कृष्ण यह श्लोक कह रहे हैं तब भीष्म हाथ जोड़ कर खडे़ हो गये और उन्होंने कहा कि ये कौरव और पर पांडव आपको नहीं समझ प प आपको मित कह कह युधिष शत शत शत शत शत शत शत शत शत शत शत शत शत शत शत शत शत शत शत शत शत शत शत शत शत शत शत शत शत शत शत शत. ने आपको मित्र कहा, द्रौपदी ने आपको सखा कहा, मगर आप इन सबसे परे हैं।।।।। आपका जो व sigue.
जो जिस ढंग से मुझे देखता है मैं उसी ढंग से उसके साथ हो जाता हूँ। यदि कोई मुझे प्रेमी के रूप में देखता है तो मैं उसक mí कोई मुझे शत्रु के रूप में देखता है तो मैं उसका शत्रु हूँ, घोर शत्रु हूँ, जो मित्र के ूप में देखत • है उसका पूû मित्र हूँ कोई सह सह के ूप में देखत है तो मैं सह सह है जो जो जो जो जो में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में. जिस रूप में मुझे भजता है, मैं उसी रूप में उसके साथ हो जाता हूँ।। तुमने मुझे मुझे देवत्व ominó अर्जुन ने मुझे सारथी के रूप में देखा है तो मैं सारथी हूँ, दुर्योधन ने मुझे शतutarorte के ूप में देख देख तो मैं मैं शत शत हूँ जैस स जो पजस पजस पजसella मैं पजस पजसella यथ पजस पजस पजसella से, जिस चिंतन से, जिस विचार से, वह मुझ से वैसी ही उपलब्धि प hubte
अगर आप कहेंगे कि गुरूजी सामान haba यदि आप विशिष्टता देख पायेंगे तो आपको कुछ नहीं मिल पायेगा। मैं तो उसी जगह खड़ा हूँ, आप किस रूप में मुझे देखते हैं वह आप पर निर्भर है औág. शत्रु रूप भी अपने आप में सही है, मित्र रूप भी सही है, प्रेम रूप भी सही। हर चीज अपनी जगह सही है। आंख की जगह आंख सही है, पैर की जगह पैर सही है आप कैसा चिन्तन करते हैं उस पर निर्भर है।।।।।।।।।। कृष्ण ने भीष्म से कहा यह महाभारत युद्ध जब मैंने प्रारम्भ कराया तो हजारों आलोचनायें हुई, मगर मैंने इसलिये करवाया क्योंकि पाप बहुत बढ़ गया था और उस समय युद्ध शुरू करवाया, जब ग्रहण काल आरम्भ हुआ, जिससे विजय पाण्डवों की ही हो।
ग्रहण काल का इतना महत्व है। मगर हम कितने विपरीत जा रहें है। ग्रहण काल में बैठ जाते हैं हाथ पर हाथ रख कर कि ग्रहण है अभी कुछ नहीं करना चाहिये। पानी भी नहीं पीना चाहिये, खाना भी नहीं खाना चाहिये, खाना पकाते नहीं।।।।।।।।।।। लोग कुछ करते नहीं और घर में बंद होकर बैठ जाते ंैंैंैंैं शब्द तो है ग्रहण य mí. हमें ज्ञान ही नहीं रहा। इसलिये नहीं ivamente कि बीज में कोई गुरू की कड़ी मिली नहीं, जो समझा सके कि यह ग्रहण है, यह त्याज्य नहीं।।।।।।।।।
राम जब युद्ध करते-करते थक गए, पसीना आ गय mí राम ने कहा कि मैं इस रावण को तो मार नहीं सकता। मैं मारता हूँ तो फिर से खड़ा हो जाता है। विश्वामित्र ने कहा तुम एक घड़ी ठहर जाओ। एक घड़ी का अर्थ है छत्तीस मिनट। एक घडी ठहर जाओ। ग्रहण क siguez छत्तीस मिनट तुम्हें ज्यों-त्यों व्यतीत करने हैं क्योंकि ग्रहण क sigue. आप विश्वामित्र संहिता को पढ़ें, राम ने राज तिलक से पहले वशिष्ठ को प्रणाम नहीं किया, विश्वामित्र को प्रणाम किया कि आपने मुझे सही समय का ज्ञान दिया और यह समझाया कि आप में बहुत उपलब्धि परक चीज है, सब कुछ प्राप्त करने की क्रिया है, छोडने की क्रिया नहीं है। वास्तव में ग्रहण काल में सब कुछ प्रagaप्त कर लेने का अद्भुत समय है, ऐसा समय जहां पराजय होती नहीं।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। मगर आप पर नि¢
अब उस समय में आप ग sigue मन में शंकायें होंगी तो आपको शंक mí.
