उन्होंने उठकर नारद जी को प्रणाम किया, उन्हें बैठने के लिये आसन प्रदान किया। नारद जी ने आसन पर बैठते हुये वेदव्यास की ओर देखा और देखते ही देखते प demás किय किया- '' वेदव्यास जी! ¿Está bien? लगता है, आप अत्यधिक चिंतित हैं। वेदव्यास जी ने निःश्वास छोड़ते हुये कहा- '' हाँ महर्षि, मैं उदास हूँ, बहुत ही हूँ।। '' नारद जी ने हस íbor. वेदव्यास जी चिंतित चिंतित भरे स्वर में उत्तर दिया कारण तो मुझे भी नहीं मालूम है महर्षि! कारण जानने का मैंने प्रयत्न किया पर जान न पाया। ¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿ महाभारत सदृश्य पुनीत महाकाव्य की रचनok करने वाले वेदव्यास के मुख पर उदासी! वेदव्यास जी, आपके द्वाisiones ¡Adelante! मैंने महाभारत महाकाव्य की रचना की है। मैंने आजीवन सद sigue. हो सकता है, उसी हिंस siguez वेदव्यास जी बोले- हो सकता है मेरी खिन्नता का कण॰हह
मैं उसके लिये जप करूंगा नारद जी। नारद ने कहा माता सरस्वती ने आपको ग्रन terc pordo नारद जी की बात सुनकर वेदव्यास जी विचारों में उलझ गये उन्होंने नारदजी की ओर देखते हुये कहाँ ग्रन्थ रचना तो मैं कर चुका हूँ महाभारत से बढ़ कर ग्रन्थ मे अब नहीं लिख सकता, नारद ने कहा वेदव्यास जी, आपकी ग्रन्थ रचना अभी अधूरी है। आपने महाभारत की ¢ चन की की, पर अभी तक महाभारत के सूत्रधार के चरित्र का गान नहीं किया जब तक आप उसके च amar आपने उनके चरित्र का गान नहीं किया, यही आपकी उदासी का कारण भी हैं यह सुनकर वेदव्यास जी विचारों की तरंगों में डॗब ॥ब९ नारद ने वेदव्यास जी के मन को झकझोरते हुये पुनः कहा वेदव्यास जी, महाभारत में आदि से लेकर अंत तक जिस लीला पुरूष का चरित्र बोल रहा है, प्रत्येक घटना में जिसकी प्रेरणा समाई हुई है और जिसने महाभारत के सभी पर्दों को उद्घाटित किया है, उस लीला-पुरूष श्री कृष्ण के चरित्र का गान कीजिये, उनके चरित्र -गFन से आपकी आपकी खिन्नता दूर होगी, आपको नया जीवन प Davág seaप होग होग '' यह कहकर नारद वेदव्यासजी के मन को झकझोर वीणा बजाते हुये चले गये और वेदव्यास श्रीकृष्ण के चरित्र का गान लिखने।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। उन्होंने श्रीमद्भागवत पुराण की रचनok की, सही अर्थो में आज वेदव्यास जी के द्वारा लिखे हुये ग्रन्थ से कोटि-कोटि मनुष्यों क Dav कल्याण हो हanto है।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। नदियां सूख जायेगी, पर्वत अपने स्थानों को छोड़ देंगे, पर वेदव्यास जी की वाणी गूंजती ही रहेगी।
एक तो सागर है, लहरें आती है और चली जाती है और सागर बना रहतok है।।।। लहरें सागर से जरा भी अलग नहीं है, फिर भी लहरें सागर नहीं है।।।।।।।। लहरें सिपफऱ् सागर से उठा हुआ स्वरूप हैं आकार हैं, बनेंगे, मिटेंगे। जो लहर बनी है, उसको लहर कहना बेकार है। लहर का मतलब यह है कि आयी और गयी। लहर शब्द का भी मतलब यही है, उठी भी नहीं कि जा चुकै जिसमें उठती है वह सदा है, जो उठती है वह सदा नह।ं ॹ Ver más सागर तो अजन्मा है, लहर का जन्म होता है। सागर की कोई मृत्यु नहीं है, लहर की मृत्यु होती है लेकिन लहर भी अगर यह जान ले कि मैं सागर हूँ तो जन्मने और मरने के बाहर हो।।।।।।।।।।।।।।। जब तक लहर समझती है कि मैं लहर हूँ, तभी तक जन्मने और मरने के भीतर है। जो भी है, वह अजन्मा है, उसकी कोई मृत्यु नही ं ¿? शून्य से कुछ पैदा नहीं होता। मृत्यु होगी कहां? शून्य में कुछ खोता नहीं। तो जो भी है-अस्तित्व वह तो सद mí क्योंकि हमारी इंद्रियों की पकड़ में सिenas आत आता है, आकार आता है। नाम रूप के अतिरिक्त हमारी इंद्रिया कुछ भी पकड़ नहीं पातीं।
