प्रagaendoendo में जुड़े हुये हाथ भी संसार की ही मांग करते हैं।। यज्ञ की वेदी के आस-पास घूमता हुआ साधक या य mí असल में जिसके चित्त में संसार है उसकी प्राagaellas जिसके चित्त में व sigue " यहां एक बात और समझ लेनी जरूरी है कि जब कहते हैं, सांसारिक म sigue. जब कहते हैं, संसार की वस्तुओं की कोई चाह नहीं, तो खयाल उठ सकता है कि मोक्ष की वस्तुओं की चाह तो सकती है है न न न न न न न न न! नहीं मांगते संसार को, नहीं मांगते धन को, नहीं मांगते वस्तुओं को। मांगते है शांति को, आनंद को। छोडे़, इन्हें भी नहीं म siguez ईश्वर को पुकारा गया है बहुत नामों से। अनेक-अनेक संबंध मनुष्य ने ईश्वर के साथ स्थापित किये हैं। कहीं ईश्वर को पिता, कहीं माता, कहीं प्रेमी, कहीं मित्र, कहीं कुछ और ऐसे बहुत-बहुत संबंध ने परम सत्य के साथ स्थ Dav "क की कोशिश है।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। इसे थोड़ा समझ लेना आवश्यक है। यह बड़ी अंतर्दृष्टि है। परमात haber परम seaत haber क्यो? क्योंकि संबंध में एक अनिवार्य बात है कि दो की मौजूदगी होनी चाहिये, संबंध बनता ही दो से।।।।।।।।।।।।।। मैं हूँ मेरे पिता हैं तो दोनों का होना मैं हूँ या मेरी माँ है, तो दोनो का होना जरूरी है, तो परमात्मा से फिर कोई संबंध कभी स्थापित नहीं हो सकता क्योंकि परमात्मा से तो मिलन ही तब होता है जब दो मिट जाते हैं और एक रह जाता है।
कबीर ने कहा है- 'खोजने निकला था, बहुत खोज की और तुझे नहीं प mí खोजते-खोजते खुद खो गया तब तू मिला।' वह खोजने निकले थे वह जब तक था, तब तक उनसे कोई मिलन न हुआ और जब खोजते-खोजते तो न मिला, लेकिन खोजने वाला खो गया, तब तुझसे मिलन हुआ।।।।।।।। हुआ हुआ हुआ हुआ हुआ हुआ हुआ हुआ इसका तो मतलब यह हुआ कि मनुष्य का परमात्मा से मिलना कभी भी नहीं होता है। क्योंकि जब तक मनुष्य रहता है, परमात्मा नहीं होता औecer दोनों का मिलना कभी नहीं होता। इसलिये इस जगत में जितने सम्बन्ध है, उनमें से कोई भी सम्बन्ध हम पû endr. पिता से मिला जा सकता है बिना मिटे, माता से मिला जा सकता है बिना मिटे, मिटना कोई शर्त नहीं है।।।।।।।।।।। लेकिन परमात्मा से मिलने की बुनियादी शर्त है ािट ािट सम्बन्ध होता है दो के बीच औecer इसलिये संबंध बिल्कुल उल्टा है। उस अस्तित्व की और गहनता में और गहर gaste
कल हमने समझा, शरीर नहीं हूँ मैं, इद्रियाँ नहीं हूँ, मन नहीं हूँ, बुद्धि नहीं हूँ, चैतन्य हूँ।।।।।।।।।।।।। लेकिन उससे भी सूकutar. चैतन्य, जो भी उसके समीप होता है, उसे आपूरित कर देा देा जैसे प्रकाश, जो भी समीप होता है, उसे प्रकाशित तथ াथ दीया जलाया हमने, जलते ही दीये के जो भी उस दीये के घेरे में पड़ ज mí.
