वेद व्यास ¿¿¿¿ क्या सांस लेने या नहीं लेने से व्यक्ति जीवित या मृत हो जाता है? वास्तव में मृत व्यक्ति वही है, जिनमे हौसला नहीं है, साहस नहीं है, क्षमता नहीं है औecer. ऐसे लोग मृत है। मनुष्य तो है, जिंदा भी है, मगर उसके बाद भी मरे हुये से है, इसलिये कि उनमें एक नीरसता है कोई नवीनत नवीनत नहीं कोई कोई नय नय नहीं नहीं, कोई चेतन चेतन है है है कोई यदि यदि है है है है है है है है है है बाधाएँ नही है, अड़चने, कठिनाइयाँ नहीं है तो मनुष्य जीवन हो ही नही सकता मनुष्य जीवन उसको कहते कि हर पग पर समस्यendr. वही जीवत मनुष्य रह सकता है जो ऐसा कर पाता
और विज्ञान इस बात को स्वीकार करता है कि जिन्होंने संघर्ष किया, जो संघर्षशील व्यक्ति है या जानवर है या जीव है वे जीवित जीवित eccion हे।।।।।।।।।।।।।।।। हे हे हे हे हे हे हे हे हे हे हे. जिनमें संघर्ष की, समस्याओं से जूझने की क्षमता समाप्त हो गई, वे मर गये। अभी कुछ समय पहले बीच में आपने बहुत हो हल्ला सुना होगा कि डायनासॉर होता था जो संसार का सबसे लम्बा चौड़ा प्रagaणी था। आज से से हज हजίuto साल पहले आखि sig ड sigueयन sigue की मृत मृत uto हो गई गई और एक क sigue भी क्यों नहीं रहा? इतना बड़ा लम्बा-चौड़ा प्रagaणी वह नहीं नहीं रहok और मानव जीवित है, इसका क्या कारण था? ¿Está bien?
और आपको म siguez सबसे पुराने जो है है, केवल दो है जो पिछले हजारो सालों से हमारे बीच है, एक तो कॉकरोच और एक मेंढक।।।।।।।।।।। बाकी सब जातिया धीरे-धीरे नष्ट होती गई, बदलती गई या पûendr पर उन दोनों में कुछ परिवर्तन नहीं आया और दोनों आज भी वही हैं जो से तीस तीस हजार साल पहले थे हज हजाellas साल बहुत बड़ी उम्र है और तीस हजार वरbar से जीवित जीवित हैं ऐस ऐस क Y है है है है औ हज हज razón.
ऐसा इसलिये है कि वे प्रत्येक परिस्थिति में जीवित रहने की क्षमता रखते है। आपने देख mí । यदि आप भी चार घंटा बाहर बैठ जाये तो आपके ऊपर ominal आपके ऊपर मैल की परत चढ़ जायेगी और दस दिन आप स्नान नहीं करे तो आपके शरीर पर मैल चढ़ जायेगा कि आप को चार बाgres साबुन लगाना पड़ेगा पड़ेगा पड़ेग gaste आपने खुद चढ़ाया नहीं उस मैल को, मगर मैल चढ़ा, कपडों पर भी चढ़ा। मेंढ़क छः महीने उस पत्थर में रहते है और बाहर से उनको ऑक्सीजन मिलती ही नहीं।।।।।।।।। उसके बाद भी वे जीवित रहते हैं। तो जो जीव छः महीने बिना ऑक्सीजन के रह सकता है वह मर नहीं सकता, क्योंकि उसमे संघर्ष करने की क्षमता है, एक पॉवर है, एक ताकत है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है eléctrica eléctrica वह अहसास करता है कि जीवन में एक संघर्ष है, कठिनाई है और कठिनाई होते हुये भी जीवित ¢ endr इसलिये मेढ़क जीवित है इसलिये कॉकरोच जीवित है इसलिये ऊँट जीवित है कि वह तीस दिन बाद तक बिना पानी के जीवित रह सकता है, हमर तुम नहीं नहीं सकते सकते बिन fl. छोटा सा उदाहरण है। आप समझ समझ सके कि कि जिंदा वही व ender व्यक ámara हत है जिसमें संघ sig otros
