जो भी जीवित है, वह आशा से जीवित है और जो भी मृत है, वह निû मृत से है।।।।।।।।।।।।।।।। eléctrica यदि हम छोटे बच्चों को देखे, जिन्हें अभी समाज, शिक्षा और सभ्यता ने नहीं नहीं किया है, तो से जीवन जीवन-सूत्र हमें दिखाई पड़ेंगे।।।।।।।।।।।।।।। सबसे पहली ब siguez निश्चय ही ये गुण स्वाभाविक हैं। उन्हें अर्जित नहीं करना होता है। हाँ हम चाहे तो उन्हें खो अवश्य सकते है। फिर भी हम उन्हें बिल्कुल ही नहीं खो सकते है, क्योंकि जो स्वभाव है वह नष्ट नहीं होता और जो स्वभाव नहीं है, वह भी केवल केवल वस्त Dav a ही सकत सकत है, अंतत।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। eléctrico demás सकत सकत सकत है objetivo
इसलिए मैं कहत mí सब वस्त्र बंधन है और निश्चय ही परमात्मा निर्तस््॰ ¿Está bien? मैं उन वस्त्रों की ब mí उन्हें छोड़ कर तो बहुत से व्यक्ति निर्वस्त्omin कपास कमजोर धागे नहीं, निषेध sigue. उन्हें जो छोड़त mí
मैंयह क्या देख रहा हूँ? ¿Está bien? और क्या तुम्हें ज्ञात नहीं है कि जब आंखे निर sigue. निenas श • है है है जीवन जीवन उसकी धाellas में निश्चय ही ऊर्ध्वगमन खो देता है।।।।।। निर marca पाप ही नहीं, आत्मघात भी है, क्योंकि जो श्रेष्ठतर जीवन को पाने में संलग्न नहीं, उसके चरण अनायाय ही मृत मृत की ओर बढ़ाते।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। यह शाश्वत नियम है कि जो ऊपर नहीं उठता, वह नीचे गिर जाता है और जो आगे नहीं बढ़ता उसको पीछे धकेल दिया जाता है।।।। मैं जब किसी को पतन में जाते देखता हूँ तो जानता हूँ कि उसने पर्वत-शिखरों की ओर उठना बंद कर दिया। पतन की प्रक demás विधेयात्मक नहीं हैं घाटियों में जाना, पर्वतों पर न जाने का ही दूसरा पहलू है।।।।।।।।।।।।। वह उसकी ही निषेध निषेध छ mí.
आशा सूर्यमूखी के फूलों की भांति सूर्य की ओर देखती है और निर marca? वह अंधकार से एक हो जाती है। जो निराश हो जाता है, वह अपनी अंतर्निहित विराट शक्ति के प्रति सो ज mí. बीज जैसे भूल जाए कि उसे क्या होना है और मिट्टी के साथ ही एक होकर पड़ा रह जाए, ऐसा ही वह मनुष्य जो निर sigue. वह उच्चता की और बढ़ना ही भूल गया और परमात्मा, गुरू को दोषी ठहराने लगा है।।।।।।।।।।
यह समाचार उतना दुखद नहीं है जितना कि आशा का मरजा जा क्योंकि आशा हो तो परमात haber आशा का आकर्षण ही मनुष्य को अज्ञात की यात demás पर ले जाता है।।।। आशा ही प्रेरणा है जो उसकी सोई हुई शक्तियों को जगाती है और उसकी निष्क्रिय चेतना को सक्रिय करती हैं क्या मैं कहूं कि आशा की भाव-दशा ही आस्तिकत है? ¿? पर आशा कहाँ है? मैं तुम्हाisiones ¿Está bien? निश्चय ही तुम्हenda यह जीवन इतना बुझा हुआ है कि मैं इसे जीवन भी कहने में असमर्थ हूँ मुझे आज्ञा दो मैं कहू कि तुम तुम मर गए हो हो हो हो हो हो हो! असल में तुम कभी जीए ही नहीं। तुम्हाisiones जन्म तो जरूर हुआ था, लेकिन वह जीवन तक नहीं पहुँच सका! जन्म ही जीवन नहीं है। जन्म मिलता है, जीवन को पाने के लिये।
इसलिए जन्म को मृत्यु छीन सकती है, लेकिन जीवन को कोई भी मृत्यु छीन सकती सकती। जीवन जन्म नहीं है और इसलिए जीवन मृत्यु भी नह।ं ॹ जीवन जन्म के पूर्व है और मृत्यु के भी अतीत है। जो उसे जानता है वही केवल भय और दुखों के ऊपर उठ हाा ााा ¿? वे तो जन्म और मृत्यु के तनाव में ही समाप्त हो जाथहाथ जीवन एक संभावना है और उसे सत्य में परिणित करने के लिए गुरू साधना चाहिए। निर marca में साधना का जन्म नहीं होता, क्योंकि निराशा तो है है और उसमें कभी भी किसी का जन्म नहीं होता। इसीलिए मैंने कहा कि निर marca आत्मघाती है, क्योंकि उससे किसी भी भांति में सृजनात्मक शक्ति का विकास नहीं होता है।।।।।।।।।