ऐसी ही चेतना जो हमारे भीतर है, उसके जो भी निकट है वह सभी प demás निकट हो हो जाता है।।।।।।।।। उस प्रकाशित होने में ही कठिनाई शुरू होती है। अगर दीये को भी होश आ जाये— दीया नहीं था, अंधेरा, तब कुछ भी दिखाई नहीं पड़ता था फिर दीया जला, अगर दीये में भी चेतना हो, तो जो जो प पσucuestos क भी मैं ही।।।।।।।।।।।।।।।।। क्योंकि जब मैं नहीं होता तब यह कुछ भी तो नहीं होत mí स्वभावतः, सीधा तर्क है कि मेरे होने में ही इनका होना भी समाया हुआ।।।।।।।।।।। चैतन्य का भी अनुभव यही है, चैतन्य अगर नहीं होत mí चैतन्य अगर बेहोश हो जाये, गहन निद्रaga में खो जाये, तो भी शरीuestos चैतन्य जिस चीज को भी प्रकाशित करता है, उस से से समीपत्व के कारण एकता अनुभव होती है है है निकटत gas. यही हमारी सारी भूल है और फिर जिससे हम अपने को एक समझ लेते हैं उसी तरह का हम व्यवहार करने लगते।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।
जीवन में जो भी प siguez लेकिन बहुत लोग मृत्यु के बाद प्रतीक्षा करते रहथरहे बहुत लोग सोचते है कि देह में में, जीवन में, संसार में ivamente कैसे पाया जा सकता है सत्य को, ब्रह्म को, मुक्ति को! लेकिन जो जीवन में नहीं पाया जा सकता वह कभी भी नहीं पाया जा सकता है।
जीवन तो एक अवसर है पाने का, चाहे पत्थर जुटाने में समाप्त कर दें और चाहे परमात्मा को पाने में। जीवन तो बिल्कुल तटस्थ अवसर है। जीवन आपसे कहता नहीं, क्या पायें। कंकड़-पत्थर बीनें, व्यisiones लगा दें, तो भी जीवन बाधा नहीं डालेगा कि मत करें ऐसा जीवन सिर्फ अवसर है तटस्थ, जो उपयोग उपयोग करना चाहें कर लें।।।। लें लें लें लें लें।।।। जीवन को केवल वहीं उपलब्ध होते हैं जो स्वयं के और सर्व के भीतर परमात hablo इस अभाव में केवल केवल शरीर मात्र हैं और शरीर जड़ जीवन नहीं नहीं।।।।।।।।।। स्वयं को जो शरीर मात्र ही जानता है, वह जीवित होकर भी जीवन को नहीं जानता है।।।।।।।।।
जीवन की अनादि, अनंत धाisiones आत्म-अज्ञान ही दुःख है आत्म ज्ञान हो तो मनुष्य का हृदय आलोक बन जाता है, औ sigue.
एक आकाश, एक स्पेस ब sigue. यह आकाश हमारे बाहर है। किंतु यह आकाश जो बाहर फैला है, यही अकेला आकाश ऀही एक और भी आकाश है, वह हमारे भीतर है। जो आकाश हमारे बाहर है वह असीम है। वैज्ञानिक कहते हैं, उसकी सीमा का कोई पता नहीं लगगा लेकिन जो आक siguez कहें कि वह असीम से भी ज्यादा असीम है। अनंत आयामी उसकी असीमता है। बाहर के आकाश में चलना-उठना होता है, भीतर के आकाश में है।।।।।। है है है है बाहर के आक siguez
जो ब sigue. उसकी चेतना से कभी भेंट न होगी। उसका परमात्मा से कभी मिलन न होगा। ज्य razon से जgon. जीवन के सत्य को पाना हो तो अंतर -आकFश में उसकी खोज करनी पड़ती है।।।।।।। लेकिन हमें अंतर-आकाश कोई भी अनुभव नहीं है। हमने कभी भीतर के आकाश में कोई उड़ान नहीं भरी है हमने भीतर के आक mí हमारा सब जाना बाहर की तरफ है। हम जब भी जाते हैं बाहर ही जाते हैं। इस अंतर-आकाश के संबंध में उसे भी समझ लेना उपयोहै यह प्रश्न सदा ही साधक के मन में उठता है कि जब मेरा स्वभाव शुद्ध है तो यह अशुद्धि कहां से ज जाती है है है है है है है है है है है. ¿? और जब भीतर कोई विकार ही नहीं है, निर्विकार, निराकार का आवास है सदा से, सदैव से, तो विक विकguna के बादल कैसे घिर जाते हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं? ¿Está bien? कहां इनका उद्गम है? इसे समझने के लिये थोड़ी सी गहराई में जाना पड़ेॗाॗाॗाा पहली बात तो यह समझनी पड़ेगी कि जहां भी चेतना है वहां चेतना की स्वतंत्रताओं में स स्वतंत्रता यह भी है वह वह अचेतन।