हमारे ऋषि दो सौ साल, तीन सौ साल जीवित रहे यह हमने सुना और यदि आप उस साधनात्मक लेवल पर है तो आप देख सकते हैं कि पाँच सौ साल, हजार साल के ऋषि योगी आज भी जीवित है और इतनी आयु लिये हुये है और हम केवल साठ साल या सत्तर साल जीवित रह पाते है। ऐसा क्यों हो ¢ है कि हम साठ साल की आयु में ही मर जाते हैं।।।।।।। सत्तर साल के होकर मर जाते है बहुत मुश्किल से गिन कर के अस्सी साल के दो चार व्यक्ति ही किसी किसी एक शहर में।।।।।। देखेंगे देखेंगे देखेंगे देखेंगे देखेंगे देखेंगे देखेंगे देखेंगे देखेंगे देखेंगे देखेंगे देखेंगे देखेंगे देखेंगे देखेंगे देखेंगे देखेंगे देखेंगे देखेंगे देखेंगे देखेंगे देखेंगे देखेंगे देखेंगे देखेंगे देखेंगे देखेंगे देखेंगे eléctrica सौ साल किसी के होते है तो भाisiones
आज व्यक्ति सौ स siguez आप सुबह उठे, स्नान किया, पेंट पहनी, कुर्त्ता पहना, नाश्ता किया, टिपिफ़न हाथ में लिये और ऑफिस चले गये, फिर ऑफिस से वापस आये, आपका जीवनचरbar ender ऐस ही ही sirtan जीवन में कोई प्रija आयी आयी, कोई तनाव आया, कुछ ऐसी अनिश्चितता आयी कि कल क्या होगा या एक बाद क्या होगा, किसी ने तलव mí लेकर आपके सिecer. कोई बंदूक की गोली लेकर खड़ा हुआ ही नहीं, आप बस बचथ बचना आप का धर्म है। इसका मतलब यह नहीं, कि आप बंदूक के सामने खडे़ हो जाये कि गुरूजी ने कहा है संघर्ष करना। मगर यदि कोई स siguez इतनी ताकत आप में होनी चाहिये और वह ताकत तब आ सकती है जब आप में आत्मबल हो, यदि आत्मबल नहीं है तो आप जीवन में सफलता प्राप्त नहीं कर सकते और ज्यों ही कोई गोली चली, आप मर जायेंगे और यदि आत्मबल है तो आप खड़े होकर उस पर आप सपफ़लता प्राप्त कर सकेंगे।
कोई व्यकorar गये फ़ांसी पर चढ़ गये, गोलिया खा गये। आपके कहने से एक व्यक्ति भी गोली नहीं खायेगा, आपके कहने एक एक व्यक्ति भी संघर्ष नहीं करेगा। आपके कहने से एक व्यक्ति भी कॉलेज छोड़कर सड़क पर नहीं उतरेगा आपके कहने एक एक व्यक्ति भी अपने परिवार को छोड़कर जेल मे नहीं जायेगा। ¿Está bien? यह तो अभी की घटना है पचास, साठ साल पहले डिफरेंस यह है कि आप में आत्मबल नहीं है। उस व्यक्ति में आत्मबल था कि मैं ऐसा कर के छोडूंगा और आप में आत्मबल नहीं है तो आप सोचते है होग होगा या नहीं होगा। आप बस कहते है चलो, कोशिश कर लेते हैं यही से आपक आपक भय स्टारorar
आपने सैनिको को देखा। आenas वाले क्या करते है कि आर्मी ऑफिसर एक दिन में उनको एक हजार बार एक लाइन बुलवाते हैं।।।।।।।।।।।। 'जो डर marca सो मर marca फिर सोते है तो भी यही कहते हैं- जो डरा सो मरा। पूरे दिन भर में एक सैनिक को एक हजार बार बुलवाते हैं वो एक दूसरे से मिलते है है बात करते हैं तो नमस्ते नही करते, वो कहते हैं- जो डatar. दूसरा भी यही कहता है। यदि आप आर्मी फिल्ड में जाये तो वह mí. वहाँ केवल यही लाइन लिखी होती है। यह क्या चीज है? ऐसाक्यों करते हैं भय निकालने की कोशिश कर रहे हैं। ऐसी कोशिश करते हैं इसलिये वह उन हथगोलों और बमों के बीच निû भीकत से चला जाता है मर सकता है, जिंदा भी रह सकता है।।।।।।।।।।।।।। मगर जिंद sigue. जीवन के एक छोर पर जन्म है, एक छोर पर मृत्यु है, हम दोनों के बीच में है- मर जायेंगे तो मर जाये और जिंदा ह जाये तो जिंदा riba जायेंगे।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।.
