संस्कार का वास्तविक अर्थ है- किसी के रूप को सुधार कर उसे नूतन व सर्वश्रेष्ठमय स्वरूप प्रदान करना। जिस कार plardin
जब कुम्हार मिट्टी की मूर्ति बना कर उसे पूजा योगutar
आज समाज में जो समस्यायें हैं, उनके निवारण का एक मात्र उपाय है, उत्तम संस्कारों का परिपालन करना।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।. भारतीय संस्कृति के अनुरूप जब तक जनमानस अपने चरित्र को नहीं निखारेगा जब तक घृणा योग्य समस्याओं का स्थायी समाधान नहीं सकेग सकेग va।।।।।। सकेग सकेग सकेग सकेग सकेग सकेग सकेग सकेग सकेग सकेग सकेग सकेग सकेग सकेग सकेग सकेग सकेग सकेग.
इसलिये प्रत्येक मानव का कर्तव्य है कि पहले स्वयं सुसंस्कारित बनें और फिर आने वाली पीढ़ी को इस तरह संस्कारित करें कि हमारी पुरातन संस्कृति योग, प्रणाम, पूजा, आराधना, साधना, उत्तम गुण, सहनशीलता, धैर्य, संयम, आदर-सत्कार, जीव- जन्तु के प्रति सद्भावना से परिपूर्ण हो तभी भारत का गौरव सदा सुरक्षित रह सकेगा।
यदि हम प्रagaendo. माता-पित mí को च mí च कि अपने अपने ब mí ब में ऐसे संस्कार डालें जो आगे चलकर उन्हें सभी सद्गुणों से युक्त श्रेष tercadero व्यक्तित पella प कर सके सके।।।।।।। शr..
विडम्बना है कि भारतीय परिवारों में पाश्चात्य सभ्यता का तेजी से अनुसरण हो ¢ ह है।।।।।।। अनुशासन हीनता निरन्तर बढ़ती जा रही है, सात्विक प्रवृतियों का अभाव हो ivamente ह।।।।।।।। इसका मुख्य कारण है आज की आधुनिक शिक्षा-प्रणाली॥ जिसका शाब्दिक ज्ञान के अलावा आत्मिक ज्ञान, संस्कार, संस्कृति से कोई वास्ता ही नहीं है।।।।।।।।
अंग्रेजी शिक्षा-पद्धति का इतना अधिक पोषण हो रहok है जिसके कारण भारतीय हिन्दी संस्कृति के दिन-प्रतिदिन ह्रagaस की घटनायें घटित होती ही ibilidad हैं।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। आज की तथाकथित सभ्यता से सरोबार यह नयी पीढ़ी आधुनिकीकरण के नाम पर कुसंस्क Chr. आज की युवा पीढ़ी अपनी विवेक शकutar आज स sigue " अभिभावकों के साथ ही शैक्षणिक, स sigue "
बच्चों को उत्तम संस्कार प्रदान करने में माताओं की अहम भूमिका होती।।।।।।।।।। इसीलिये हमारे श marca स ने पित mí
इसी तरह श्रुति ने भी मातृदेवो भव, पितृदेवो भव, आचanzas आच भव, कहकर माता को ही प्रथम स्थान दिया है।।।।।।।।। यदि मातायें संस्काisiones
एक व्यक्ति के पास दो तोते पिंजरें में बंद थे। एक दिन पिंजरा खुला रह गया, अवसर देखकर एक तोता साधु के आश्रम में चला गया और दूसरaga तोतί डellas ड के यह यह चल कहने व अस क razón लगा। इसलिये माता-पिता को सदैव यह ध्यान रखनok चाहिये कि उनके बच्चों का सच्चे अर्थं में मित्र कौन? साथ ही यह भी निरीक्षण करते रहनok चाहिये कि मित्र उनके साथ कोई गलत कार्य तो नहीं कर íbO हैं।।।।।।।।।।।।।।।।।
म sigue " उनके होमवर्क देखें। समय-समय पर विद्यालय या कालेज में जाकर बालकों की प्रगति के बारे में उनके अध्यापकों से बातचीत करनी चाहिये। बच्चों के आचरण, चाल-चलन, खान-पान, रहन-सहन आदि पर माताओं को विशेष ध्यान रखना चाहिये। एक संस्काisiones
यह भी देखा जाता है कि प्रत्येक दूसरी पीढी में संस्काisiones दादा-दादी, पुत्र-पुत्रवधू, पौत्र एवं पौत्रवधू इन पीढि़यों में हम यह परिवर्तन अपने परिवार में देखने को मिलता है।।।।।।।।। जो संस्कार दादा-दादी ने अपने पुत्रें को दिये, वे संस्कार उनके पोते-पोती आदि में नही दिखायी देते हैं।।।।।।।।।।।।।।। प sigue. चाहे वह सभ्य विचार सम्बन्धी विषय हो या आचरण सबत््म््म््
आज प्रagaयः प्रत्येक मनुष्य धनोपार्जन में इतना व्यस्त है उसको उसको अपने बच्चे क्या कर र है? वे किधर जा रहे हैं? यह जानने के लिये समय ही नहीं है, जरा सोचिये, परिवार के बच्चे ही अगर संस्कारित ना होंगे आपके आपके द्वाenas एकत्रित धन क देत भी है icio कुसंस क संत संत श श razón श् Est. अपने व्यस्तम जीवन प्रणाली में कुछ समय परिवार को सँवारने के लिये अवश्य दें।।।।।।।।।
किताबी ज्ञान से तो सिपफऱ् अर्थोंपार्जन तक ही सीमित रहok जा सकता है।।।।।। जीवन को श्रेष demás से व्यतीत करने कि लिये उत्तम संस्कार की आवश्यकता है।।।।।। तभी मानव जीवन सार्थक हो सकता है। आपकी संतान अपने जीवन में उच्च शिक्षा, सुसंस्कार, सद्बुद्धि और मर्यादित जीवन सद्गुरूमय चेतना को आत्मसात कर ज्ञ Dav ", बुद्धि से युक्त हो, ऐस आशी आशी razón ija व ।्ञान, बुद्धि से युक्त, ऐस ही आशी razón.
ama a tu madre
Shobha Shrimali
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