सब सिर्फ हमारी छोटी आँखों के फर्क है। अगर समय अनंत है, न उसका कोई प्रagaaga qued a punto de हाँ, समय अगर सीमित हो, सौ ही साल का हो, तो फिर सत्तर साल में और सात क्षण में फर्क होगा। सात क्षण बहुत छोटे होंगे, सत्तर साल बहुत बड़े ंो लेकिन अगर दोनों तरफ कोई सीमा नहीं है, न तatarir हमें फिर भी भ्रम हो सकत mí ¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿ अनंत की तुलना में सात क्षण भी उतने ही है, सत्तर वर्ष भी ही हैं हैं हैं कितनीatar बनता है तभी से फूटना शुरू हो जाता है।
इसलिये मैंने कहा कि शरीर को देख कर कहें। शरीर से मेरा मतलब है, नाम-रूप से निर्मित जो दिखाई पड़ रहा है और आत्मा से मेरा मतलब है सागर और शरीर से मेरा मतलब है लहर और ये दोनों ही बाते एक साथ समझनी जरूरी है। नहीं तो इन दोनों के बीच अगर भ्रम पैदा हो तो जगत की सारी कठिनाईयां खड़ी है।।।।।।।।।।। भीतर हमारे तो वह है जो कभी मर नही सकता। इसलिये गहरे में हमे सदा ही ऐसा लगता है, मैं कभी नहीं मरूंगा। लाखों लोगों को हम मरते हुये देख ले, फिर भी भीतर यह प्रतीत नहीं होता कि मैं मरूंगा इसकी गहराई में कही कोई धutar सामने ही लोग मरते रहें और फिर भी हमारे भीतर न मरने का भाव ही सजग रहता है।।।।। किसी गहरे तल में, 'मैं नहीं मरूंगा' यह बात हमें जाहिर ही होती है।।।।।।।।।। माना कि बाहर के तथ्य झुठलाते है और बाहर की घटनायें कहती है कि ऐसा कैसे हो सकता है मैं नहीं नहीं मरूँगा। तर्क कहते है कि जब सब मरेंगे तो तुम भी मरोगे। लेकिन सारे तर्को को काट कर भी भीतर कोई स्वर कहे ही चला ज mí.
इस जगत में कोई आदमी कभी भरोसा नहीं करता कि वग मथे इसलिये तो हम इतनी मृत्यु के बीच जी पाते है, नहीं तो इतनी मृत्यु के बीच तत्काल मर जाये। जहाँ सब मर रहok है, वहाँ प्रतिपल हर चीज मर रही है, वहाँ हम किस भरोसे जीते है है है है है? ¿Está bien? ¿Está bien? किसी परमात्मा में नहीं है। आस्था इस आधार पर खड़ी है भीतर कि हम कितना ही मृत्यु कहे कि मरते है, भीतर कोई कहे ही चला जाता है म मर कैसे है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है कोई आदमी अपनी मृत्यु को कंसीव नहीं कर XNUMX उसकी धारणा नहीं बना सकता कि मैं मरूंगा। कैसी ही धारणा बनाये, वह पायेगा कि वह तो बचा हुआ है अगर वह अपने को मर gaste मृत्यु के भीतर हम अपने को कभी नहीं रख पाते, सदा ही बाहर खड़े हो जाते हैं।।।।।। मृत्यु के भीतर कल्पना में भी रखना असंभव है। सत्य में ¢ तो बहुत मुश्किल है, हम कल्पना भी नहीं कर सकते ऐसी जिसमें मैं मर गया। क्योंकि उस कल्पना में भी मैं बाहर खड़ा देखता तहु वह कल्पना करने वाला बाहर ही रह जायेगा, वह मर नहतथं य४
बहुत अद्भूत बात है कि जीवन की जो भ्रagaंतियां है वे हमारे जानने से मिटने वाली भ्रagaंतियां नहीं।।।।।।।।। जानने से सिर्फ हमारी पीड़ा मिटती है। जैसे शंकर ने निरंतर उदाहरण लिया है कि राह पर पड़ी रस्सी और अंधेरे में दिख mí. लेकिन वह उदाहरण बहुत ठीक नहीं है। क्योंकि उसके पास आ जाने पर पता चल जाता है कि ¢ है है और एक दफा पता चल जाये तो कितने ही ही दूर चले जाये, फिर आपको सांप दिखाई नहीं सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत ijo सकत सकत सकत सकत सकत सकत dos. लेकिन जीवन का भ्रम इस तरह का नहीं है। जीवन का भ्रम ऐसे है जैसे आप सीधी लकड़ी को पानी में डाल दें, वह तिरछी दिखाई पड़ती।।।।।।।।।।। आप ब sigue. हाथ डाल कर प siguez आपके ज्ञान से उसके तिरछे होने का रूप नहीं मिटता हां, लेकिन तिरछी है, इसका भ्रम मिट जाता है।।।।।।
अब आप म siguez यह दो तल पर बंट जायेगी बातें-जानने के तल पर लकडी सीधी होगी, देखने के तल पर लकड़ी तिरछी होगी।।।।।।।।। इन दोनों में कोई भ्रांति नहीं रह जायेगी। जीने के तल पर शरीर होगा, बाहर के तल पर शरीर होगा, अस्तित्व के तल पर आत्मा होगी।।।।।। खो नहीं जायेगा_ऐसा नहीं कि ज्ञानी को संसार खो हाा ज्ञानी को संसार ठीक वैसा ही होता है जैसा आपको हॾ शायद और प्रगाढ़ होकर साफ होकर होता है और स्पषहय़ ाय़ रोआं-रोआं का साफ उसकी दृष्टि में होता है। खो नहीं जाता। लेकिन अब वह भ्रम में नहीं पड़ता। अब वह जानता है कि रूप उसकी इंद्रियों से पैदा हुये है जैसे लकड़ी पानी के भीतर तिरछी दिखाई पड़ती, क्योंकि किरणों का ूप gaste हो ज ज razra है।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।. पानी में किरणों की यात्र बदल जाती है। किरणें थोड़ी झुक जाती है, उनके झुकाव की वजह से लकड़ी तिरछी दिखाई पड़ती है।।।।।।।।।। हवा में किरणें एक तरह से चलती है, झुकती नहीं है, इसलिये लकड़ी तिरछी दिखाई नहीं।।।।।।।।।।।। लकड़ी तिरछी नहीं होती है, लकडि़य siguez लेकिन वह तो दिखाई नहीं पड़ती। किरण तिरछी हो जाती है, तो किरण के तिरछे होने की वजह से लकड़ी तिरछी दिखाई पड़ती।।।।।।।।।। अस्तित्व तो जैसा है वैसा है, लेकिन इंद्रियों से गुजर कecer जानने का जो ढंग है, वह बदल जाता है, माध्यम की वजह ॸ जैसे कि मैंने एक नीला चश्मा लगा लिया, अब चीजें दिख दिखाई पड़ने।। मैं चश्मा उतार कर नीचे देखता हूँ, देखता हूं चीजें सफेद है। फिर चश्मा लगाता हूं, वे फिर नीली दिखाई पड़ती हैंैं अब मैं जानता हूं कि चीजें सफेद हैं लेकिन फिर भी चश्मे से नीली दिखाई पड़ती है।।।।।।।।। अब मैं यह भी जानता हूँ कि यह चश्मे की वजह से नीली दिखाई पड़ती है, बात खतम हो।।।।।।।।।।।।।। चीजें नीली दिखाई पड़ती रहेंगी, और मैं जानूंगा भलीभांति कि चीजें सफेद।।।।।।।।
एक मूenas र के राज्य में तीन पैसे में एक किलो मिठाई और एक किलों काजू मिलते।।।।।।।।।। एक गुरू और शिष्य, अलग-अलग राज्यों में भ्रमण करते हुये मूû endr शिष्य हमेशा गुरूजी के साथ रहता था, उनकी सेवा करता था और उनके लिये खाना लाता था। जब शिष्य उस राज्य में पहुँचकर गुरूजी के लिये खाना लाने गया तब उसने खाने की जगह पर बहुत सारी मिठाइयां लाईं। मिठाई खाने के बाद गुरूजी ने शिष्य से सवाल पूछा, 'आज खाने में मिठाइयां कैसे लाई, इतने कह gas से आये आये आये आये आये आये आये आये आये आये आये आये आये आये आये आये आये आये आये आये शिष्य ने ने बत mí XNUMX 'ज्य últimos पैसे तो तो जम mí नहीं नहीं हुये थे थे मगर इस इस र में में तीन पैसे एक एक किलो मिठ मिठtan मिलती मिलती है है और दί द मिलती।। मैने सोचा मिठाई सस hubte
शिष्य की बातों से गुरूजी समझ गये कि यह ivamente उन्होंने तुरंत शिष्य से कहा, 'अब हम यहां एक पल भी नहीं रहेंगे, यहां से तुरंत आगे की यात्र के लिये निकलेंगे' मगर शिष्य ने गुरूजी से कहा, मुझे यह जगह बहुत पसंद आई है, मैं तो यही रहना चाहता हूं इसलिये हम अभी नहीं बल्कि कुछ दिनों के बाद यहां से आगे जायेंगेेेे गुरूजी ने शिष्य को समझाया, 'यह मूर्ख राजा का राज्य है, यहां ज्यादा दिन ¢ हन ठीक है' मगर शिष्य ने गुरूजी की न न, उसने कि कि कि यहीं। हूंग हूंग हूंग की न सुनी उसने की कि कि यहीं।। हूंग हूंग हूंग no. अपनी जिद पर अटल रहते हुये शिष्य उसी राज्य में रहने लगा और गुरूजी वहां से आगे की यात्र के चल प प प प प प प प प प प प प प प प पGuarida.