¡Adelante! तु बहुत कायर, तुम बहुत बुजदिल हो क्योंकि तुमने ऐसा ही अपने भीतर पैदा किया। तुम भयभीत हो, तुम में ताकत और निû भीकत नहीं है, तुम में क्षमता नहीं है, तुम में होसला नहीं है और मैं कहता हूँ कि तू मरण को प प्रículoत कर, तू मί पहले।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। पnas यदि तू मर भी जायेगा तो स्वर्ग मिलेगा, जो कृष्ण ने कह mí उस अर्जुन को समझाने के लिये श्री कृष्ण ने कहा- कि यदि तू जिंदा रह गया तो विजय प् Est. जीत जाओगे तो भी लाभ है मर जाओंगे तो भी लाभ है।
अर्जुन युद्ध के लिये तैयार हुआ, धनुष बाण हाथ में लिया और तीर संधान करके अपने सामने जितने भी खड़े थे उन्हें समाप्त कर के विजय प्रículoत प की।।।।।।।।।।।।।।। यहां तक कि उनके पुत्र की मृत्यु हो गई, अभिमन्यु की युद्ध में मृत्यु हो गई द्रोणendr. । क्या विशेषता थी कि वे मृत्यु को प्रagaप्त नहीं हुये और दुर्योधन, दुशासन जो थे मर गये।।।।।। ऐसा हुआ क्या था? युद्ध तो दोनों में बराबर हो रहा था, बराबरी थी में में, दोनों के गुरू एक ही।।।।।।।।।।।।।। द्रोणाचार्य पांडवों के भी गुरू थे और कौरवों के भी गुरू थे। कौरवों को भी द्रोणokच marcaacho ने शिक्षा दीक्षा दी और पांडवों को।।।।।।।।।।।।।।। लेकिन कौरवों में भय था कि हम हारेंगे, इसमें दो राय नहीं है हम हार जायेंगे क्योंकि उधर कृषutar हम कहां से हारेंगे हारने का सवाल ही नहीं है।
यह भय और अभय के बीच की स्थिति थी और वह व्यक्ति जिंदा रह सकता है जो संघर्ष कर सकता है, जोatar. को उत्पन्न करता है और फिर संघर्ष से जुझता है, वही सफलता प्रagaप्त करता है तो, असीम आनंद की अनुभूति करता है।।।।।।।।।।।।।।।।।। कोर्ट में आप केस लड़ते है तो हर बार आप भयभीत रहते है कि हारेंगे या जीतेंगे कहीं हमार marca वकील दूसरे के साथ मिल गया क्य है, पता नहीं औ आपके में में तन औ औ razón के के। कुछ कुछ कुछ होत औ औ मन में औ औenda मगर आप जब जीत जाते हैं तो आपके चेहरे की प्रसन्नता और मुस्कुuestos पहले आप भयग्रस्त थे, जीते तो भय से मुक्त हुये। इसलिये यदि जीवन में सफलता प्रagaप्त करनी है तो जूझना ही पड़ेगा, विश्वास के साथ, दृढता के साथ।
जब सन्यासी दीक्षा लेता है, एक सन्यासी, गृहस्थ नहीं, तो निर्भीकता से दीक्षा लेता है।।।।।।।। हममें से प्रत्येक व्यक्ति सन्यासी है। आप में से कोई गृहस्थ है ही नहीं क्योंकि पत्नी आपकी है नहीं, पुत्र आपका है नहीं, पति आपका है नहीं, बंधु-बांधव आपके है नहीं, मकान जायदाद है नहीं।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। अगर ये आपके होते तो आपके सत्तर साल के इतिहास में मैंने तो देखा नहीं कि पति गय mí ऐसा मैंने देखा नहीं शायद आपने भी नहीं देखा सुगा ाा इसलिये गृहस्थ व्यक्ति भी सन्यासी है औecer दोनों एक ही जगह जलते है, एक ही प्रकार की लकडि़यों से जलते हैं और एक ही जगह जाते होंगे या कब्र में उसे गाड़ देते हैं, या नदी मे प Davág seaहित कर क है य लकडि़यों में जल देते।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।
महातपस्वी ब्र sigue अब वे केवल व siguez उन्हें गतिहीन देखकर पक्षियों ने कोई वृक्ष समझ कर उनकी जटाओं में घोंसले बनाकर वही अण्डे दे वे दय दयालु महर्षि चुपचाप खड़े ही हे।।।।।।।।। पक्षियों के अण्डे बढ़े और फुटे, उनसे बच्चे निकले वे बच्चे भी बड़े हुये, उड़ने लगे।।।।।।।।।।। जब पक्षियों के बच्चे उड़ने में पूरे समû हो हो औatar उसी समय आकाशवाणी हुई-'जाजलि! तुम गर्व मत करों। काशी में रहने वाले तुलाधार वैश्य के समान तुम धार्मिक नही।।।।।। '