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। eléctrico eléctrica ध्यान रखे अचेतन का अर्थ होता है, चेतन, जो कि सो गया चेतन, जो कि छिप गया! यह चेतना की ही क्षमता है कि वह अचेतन हो सकती है। जड़ की यह क्षमता नहीं है। आप पत्थर को यह नहीं कह सकते कि तू अचेतन है। जो चेतन नहीं हो सकता वह अचेतन भी नहीं
ध्यान रखें? चेतना की ही क्षमता है अचेतन हो जाना। अचेतन का अर्थ होता है, चेतन, जो कि सो गया। चेतन, जो कि छिप गया! यह चेतना की ही क्षमता है अचेतन हो जाना। अचेतन का अर्थ चेतना का नाश नहीं है। अचेतन का अर्थ है, चेतना का प्रसुप्त हो जाना, छिप जाना, अप्रकट हो जाना। चेतना का मतलब है कि च siguez यही चेतना का स्वामित्व है या कहें, यही चेतना की स्वतंत्रता है।। अगर चेतना अचेतन को को स्वतंत्र न हो तो चेतना परतंत्र हो जायेगी। फिर आत्मा की कोई स्वतंत्रता न होगी।
इसे ऐसे समझें कि अगर आपको बुरे होने की स्वतंत्रता ही न हो तो आपके भले होने का अर्थ क्या होगा? अगर आपको बेईमान होने की स्वतंत्रता ही न हो तो आपके ईम sigue. जब भी हम किसी व्यक्ति को कहते हैं कि वह ईम sigue, है तो इसमें है है, कि वह चाहता तो बेईमान हो सकता था, पर नहीं।।।।।।।।।।।।।।।।।।। अगर हो ही न सकता हो बेईमान तो ईमानदारी का कोई मतलब नहीं होता। ईमानदारी का मूल्य बेईमान होने की क्षमता और संभावना में छिपा है।
एक अंधेरी रात की भांति है तुम्हाisiones इतना ही होत mí इतना भी होश बना रहे कि मैं अंधकार में हूँ हूँ, तो आदमी खोजता है, तड़पता है प्रकाश के लिये, प्यास जगती, टटोलता है, गिरत है अंधकículo श श श श ही ही ही ही ही जब जब जब को को को को को को को को को को है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है जब जब जब जब जब जब जब जब जब जब लेकिन लेकिन लेकिन लेकिन लेकिन लेकिन लेकिन लेकिन लेकिन लेकिन लेकिन लेकिन लेकिन लेकिन लेकिन लेकिन लेकिन लेकिन लेकिन लेकिन लेकिन लेकिन लेकिन लेकिन लेकिन लेकिन है है है है है है है है है है है है है है है. समझ ले जब सारी यात्रा समाप्त हो जाती है। मृत्यु को ही कोई समझ ले जीवन, तो फिर जीवन का द्वार बंद हो हो गया।
एक पुरानी कथा है। एक सम्रagaट को ज्योतिषियों ने कहा कि इस वर्ष पैदा होने वाले बच्चों में से कोई तुम्हारे जीवन का घाती होगा। सम्रagaट ने जितने बच्चे उस वर्ष पैदा हुये, सभी को कारागृह में डाल दिया, मारा नहीं।।।।।।।।।।।। क्योंकि सम्रagaट को लगा कि कोई एक इनमें से हत्या करेगा और सभी की हत्या मैं क्यों करू यह महापाप हो जायेगा। छोटे-छोटे बच्चे बड़ी मजबूत जंजीरों में जीवन भर के लिये कोठरियों में डाल दिये गये।।।।।।।।। - उन्हें याद भी न रही कि कभी ऐसा भी कोई क्षण था जब जंजीरें उनके हाथ में न ¢ हों।।।।।।।।। जंजीरों को उन्होंने जीवन के अंग की तरह ही पाया ना ना ना उन्हें याद भी तो नहीं हो सकती थी, कि कभी वे मुकथ्इ गुलामी ही जीवन थी और इसीलिये उन्हें कभी गुलामी अखरी नहीं क्योंकि तुलना हो तो तकलीपफ़ होती।।।।।।।।।।।।। तुलना का कोई उपाय नहीं था। गुलाम ही वे पैदा हुये थे, गुलाम ही वे बड़े हुये थे गुलामी ही उनका सार-सर्वस्व था तुलना नहीं था स्वतंत्रता की और दीवारो से बंधे।।।।।।।।।।।।।।।