श्री कृष्ण ने कहा कि मैं बार-बार जन्म लेना चाहता हूँ और मनुष्य जीवन लेना चाहता हूँ, गर्भ से जन्म लेना चाहता हूँ फिर नटखट बालक बनना चहता हूँ और मुस्कुराते हुए, हंसते हुए, खिलखिलाते हुए और वीरता से शत्रुओं को समाप्त करना चाहता हूँ । और मैं भी आपको ज्ञान देना चाहता हूँ। मगर इसमें बहुत परिश्रम है, एक प्रकार का जूझना हैहै आप कुनैन लेंगे नहीं, इसलिये शक्कर में घोल कर के मैं आपको कुनैन देने का प्रयास कर ा हूँ।।।।।।।।। मगर दूंगा जरूर जिससे कि आप सफलता प्राप्त कर लें् आदमी का अर्थ समाप्त होने की क्रिया है। जब पैदा होता है तो पैद mí किसी की उम्र म siguez जीवन की ओर नहीं सरक पाया और एक दिन ऐसा आयेगा कि वह मर जायेगा और एक ऐस ऐसा भी आयेगा कि लोग उसे भूल जायेंगे और भूलने लिये आपक पैद हुये शिष है है शिषellas बनना भी बेकार और मैं भी बेकार फिर। इसलिये कुछ ऐसा करें कि लोग याद रखें, आने वाली पीढि़यां य sigue. मनुष्य हो पर ऐसे मनुष्य हो जिसमें पौरूष हो, ताकत हो, जोश हो, जिसमें हिम्मत और साहस हो।।।।।।।।।
आपने पढ़ा होगा या सुना होगा कि राजस्थान में खाटू स्थान है।।।। वहां श्याम कृष्ण की मूर्ति है वहां पर हर वर्ष 2 लाख लोग एकत्र होते।।।।।।।।।।।।।।। मगर वहां कृष्ण की मूर्ति है ही नहीं। वह बब्रुवाहन की मूर्ति है। भीम का पुत्र घटोत्कच, घटोत्कच का पुत्र बब्रुवाहन या बरबरीक। कृष्ण जानते थे कि बब्रुवाहन जैसा वीर संसार में है ही नहीं, अर्जुन तो इसके सामने तिनके त तरह है। उड़ जायेगा एक क्षण में और मुझे अर्जुन को विजय लॿाा ¿Está bien? ¿? तुम वीर हो भी? उसने कहा- मैं अभी आपको प्रमाण दे देता हूँ।
उसने तीर उठाया और पीपल के बिखरे हुये पत्ते इथऀके एक तीर से इक्कीस पत्तों को छेद दिया औecer बब्रुवाहन ने कहा- श्री कृष्ण अपना पैर हटा लीजिये वरना पैर भी जायेगा। उसने इतने उड़ते हुये पत्ते को एक तीर से छेद दिया
कृष्ण ने सोचा- प siguez संभव ही नहीं है क्योंकि यह कौरवों की तरफ है। कृष्ण ने कहा या तो तुम शत्रु बन जाओ या एक वरदान दो दोनों में से एक काम कर लो। - आप चाहें तो मैं सबको अकेल mí आप वरदान मांग लीजिये। जो आप मांगेंगे वह मैं आपको दूंगा। कृष्ण ने कहा मुझे तुम्हारा सिर चाहिये। बब्रुवाहन ने कहा इतनी सी बात है। मैं सिर दे देता हूँ, मगर मैं यह चाdos बस इतना ही आपसे चाहता हूँ।
उसने अपना सिर काट करके कृष्ण के हाथ में दे दिया और कृष्ण ने कहा तुम मेरा ही रूप बन करके इस संसार में पूजे जाओगे।।।। ज ज ज ज ज ज ज ज ज जacho. राजस्थान में खाटु एक जगह है। वहां पर कृष्ण की मूर्ति है और वास्तव में वह बब्रुवendr यह वीरता का सर्वोच्च उदाहरण है। मनुष्य अपने आप में इतना वीर बन सकत mí फिर वह वृद्ध बनता ही नहीं। वह वास्तविक पौरूष है और अस्सी साल की उम्र में भी एक पौरूषता आ है है, ताकत आ सकती है, क्षमता आ है औ और वह सकत सकत है है हम पु पु से मह मह razón. देवत्व बनने की क्रिया इतनी आसान नहीं है। Ver más जब हमारे शरीर के अन्दर जो अणु हैं, जब उन अणुओं को परिवर्तित किया जायेगा तब देवत्व स्थापन हो पायेगा और जब देवत देवत्व स्थापन होगा तो तो स हो पija।।।।। मनुष्य यों साधना कर ही नहीं सकता, क्योंकि उसक mí इतने उच्च योगी नहीं है और योगियों के मन भी शांत नहीं है, योगी होने के बावजूद भी यह कोई जरूरी नहीं मन मन शांत रहे ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही भृतहरि ने कहा है घास-फूस, पत्ते, हवा और पानी पीकर के भी वशिष्ठ, विश्वामित्र, अत्रि, गर्ग बैठें हैं उनका मन भी चंचल रहता है तो गुरूदेव मेरा मन स्थिर कैसे हो पायेगा और आप कह रहें है कि अपना मन स्थिर करो। मैं यह कैसे करूंगा? उनके ही मन स्थिर नहीं हो पा रहें हैं जो घास फूा खे मैं तो अन्न खाता हूँ, दूध पीता हूँ, घी खाता हूँ, तो मेरा मन शांत कैसे होगा?
कणाद ने अणु की पूरी व्याख्या की है। कणाद ने और कुछ लिखा ही नहीं। उन्होंने कहा कि व्यक्ति देवत्व तब स्थापन कर सकता है जब उसके अणु परिवर्तित होंगे और हमारे अणु अगर राक्षसमय ज्यादा हैं तो हम राक्षस वृत्ति के होंगे। हम राक्षस वृत्ति के हैं, हमें करना पड़ेगा। हम केवल आलोचना करते हैं, ग sigue " राक्षस वृत्ति अधिक है, देवत्व वृत्ति बहुत कम है, आती है, और मिट जाती है।।।।।।।। स्थायी देवत्व वृत्ति तब बन पायेगी जब हमारे अणुओं में पenas होग होगा।
यदि आपके अंदर हृदय या नई किड़नी लग mí ए ग्रुप है या बी ग्रुप है वह तो देखा ही जायेगा। उसके बाद मांस पिण्ड देख mí अणुमिलेंगे तो वह हृदय समाहित हो पायेगी। इसके लिये अणु तक पहुँचना पड़ेगा। Ver más आपके अणुओं तक पहुँचने की क्रिया जो देगा तो आपको राक्षस भी बनाया जा सकता है और आपको देवता भी बनाया जा सकता है, पुरूष, महापुरूष और देवता इसलिये हैं कि हम वो सारे नक्षत्र देख लें, वे सारे ग्रह देख लें, सारा ब्रह्माण्ड देख लें इस मनुष्य शरीर में रहते हुये कि चंद्र लोक क्या है, शुक्र लोक क्या है, अगर ये सब देखे ही नहीं तो फिर मनुष्य शरीर धί ही्यों किय किय औ फ uto यद भीguna य।।।।।।।।.