आकाशवाणी सुनकर जाजलि को बड़ा आश्XNUMXर्य वे उसी समय चल पडे़। काशी पहुँचकर उन्होंने देखा कि तुलाधाgres एक साधारण दुकानदार है और अपनी दुकान पर बैठकर ग्रagaहकों को तौल-सौद quede दे हे हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं दे eléctrico परन्तु जाजलि को उस समय और भी आश्चisiones
जाजलि ने पूछा-'' तुम तो एक सामान्य बनिये हो, तुम्हें इस प्रकार का ज्ञान कैसे प्र sigue. तुलाधार ने नम्रतापूर्वक कहा-'ब्राह्मण! मैं अपने वर्णोचित धर्म का सावधानी से पालन करहथ मैं न मद्य बेचता हूँ अपने ग्राहकों को मैं तौल मे कभी ठगता नहीं। ग्रagaहक बूढ़ा हो या बच्चा, भाव जानता हो या न जानता हो, मैं उसे उचित भाव में वस्तु ही देता हूँ हूँ हूँ हूँ हूँ हूँ हूँ हूँ हूँ हूँ हूँ
किसी पदार्थ में दूसरा कोई दूषित पदार्थ नहाल ग्रagaहक की कठिनाई का लाभ उठाकर मैं अनुचित लाभ भी उससे नहीं लेता हूँ। ग्राहक की सेवा करना मेरा कर्तव्य है, यह बात मैं सदा स्मरण रखतok हूँ।।।।।।। ग्रagaहकों के लाभ और उनके हित का व्यवहार ही मैं करता हूँ, यही मेरा धर्म है। '' तुलाधार ने आगे बताया- 'मैं मैं र-दر और लोभ दू दू razón हूँ हूँ।।।।।।।।।।।। ।ija- यथा-शक्ति दान करता हूँ और अतिथियों की सेवा करतूहॾ हिंसा रहित कर्म ही मुझे प्रिय है। कामना का त्याग करके सब प्रagaणियों को समान दृष्टि से देखता हूँ और सबके हित की चेष्टा करता हूँ।।।।।।।।।।।
जाजलि के पूछने पecer उन्हें समझाया कि हिंसायुक्त यज्ञ acer वैसे भी ऐसे यज्ञों में बहुत अधिक भूलों के होने की सम्भावना inar प्रagaणियों को कष्ट देने वाला मनुष्य कभी सुख तथा परलोक में नहीं नहीं प्रagaप demás कर सकता। 'अहिंसा ही उत्तम धर्म है।' जो पक्षी जाजलि की जट siguez उन्होंने भी तुलाधार के द्वाisiones तुलाधार के उपदेश से जाजलि का गर्व नष्ट
इस शरीर में ताकत नहीं है और भय के अलावा इस जीवन में कुछ है ही नहीं प्रagaagaega से ही आपके मन में है है और औ भय कृष मृत क क क क है है है है ही क क योंकि औ औ औ मृत मृत मृत मृत ण ण ण है है है है ही ही क क योंकि योंकि योंकि योंकि योंकि योंकि योंकि ण ण ण ही ही ही ही क क योंकि योंकि योंकि योंकि योंकि मृत मृत ण ण ण ण ण ण ण योंकि. ? और मदनलाल जैसे क्यों नहीं याद आ रहे जो कृष्ण के साथ पैदा हुये थे।।।।।।। इतने कौरव पैदा हुये थे आप में भी कौरव होंगे, पांडव होंगे क्योंकि आपका भी जन्म तो बराबर होता ही रहा है या तो कौरवों की सेना में होंगे या पांडवों की सेन में होंगे।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। eléctrico मगर आपका नाम किसी को याद नहीं कि द्वापर में क्या था, मगर कृष्ण का नाम याद है।।।।। इसलिये कि उन्होंने जिन्दगी के प्रagaendo. सुख नहीं मिला उन्हें पूरी जिन्दगी भर। सुख जैसी चीज उन्होंने देखी ही नहीं। पैदा होते ही कंस ने मारने की कोशिश की, वह दो महीने के थे तो पूतना ने आकर मारने की की की, थोड़े से बड़े हुये तो बकासूर आयί कंस उपक एक razón एक marca किय प पellas , क mí. मगर कहां हारे जीवन में? एक बार भी हारे नहीं, विजयी हुये और उन सारे संघर्षों का सामना करते हुये।। इसलिये कृष्ण याद आ रहे है, इसलिये मदनलाल याद नहीं आ रहok है, इसीलिये हेमराज याद नहीं आ रहा है।।।।।।
राम ने कहां सुख देखा तो मुझे बता दीजिये। एक दिन भी सुख देख • हो तो मुझे बता दीजिये पत्नी के साथ जंगल-जंगल भटके एक र के बेटे होकर भी, पिता का दा द संसguna संस नहीं सके कैकेयी के गद भ भguna पड़ भ भguna पड़¯ya पर बैठ जाये और वे षड़यंत्र उस समय भी चलते थे आज भी चलते हैं और संघर्ष के अलावा राम ने देख देखा ही नहीं, इसलिये आज आज ¢ य य आ हे।।।।।।।।।। हमारे जीवन में अगर संघर्ष नहीं है तो हम मृत्यु युक्त हैं, हममें और एक मरे हुये व्यक्ति मेंatar कर बड़ा आश्चर्य होता है कि ये कैसे मृत व्यक्ति हैं, जो सांस भी ले रहे है औág.