मैं कहता हूँ, उठो और निराशा को फेंक दो। उसे तुम अपने ही हाथों से ओढ़े बैठे हो। उसे फेंकने के लिए और कुछ भी नहीं करना है सिवाय तुम उसे फेंकने को ¢ हो जाओ।।।।।।।। तुम्हारे अतिरिक्त और कोई उसके लिए जिम्मेवार नह थह मनुष्य जैसा भाव करता है, वैसा ही हो जाता हैं। उसके ही भाव उसका सृजन करते है। वही अपना भाग्य-विधाता है। स्मरण रहे कि तुम जो भी हो वह तुमने ही अनंत बार चाहा है, विचार और उसकी भावना की है, देखो, स्मृति में खोजो, तो निश्चय ही जो मैं कह रहा हूँ उस सत्य के तुम्हें दर्शन होंगे और जब यह सत्य तुम्हें दिखेगा तो तुम स्वयं के आत्म-परिवर्तन की कुंजी को पा जाओगे। अपने ही द्वाisiones वस्त्रों को पहनने में भी जितनी कठिनता होती है उतनी भी उनutar सिवाय तुम्हाisiones हम अपने ही भावों में अपने ही हाथों से कैद हो जाते है, अन्यथा वह जो हमारे भीतर है, सदैव स स्वतंत्र है।।।।।।।।।।
¿? नहीं ! क्योंकि पतutar. दीवारों को तोड़ना संभव है, लेकिन निर sigueal निenas श से मजबूत जंजीरे भी नहीं है, क्योंकि लोहे की जंजीरे तो मात्र शरीर को ब बांधती हैं, निराशा तो आत्मा को भी बांध है।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।
¡Adelante! उन्हें तोड़ा जा सकता है, इसीलिए ही मैं तोड़ने को कह ivamente ह।। उनकी सत्ता स्वप्न सत्ता मात्र है। उन्हें तोड़ने के संकल्प मात्र से ही वे टूट जागीूजागीूग जैसे दीये के जलते ही अंधकार टूट जाता है, वैसे ही संकल्प के जागते ही स्वप्न टूट जाते है और फिर निरaga श खंडित होते ही आलोक चेतन चेतन को घे razón लेता है उसक न आश आश आश।।।।.
निराशा स्वयं आरोपित दशा है। आशा स्वभाव है, स्वरूप है। निराशा मानसिक आवरण है, आशा आत्मिक आविर्भाव। मैं कह रहा हूँ कि आशा स्वभाव है। क्यों? क्योंकि यदि ऐस mí बीज अंकुर बनने को तड़पता है, क्योंकि कही उसके प्रagaणों के किसी अंतरस्थ केंद्र पर आशा का आवास हैं सभी पgonenda अंकुatar
अपूर्ण को पूर्ण के लिए अभीप्सा आशा के अभाव में कैसे हो सकती है? और पदार pto की परमात haber सत ender को को पtan को को, स ender को को जानने को को स Secer uto में में प enderacho होने को को को को को सब वस ender को छोड़ नग ° न नग नग हो हो हो ज जellas परमात्मा की उपलब्धि के पूर्व यदि तुम्हारे चरण कहीं भी रूकें तो जानना कि निराशा का विष कही न कहीं तुम demásह भीत भीतर बना ही है।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। उससे ही प्रमाद और आलस्य उत्पन्न होता है।
संस sigue, में विश्रija के स्थलों को ही प्रमादवश गंतव्य समझने भूल हो हो जाती है।।।।।। परमात haber इसे अपनी समग्र आत्मा को कहने दो। कहने दो कि परम seaत hablo
परमólogo के पूर्व जो रूकता है, वह स्वयं का अपमान करत veo है, क्योंकि वह जो हो सकता था, उसके पूर्व ही ठहर गया होता हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं संकल्प और साध्य जितना ऊंचा हो, उतनी ही गहराई तक स्वयं की सोयी शक्तियां जागती हैं साध्य की ऊंचाई ही तुम Davidamente आकाश को छूते वृक्षों को देखो उनकी जड़ें अवश्य ही पाताल को छूती तुम भी यदि आकाश छूने की आशा और आकांक्षा से आंदोलित हो जाओगे तो निश्चय ही जान जाओंगे कि तुम्हारे गहरे से गहरे प्रagaणों में सोई हुई शक शकί • ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज।।।। पnas.
जितनी तुम्हाisiones क्षुद्र की आकांक्षा चेतना को क्षुद्र बनाती है। तब यदि मांगना ही है तो परमात्मा को मांगो। वह जो अंततः तुम होना चाहोगे, प्रagaendoंभ से ही उसकी ही तुम्हारी मांग होनी चाहिएं। क्योंकि प्रथम ही अंततः अंतिम उपलब्धि बनता है। मैं जानता हूँ कि तुम ऐसी परिस्थितियों में निरंतर ही घिरे हो जो प्रतिकूल हैं और परमात्मा की ओर उठने से रोकती है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है लेकिन ध्यान में रखनok कि जो परमात haber परिस्थितियों का बहाना मत लेना, परिस्थितियां नही, वह बहाना ही असली अवरोध बन जाता है।।।।।।।।।। परिस्थितियां कितनी ही प्रतिकूल हैं और परमात haber लेकिन ध्यान में रखनok कि जो परमात haber
परिस्थितियों का बहाना मत लेना। परिस्थितियां नहीं, वह बहाना ही असली अवरोध बन जााा परिस्थितियां कितनी ही प्रतिकूल हो, वे इतनी प्रतिकूल कभी भी नहीं हो सकती कि कि पûendr वैसा होना असंभव है। वह तो वैसा ही होगा जैसे की कोई कहे कि अंधेरा इतना घना है कि प्रकाश के जलाने में बाधा बन गया है।।।।।।।।
अंधेenas कभी इतना घना नहीं होता और न ही परिस्थितियां इतनी प्रतिकूल होती है कि वे प्रकाश के में में बाधा बन।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। तुम्हारी निराशा के अतिरिक्त और कोई बाधा नहीं है वस्तुतः तुम्हाisiones ¿? परिस्थितियों का प्रवाह तो नदी की भांति है। उसे देखो, उस पर ध्यान दो, जो नदी की धार में भी अडिग चट्टान की भांति स्थिर है।।।।।।।।।।। वह कौन है? वह तुम्हारी चेतना है, वह तुम्हारी आत्मा है, वह तुम अपने वास्तविक स्वरूप में स्वयं हो! सब बदल जाता है, बस वही अपरिवर्तित है। उस ध्रुव बिंदु को पकड़ों और उस पर ठहरों।
लेकिन तुम तो आंधियों के स siguez क्या वह शांत और अडिग चट्टान तुम्हें नहीं दिखाई पड़ती है जिस पर तुम खडे़ हो और तुम हो? उसकी स्मृति को लाओ। उसकी ओर आंखे उठते ही निराशा आशा में परिणत हो जाती है और अंधकार आलोक ज जाता है।।।।। स्मरण रखनok कि जो समग्र हृदय से, आशा और आश्वासन से शक्ति और संकल्प से, प्रेम और पgonya ा कभी प प razón पाप के मार्ग पर सफलता असंभव पाप के मारorar.
वस्तुत प्रभु की उपलब्धि का द्वार कभी बंद ही नहीह हम अपनी ही निû में अपनी ही आंख बंद कर लेते है, यह बात दूसरी है ¡Adelante! ¿? ¿? क्राइस्ट ने कहा है, मांगो और मिलेगा। खटखटाओ और द्वार खुल जाएंगे। वही मैं पुनः कहता हूँ वही क्रagaइस्ट के पहले कहा गया था, वही मेरे बाद भी कहा जाएगा। ¡Adelante! और आश्यर्च है उन लोगों पर जो प्रभु के द्वार पर ही है है और आंख बंद किये है और रो रहे है है है!