कुछ दिनों बाद उस राज्य में एक घटना हुई। राज्य से एक इंसान जा रहा था। उस पर एक दीवार गिर गई और वह मर गया। मरने वाले इंस siguez यह सुनकर ¢ ज अपने अपने सिपाहियों को आदेश दिया जिस घर की दीवार गिरने से इस इंसान का भाई मर गया उस घर के मालिक को पकड़कर हमारे सामने पेश कियaños सिपाहियों ने तुरंत राजा की आज्ञा का पालन किया और उस मकान मालिक को पकड़कर र gaste के सामने हाजिर किया। va Balticóse मकान मालिक ने अपनी सफाई में कहा महाराज इसमें मेरी कोई नहीं नहीं है।।।।।।।। है है है है इसमें उस मिस्त्री की गलती है। मिस्त्री ने कच्ची दीवार बनाई इसलिये वह गिर गई।
राजा ने कहा 'ठीक है, उस मिस्त्री को पकड़कर लाओ, सिपाही फिर दौड़कर गये और मिस्त्री को पकड़कर लाये। राजा ने उससे कहा, तुम्हारी गलती की वजह से कच्ची दीवाtern. मिस्त्री ने भी अपनी सफाई देते हुये कहा, इसमें मेरी गलती नहीं है। इसमें उस इंस siguez सिमेंट में ज्यादा पानी मिलाने के कारण दीवार कच्ची बनी इसलिये वह उस इंसान पर गिर गई और वह मर गया। '
र sigueal उसे भी राजा के सामने लाया गया। उसने दुहाई दी कि महाराज! इसमें मेरी कोई गलती नहीं है। मैं जब सीमेंट में पानी मिल sigue. वह औरत एक नई साड़ी पहनकर जा रहीं थी। मेरा पूरा ध्यान वहां था इसलिये सीमेंट में ज्यादा पानी डाल दिया। उसकी बात सुनकर राजा को लगा कि वह XNUMX
राजा ने उस औरत को दरबार में हाजिर करने का हुकूा८ ाम ाम उस औरत को दरबार में लाया गया और बताया गया, तुम्हें फांसी मिलेगी क्यांकि तू नई साड़ी पहनकर जा रही थी, जिससे इस इंसान का पूरा ध्यान तुम्हारी तरफ़ गया, और उसने सीमेंट में ज्यादा पानी मिलाया और मिस्त्री ने कच्ची दीवार बनाई, वह दीवार एक इंसान के ऊपर गिरी और वह इंसान मर गया। अब तुम्हें सजा दी जायेगी।' उस औरत ने अपनी सफाई पेश की कि 'इसमें मेरी कोई गलती नहीं है, मेरी सहेली ने मुझे नई साड़ी दी इसलिये मैंने पहनी थी।।' राजा को लगा कि वह ठीक कह रही है। फिर ¢ ने सिप सिपguna से कहा, 'इस औरत की सहेली को पकड़कर लाओ।' सिपाहीं ने उस औरत की सहेली को पकड़कर लाएा। र sigueal नई साड़ी पहनकर वह बाजार से निकली निकली, उसे देखने की में मजदूर ने सीमेंट में ज ज्यendr. जिस वजह से मिस्त् POY सहेली ने कहा, 'नही, इसमें मेरी कोई गलती नहीं है। यह साड़ी मेर पति ने मुझे तोहफे में दी थी, जो मैंने अपनी सहेली को पहनने के लिये दी थी। ' राजा ने उसके पति को पकड़कर लाने का आदेश दिया। पति को भी पूरी कहानी बताई गई। उस पति के पास और कुछ कारण नहीं था। उस बेचारे ने कहा, मुझे माफ कर दो। मैं यह गलती दोबारा नहीं करूँगा।' र • ने कहा, 'तुमसे गलती तो हो गई है, अब तुम्हें फाँसी की सजा दी जायेगी।'
जब उस इंसान को फ siguez र sigueal उस वक्त देखा गया कि जो फाँसी का फंदा बनाया गया था, वह बड़े आकार का था और जिसे फाँसी दी जanzas ज थी थी, वह इंसान दुबल दुबला-पतला था।।।।।। fl. उसकी गर्दन बहुत पतली थी इसलिये फंदा उसके गले में ठीक से नहीं बैठ रहok था। सिपाहियों को लगा कि उसके लिये नया फंदा बनवाना पा जब उन्होंने नया फंदा बनवाने के लिये राजा से आज्ञा ली तब ¢ ज ने कहा, 'नय sigue. "
आप समझ सकते है कि एक मूû endramente फिर सिपाही ऐसे इंसान को ढूँढने के लिये निकले, जिसकी गर्दन मोटी हो। सिपाहियों को जो सबसे ज्यादा मिठाइयाँ खा रहok था, उसकी गर्दन सबसे मिली।।।।।।।।।।।।। उन्हें वही शिष्य मिला औecer राजा ने शिष्य से कहा " ¿? तब जवाब में उसे पूरी कहानी बताई गई कि 'एक इंसान की मृत्यु दीवार के गिरने की वजह से क्योंकि मिस्त्री ने दीवoque कच्ची बनाई थी थी थी थी थी थी थी थी थी थी थी थी थी थी थी थी थी थी थी थी थी थी थी थी थी थी थी थी थी थी थी थी थी थी थी थी थी थी objetivo मजदूर ने सीमेंट में ज्यादा पानी मिला लिया था क्योंकि वह मजदूर उस औरत को देख ¢ endr. वह साड़ी उस औरत को उसकी सहेली ने दी थी। सहेली को उसके पति ने साड़ी दी थी। उसके पति की गरदन बहुत पतली है, जिससे फाँसी को फंदा ठीक से बैठता नहीं है, तुम्हारी गरदन मोटी इसलिये तुम तुम्हें फाँसी दी जायेगी। ' यह सब सुनकर शिष्य ने कहा? " उस शिष्य ने अपने निरपराध होने का सबूत राजा को देने के अपनी अपनी बुद्धि का पूरा इस्तेमाल किया।
फिर भी ¢ ज नहीं माना तब उस शिष्य को पहली बार पता चला कि बुद्धि से कुछ होत gas।।।।।।।।।।।।। इसी बात का एहस siguez असल में वे छोड़कर नहीं गये थे, वे उस शिष्य के आस-पास ही थे और वे सब देख हे थे।।।। जब शिष्य ने बुद्धि से पूरा काम कर लिया तब उसे गुरूजी की याद आई।।।।।।। गुरूजी की याद आना भी बड़ी कृपा है। शिष्य को याद आया कि गुरूजी ने सही कहा था कि मुर्ख राजा के राज्य में रहना खतरनाक है।।।।।। जिस राज्य में राजा मिठाई सस्ती और दाल महँगी बेचता है, वहा कुछ है।।।।।।।।।।।।। वहाँ कोई शुभकार्य नहीं हो सकता। जब उसने अपने गुरूजी को याद किया तो वहां आ गये।
उसने गुरूजी से म siguez अब मुझे समझ में आ गया कि आपने ऐसा क्यों कहा था। उस वक्त मैंने आपकी ब siguez आज मैं फाँसी पर नहीं चढ़ाया जाता। गुरूजी ने शिष्य से कहा, 'जो हो गया वह ठीक है मगर क्या इसके बाद तुम मेरी आज्ञा मानने के लिये तैयार हो? तब शिष्य ने अपनी गलती स्वीकाisiones फिर चाहे वह बात ताisiones तब गुरूजी ने उसे कहा, 'तुम ¢ • के सामने मुझसे कहना कि आज आज फाँसी पर चढ़ना है, मैं फाँसी पर चढूँगा और कोई।।' यह सुनकर शिष्य ने सोचा, 'मैं तो उन्हे इसलिये याद कर omin " इस विचार के ब siguez उसने सोचा, 'गुरूजी ऐसा कह रहे हैं तो जरूर कोई काथा उसके मन में ऐसा भी विचार आया कि 'कम से कम आखिरी घड़ी में सुकून तो रहेगok कि अंतिम समय मैंने मैंनेatar
जब ¢ ज के सामने उस शिष्य को लाया गया तब गुरूजी ने राजा से कहा, 'मैं आज फाँसी पर चढूँगा।' गुरूजी की बात सुनकर शिष्य को आश्चenas हुआ कि गुरूजी क्या कह रहे है।।।।। शिष्य ने कहा, 'मैने वचन दिया है तो मैं ही फाँसी पराा गुरूजी ने कहा, 'मुझे ही फाँसी पर चढ़ाओ।' शिष्य ने फिर से जवाब दिया, 'नही, मुझे फाँसी पर चा़ा़ा़ा़ इस तरह गुरूजी और शिष्य दोनों फाँसी पर चढ़ने के लिये झगड़ा करने लगे। उनका झगड़ा देखकर र gaste ने पूछा, 'आप दोनों फाँसी पर चढ़ने के लिये झगड़ा क्यों कर रहे है? तब गुरूजी ने ¢ ज को बताया, 'इस वक्त जो भी फाँसी पर चढे़गा, वह स्वर्ग में ही जायेगा।' राजा को स्वर्ग की कल्पनायें भी बताई गई। राजा ने यह यह सुना कि इस शुभ मुहूर्त में जो फांसी पर चढे़गा, वह स demás. कहानी के अंत में गुरूजी ने उस राजा (तोलू मन) को ही फाँसी पर लटकने लिये लिये उकसाया क्योंकि गुरूजी जानते थे कि मुरnas फिर भले ही दाल सस्ती हो जाये, मिठाई महँगी हो gres अंत में ¢ को को फाँसी दी गई, राजा मर गया और गुरू-शिष्य वहाँ से चले।।।।।।।।।।।।।। उस राज्य के सिपाही, जो भागदौड़ कर रहे थे वे भी खुश हो गये, उनके दुःखों का भी अंत।।।।।।।।।।।।।।।।