उनकी आंखें अंधकार की इतनी अधीन हो गई थीं कि वे पीछे लौटकर भी नहीं देख सकते थे, जहाँ प्रकाश का जगत था। प्रकाश कष्ट देने लगा था। अंधेरे से इतने ¢ हो गये थे थे, कि अब प्रकाश से ¢ नहीं हो पाती थी।।।।।।।।।।।। सिenas अंधेरे में ही आँख खुलती थीं, प्रकाश में तो बंद हो जाती थीं। तुमने भी देखा होगा, कभी घág. जो जीवन भर रहे हैं अंधकार में, वे पीछे लौट कर भी नहीं देख सकते थे वे दीवार की तरफ ही थे।।।।।।।।।।।।।।।। राह पर चलते लोगों, खिड़की द्वार के पास से गुजरते लोगों की छायायें बनती स सामने दीवार पर वे समझते थे, वे छायायें सत्य हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं eléctrica यही असली लोग हैं उस छाया को ही जगत समझते थे। धीरे-धीरे उन्होंने पीछे लौट कर देखना ही बंद किा द दा पीछे लौट कर देखने का मतलब यह था, आँख में आंसू आ ज mí तुमने भी सत्य को देखन mí जब भी कहीं कोई सत्य कह देता है तो कष्ट ही होता हैै
लेकिन एक आदमी ने हिम्मत की क्योंकि उसे शक होने लगा ये छायायें, छायायें नहीं।।।।।।।।।।।। क्योंकि इनसे बोलो तो ये उत्तर नहीं देतीं इन्हें छूओं तो कुछ भी हाथ में नहीं आता। इन्हें पकड़ो तो कुछ पकड़ में नहीं आता। उस आदमी ने धीरे-धीरे पीछे देखने का अभ्यास शुरां क वरorar. समझ लिया है। वह पीछे देखने में समर्थ हो गया, उसकी गर्दन मुड़ने लगी और उसकी आँखें देखने लगी ब gaste रंगीन थी दुनिया काफी। छ sigue " बच्चे नाचते गाते निकलते थे। छायाये तो बिल्कुल चुप थीं, वहाँ वाणी न थी। यहाँ पीछे छूपा हुआ असली जगत था।
उस आदमी ने धीरे-धीरे इसकी चenas चरे कैदियों से शुरू की। बाकी कैदी हंसने लगे, कि तुम्हारा दिमाग खराब हह गह ा हम तो सदा से यही सुनते आए है कि यह सत्य है, जो सामने है और हम तो पीछे मुड़ कर देखते है तो कुछ दिखाई नहीं पड़ता, सिवाय अंधकार के, अब आँख बंद हो जाए तो सिवाय अंधकार के कुछ भी दिखाई नहीं पड़ता, जरूरी नहीं है कि अंधकार हो। हो सकता है, सिर्फ आँख बंद हो जाती हो। लेकिन दोष कोई अपने ऊपर कभी लेता नहीं। तो कोई यह तो मानता नहीं कि मेरी आँख बंद हो सकती है, इसलिए अंधकार है। लोग मानते है, अंधकार है, इसलिए अंधकार है। ¿Está bien? यह कभी संभव है? हम अपनी आँख तो सदा खुली मानते हैं। अपना हृदय तो सदा प्रेम से भरपूर मानते है। अपनी प्रज्ञा तो सदा प्रज्जवलित मानते हैं। अपनी आत्मा तो सदा जाग्रत मानते है और वही हमारी भ्रagaंतियों की जड़ है फिर कैदियों की संख्या बहुत थी, वह अकेला था और लोग खूब हंसे हंसे खूब मज की की उन।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।. धीरे-धीरे उस आदमी को पागल मानने लगे।
जहाँ अंधों की भीड़ हो वहाँ आँखवाला पागXNUMX जहाँ मुर्खों की भीड़ हो वहाँ बुद्धि मान जहाँ बीमारी स्वास्थ्य समझी जाती हो, वहाँ स्वस्थ आदमी का लोग इलाज कर देंगे क कर। स्वाभाविक है। क्योंकि लोग अपने को मापदंड समझते है और फिर जब बहुमत उनके साथ हो, बहुमत ही नहीं, सर्वमत उनके साथ हो, उस एक को छोड़ क कर सभी स साथ थे, तो संदेह ही पैद पैद हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो थे पैद हो हो? लोग हंसे, मजाक की, उसे पागल समझ mí क्योंकि वह बेचैनी पैदा करता था क्योंकि कभी-कभी संदेह उनके मन में भी उठ आता था कि हो न हो, कही यह सच न।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। क्योंकि अगर यह आदमी सच है तो उनकी पूरी जिंदगी बे बड़ा दांव है। यह आदमी गलत होना ही चाहिए। नहीं तो उनकी पूरी जिंदगी गलत होती और कोई भी आदमी नहीं चाहता कि उसकी पूरी जिंदगी गलत सिद्ध हो।।।।।।।।।। क्योंकि इसका अर्थ हुआ तुमने यूं ही गंवाया। तुमने अवसर खो दिया। तुम मूढ़ हो, अज्ञानी हो, मूर्च्छित हो। अहंकार यह मानने को तैयार नहीं होता। ¿Está bien? मुझसे समझदार और कौन? ऐसे अहंकार रक्षा करता अज्ञान की। अहंकार रक्षक है, अज्ञान के ऊपर। उसके रहते अज्ञान का किला पराजित न होगा, तोड़ा जॕ ाा
धीरे-धीरे उन्होंने इसकी उपेक्षा कर दी, क्योंकि उससे बात करनी बेचैनी थी।।।।।।।। क्योंकि वह हमेश sigue. वह हमेशा पीछे चलनेवाले संगीत की बात करता। संगीत उनमें से किसी ने भी सुना न था। उनकी सब इन्द्रियाँ पंगु हो गई थी और धीरे-धीरे वह आदमी कहने लगा, कि ये जंजीरे है जिनको तुम आभूषण समझे हुए।।।।।।।।।।।।।। आखिर कैदी को भी सांत्वना तो चाहिये तो वह जंजीर को आभूषण समझ लेता है। आखिर कैदी को भी जीना तो है, तो काराग्रह को घर सलढ़ ाे न केवल समझ लेत mí
जंजीरों पर कैदियों ने फूल पत्तिया बना ली थी। जंजीरों को घिस-घिस कर वे साफ किया करते थे। क्योंकि जिसकी जंजीर जितनी चमकदार होती, वह उतन mí जिसकी जंजीर जितनी मजबूत होती, वह उतना धनी समता था था था जिसकी जंजीर जितनी वजनी होती, उसकी उतनी ही संपदा थी स्वभावतः। अगर जंजीर कमजोर होने लगे तो वे उसे सुधार लेते थेेे क्योंकि जंजीर ही उनका जीवन थी और जंजीecer वही तो एकम sigue. क्योंकि उसे स demás के जगत की थोडी झलक मिलनी शुरू हो गई। एक किरण उतर आई अंधेरे में। सूरज का संदेश आ गया। अब इस अंधेरे घर में, इस अंधेरे कारागृह में रहनok मुश्किल हो गया। धीरे-धीरे उसने जंजीर को तोड़ने की व्यवस्था कऀ ले
असली सवाल तो भीतर की जंजीर का टूट जाना है। बाहर की जंजीर बहुत कमजोर है। अगर तुम बंधे हो, तो भीतर की जंजीर से बंधे हो। भीतर की जंजीर है, जंजीर को आभूषण समझना। एक बार उसे समझ में आ गया कि आभूषण नहीं है, आधी तो मुक्ति हो गई गई। उसी दिन से उसने जंजीरों को घिसना बंद कर दिया, साफ करना बंद कर दिया, सजाना बंद कर दिया। लोग समझने लगे कि जीवन से उदास हो गया है। उदास हो गया बेचारा। उनके भाव में एक बेचारेपन की प्रतीति होती है। जिंदगी में हार गया। शायद पाया कि अंगूर खट्टे हैं। छलांग पूरी न हो सकी। कमजोर था। हम पहले से ही जानते थे कि कमजोर है। आज नहीं कल थक जायेगा और संघर्ष से अलग हो जायेगा। जंजीरें, जो कि आभूषण है, इनको सजाना बंद कर दिया। ऐसे ही वे सजाया रह रहok हैं आसपास की दीवार को साफ-सुथरpir अब पागलपन बिल्कुल पूरा हो गया है।
लेकिन उस आदमी ने धीरे-धीरे जंजीरे तोड़ने के उपाय खोज लिये। भीतर की जंजीर टूट जाए तो बाहर का कारागृह टूटा हु हु आधा तो गिर ही गया। बुनियाद तो हिल ही गई। पीछे के जगत का, छिपे हुए जगत का संदेश आ ज mí. एक प्यास उसके ¢ -de उसने जंजीरे तोड़ी। जब प्यास प्रगाढ़ हो, तो कमजोर से कमजोर आदमी शक्तिशाली हो जाता है।।।।।। जब प्यास प्रगाढ़ न हो, तो कमजोर से कमजोर जंजीरें भी मजबूत मजबूत मालूम पड़ती।।।।।।।।।।।। प्यास बढ़ती चली गई। पीछे का जगत ज्यादा साफ होने लगा। आँख जितनी साफ होने लगी, उतना ही सत्य का जगल साफ ने हे एक दिन उसने जंजीरे तोड़ दीं और वह उस कार marca से निकल भागा। वह नाच रहा था। सूरज, पक्षी, वृक्षों में खिले फूल! बस, वास्तविक लोग, छायायें नहीं।