साधक की यात demás जिन दो पैरों से होती है, उन दो पैरों की सूचना शांति के आखिरी हिस्से में है।।।।।।।।।।। साधक का एक पैर तो है संकल्प और साधक का दूसरा पैर है समर्पण। साधक का संकल्प प्राथमिक है। वह कहाँ जाना चाहता है, क्या होना चाहता है, उसके लिये संकल्प शक्ति का होना जरूरी है।।।।।। लेकिन यह भी ध्यान रखना है साधक के संकल्प ही नाफी ही ही ही ही ही गुरू के बिना, गुरू के संकल्प के बिना एक इंच यात demás नहीं होगी होगी लेकिन गुरू के संकल्प मात्र से ही यात्रaga नहीं सकती।।।।।।।।।।। सकती सकती सकती सकती सकती सकती सकती सकती सकती सकती सकती सकती सकती सकती सकती सकती सकती सकती eléctrica उसे गुरू परमशक्ति का XNUMXहारा भी लेना व्यक्ति की शक्ति उतनी कम है, न के बराबर कि अगर गुरू का सहारा न मिले तो यात demás नहीं सकती।।।।।
एक ज्ञान है जो भर तो देता है मन को बहुत जानकारी से, लेकिन हृदय को शून hubte एक ज्ञान है जो मन को भरता नहीं, खाली करता है हृदय को शून्य का मंदिर बनाता है।।।।।।।। एक ज्ञान है, जो सीखने से मिलता है और एक ज्ञान है जो अनसीखपन से मिलता। जो सीखने से मिले, वह कूड़ा-करकट है। जो अनसीखने से मिले, वही मूल्यवान है। सीखने से वही सीखा जा सकता है, जो बाहर से डाला जातह अनसीखने से उनका जन्म होता है, जो तुम्हाisiones जीवन मिट्टी का एक दीया है, लेकिन ज्योति उसमें मृणमय की नहीं चिन्मय की है। दीया पृथ्वी का, ज्योति आकाश की, दीया पदार्थ का, ज्योति परमात्मा की।।।।। दीया एक अपूर्व संगम है। इसे ठीक से समझ लेना, क्योंकि तुम भी मिट्टी के ही दीये हो, तुम जीवन की साisiones दीया जरूरी है, लेकिन ज्योति के होने के लिये जरूरी है, ज्योति के बिना दीये का क्या अर्थ? ज्योति खो जाये? ¿Está bien?
ज्योति की स्मृति बनी रहे, ज्योति निरंतर आकाश की तरफ़ उठती रहे तो दीया सीढ़ी है और तब तुम दीये को धन्यवाद दे सकोगे।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। जिन्होंने भी आत्मा को ज mí. जिन्होंने आत्मा को नहीं जाना वे या तो शरीर की मान कर चलते रहे, ज्योति दीये का अनुसरण करती रही और निरंतर गहन से गहन अचेतना और मूर्च्छा में गिरते गये या जिन्होंने आत्मा को नहीं जाना, उन्होंने व्यर्थ ही शरीर से, दीये से संघर्ष मोल ले लिया। जो साथी हो सकता था, उसे शत्रु बना लिया।
जिन्हें तुम सांसारिक कहते हो, वे पहले तरह के लोग हैं, जिनके भीतर का परमात्मा, जिनके बाहर की खोल का अनुसरण कर íbor जिन्होंने क्षुद्र को आगे कर लिया है और विराट को पीछे, उनके जीवन में अगर दुःख ही दुःख हो तो आश demás नहीं नहीं नहीं।।।।।।।।।।।।।। कीचड़ से कमल पैदा होता है। तुम्हाisiones
कीचड़ से दुश्मनी मत करना, अन्यथा कमल पैदा ही नहो कीचड़ और कमल में कितन mí कीचड़ कितना ही कीचड़ लगे, कहां, संबंध भी तो नहीं मालूम पड़ता! ¡Adelante! ¡Adelante! कहाँ कमल की सुवास, दोनों में कोई तो नाता दिखाई नहीं पड़ता और अगर तुम जानते न और कोई कीचड़ का ढे़र लगा दे और कमल फूलों फूलों का ढे़र और तुमसे कहे इन दोनों में में संबंध दिख दिख पड़त पड़त पड़त है ढे़ razón ¿Está bien? कहा कीचड़, कहां कमल! लेकिन तुम जानते हो, कीचड़ से कमल पैदा होता है। मृण्मय में चिन्मय का जागरण होता है।
कीचड़ से कमल पैदा होता है, इसका अर्थ ही यह हुआ कि कीचड़ के गहरे में कमल छिपा है, अन्यथा पैदा कैसे होगा? इसका अर sup. इसका अर्थ हुआ कि दुर्गन्ध ऊपर का परिचय है, सुगंध भीतर का परिचय है।।।
एक प्राचीन कथा है। एक बाप अपने तीन बेटों में सम्पत्ति बांटना चाहता था, लेकिन निश्चय न कर पाता था कि योग योग्य और कौन सुपात्र है है है है है है है है है है है है है है है है है तीनों ही जुड़वा पैदा हुये थे, इसलिए उम्र से तय न किया जा सकता था। तीनों एक-से बुद्धिमान थे। तो उसने अपने गुरू से सलाह ली। गुरू ने उसे एक गुर बताया।
उसने बेटों से कहा कि मैं तीर्थयात्रaga पर जा रहok हूँ और बेटों उसने कुछ कुछ बीज दिये फूलों के बीज और कहा कि संभाल कर íbO, जब मैं लौट तब मैं तुमसे व व vel '।।।। पहले बेटे ने सोचा कि इन बीजों को कोई बच्चे उठा लिये, कोई जानवर खा गया, ऐसा सोचकर उसने उन बीजों को तिजोड़ी में बंद कecer।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।. तिजोड़ी में बंद करके रख दिया और निशि्ंचत हो गयाख़ ¡Adelante! ¡Adelante! वह निश्चित रहा। बाप आयेंगे तो, लौटा देंगे।
दूसरे ने सोचा कि तिजोड़ी में रखूं तो बीज सड़ सकते हैं और बाप ने ताजा जीवित बीज दिये और मैं सड़े लौटाऊं-यह तो लौटाना नहीं।।।।।।।।।।।।।।।।।।। क्या करूं? बीज जीवित कैसे रहें? उसने सोचा बाजार में बेच दूं, तिजोड़ी में रूपतं रू दू बाप जब वापस आयेंगे, बाजार से बीज खरीद कर लौटग ंतेइतेइ
तीसरे ने सोचा कि बीज का अर्थ ही होता है, होने कं सााा बीज का अर्थ ही होता है जो होने को तत्पर है, जिसके भीतर कुछ होने को मचल रहok है।।।।।।।।। तो उसने बीज दिये हैं, मतलब साफ़ है कि इन्हें उगाना है, जिसने रखok, वह नासमझ है।।।।।।।। ये तो बढ़नें को राजी थे, ये तो फूल बनने को राजी थे और एक से से करोड़ो बीज पैदा होते।।।।।।।।।।।।।। पता नहीं, पिताजी कब लौटे, तीर्थ लंबा है, यात्रaga में वर्षों लगेंगे- उसने बीज बो।।।।।।।।।।
तीन वर्षों बाद पिता वापस लौटा । पहले बेटे को उसने कहा। पहले बेटे ने तिजोड़ी की चाबी दे दी। खोली गई तिजोड़ी, सभी बीज सड़ चुके थे, न हवा लगी, न सूरज की रोशनी लगी और किसी ने उन पर ध्यान ही न दिया तीन वर्ष तक में में पड़े सड़ गये।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। eléctrico ¡Adelante! उन्हें तो खुला आक siguez वे सब सड़ गये थे और जिन बीजों से फूलों की अपूर्व सुवास पैदा हो थी थी, उनकी जगह उस तिजोड़ी से सिर्फ दुर्गंध निकली-सड़े हुये बीजों की दु दुरículos!