हमारी हालत ऐसी है कि अंधेरे में खड़ा आदमी अंधेरे से ही प्रकाश का अनुमान लगाये उसके पास और कोई उपाय नहीं।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। यद्यपि अंधकार भी प्रकाश का ही धीमा रूप है, अंधकार भी प्रकाश के बहुत कम की की स्थिति है।।।।।।। कोई अंधकार ऐसा नहीं है जहां प्रकाश न हो। क्षीण होगा। और क्षीण भी कहना ठीक नहीं है, सिर्फ हमारी इंद्रियों की के के लिये क्षीण है।।।।।।।। हमारी इंद्रियां नहीं पकड़ पाती अन्यथा हमारे पास से इतने बड़े प्रकाश के बवंडर निकल रहे हैं जिसका कोई हिसाब नहीं, हम ले तो हम अंधे हो हो ज।।।।।।।।।।।।।।।।। लेकिन हमारी इंद्रियां उनको नहीं पकड़ पाती । अंधेरा हो जाता है। जब तक एक्स-fue हम सोच भी नहीं सकते थे कि आदमी के भीतर की हड्डी की तस्वीर भी किसी दिन बाहर आ जायेगी। आज नहीं कल और गहरी किरण खोज ली जायेगी और हम एक बच्चे के, मां के पेट में पहल पहला अणु है, उसकेर-पार किरण को ड क किसी दिन तो उसकी उसकी पू देख वह वह वह वह क ज ज ión इसकी सारी संभावनायें है।
हमारे पास से बहुत तरह का प्रकाश गुजर endr नहीं पकड़ती यानी हमारे लिये अंधेरा है। जिसे हम अंधेरा कहते है, उसका कुल मतलब इतना ही है कि ऐसा प्रकाश जिसे हम नहीं पकड़ हे endr लेकिन फिर भी अंधेरे में खड़े होकर कोई आदमी प्रकाश के बाबत जो भी अनुमान लगायेगा वे गलत।।।।।।।।।।।।।। माना कि अंधेरा प्रकाश का एक ही रूप है, फिर भी अंधेरे से प्रकाश के बाबत जो अनुम अनुमान लगाये जायंगे वे होंगे होंगे। होंगे होंगे होंगे होंगे होंगे होंगे होंगे होंगे होंगे होंगे होंगे होंगे होंगे होंगे होंगे होंगे होंगे होंगे होंगे होंगे होंगे होंगे होंगे होंगे होंगे होंगे होंगे होंगे होंगे होंगे होंगे होंगे होंगे होंगे होंगे गलत गलत माना कि मृत्यु भी अमृत का एक रूप है, फिर भी मृत्यु से अमृत के बाबत जो भी अनुमान लगाये जायंगे वे होंगे।।।।।।।।।।।।।।।।।। हम अमृत को ज siguez
सचेतन रूप से हम चुनते नहीं कि हम जन्म ल सचेतन रूप से सिर्फ एक ही मौका आता है क का, वह आता है जब पूरी तरह व्यक स्वयं को ज ज लिय होत है है।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। होत होत होत होत. वह घटना घट गई होती है जिसके आगे पाने को कुछ नहहथो ऐसा क्षण आ जाता है जब वह व्यक्ति कह सकता है कि अब मेरे लिये कोई भविष्य नहीं है, क्योंकि मेरे लिये व वासना नहीं।। है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है eléctrica ऐसा कुछ भी नहीं है जो मैं न पाऊं तो मेरी कोई पीडै़ह यह बहुत ही शिखर का क्षण है-पीक। इस शिखर पर ही पहली दफा स्वतंत्रता मिलती
यह बडे़ मजे की बात है और जीवन के रहस्यों में से एक कि जो चाहेंगे कि स्वतंत्र हों वे स्वतंत्र नहीं हो पाते हैं और जिसकी कोई कोई च च नहीं हीं हीं वे स्वतंतorar हो हैं हैं हैं हैं।।।। ज ज ज ज uto जो चाहते हैं कि यहां जन्म ले लें उनके लिये कोई उपाय नहीं है और जो इस इस सutar लेकिन यह भी एक ही जन्म के लिये संभव हो सकता है। इसलिये नहीं कि एक जनutar वह अभी रहेगा। स्वतंत्रता मिलते ही इस जन्म में यदि आपको घटना घट गई परम अनुभव की, तो स्वतंत्रता तो मिल गई आपको लेकिन जैसा कि सदा होता है, स्वतंत्रता मिलने के साथ ही स्वतंत्रता का उपयोग करने की जो भाव-दशा है वह एकदम नहीं खो जायेगी। उसका अभी उपयोग किया जा सकता है। जो बहुत गहरे जानते हैं वे कहेंगे, यह भी एक बंधन है