धनवान कैसे बन सकते हैं हैं, करोड़पति कैसे बन सकते हैं हैं, योग्य संतान कैसे पैदा कर सकते हैं, वह सब कgon. देवताओं के यहां देवता पैदा हो सकते हैं। राक्षसों के यहां राक्षस ही पैदा होंगे।
ये सारी जो क्रियायें हैं वे मंत्रें के अधीन हैं॥ मंत्र का अर्थ है, मैं बोलूं और आपके कानों में उइ।र मैं बोलूं और उसका प्रभाव हो। मैं अगर आपको म siguez ज्योंही मैं गाली दूंगा आप एकदम क्रो धित मैंने तो आपको हाथ भी नहीं लगाया। मगर शब्द द्वार marca ¿Está bien? शब्द थे! मैंने शब्द बोला, वह आपके अंदर उतरा और उसका प्रवाा अगर आपको शब्द द्वाisiones अगर मैं खुद क्रोधमय बनूंगा तो आपको क्रोधमय बना ाा ाा ¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿
आपके और मेरे बीच में शब्द हैं और शब्दों ने आपको क्रोध दिलाया है। शब्द ही मिलकर के मंत्र बनते हैं गाली एक मंत्र है, जिसने आपको क्रोध दिला दिया। एक मंत्र ऐसा भी है जो आपको देवता बना सकता है, शब्दों का जो योग है वह मंत्र कहलाता है।।।।।।।।।। वह चाहे अच्छा है, चाहे बुरा है।
जब तक हम देवता बनेंगे नहीं नहीं, तब तक साधनाधन में सफलत mí ब sigue. यह होता नहीं है इसीलिये तो जैसे आप स siguez
इसमें आपका दोष है ही नहीं। इसलिये नहीं कि आप उस स्थिति में मेरे सामने आकर खड़े हुए ही नहीं। साधना करते-क debe अब मैं इसे डॉक्ट्रेट करा सकता हूँ। पहली क्लास वाले को तो डॉक्ट्रेट करा भी नहीं सकता था इतने घिसते-घिसते पांच साल, दस साल गुरू को विश्वास होत है अब वह वह अणु पecer. फिर वह संसार को दिखा सकता है कि ये उसके शिष्य हैं जिन पर उसको गû है।।।।।।।। आपकी जो भी इच्छा होगी वह पूरी होगी ही, आप जो भी चाहेंगे वह होगा ही। देवता जो भी चाहता है वह प्राप्त हो जाता क्योंकि कल्पवृक्ष अपने आप में देवतामय है।
सब भोग आपके जीवन में होन होनguna, यौवन, सौंदर्य, स्वास्थ्य, पौरूष, क्षमता और जीवन के सारे भोग विलास मैं चाहता हूँ आपको।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। मैं ऐसा गुरू नहीं हूँ कि यह सब आपको मिलना नहीं चाहिये, आप मेरी सेवा करते रहिये। आप मेरी सेवा मत करिये। मेरे हाथ हैं दो और एक हजार हाथ हैं जिनके माधutar कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत उठाया तो अपने साथियों को कहना पड़ा कि अपनी-अपनी लाठियां टेकिये जरा, पर्वत बहुत भारी है है है है है है है है है है वे बेचारे ग्वाले लाठी टेककर पर्वत को कैसे उठायेंगे, मगर फिर भी कृष्ण ने उनको श्रेय दिया। मैं भी श्रेय दे रहा हूँ आप मेरी सेवा करें। ¿Está bien?
