खुद कenas हो, उसके लिए कोई सहयोगी नहीं।।।।।।।।।।।।।।। तुम्हारे पाप काisiones रोगों से जर्जर, अभावों से पीडि़त, असत्य, परेशान, दुःखी, अतृत्प। जब बेटे उनको पूछते ही नहीं जब बहुएं उनक mí
ऐसा तुम्हारा जीवन किस काम आयेगा, क्या प्रयोजन है इस जीवन का? क्योंकि इस जीवन को लाश की त sigue. जो जीवन है, वह तो पत्थisiones दो-चाocar कदम चलने पर ही इनका सामना करना पड़ेगा, फिर कोई तुम्हारuerzo साथ नहीं देगा, घर वाले भी नहीं, पत्नी भी, पुत्र भी नहीं नहीं नहीं बन ब ब भी नहीं नहीं भी।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।. क्योंकि तुमने अपने जीवन में ऐस mí
किसी आंख नाक कान हाथ पैर वाले चलने-फिरने वाला व्यक्ति को शिष्य नहीं कहते, शिष्य तो उसे कहते है, जिसमें श् razón औ sigue ,
मात्र दीक्षा लेने वाले को शिष्य नहीं कहते, सिर मुंडाने को भी शिष्य नहीं कहते कहते कहguna व के पै पै व व ले ले गलत गलत गलत गलत गलत गलत गलत गलत गलत गलत गलत गलत गलत गलत गलत गलत गलत गलत गलत गलत गलत गलत गलत कि तुम गलत रास्ते पर हो, तुम्हे कह सके कि यह र ender. ऐसे तो तुम्हाisiones तुम भी उसी तरीके से मृत्यु को प्राप्त हो जाओगे और तुम्हे कोई पूछने वाला नहीं होगा, कोई तुम्हारे लिए विचार करने वाला भी नही होगा, कोई अहसास करने वाला भी नहीं होगा, कि तुमने कितना परिश्रम किया है। इस यात्रा में तुम्हारे अन्दर कई प्रकार की भ्रांतियां आयेगी, क्योंकि तुमने इन भ्रांतियों को ही पाल रखा है, तुमने अपने अन्दर शक,संदेह,कपट,और व्याभिचार को पाल रखा है और वे सब तुम्हारे सामने तन कर खड़े हो जायंगे, तुम्हारे मार्ग को " तुमने अपने जीवन में छल को प्रश्रय दिया है। तुमने अपने जीवन में कपट का साथ दिया है, तो वे इस समय तुम्हाisiones क्योंकि इससे उनका स्वार्थ सिद्ध होता है।
कायर और बुजदिल हताश हो जाते है, निराश हो जाते है, खोज बंद कर देते है, मगर जो हिम्मती है, दृढ़ निश्चयी है, जो एक क्षण में जल उठने वाले है, जो निश्चय कर लेते है, कि मुझे कुछ करना है, खोज करनी है, मुझे ऐसा घिसा-पिट mí वाला है, ऐश्वर्य प्रदान करने वाला है, जो सही अर्थो में पूंजी देने व mí va
जो निश्चय करके यह प्रयत्न करता है, कि मुझे गुरू को प्रagaप demás करना ही है, वह सन्यासी, वह योगी।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। दूसरा, जो इन रास haba जंगलों में खाक छानने वाले को तपस्वी नहीं कहते, जो जंगली जीवन के मर्म को समझने की कोशिश करते है, वे 'योगी' और 'सन्यासी' है।।।।।।। है है है है है है है है है है है है है है जो गुरू की खोज में आगे बढ़ते हैं वे साधु है, जो गुरू को प्रagaप्त करके ही हते है है वे शिष्य हैर जो जो पgunaando क लेत है है है है वह वह वह वह वह वह वह वह वह वह वह वह चेतन चेतन चेतन चेतन चेतन चेतन चेतन चेतन चेतन चेतन चेतन चेतन चेतन चेतन चेतन चेतन चेतन चेतन चेतन चेतन चेतन चेतन चेतन चेतन चेतन चेतन चेतन चेतन चेतन चेतन चेतन चेतन चेतन चेतन चेतन चेतन चेतन चेतन चेतन चेतन चेतन चेतन चेतन चेतन चेतन चेतन चेतन चेतन चेतन चेतन चेतन चेतन. निश्चय ही उस जीवन -पथ पर तेजी के साथ अग्रसर हो जाथ
इस जीवन मार्ग पर केवल शिष्य चल सकता है, साधक तो बहुत छोटी सी है है, शिष्य के सामने साधक की कोई औकात नहीं होती।।।।।।।।।।।।।।।।। योगी, तपस्वी उसके स siguez उसके सामने यक्ष, गन्धisiones जागने से पहले जागता है, गुरू के सोने के बाद सोतै ॥ जो केवल इस बात का चिन्तन करता है कि गुरू की कैसे सेवा की जाए? हम गुरू के किस प्रकार से हाथ पैर बनें, नाक बनें, आंख बनें, सिर बनें, विचार बनें, भावना बनें, धारणा बनें, किस प Davágaga से बनें बनें बनें? किस युक्ति से बने? जो केवल इतना ही चिन्तन करता है, वही सही अर्थो में शिष्य कहलाता है और सच्चा शिष्य सही अर्थो में बना हुआ सच्चा शिष्य ही अपने आप उस रास्ते पर खड़ा हो जाता है, जो पूर्णता का रास्ता होता है, जो पवित्रता का रास्ता होता है, जो ब्रह्म तक पहुंचने का रास्ता होता है। इसीलिए शिष्य की समानता तो देवता, यक्ष, गन्धर्व कर ही सकते सकते, तपस्वी और साधु तो छोटी सी ब ब है है।।।।।।।।।।।।।।
Sadgurudev más respetado
Sr. Kailash Shrimali
Es obligatorio obtener Gurú Diksha del venerado Gurudev antes de realizar cualquier Sadhana o tomar cualquier otra Diksha. Por favor contactar Kailash Siddhashram, Jodhpur a Correo electrónico , Whatsapp, Teléfono or Enviar para obtener material de Sadhana consagrado, energizado y santificado por mantra, y orientación adicional,
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