गाँव में एक छोटा मोटा शिकारी था जिसको कोई खास बंदूक चलाना आता नहीं था। बेटे ने एक दिन कह sigue. मैनें एक गोली मारी और एक गोली से पाँच शेर समापथसमाप्स शेर का शिकार करना कोई सीखे तो मुझसे सीखें। तो बेटे ने समझा कि बहुत बड़े बहादुर शिकारी का पुरु एक बार वो दोनों तालाब के किनारे पहुँचे घूमते घथााा वहीं ऊपर एक चील उड़ रही थी, एक कौआ उड़ रहा था। बेटे ने कहा-आपने बाघ को मार दिया तो उस कौवे को भी मार सकते है बंदूक की गोली से से से से से से से से से से से से से बाप ने कहा- यह दो मिनट का काम है। उसने बंदूक से गोली चलाई कौआ उड़ गया। बेटे ने कहा-कौआ तो मरा नहीं। बाप ने कहा- यही तो विशेषता है कि गोली लगने के ब sigue. आप देखिये लगी उसको, फिर भी उड़ता रहा। यह मंत्र-तंत्र है तुम नहीं समझ पाओगे। यह साधना है।
यह अपने बेटे को भूल में डालने के लिये झूठी प्ररक्௯ उसको भयभीत करने की प्रक्रिया थी। उसको और गुमराह करने की प्रक्रिया थी। वह खुद तो गुमराह था ही, बेटे को भी गुमराह कर दिया और हम जीवन में यही करते हैं, खुद गुमराह होते है और दूसरों को भी गुमatar क क है।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। इसके अलावा आप कुछ करते नहीं यह समझ प्राण के भीतर तक नहीं उतर सकती। यह समझ आपके पूरे व्यक्तित्व की समझ नहीं है आत्मिक नहीं है। इसलिये ऊपर से समझ में आता हुआ लगेगा और जब तक यहां बैठ कर सुन रहे हैं, तब तक ऐसा लगेगा, बिल्कुल समझ आ गय गया। फिर यहां से हटेंगे और XNUMXमझ खोनी शुरू क्योंकि जो समझ में आ गया है, जब तक वह आपके खून, मांस, मज्जा में सम्मिलित न ज जाए, तब वह वहatar
फिर, जो समझ में आ गय mí जैसे ही यहां से हटेंगे, वह भीतर की सब समझ इस नई समझ के साथ संघर्ष शुरू कर देगी। वह इसे तोड़ने की, हटाने की कोशिश करेगी। इस नये विचार को भीतर प्रवेश करने में पुराने विचार बाधा देंगे, अस्तव्यस्त कर देंगे हजार शंकाये, संदेह उठaños एक ही उपाय है कि जो बुद्धि की समझ में आया है, उसे प्रagaणों की ऊर्जा में रूपांतरित कर लिया जाये, उसके सanzas हम उसे साधे भी वह केवल विचार न रह जाये, वह गहरे में आचार भी बन जाये हमाisiones तो ही धीरे-धीरे ऊपर गया है, वह गहरे में उतरेगा और साधा हुआ सत्य फिर आपके पुराने विचार उसे तोड़ सकेंगे सकेंगे।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। फिर वे उसे हटा भी न सकेंगे बल्कि उसकी मौजूदगी के कारण पुराने विचार धीरे-धीरे स्वयं हट जायेंगे और तिलोहित ज जायेंगे।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।.