राम खुद सीता को ढूंढ कर ले आते, लेकिन उन वानरों को श्रेय देना था सुग्रीव को, नील, हनुमान को।।।।।। को को को को को को को को हम कहते हैं कि हनुम siguez आप भी खुश हो रहें है कि मैंने गुरूजी का कार्य ताि९ हो सकता है आप अभी जुड़े हों, पांच दस साल पहले, आप नहीं थे बीस साल पहले कौन काम करता था? क्योंकि आप मेरे हैं इसलिये आपको सेवा का अवसर मैं दे रहok हूँ, बाकी आपसे मुझे कुछ नहीं चाहिये। मैं तो केवल इतना चाहता हूँ, कि आप देवत्व देवत्वमय बनेंगे तो आगे के जीवन क mí चौथी चीज कोई है ही नहीं। जिस प्रेमिका को हम बिना देखे एक पल ¢ ह नहीं सकते कि तुम्हारे बिना जीवन अधूरा है, मै मर जाऊंगा और वह मर जाये तो आप एक क क देखन gaste नहीं च।।।।।।।।।। आप ही कहोगे- जलाओ इसको जल्दी से।
क्या हो गया आपको? एक मिनट पहले तो आप रह नहीं पाते थे उसके बिना और अब एक मिनट बाद जलाने की क्रिया शुरू कर दी आपने।। इसलिये कि आप अणुओं से नहीं जुड़े हुए थे, शरीर से जुड़े हुये थे। सुन्दर शरीर था इसलिये जुड़े हुये थे। शenas और अणु में यह अंतर है और अणु परिवर्तित होंगे तो आप देवता बन पायेंगे। देवता बनेंगे तो आप उनके समकक्ष बन पायेंगे जो कृष्ण हैं, जो इंद्र हैं, जो हैं हैं, जो कुबेर हैं, जो ¢ ूद ूद हैं, जो शिव, जो विष विष हैं जो ब ब ब uto म हैं उनके प खडे खडे।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। फिर आप जहां चाहें वहां जन्म ले सकेंगे। अगर चाहेंगे तो ही जन्म ले सकेंगे जिस गर्भ में चाहें उस गर्भ से जन्म ले।।।।।।।।। ब्रह्माण्ड के जिस लोक में जाना चाहें, जा सकेंगेेेे
या तो कृष्ण अर्जुन को समझायें कि समझ लो लो, मैं देवता, मैं महापुरूष हूँ और या फिर अपना विराट रूप दिखायें। तीसरी कोई स्थिति थी ही नहीं कृष्ण के पास। समझाते-समझाते थक गये तो उन्होंने अपना विराट ominó
तब ज sigue. अब मैं आपको मंत्र दूं तो आप मंत्र जप कर नहीं पगाथ॥ करेंगे भी तो शरीर से करेंगे। कभी करेंगे, कभी नहीं करेंगे कभी आप खाना खा कर करेंगे, कभी आलस्य में करेंगे, कभी आप सफर में और आप नहीं क rod "।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।. नहीं कर प siguez मैं यह सutar
यह साधना के द्वारा भी हो सकता है, पूर्ण अणु परिवर्तित देवत्व सिद्धि और यह दीक्षा के माध्यम से भी हो सकता है। दीक्षा देन sigue. पुत्र पैदा करना बहुत कठिन है क्योंकि मां के पूरे शरीर के खून को निचोड़ कर वह पी लेता है।।।।।।।।।।।। जो कुछ खाती है माँ, उसका पूरा रस बच्चे के पेट में ही जाता है।।।।।। मां के शरीर में ताकत धीरे-धीरे कम होती रहती है, वह अशक्त होती रहती है, उठ नहीं पाती है, चल नहीं पाती है।।।।।।।।।। क्या हो गया उसको?
स sigue, स वह वह बच्चा, ले लेता है और यदि मैं दीक्षा दूंगा तो मेरा सार marca तत्व तो ले लेंगे।।।।।।।।।।।।।।।।।।। इसलिये गुरू सहज ही ही दीक ender देते ही नहीं नहीं नहीं— और दीक p. ष मिल ज जija यदि कोई सद ° सद। ऐसी दीक दीक दीक दीक दीक दीक दीक दीक दीक दीक दीक दीक दीक जो भी पुरूष हैं वे पुरूष तभी पूर्णता प्रagaप्त करते हैं उनमें एक एक स्त्रीत्व आता है, नारीत्व आता है।।।।।।।।।।।।।।। कभी अपने आप को गुरorar पौरूषता में जब तक एक नारी सुलभ कोमलता नहीं आ पायेगी तब तक सर्वागीण विकास भी नहीं हो पायेगा। जीवन केवल पुरूष से नहीं बन सकता, जीवन केवल स्त्री से भी नहीं बन सकता। भगवान शिव अपने आप में अर्द्धनारीश्वर कहलाये। आधा शरीर नारी का था, आधा शरीर पुरूष का था। कृष्ण को भी अर्द्धनटराज कहा गया, आधा एकदम लक्ष्मी स्वरूप था और आधा नाisiones
ऐसा क्यों कहा गया? ¿? ¿Está bien? ¿Está bien?
