जगत्जननी आद्याशक्ति, जिनके विभिन्न स्वरूप हैं, जो अपने विभिन्न स्वरूपों में भक्तो का कल्याण करते हुये चराचर जगत में विचरण करती हैं, जो मनुष्य तो क्या शिव के लिए भी शक्ति है, जिसके बिना ब्रह्मा, विष्णु, महेश भी अपूर्ण है, उस आद्याशक्ति का ध्यान न करने वाले, साधना न करने वाले दुर्भाग haba
वर्ष में चैत्र नवरात्रि को सर्वाधिक विशेष महत्व दिया जाता है, इसके कई कारण है।।।।।।।।।
1- A partir de este día comienza el año nuevo,
2- नये कालयुग का प्रारम्भ,
3- यह नवरात्रि 'सकाम्य नवरात्रि' कहलाती है।
भगवती मां जगदम्बा संसार की अधिष्ठात्री देवी है, जिनके पूजन-अर्चन से जीवन की सभी कामनाओं की पूर्ति होती है।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। नवरात्रि का पर्व विशेष रूप से मां जगदम्बा का पर्व है और इस पर्व पर सम्पन्न की गई साधनendr हमारे देश में वर्ष भर के पर्वों में की गई साधना-उपासना का महत्व होता है फिर यह तो चैत्र नवरात्रि का अवसर है जबकि वसंत ऋतु का आगमन हो चुका होता है और सारी की सारी प्रकृति हरी-भरी होकर, पुष्पों के विविध वर्णीय परिधान को पहन मानो देवी-देवताओं के स्वागत के लिए तत्पर हो हो
ऐसी लोकश्रुति है, कि चैत्र नवरात्रि के इस काल में सभी देवी-देवता पूर्ण रूप से चैतन्य रहते हैं और वे अत्यंत आह्वान के साथ इस अवधि में धरा पर विचरण करते हुये, जहां-जहां साधना-उपासना सम्पन्न हो रही होती है, वहां- वहां सूक्ष्म रूप से उपस्थित होकर न केवल उस साधना को चैतन्यता देते है वरन् उस साधक के्पूर्ण परिवाधक को ही अपन वguna तत प Davaga. इन देवताओं की कृपा को प्राप्त कर कोई भी साधक जहां एक ओर अपने जीवन की विभिन्न मनोकामनाओं की पूर्ति कर पाता है वही उसे भविष्य के लिये पूर्ण सुरक्षा-चक्र भी मिल जाता है कि वह अपनी आगामी योजनाओं को निर्विघ्नता के साथ पूरा करने में समर्थ भी हो पाता है।
इन महत्वपूर्ण दिवसों पर सारा भूमण्डल पूर्ण रूप से देवलोक-तुल्य बना रहतok है।।।।। जब अनेक देवी-देवता अपनी रश्मियों को चारों ओर विकीर्ण करने के लिये तत्पर हो जाते हैं और यही कारण है कि यदि इस अवसर पर साधक गुरू के निर्देशन में साधना में भाग लेता हुआ विशिष्ट साधनाओं से सम्बन्धित मंत्र जप को अल्प संख्या में भी सम्पन्न कर लेता है, तो उसे उसका कई गुणा अधिक फल प्राप्त हा जा जा
इस वर्ष की चैत्र नवरात्रि दिनांक 2 अप्रैल से प्रagaendo. दूसरी ओर भगवती माता जी का जन्मोत्सव का दिवस ऐसे दुर्लभ योगों से सम्पन्न नवरात्रि यदि साधक को जीवन में प्राप्त हो जाये तथा गुरू का सानिध्य भी हो, तो ऐसे साधक के सौभाग्य की तुलना ही नहीं की जा सकती, क्योंकि इसी अवसर पर वह अपने गुरू से उन स sigue " ऐसे ही अवसर को सिद्धेश्वरी नवरात्रि का दुर्लभ क्षण भी कहा गया है।।।।।
वास्तव में देखा जाये तो स्वयं गुरूदेव ऐसे पर्व की प्रतीक्षा में रहते है जब वे साधना के महत्व को, आज के युग में भी, नवरात्रि जैसे शक्ति पर्व के माध्यम से अपने शिष्यों के समक्ष स्पष्ट कर सकें। यद्यपि नवर marcauto का पर्व तो साधक अपने घर पर भी नवार्ण मंत्र का जप करते हुये्यतीत कर सकता है है किन्यक नहीं उसे प ज ज ज ज -ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज त त त त त त त त त त त त त त त.
शास्त्रोक्त प्रमाण है कि साधक अथवा शिष्य को शक्ति-प्रagaप्ति तो गुरू-चendrado में एवं एवं गुरू-कृपा के प Davidamente में से संभव हो सकती।।।।।।।।।।।। कृप va -
अर्थात् गुरू ही सिद्धि है, गुरू ही पूर्ण है और जहां गुरू का निवास है शिष्य के लिए शक्तिपीठ है।।।।।। है। है है है है।।।।।।।।। यदि ऐसे अवसर पर शिष्य, गुरू के समीप बैठ कर साधना को सम्पन्न करता है तो वह निश्चय ही सौभाग्यशाली बनने में समर्थ होता है साथ ही साधना के सम्पन्न होने पर वह पूर्ण सिद्ध बनता ही है, इसमें संदेह के लिये कोई स्थान शेष नहीं रखना चाहिये । साथ ही जहां कहीं गुरू की सूक्ष्म अथवा प्रकट उपस्थिति होती है वही स्थान सही अर्थो में तीर्थराज की संज्ञा से विभूषित किये जाने के योग्य भी हो जाता है, क्योंकि गुरू स्वयं में ज्ञान, तप व शिष्यों के प्रति करूणा के भाव की त्रिवेणी लेकर एक गतिशील तीर्थ के समान ही तो होते है।
क्योंकि गुरू स्वयं में शिव शक्ति के समन्वित रूप ही होते है। पर वे ही भगव siguez में वैसा अंकित हो या न हो।
विशेष योग को ध्यान में रखते हुये इस वर्ष भगवती माता जी के जन्मोत्सव और चैत्र नवरात्रि के सुअवसर पर भगवती जगदम्बा के त्रिगुणात्मक स्वरूप को ध्यान में रखते हुये उनके महालक्ष्मी, महाकाली, महासरस्वती स्वरूप से सम्बन्धित चैतन्यता को साधक के शरीर व जीवन में उतारने की क्रिया की जायेगी, वही अन्यान्य दुर्लभ प्रयोगों को पूर्ण मंत्रuestos
चन्द्रहासिनी भगवती नारagaयण शक्ति साधना महोत्सव में पूर्ण आनन्दोत्सव स्वरूप में माता भगवती के चेतन्य अवतरण पर्व को 07-08 अप्रेल चन्दorar.
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