एक व्यक्ति के घर में ही हीरे की अंगूठी खो गई, बहुत तलाश किया नहीं मिली, तो यह बात उसने अपने स्र को बताई, मित्र घर पर आया, उसनेा देखर एक बहुत हैं हैं razón चूहों azul. इकठ्ठा किया, एक चूहाँ उन सभी चूहों से अलग बैठा रहा, घर का मालिक यह सब देख omin "था, मित्र ने कहा कि आपकी हीरे की अंगूठी इस अलग बैठे चूहे के पेट।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। मालिक ने मित मित uto से पूछ mí कि तुम ender कैसे मालूम तो तोtherv " सरोकार नहीं रहता।
लोग बड़े पदों की तलाश करते हैं। क्योंकि बड़ा पद शिखर की भांति है। जैसे पिरामिड होता है नीचे बहुत चौड़ा और ऊपर संकरा होता चला जाता है। ¡Adelante! इसलिए हर एक कोशिश कर omin "है पि पिर gaste जहाँ वह बिल्कुल अकेला होगा, सबके कंधो पर होगा और उसके कंधों पर कोई नहीं।।।।।।।। पद की खोज अगर बहुत गहरे में देखों, तो अहंकार की खोज कर रहok है, कैसे मैं अकेला हो जाऊँ, कैसे मैं किसी पर निर्भर न हुँ हुँ मुझ प सब निरículos हो हो।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।. मैं किसी पर नि¢ न न रहुँ, तभी तो मैं कह सकूंगा, मैं हूँ अप्रतिम, अद्वितीय और सबसे ऊपर और मेरे ऊपर कोई और नहीं।।।।।।।।।
भगवान बुद्ध के जीवन में भी ऐसा हुआ, एक समय आय mí कहा गया। गौतम बुद्ध जब जल, अन्न क mí भूख-प्यास से उनका शरीर पीला पड़ता जा रहा था, उनकी ऐसी स्थिति देख एक सुज सुज raz नija की की्तorar दुर्बल हो रहें, ऐसे तो आप परम लोक चले जायेंगे, पर ज्ञान की प्रagaप्ति ना हो पायेगी। लेकिन बुद्ध ध्यानरत ही रहे, उसी समय एक बंजारा गीत गाता हुआ वहीं से निकल रहा था। गीत का आशय था- वीण mí यह स्वर, यह गीत बुद्ध को चुभ गया।
एक गीत ने सिद्धार्थ गौतम की विचार धारा बदल डाली कि कष्ट साध्य जप, तप से ईश्वर की, ज्ञान की प्राप्ति नहीं हो सकती, और उन्होंने फिर वह खीर खाई और कहा कि संसार में रहते हुये मध्यम मार्ग से तप करना ही श्रेष्ठ है, नहीं तो जीवन का त marca टूट जायेगा और अगर तार टूट गया, तो वीणा eccion शरीर का कोई अस्तित्व ही ना बचेगा, वीणा का अस्तित तब तक है जब त त बन बन हुआ।।। कί favor. जीवन का सत्य भी यही है कि आपके वीण mí । इसलिए बुद्धिमान, वह है, जो समय के पहले समझ तुम उस डाल की भ siguez और जब कोई बुद्ध तुमसे कहे कि तुम मर ही चुके हो, तब जल्दी मत करना इन्क♣: सांस चलने से जीवन का कोई अनिवार्य सम्बन्ध नहहू ॥हई सांस चलती रह सकती है।
ऐसा बहुत बार आपको समझ में आ चुका है न मालूम कितनी बार आप सत्य के करीब-करीब पहुँच कर वापस हो गये है न मालूम कितनी बार द्वार खटखटाकर भर था, कि आप आगे हट गये हैं और दीवार हाथ में आ गई है। भूल यहीं हो जाती है कि जो हमारी समझ में आत mí अगर आपको कोई गाली दे, तो आप तत्काल क्रोध करते है और आपको कोई समझ दे, तो आप तत्काल ध्यान नहीं कर सकते।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। कुछ बुû करना हो तो हम तत्काल करते है, कुछ भला करना हो तो हम सोच-विचार करते हैं।।।।।।।।। ये दोनों मन की बड़ी गहरी तरकीबें हैं क्योंकि जो भी करना हो, उसे तत्काल करना चाहिये क्रोध करना हो ध ध्यान करना हो इससे कोईर्क नहीं।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।. बुरा हम करना चाहते हैं इसलिये हम तत्काल करते है, एक क्षण रूकते नहीं क्योंकि रूके तो पिफ़र न कर पायेंगे।