Se necesita un fideicomiso. El significado de la confianza es que lo que no he conocido también puede suceder. अगर तुम सोचते हो कि तुमने जो जाना है उतन उतन mí संदेह का इतना ही अर्थ है, कि मुझ पर सत्य समापॗत ह९ मैंने जो जान लिया, वही सत्य की भी सीमा है। मेरा अनुभव और सत्य समान है। यह संदेह है। श्रद demás का अर्थ है, मेरा अनुभव छोटा है, सत्य बहुत बड़ा हो सकता है।।।।।। मेरा छोटा आंगन है। आंगन पूरा आकाश नहीं। बड़ा आकाश है। इतना जिसे ख्याल आ जाए, जिसे संदेह पर संदेह आ जाए, वह श्रद demás ध हो जाता है।।।।।।।।।।। वह बड़े से बड़ा संदेह है, ध्यान रखना। जिसे संदेह संदेह पár संदेह आ आ जाए, जो अपने अपने संदेह की प yo प utoega के के प्रति संदिग्ध हो ज sigue
श्रद्धा का अर्थ है, जानने को बहुत कुछ शेष है। मैंने थोड़े कंकड़-पत्थuestos मैंने मुट्ठी भû इकट्ठी कर ली है, लेकिन सागर के किनारो पर अनंत रेत शेष है।।।।।। मेरी मुट्ठी की सीमा है, सागर की सीमा नहीं है। मेरी बुद्धि की सीमा है, सत्य की सीमा नही। मैं कितना ही प्रagaप demás करूँ लेकिन पाने को सदा शेष रह जायेगा। यह तो अर्थ है परमात्मा को अनंत कहने का। तुम कितना ही पाओ, वह फिर भी पाने को शेष रहेगा। तुम पा-पा कर थक जाओगे, वह नहीं चुकेगा। तुम्हारा पात्र भर जायेगा, ऊपर से बहने लगेगा। लेकिन उसके मेघों से वर्षा जारी रहेगी। हम कण मात्र है। जब कण को ख्याल हो जाता है कि मैं सब कुछ हूँ, वही श्रद demás समाप्त हो जाती।।।।।।।।।।।।।।।।
श्रद्धा अज्ञात की तरफ पैर उठाने के साहस का नाै ॹ अनजान में प्रवेश, अज्ञात में प्रवेश, जहाँ मैं कभी नहीं गया, जो मैं कभी नहीं हुआ, वह भी सकत सकता है।।।।।।।। जब भी ज्ञान का जन्म होता है, तभी करूणा का जन्म हॾ हॾ क्यों? क्योंकि अब तक जो जीवन ऊर्जा वासना बन रही थी वह कहाँ जाएगी? ऊर्जा नष्ट नहीं होती। अभी धन के पीछे दौड़ती थी, पद के पीछे दौड़ती थी, महत्त्वकांक्षाए थी अनेक।। अनेक-अनेक तरह के भोगो की कामना थी, सारी ऊर्जा वहाँ संलग्न थी। प्रकाश के जलते, ज्ञान के उदय होते वह सारा अंधकार, वह भोग, लिप्सा, महत्वकांक्षा ऐसे विलीन विलीन हो जाते है, जैसे दीये जलते अंधक अंधकाellas।।।। जलते जलते अंधक अंधक अंधक।।। ऊर्जा का क्या होगा? जो ऊर्जा काम-वासना बनी थी, जो ऊर्जा क्रोध बनती थी, जो ऊर्जा ईर्ष्या बनती, मत्सर बनती थी, उस ऊर्जा का, उस्ध शक्ति क कguna होगna होग होग? वह सारी शक्ति करूणा बन जाती है। मह sigue. क्योंकि तुम्हाisiones तुम क siguez धन की वासना अकेली नहीं है। पद की वासना भी है। तुम पद पाने के लिए धन का भी त्याग कर देते हो। चुनाव में लगा देते हो सब धन, कि किसी तरह मंत्री जॾ जॾ हजार कामनाएं है और सभी में ऊर्जा बंटी है लेकिन जब सभी कामनाएं शून्य हो जाती है, सारी ऊर्जा मुक्त होती।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। Ver más एक प्रगाढ़ शक्ति! ¿Está bien?
जब भी आनंद का जन्म होता है, सत्य का आकाश मिलता है, तब तुम तत demás प प हो वे जो पीछे पीछे ह गये, उन्हें मुक्त क में ज ज त जो क क क क क आक ज ज त त Nr.. जिनके पंख जंग खा गए है, उनके पंखों को सुधारने में लग जाता है वे वे फिर से उड़।।।।।।।।।।।। जिनके पैर ज siguez ताकि लंगडे़ चले और अंधे देखे और बहरे सुन सकें। तुम लगड़े हो। तुम चले नहीं। य sigue. तुम बहरे हो। तुमने सुना बहुत है, लेकिन वासना के सिवाय कोई स्वर तुमने नहीं सुना और वासना भी कोई संगीत है है है है है है है! वासना तो एक शोरगुल है जिसमें संगीत बिल्कुल हह नह वासना तो एक विसंगीत है, जिससे तुम तनते हो, चिंतित होते हो, बेचैन-परेशान होते हो।।।।।।।।।। संगीत तो वह है जो तुम्हें भर दें उस अनंत आनंद से से, जहाँ सब बेचैनी खो जाती है, जहाँ चैन की बांसुरी बजती है और ऐसी बांसुरी कि उसक फिर कभी अंत नहीं।।।।।।।।।।। ho
तुम अंधे हो। तुमने बहुत कुछ देखा है लेकिन जो देख mí भीतर का सत्य तुम नहीं देख पाते। शरीर दिखता है, आत्मा नहीं दिखती। पदार्थ दिखता है, परमात्मा नहीं दिखता। दृश्य दिखाई पड़ता है, अदृश्य नहीं दिखाई पड़ता औecer परम seaत haber फिर भी तुमने सिर्फ शरीर देखा है और आत्मा नहीं देथदे अंधे हो तुम, पंगु हो तुम। जिसके जीवन में समाधि खिलती है वह भागता है उनको जगाने, जो सोये।। कुछ दिन तो उसने अपने को रोका।
क्योंकि वह जानता है कि वे लोग हंसेंगे। क्योंकि वह जानता है कि वे सुनेंगे नहीं। क्योंकि वह जानता है, कि जो सदा से हुआ है, वही फगताहाह पत्थर और क siguez लेकिन अदम्य है करूणा। उसे रोका नहीं जा सकता।
जीवन बीतत mí जब भी कोई मरता है तो मन सोचता है, मौत सदा दूसरी हो हो हो आखिरी क्षण तक भी होश नहीं आता। अपने ही हाथ से आदमी अपने को समाप्त कर लेता है और जो भी तुम कर हो उसका कोई भी अत्यधिक मूल्य नहीं।।।।।।।।।।।।।।।। ऐसी दशा मनुष्य की है उसे पता भी नहीं कि उसकी जड़े टूट गई हैं। उसे पता भी नहीं कि परमात haber उसे पता भी नहीं कि जीवन के स्त्रोत से उसकी सenas अलग हो गई है।। किसी ने वृक्ष को काट गिराया है। वृक्ष कट गया है, लेकिन अभी ह sigtano है अभी भी फूल खिले है, मुरझाने में समय लगेगा उसे पता नही कि से से सम्बन्ध टूट गया है उसे पत पता नहीं अब अब जमीन कोई न न न न ह ह ¢ filija कोई उपाय भी तो नहीं है उसे समझाने का और जब समझ mí आदमी तभी समझ पाता है, जब करने को समय ही नहीं रह जथा अक्सuestos लोग मरने के समय में समझ पाते है कि जीवन व्यर्थ गया इसके उन उन्हें समझाने की ही कोशिश कोशिश करो, उनकी समझ में नही आता। क्योंकि क्षुद्र में वे सार देखते रहते है और उन्हे यह भी भरोसा नही आता कि मौत आने वाली है।।।।।।। क्योंकि बुद्धि कहे जाती है और दूसरे मरते होंगे, तुम तो कभी पहले मरे नहीं और जो कभी नहीं हुआ, वह क्यों होगा? और जीवन को भरोसा नहीं आता कि मैं मृत्यु कैसे सन सक ¡Adelante! अमृत को समझाये भी तो कैसे समझाये कि तू भी जहर हक सॕ सॕ ै
आप जब भी किसी को मरते हुये देखते है तो ऐसा लगता है, कोई दुर्घंटना हो गई न कि कोई जीवन का सत्य मृत्यु ऐसी है, जैसे होनी न थी और हो।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। जिस दिन जन्में, उसी दिन जड़े टूट गई। जिस दिन जन्में, उसी दिन पृथ्वी से नाता विच्छनह९ ९ जिस दिन जन्में उसी दिन परमात haber उसी दिन हम पृथक हो गये। पृथकता को अर्थ समझ लेना चाहिये। बच्चा जब पैदा होता है, एक क्षण पहले माँ का अंग था॥ अंग कहना भी ठीक नहीं क्योंकि उसे यह भी पता नहीं था कि मैं अंग हूँ। वह माँ के साथ एक था। यह भी हम सोच सकते हैं उसे भी पता नहीं था क्योंकि एक होने का भी पता तब ही चलता है, जब हम दो हो हों।। दो हुयें बिना एक का भी तो ख्याल नहीं आता। बच्चा सिर्फ था होना परिपूर्ण था। फिर बच्चा पैदा हुआ माँ से विच्छन्न हुआ, जड़े टूटीं, जैसे किसी ने पौधा काट डाला।
जिसको हम जन्म कहते हैं, वह माँ से दूर हटने की प्रक demás िय और फिर जिसको हम जीवन हैं हैं, वह रोज-corresponda दूर हटते जाने का नाम।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। objetivo पहले बच्चा माँ के गर्भ से अलग होता है, लेकिन तब भी माँ के साथ उसका सम्बन्ध जुड़ा रहता है, फिर वह सम्बन्ध भी ज जायेगा।।। फिर भी वह माँ के आसपास घूमता रहेगा। लेकिन जल्द ही वह सम्बन्ध भी टूट जायेगा। ऐसे वह दूर ज sigue. जितना माँ के पास था, उतना निरअहंकार भाव था। जब माँ के गर्भ में था, एक था, तो कोई अहंकार न था।
ज्योति जब मिल जाये तब अंधेरे का अंत हो जाता है प्रकाश के ही ही तिमिág. क्यों, इसलिये कि प्रकाश की उपस्थिति उसके अस्तित्व को खंडित कर देती है।।।।।।।। चुपके से अंधकार उस अवस्था की प्रतीक्षा में होता है कब दीप बुझ जाये और मैं स्वयं को प्रकट कर सकूं और ऐस • ही है दीप बुझत बुझत हैenda देतár. मन के किसी कोने में जब सत्य क mí सत्य की पुकार जब अस्तित्व के किसी कोने को झंकृत करने लगती है, तब स्वयं में एक सक्रिय रूपांतरण घटित होने लगता है।।।।।।।।।। इसी सुखद अवसर में जब अभीप्सा पीड़ mí अंत में सत्य-क्रांति के स्वर जाग्रत होने लगते है ऐसे अवसर ही स्वयं को उस अद्भुत उपलब्धि में स्थिर करते हैं, जहाँ स्वयं है।।।।। आश्चर्य है कि पीड़ा का समाधान स्वयं है।
समाधान में तृप्ति है। अस्तित्व का प्रत्येक कोना समाधान की ओर जब अग्रसर हो, तब समाधान निकट होता है।।।।।।।।।।।।।। चूक भी उन्हीं क्षणों में होती है, जब निकटता हो। हाथ लगा सम mí va ¿? जागरूकता के अभाव में चूक होती है।
किनारे आकर ही डूबने की आशंका बढ़ने लगती है। क्यों? क्योंकि किनारे की निकटता का बोध शिथिलता को जन्म देता है, पर कभी अधिक जाग¢ औ debe
अपनी अभीप्सा की पीड़ा में, गहरी पीड़ा में परिवर्तन होने दो, छटपटाहट बढ़ने।।।।।।।।।।।।। यह छटपटाहट ही पर से स्व की ओर चेतना को आमंत्रण देगी और यoque को की की ओ razón विकसित।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। अपने अन्दर में संलग्न चेतना के अंतर्मुख होना ही अस्तित्व की में में गहर gas.
जागरूकता के अभाव में चेतना-प्रवाह नहीं होता है॥ एक क ender की सावधानी स्वयं के सौंदर य सौंद को चकित कर सकती है, परन्तु कुछ पल की असावधानी, बेहोशी और जड़ता जीवन भर कुंठन सकती है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है
जागो, गहरी निद्रा से जागो। अस्तित्व तुम्हें आमंत्रण दे रहा है। पुकार, आत्म पुकार तुम में निरन्तर ध्वनित हो रहै इस पुकार और अभीप्सा में तुम्हारी सावधानी स्वयं के साम्रijaज में अतुल्य विपुल आत्मवैभव और आत्म सौंदर्य का अतुल खजाना लिये है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है eléctrico eléctrica
उठो, जागो और संभलों कि पा सकों स्वयं को, ज mí परमशांति के दूत तुम्हाisiones
Sadgurudev más respetado
Sr. Kailash Chandra Shrimali
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