अर्थात् युवा पुरूष नये वस्त्रों को धारण कर ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए विद्याध्ययन के पश्चात ज्ञान के प्रकाश से प्रकाशित होकर जब गृहस्थ आश्रम में प्रवेश करता है तो वह प्रसिद्धि प्राप्त करता है। वह धैर्यवान, विवेकशील, बुद्धिमान, ध्यान और ज्ञान का प्रकाश जो उसके मन होता है उसके बल पर उच्च पदों पर आसीन होता है।।।।।।।।।।।। है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है होत होत होत objetivoitaria
यह संस्कार ब्रह demás व्रत जीवन की समाप्ति की सूचना देता है। मनुष्य के जीवन में शिक्षा पूर्ण कर लेने क mí यही वह समय है जब व्यक्ति के आगामी जीवन की रूपरेखा निर्धारित होती।।।।।।।।।।।।।। इस संस्कार के साथ ब्रह्मचर्य आश्रम समाप्त हो जॾ जॾ प्रagaचीन समय इस इस संस्कार का स्वरूप कुछ इस प्रकार था- विद्याध्ययन समाप्त कर लेने पर शिषutar तब शिष्य अपने ब्रह्मचारी जीवन को समाप्त करने की आज्ञा मांगता था, गुरू दक्षिणा अर्पित करता था। गुरू से अनुमति मिलने पर स्नान सम्पन्न इसके लिये वेद मंत्रें से अभिमन्त्रित जल से भरे हुये 8 कलशों से विशेष विधिपूág. इसलिये यह संस्कार वेदनान-संस्कार भी कहलाता है॥
स्नान करके छात्र अपनी मेखला, दण्ड, उत्तरीय आदि को त्याग देता था और अंगराग, सुगन्ध, छत्र, जूते, मanzas, पगड़ी पहनत पहनतaños अब यह ब्रह्मचारी स्नातक कहलाता था। छत्र आदि सारी वस्तुये गुरू को भी अर्पित की जाथी यह सारी नवीन वेशभूष mí उस विद्वत सभा के सम्मुख प्रagaयः स्नातक अपनी ज्ञान प्रतिभा और विद्या का परिचय भी देता था। स्नातकों की तीन -
1- व्रत स्नातक- जिसने ब्रह्मचर्यव्acho
2- विद्य razuar
3- विद्या व्रत स्नातक- जिसने ब्रह्मचर्य और विद्याध्ययन दोनों में पूर्णता प्रagaप्त कर ली हो, वह वह विद्य्त सículoन कहल कहल razón
वर्तमान समय में समावर्तन संस्कार समाप्त हो गहा शिक्षा का सारा स्वरूप ही बदल गया है। अब न गुरूकुल है, न ब्रह्मचारी जीवन है और न ही वेदाध्ययन है। विश्वविद्यालयों में जो दीक्षांत समारोह (कॉन्वोकेशन) किया जाता है, उसको समावर्तन संस्कार का प्रतीक माना जा सकता है है है है है है है है है है है है सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत है है है है है है है है है है है है सम sigue. प्रagaचीन समय इस इस संस्कार द्वारículo गुरू अपने शिष्य को इंद्रियनिग्रह, दान, दया और मानव कल्याण की की शिक्षendr वे कहते थे '' उतिष्ठ, जाग्रत, प्रagaप्य वरान्निबोधक—। '' अर्थात् उठो, जागो और छुरे की धा rod lado दान पुण्य करना, व्यरorar.
Es obligatorio obtener Gurú Diksha del venerado Gurudev antes de realizar cualquier Sadhana o tomar cualquier otra Diksha. Por favor contactar Kailash Siddhashram, Jodhpur a Correo electrónico , Whatsapp, Teléfono or Enviar para obtener material de Sadhana consagrado, energizado y santificado por mantra, y orientación adicional,
Compartir vía: