साधना कैसे सम्पन्न करें, जीवन को कैसे ऊँचाई पecerg. आपके लिये महत्वपूर्ण तथ्यों और विवेचनाओं के साथ—— मानव शरीर को सबसे सबसे उत्कृष्ट शरीर कहा गया है।।।।।।।।।।।।। मनुष्य को स्वाधीन इच्छा भी प्रagaप्त है, उसके पास सुख-दुख अनुभव करने वाला मन है।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। पशुओं में यह दुःख-सुख पृथक रूप से अनुभव करने की शक्ति नहीं है। मनुष्य में उचित-अनुचित, हित-अहित क mí यही कारण है, कि मनुष्य के शरीर को कर्म शरीर कहा गया है, जबकि दूसरे प्राणियों के शरीर को भोग शरीर कहा गया है, दूसरे प्राणी जो करते हैं, वे संस्कार वश करते हैं, जबकि मनुष्य जो करता है, वह अपने विवेक शक्ति के प्रयोग द्वारा ही करता है। यही दूसरे जीवों से मनुष्य की भिन्नता है।
संसार में मनुष्य अपने परिवार के साथ रहतok है, परिवार ही उसके प्रेम की केन demás भूमि है है यहीं से उसका पtherval पenas िव ही मानव की कोमलता का अरण्य, सुख एवं विश्व प्रेम का संरक्षक है।।।।।। जिस तरह पृथक सत्य से एक साधारण प्रतिज्ञा संघटित होती है, उसी तरह पारिव tomar será जिसने अपने परिवार से प्रेम करना नहीं सीखा, वह विश्व को प्रेम नहीं कर सकता।
मनुष्य स्वभावतः स्वयं को स्वयं ही प्रेम करता है वह अपने प्रेम से सुखी और अपने दुःख से दुःखी होता होता इसी कारण वह स्वार्थ परक बन जाता है। हम पहले अपने से प्रेम करते हैं, फिर अपने माता-पिता आत्मीय-स्वजन व acer इसके बाद क hubte प sigue, प्रेम व देश प्रेम का चरम फल है, विश्वजन के प्रति प्रेम और विश्व नियन्ता के प्रति प्रेम।
विश्व प्रेम की शिक्षा के लिये मनुष्य दो भागों में विभक्त है, एक पुरूष व दूसरा रमणी। पुरूष व रमणी पति- पत्नी के रूप में दृढ़ बन्धन में आबद्ध रहते है। पुरूष व रमणी का बंधन धû मूलक मूलक होने होनेatar यह धर्म मूलक बन्धन न रहने पर संसार पाप का क्षेत्र बन जanzas है।।।।।।।।।।।।। स्त्री-पुरूष का वैद्य परिणाम ही समाज का बन्धन है, स्नेह का केन्द्र है तथा विश्व प्रेम का मूलक।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।
इसी कारण प्रagaचीन काल में आर्य ऋषियों ने ब्रह्म विवाह का प्रचलन किया था। वे अरण्यवासी व तपस्वी होते हुये भी पत्नी व पenas विहीन नहीं हते थे।।।।।।।। वे गृहस्थ बन कर संसार में रहते थे, किन्तु वे सन्यास को ज्यादा प्रेम करते थे, यह सत्य है।।।।।।।।।।।। यह प्रेम भगवत् प्रेम था। ज्ञान का सार प्रेम है और प्रेम ही ज्ञान की चरम सॾ
सांसारिक प्रेम प्रagaकृत द्रव्य विशेष में ही आबद्ध है, जबकि भगवत प्रेम अनन्त कल्याण में आबद्ध। इसी कारण स sigue, प्रेम दुःखमय है जबकि भगवत् प्रेम परम सुखमय है।।।।।।।। आर्य ऋषिगण यह जातने थे, किन्तु उन्होंने संसार का त्याग भी नहीं किया और भगवत् प्रेम में लीन रहे।
सिद्धों की दृष्टि में संन्यास धारण कर वन में रहनok या गृहवास करना बोधि प्रagaप्ति का साधन नहीं, क्योंकि बोध न घर मेंatar न न में में में चित razón वही यथार्थ है, उसका बराबर सेवन करे।
सत्य के शोध में निरन्तर दत-चित्त रहना या सत्य सिद्धि की अवस्था में तल्लीन रहना साधना है।।।।।।।। साधना का स्वरूप सत्य के तथ्य की खोज करने में है, उसे प्रagaप demás करना साधना का विषय।।।।।।।।।।।।।।।। अतः साधutar अतः व्यक्ति के ये सारे प्रयत्न, सारे प्रयास, जो उसे अपने निर्दिष्ट गंतव्य की प्रagaप sup.
ये प्रयास प्रagaणि मात्र के लिये स्वसाध्य और स्वरूचि के अनुसार भिन्न-भिन्न होते।।।।।।।।।।।।।।। स sigue " भारतीय जीवन दर्शन ने भी साधना को साक्षात् जीवन का प्रतिरूप ही माना है और प्रत्येक जीवन को साधना के रूप में ही स्वीकार किया है, यही कारण है, कि प्राणि मात्र को अपने जीवन में किसी न किसी साधना में रत रहते हुये देखा गया है। अतः इस मान्यतानुसार जीवन स्वयं एक साधना है। जीवन और साधना का यह संबंध अन्योन्याश्रित है। एतदर्थ जीवन साधना है और साधना जीवन, दोनों एक दूसरे के पूरक है, प्रतीक है और स्वयं एक-दूसरे से अविच्छिन्न हैं।।।।।।।। हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं
जीवन में साधनाये प्रमुखतः XNUMXार मानी गयी
sadhana de karma
कर्म साधना में कर्म की प्रधानता देकर साधक में संस्कार मात्र डालने का प्रयत्न भर है।।।। इसी को सर्वस्व मान कर कर्मकाण्ड को जीवन मुक्ति का कारण माना गया है।।।।।।
cultivo del conocimiento
ज्ञान स sigue "
práctica de yoga
योग का तात्पर्य है स्वयं को उस परम तत्व में लततन ०ॾ ॕॾ योग साधना में साधक विलगाव को योग की युक्ति द्वारuerzo संयुक्त कर परस्पर तादात्मय का प्रयास किया जाता है है है है है है है है है है है है है है है है हैacho
bhakti sadhana
भक्ति निष्काम होती है जिसमें श्रद्धा, विश्वास, प्रेम और हृदयगत, निश्छलता, शुद्धता व पवित्रता के साथ ही साथ सदाच va, सत्याचरण आदि सम सम है।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। ° निर marca क या साकार के उपासकों दोनों भक्तों की भक्ति निष्काम है
अधिकतर व्यक्ति कर्म करते हुये ही जीवन को गुजाे हे उनके लिये प्रत्येक दिन जीवन में कर्म ही प्रमुख है, वही जीवन की साधना भी।।।।।।।।।।
इस तरह साधना में साध्य से वंचित हो साधना की सीमा तक अपने आपको आपको सीमित कág. या अनासक्त भावना के साथ इसमें संलग्न रह कर भी इसके पाशों से विलग होकर जीवन बन्धन से विमुक्तता प्रagaप demás करते हैं।।। हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं
इस कर्म साधना में आडम्बर, पाखण्ड या दिखावें आदि का किंचित मात् razón
ama a tu madre
Shobha Shrimali
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