बाप ने कहा-तुमने संभाला तो, लेकिन संभाल न पाये। Ver más तुम नासमझ हो। जितना मैं तुम्हे दे गया था, उतने भी तुम वापस न पथ ये बीज तो समाप्त हो गये, इनमें अब एक भी जीवित नही है, अब इनको बोओगे तो कुछ भी पैदा न होग mí बीज थे जीवंत, उनमें संभावना थी बहुत होने की, उनकी सारी संभावना खो है है है, सिर्फ ¢ है है, इनसे भी नहीं हो सकता। ये मृत्यु हैं।
दूसरे बेटे से कहा। दूसenas बेटा भागा रूपये लेकर, बीज खरीद कर ले आया-ठीक उतने बीज बीज जितने बाप ने उसे दिया था। बाप ने कहा तुम थोड़े कुशल हो, लेकिन तुम भी काफी नहीं, क्योंकि जितना दिया था उतना भी लौटाना भी लौट लौटाना है! यहतो जड़बुद्धि वाला व्यक्ति भी कर लेता। इसमें तुमने कुछ बुद्धिमता न दिखाई और बीज का तुम ¢ न न।। बीज का मतलब ही यह है कि जो ज्यादा हो सकता था। उसे तुमने रोका और ज्यादा न होने दिया। तुम पहले वाले से योग्य हो, लेकिन पर्याप्त नहीं।
¿Está bien? तीसरा बेटा बाप को भवन के पीछे ले गया जहाँ सारा बगीचा फ़ूलों और बीजों से भivamente था। उसके बेटे ने कहा, ये रहे बीज। आप दे गये थे, मैने सोचा इन्हे बचा कर रखने में मौत हो सकती।। इन्हें बाजार में बेचना उचित नहीं है क्योंकि आप सुरक्षित रखने को थे थे और फिर आपने चाहा था कि यही बीज वापस लौटाये जायें ज ज va. ब sigue, से तो दूसरे बीज वापस लौटेंगे, वे वहीं न होंगे, फिर वे उतने होंगे जितने जितने आप दे थे थे, तो मैंने बीज दिये थे, अब ये ये वृक हो गये हैं हैं इनमें बीज हो गये हैं हैं बहुत हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं वृक वृक गये हैं हैं इनमें बीज । हजार गुने करके आपको वापस लौटाता हूँ।
स्वभावतः तीसरा बेटा बाप की सम्पत्ति का मालित ह९ परम seaत haber अगर बढ़ा न सको— बढ़ा सको तब तो बहुत अच्छा हैं।
एक अंधेरी रात की भांति है तुम्हाisiones इतना ही होत mí इतना भी होश बना रहे कि मैं अंधकार में हूँ हूँ, तो आदमी खोजता है, तड़पता है प्रकाश के लिए, प्यास जगती, टटोलता है, गिरत है अंधकículo श श श श ही ही ही ही ही जब जब जब को को को को को को को को को को है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है जब जब जब जब जब जब जब जब जब जब लेकिन लेकिन लेकिन लेकिन लेकिन लेकिन लेकिन लेकिन लेकिन लेकिन लेकिन लेकिन लेकिन लेकिन लेकिन लेकिन लेकिन लेकिन लेकिन लेकिन लेकिन लेकिन लेकिन लेकिन लेकिन लेकिन है है है है है है है है है है है है है है है. समझ ले तब सारी यात्रा समाप्त हो जाती है। मृत्यु को ही कोई समझ ले जीवन, तो फिर जीवन का द्वार बंद हो हो गया।
जब भी ज्ञान का जन्म होता है, तभी करूणा का जन्म हॾ हॾ क्यों? क्योंकि अब तक जो जीवन ऊर्जा वासना बन रही थी वह कहां जायेगी? ऊर्जा नष्ट नहीं होती। कभी धन के पीछे दौड़ती थी, पद के पीछे दौड़ती थी, महत्वाकांक Est. प्रकाश का जलते, ज्ञान का उदय होते, वह साisiones
ऊर्जा क्या होगी? जो ऊर्जा काम वासना बनी थी, जो ऊर्जा क्रोध बनती थी, जो ऊर्जा ईर्ष्या बनती, उस ऊर्जा का, उस शुद्ध शक्ति का क्य Chr. वह सारी शक्ति करूणा बन जाती है। महाकरूणा का जन्म होता है। धन की वासना अकेली नहीं है। पद की वासना भी है। तुम पद पाने के लिये धन का भी त्याग कर देते हो। चुनाव में लगा देते हो सब धन, कि किसी तरह मंत्री यॾ यॾ यॾ लेकिन मंत्री की कामना भी पूरी कामना नहीं है। तुम्हारी सभी कामनाएं अधूरी-अधूरी हैं। हजार कामनाये है और सभी में ऊर्जा बंटी है। लेकिन जब सभी क sigue " तुम एक अदम्य ऊर्जा के स्रोत हो जाते हो। एक प्रगाढ़ शक्ति!
जब भी आनंद का जन्म होता है, समाधि का जन्म होता है, सत्य का आकाश मिलता है, तब तुम ततguna प प आन हो कि जो पीछे पीछे ह गये गये उन भी खुले आक में में ले है कि पीछे पीछे पीछे गये, उन उन भी खुले खुले आक में में ले।।।।।।।।।।।।।।।।। तब तुम्हार marca सार marca Ver más जिनके पैर ज siguez
जीवन बीतत mí दिखाई नहीं पड़ता क्योंकि देखने के लिये बड़ी सजगता चाहिये और इतने धीमे-धीमे बीतत mí जब भी कोई मरता है तो मन सोचता है, मौत रोज दूसरी हो मैं तो कभी मरता नहीं, कोई और मरता है। लेकिन हर मौत तुम्हारी मौत की खबर लाती है। Ver más
आखिरी क्षण तक भी होश नहीं आता बेहोशी में, अपने ही ह mí कितना ही धन कमाओ, कितना ही पद-प्रतिष demás मिले, मौत सब कुछ सापफ़ कर देती।।।।।।।।।।। मौत सब मिटा देती है। तुम्हारे बनाये सब घर, ताश के पत्तों के घर सिद्ध होते हैं औecer सब डूब जाता है।
जिसे यह होश आना शुरू हो गया कि मौत है, उसी के में में धû की की किरण उतरती है।।।।।।।। मौत का स्मरण धर्म की प्राथमिक भूमिका है। अगर मृत्यु न होती तो संसार में धर्म भी न होता। मृत्यु है और जब तक तुम मृत्यु को झूठलाओगे तब तक तुम्हाisiones मृत्यु को ठीक से समझो क्योंकि उसके आधार पर ही जीवन में क्रaga होगी होगी।।।। तुम्हे अगर पता चल जाये कि आज सांझ ही मर जाना है, तो क्या तुम सोचते हो, तुम्हारे दिन का व्यवहार वही हेग जो पत पता न चलने पर endr. ¿Está bien?
¿Está bien? ¿Está bien, está bien? क्या पैसे पर तुम्हारी पकड़ वैसे ही होगी, जैसे एक क्षण पहले थी थी? क्या मन में वासना उठेगी? ¿Está bien? ¿Está bien? नहीं सब बदल जाएगा।
अगर मौत का पता चले कि आज ही सांझ हो जाने वाली है, तुम्हारे जीवन का सार marca अर्थ, तुम्हारे जीवन जीवन का सoque प्रयोजन, तुम्हारे जीवन क क स स स स स razón मौत का जरा सा भी स्मरण तुम्हें वही न रहने देगा जो तुम हो और जो तुम हो बिल्कुल गलत।।।।।।।।।।।।। क्योंकि सिवाय दुःख के और तुम्हारे होने से कुछ भी फल नहीं आता। फल लगते है निश्चित, केवल दुःख के लगते हैं। फल लगते हैं निश्चित तुम्हाisiones फल लगते हैं तुम्हाisiones
शरीर को ही तुमने अगर देखा तो तुम कीचड़ पर रूक गये और कमल अप अपरिचित ¢ गये अगर तुमने शरीर से शत्रुता की और शरीर को दबाने और गलाने में लग गये, तो तुम वंचित ह ¢ ज जाओंगे, क्योंकि उस संघû से कमल पैद पैद न होग होग होग होग होग होग होगard कमल तो पैदा होता है कीचड़ के सहयोग से। इस सहयोग का नाम ही योग की कला है। योग अस्तित्व की दई के बीच एक को खोज लेने की कला है जहाँ दो दिखाई पडें- अत्यंत विपरीत, वह siguez इसलिये में निरंतर कहता हूँ, तुम्हाisiones तुम्हारे भीतर की कीचड़ तुम्हारा कमल बन जायेगा।
Sadgurudev más respetado
Sr. Kailash Chandra Shrimali
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