मानव मन हमेशा संकल्पों विकल्पों से घिरा ominó जब हम किसी साधना में प्रवृत् होते है। तो हमें प्रारम्भ में काफी उत्साह एवं श्रद्धा र। परन्तु जब साधना धीरे-धीरे अपने मध्य चरण में प्रवेश करती है तभी हमाisiones मन अधीर हो जguna त है तथ हम इस ब प कि समझ बैठते बैठते बैठते हैं हैं हैं यें यें यें यें यें यें यें यें यें यें यें यें यें यें यें यें यें मिल मिल मिल मिल मिल मिल मिल मिल मिल मिल मिल मिल मिल मिल मिल मिल मिल मिल मिल मिल मिल मिल मिल मिल मिल मिल मिल मिल मिल मिल मिल मिल मिल मिल मिल मिल मिल मिल मिल मिल मिल मिल मिल मिल मिल मिल मिल मिल मिल मिल मिल मिल. में हमे सिद्धि नहीं प्राप्त होगी।
इसक Dav Estada पाता है। व sigue. प् Est. लेकिन आलस्य तथा स्वाisiones मन से भयभीत व्यक्ति की सभी शक्तियाँ कमजोर बन जीजथा मन को शक्तिशाली, संस्कारी, संवेदनशील बनाना चाहिये, मन जितना सुन्दर निर्मित होगा, जीवन उतन mí मन को श्रेष्ठ कार्यो में एकाग्रचित करने पर ही जीवन में श्रेष demás आती।।।।।।।।।।।।।।
एक पुजारी जो कि पुजा बहुत अच्छे से किया करता था उसका भगवान पर बहुत विश्वास था। उसे यही लगता था कि अगर भगवान चाहे तो बहुत कुछ हो सकता है उसका जीवन भी धन्य हो सकता है।।।।।।।। मगर ऐसा कुछ भी होता हुआ नजर नहीं आ रहा था क्योंकि उसके में में परेशानी कम नहीं हो रही थी बल्कि बढ़ती ही जा ही थी।।।।।।।। थी थी थी थी थी थी थी थी थी थी थी थी वह जीवन में अनेक परेशानियों का सामना कर रहा था। उसके घर में भी बहुत अधिक परेशानी थी और बाहर भी ऐसा ही चल रहok था। वो मन्दिर में जाता है भगवान से प्रार्थना करता है मेरी समस्या बढ़ती जा रही है वो कम नहीं हो रही है घर में पत्नि भी इस बात को लेकर परेशान है वह हमेशा ही यह बात कहती है कि हमारा जीवन कब तक ऐसा ही चलेगा कब तक हम मुसीबत क mí मुझे नहीं लगता है कि जीवन अच्छा होने वाला है तभी आदमी आदमी मन्दिuestos उसके बाद पूजारी के पास आता है और कहता है कि मैं भी भगव mí कैसे सुन सकते है।
आप तो मन्दिर में हमेशा ही रहते है भगवान आपकी बात सुनते है मगर वो आपकी समसgon. हानी कुछ समय बाद ही मिलता है। क्योंकि जब तक हमारे जीवन में खुशी नहीं आती है तब तक का समय तो हमे ऐसे ही बिताना होगा हमे इन्तजार करना होगा जब तक भगवान हमसे खुश नहीं हो जाते है तब तक हम कुछ नहीं कर सकते है हमे कुछ समय बाद ही फल मिलेगा आपको भगवान से प्रagaacho थन करनी होगी शायद वो आपसे जल्दी खुश हो जाये और आपकी मनोकाdos कुछ समय बाद पूजारी के पास एक आदमी आता है और कहता है आपको एक और काम दिया जाता है आपको इस मन्दिर के साथ दूसरे मन्दिर में भी जाना होगा जिससे आपकी समस्या भी दूर हो जायेगी वो पूजारी कहता है कि आप चिन्ता न करे मैं सभी काम देख सकता हूँ। धीरे-धीरे पूजारी की समस्या भी कम हो जाती है कुछ समय बाद वो भी भी आता है जिसने पूजा rodárd. इसलिये आप भी अपने गुरू और इष्ट पर विश्वास रखे।
अपने मन को समसutar समस्त आधutar.