परमात्मा तो चौबीस घड़ी चारों तरपफ़ मौजूद है। लेकिन प्यास न होने से कोई उसे काशी खोजने जायेगा, कोई कैलाश खोजने जायेगा। प्यास न होने से हम कहीं और खोजने जाना पड़ता है। प्यास हो तो श्वास-श्वास में, हवा के कण-कण में, वृक्ष के पत्ते-पत्ते में वह मौजूद है।।।।।।।। वही मौजूद है तो कोई भी नहीं है। उसके अतिरिक्त और किसी का कोई अस्तित्व नहीं है। लेकिन उसका इमें कोई पता नहीं चलता। उसका हमें कोई पता नहीं चलेगा। नही चलेगा इसलिये कि जैस mí विचारों का झंझावात है भीतर, वह चल रहा है जोर से। हम उसमें लगे हैं। खाली जगह का कोई पता नहीं चलता। खाली जगह का बोध ही नहीं होता। हम भी रोशनी चाहते हैं, लेकिन अमावस्या की काली ¢ कौन कौन चाहेगा? हम भी मिलना चाहते है? हम भी परमात्मा के आनंद में डूबना चाहते हैं, लेकिन उसकी पीड़ा? हमने किसी मां को बच्चा पैदा होते देख लिया है और जब बच्चा पैदा होता है और मां की आंख ब बार अपने बच्चे को देखती है, तो उसकी आंखों में आनंद आनंद क उच favor ¿Está bien? वह प्रसव की पीड़ा के बाद की यह मुस्कान है।
शबरी का जीवन भगवत् प्रेम से ओत-प्रोत रहा। वह मतंग ऋषि के सानिध्य में उनके आश्रम के समीप ही एक कुटिया में रहती थी। ऋषि के आश्रम पर रहकर उनकी सेवा करना ही उसकी दिर्ा् उसने मतंग ऋषि को ही अपना गुरू मान रखok था, अतः गुरू के आदेश का पालन वह तत्परता से करती थी, शबरी एक सद सदाचान timo भक्ति पर marcaयण स्त थी थी।। ऋषि उसकी सेवा से प्रसन्न थे।
एक दिन मतंग ऋषि ने शबरी से कहा अब मैं यह देह त्याग करूंगा। तुम इसी आश्रम पर रहनok भक्त वत्सल प्रभु श्रीर marca अपने अनुज लक्ष्मण सहित आश्रम पर आयेंगे भगवान् श्रीरीरpir राम अपनी पत्नी सीता की खोज करते हुये यहां आयेंगे, तुम उनgon. इसके बाद मतंग ऋषि ने योग-विधि से अपनी देह त्याग ० शबरी को अपने गुरू के शब्दो पर पूर्ण विश्वास था, वह प्रभु श्रीराम के की की बाठ जोहने लगी, शबरी क मन ibilidad ब हो गयguna गय razón वह प्रतिदिन कुटिया तथा मार्ग की सफाई करती । ऋतु के अनुसार पुष्पों और फलों को डलिया में रखतीीी पूरे समय वह राम के आने की बाट देखती । एक ही विचार उनके मन में समाया हुआ था कि राम आयगेूत राम कब आ जाये, यही सोचकर वह दिन-रात सचेत रहती थी।
शबरी के तन- मन की स्थिति ऐसी हो गयी थी कि तनिक-सी आहट होने पर यendr उसने श्रद्धा-विश्वास और प्रीति के साथ अपने मन की डोर श्रीर gaste भगवान् श्रीर gaste भगव sigue. यही उसकी योग-साधना थी, राम का नाम ही उसके अन्तःकरण में था और र gaste वह सहज योग से भक्तिमार्ग पर अग्रसर हो गयी। शबरी की ऐसी दिनचर्या देखकर उस वन के अन्य ऋषि-मुनि प्रagaयः कहते कि कि भला तत्त्व वेत्ता, तपस्वी एवं सिदutar लेकिन शबरी को इस प्रकार की ब siguez उसे निन्दा-स्तुति, ल mí. एक दिन शबरी ने देखा कि वनवासी वस्त्र धारण किये धनुर्धारी श्रीर marca अपने अनुज लक्ष्मण सहित उसके आश्रम पर आ।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। eléctrica राम को देखते ही व आत्म विभोर होकर उनके चरणों पर थ॥ं वह पूजा-अर्चना, विनती तथा स्वागत-सत्कार करना बिल्कुल भी नहीं जानती थी, प्रभु राम ने उसे उठाया।
शबरी ने कुछ संभलकर र gaste प्रभु राम शबरी के द्वाisiones शबरी ने हाथ जोड़कर कहा प्रभु-मैं पूजा-पाठ, मंत्र जप तथा योग-विधि कुछ भी ज जija हूँatar मैं उसी दिन से आपके आने की राह देख रही थी। ¡Adelante! श्रीराम ने कहा हे भामिनि! मैं केवल भक्ति क mí
भगवान् श्रीर gaste गुरू कथा प्रसंगों में प्عL. गenas हित होकर गुरू के चरण कमलों की सेवा करना तीसरी भक्ति है कपट त्याग करके गुरू गुणगान करना चौथे प्रकार की भक्ति है। गुरू नाम का जप करना तथा गुरूमय में दृढ़ विश्वास ¢ पांचवीं भक्ति है।।।।।। इन्द्रियों का निग्रह, शील-स्वभाव, बहुत से कारorar जगत् को समान भाव से गुरूमय स्वisiones भक्ति का नवां प्रकार है सरलता, सब के साथ कपट रहित व्यवहार करना, हृदय में गुरू का भरोसा रखना तथा किसी स्थिति मेंरbar औ औguna विष क क होन होन ।ija
श्रीरामचरितमानस में श्री राम द्वारuerzo शबरी को नवधा भक्ति का उपदेश बहुत ही सुन्दर शब्दावली में प प्agaender सावधान सुनु धरू मन माहीं, प्रथम भगति संतन्ह गर थ྾ दूसरि रति मम कथा प्रसंगा, गुरू पद पंकज सेवा तीसरि भगति अमान ।। चौथि भगति मम गुन गन करइ कपट तजि गान, मंत्र जप दृढ़ दृढ़ विस्वासा। पंचम भजन सो बेद प्रकासा।। छठ दम सील बिरति बहु करमा, निरत निरंतर सज्जन धरमा, सातवँ सम मोहि मय देख देखा ।। मोतें संत अधिक करित लेखा, आठवँ जथलाभ संतोषा, सपनेहूँ नहीं देखइ परदोषा ।। नवम सरल सब सन छलहीना, मम भरोसहियँ हरष न दीना।।
भ¡Adelante! जिस स्त्री-पुरूष अथवा जड़-चेतन में इन नौ प्रकार की भक्तियों में से एक भी प्रकार की भक्ति होती है, वह मुझे प्रिय होता है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होतanda. फिर तुम्हारे में तो सभी प्रकार की दृढ़ भक्ति हैैै मेरे दर्शन का यह अनुपम फल प्रagaप्त होता है कि जीव अपने सहज स्वरूप को प्रagaप्त हो जाता है।।।।।।।। अतः ऐसा भाव योगियों को भी दुर्लभ है, वहीं दिव्य भाव आज तुम्हारे लिये सुलभ हो गया है।।।।।।।।।। भगवान् के पूछने पर शबरी ने उन्हें सुग्रीव क mí भक्तिमती शबरी ने राम का दर्शन कर उनके चरण कमलों को हृदय में धारण किया और प्रभु श्रीर marca • के समक्ष ही उसने योग योगguna से देह त त ° य दी।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। eléctrico eléctrica उसने वह पद प्रagaप demás, जहां से संसार में वापस आना नहीं पड़ता है।।।।।। शबरी कि भक्तिमयी जीवनचर्या प्रभु-भक्तों को प्रेár. ईशावतार ¢ ने शबरी को नवधा भक्ति का उपदेश प्रदान कर भक्ति पथ पर अग्रसár.
हमने भगवान श् porta लेकिन हम वह तस्वीर छोड़ देते है जो रोती हुई है, जब प्राण आंसू-आसूं हो गये हैं जब कि हृदय क्षार-क्षार है, जब कि सिवाय आंसुओं के और कुछ भी नहीं हैं जब कि सिवाय पुकार के और कुछ भी नहीं हैं। वह हमारे ख्याल में नहीं है। परमात hablo फूल तो कोई भी पसंद कर लेता है, लेकिन बीज बोने की मेहनत भी है और पफ़ूल को तो कोई भी मुस्कुरaga कर प्रagaप superar उनको कोई ग्रहण नहीं करता।
परम् पूज्य सद्गुरूदेव
Sr. Kailash Chandra Shrimali
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