अतः प्रकृति के सभी चक चक्रो-उपत p. गुरू मनुष्य रूप में वस्तुत सच्चिदानन्द धनरूपी परम flavor उसी के माध्यम से हमें अनन्त का विस्तार दिखाई गुरू के बिना अनुभवों में समग्रता नहीं साधना एक प्रकok से शरीर रूपी मकान में वायरिंग के समान है उसका स्विच आन करने का काम गुरू ही करता
परन्तु अधिकांशतः होता यह है कि जब हम एक साधना में सिद्धि नहीं प्राप्त कर पाते है तो उसे छोड़ कर यह सोचते है कि दूसरी साधना में हमे शीघ्रता से सफलता मिल जायेगी, ऐसा सोच कर हम डाल-डाल दौड़ते है और संशयात्मक प्रवृति तथा नास्तिकता के भाव की वृद्धि होती है। ऐसी स्थिति इसलिये आती है क्योंकि हम व✓ में में अपने गुरू को समझ ही नहीं पाते उसके स्वरूप को पहचान ही नहीं पाते और भ्रम जाल में फंसे हैं।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।
जब हमारे समक्ष ऐसी स्थिति उत्पन्न हो तो हमे ततutar. गुरू से जुड़े रहने से ही घर-परिव marca और संसार से जुड़े रहते हैं।।।। इष्ट या गुरू से नाता तोड़ने से जीवन की हर कुस्थिति की ओर अग्रसर हो जाते हैं।।।।।।।
हम अपने सद्गुरूदेव जी को अन्य भौतिक वस्तुओं के शब्द चित्र अथवा eccional उनकी किसी सांसारिक पदार्थ से उपमा भी नहीं दी हथसा सै उपमा भी समान धर्मा वस्तु से ही हो सकती यदि ऐसे ब् Est. अतः यह अवसर है कि आप अपने गुरू को पहचानिये एवं ऐसे स्वर्णिम जीवन को खोने न।।।।।।।।।।।।।।
यही बात समझ siguez परन्तु उन्हें समझ नहीं आय mí उत्तर मिला किनारे बैठकर चाटने का, बीच में कूदने पर जीवन ही समाप्त हो जायेगा। साथियों ने शिष्यों की बात को सराहा परन्तु गुरू मुस्कराये और बोले अरे मुर्ख ''जिसके स्पर्श से तू अमरता की बाते करता है उसके बीच में कूद कर भला मृत्यु कैसे?'' इससे स्पष्ट होता है कि जब साक्षात ब्रह्मा ही गुरू स्वरूप हमारे सामने है तो फिर हम क्यों किसी छोटी-छोटी सिद्धियों के पीछे भ्रमित हुये भटकते रहे। हमें तो उस गुरू के चरणों में अपने को पूर्ण रूपेण न hublo तथा आत्मा और मन के भाव से गुरू को धारण करने के अतिरिक्त और कोई रास्ता नहीं क्योंकि- कारज धीरे होत है काहें होत अधीर यह समर्पण एवं गुरू की इच्छा में अपनी हर इच्छा का विसर्जन जैसे-जैसे प्रगाढ़ होता चला जाता है, साधना उच्चतर आयामों पर पहुँचने लगती है, यह समस्त प्रक demás धीरे-धीरे एवं पूर्ण मनोयोग से ही संभव।।।।।।।।।।।।। प्रत्येक गुरू सर्वप्रथम अपने शिष्यों के समस्त बुराईयों एवं पापों को समाप्त करके उसे योग्य पात्ί है है।।।।। ताकि उनकी दी हुई ज्ञान कहीं व्यर्थ न हो जाये इसके लिये हमें एक मात्र दृढ़ निश्चय करके गुरू चरणों में लीन होने की आवश आवश्यकता है न किर-उधç भटकने की की की की की की की की की की की की की भटकने भटकने भटकने भटकने भटकने भटकने भटकने भटकने भटकने भटकने भटकने भटकने भटकने भटकने भटकने भटकने भटकने भटकने भटकने भटकने भटकने भटकने भटकने भटकने भटकने भटकने भटकने भटकने भटकने भटकने भटकने भटकने भटकने भटकने भटकने भटकने भटकने भटकने भटकने भटकने भटकने भटकने भटकने भटकने भटकने भटकने भटकने भटकने भटकने भटकने भटकने भटकने भटकने भटकने भटकने भटकने भटकने भटकने eléctrico eléctrica होने electrónico न कि कि demás
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Sr. Kailash Chandra Shrimali
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