हृदय का जो रस प्रवाह होता है वह दोनों की संयुक्तता होता है अगर मैं नाisiones एक नारी पुरूषत्व को मनन करके, कृष्ण में अपने आप को लीन करती हुई भजन सुनेगी तो उसमें एक अंतर आता है।।।।।।।।।। जीवन खाली पुरूष बनने से नहीं चलता, जहां पुरूष बनना होता है वहां पुरूष ही बनना पड़ता है और जहां नारी आवश्यकता है न न न हीा पड़ता है औ औ razón सारे भक्त कवियों ने, ऋषियों ने, योगियों ने, मुनियों ने, नारी बन कág. एकाकार होने के लिये दोनों का सम्मिलन होना आवश्यक है और इनके सम्मिलन को योग कहते।।।।।।।।।।।।।। जहां योग शब्द आया है तो उसका अर्थ है दोनों का सथड़ हम अपने आप में स्त्रीत्व की भावना को भी सम्मितथकइ हमारी आंख से भी लज्जा, मुस्कुराहट, आकर्षण, सम्मोहन आये और हम में ताकत और क्षमता भी आये।।।।।।।।।।।।।।
ऐसा होगा तो ही जीवन में आनन्द होगा, एक मस्ती होगी मस्ती आपके अन्दर से ही प्ág. बाहर से तो दुःख आयेगा, वेदना आयेगी, तकलीफ आयेगी। चाहे आपका बेटा हो, चाहे पति हो, चाहे पत्नी हो, वहां से आपको प demás आ आ नहीं।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। आयेगी तो केवल आपके भीतर से आयेगी। आप अपने मन को आलोडि़त-विलोडि़त करेंगे तभी जीवन में एक आनन्द, एक उल्लास, उमंग, जोश औág. मन के अन्दर से वह चिंगारी फूटे इसलिये भजन गाये जाते हैं, सुने जाते हैं।।।।।। यदि कबीर को सुनें तो उसने कहा- मैं राम की बहुरिथय चैतन्य मह sigue.
¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿ और नारी कोई इतनी कमजोर होती तो फिर बगलामुखी नहीं बनती, महाकाली नहीं बनती।।।।।।।। उनका भी हमारे जीवन में एक बड़ा रोल है। प्रत्येक व्यक्ति को बिगाड़ने में और प्रत्येक व्यक्ति को ऊंचा उठाने में एक नाnas उसका सत्यानाश भी कर सकती है, तो नारी कर सकती है, और उसका निर्माण भी कर सकती है तो नारी कर सकती।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। महाभारत युद्ध हुआ तो केवल एक द्रौपदी की वजह सु ह द्रौपदी ने कहा-तुम अन्धे हो, अन्धो के अन्धे ही पैदा होते हैं।
उस एक व sigue. एक सीता के कारण पूरी रामायण बन गई, राम-रावण युद्ध हो गया और पूरा रावण कुल समाप्त होगा तभी पूर्णता आ सकेगी। यह तभी होगा जब अणु परिवर्तन होंगे। तभी आप आनन्द और सुख की अनुभूति कर पायेंगे। और अभी आपके जीवन में आनन्द औecer र sigueal
कृष्ण ने कहा- राधा! पहली बार नहीं जुडी हो। इससे पहले चालीस जीवन तुम्हारे मेरे साथ बीत चुके तुम चाहो भी तो नहीं टूट सकोगी। ये तो चार दिन कुछ कहेंगे, चार दिन प्रशंसा कर लगेे। समाज क्या कर लेगा? औरसमाज ने किया क्या? क्या बदनामी की? ¿Está bien? ¿Está bien?
समाज कभी आपको ऊँचा नहीं उठने देगा, समाज बंधन को कहते हैं, समाज मन को घायल करने की अवस demás को कहते हैं।।।।।।।।।।।। समाज पग-पग की रूकावटों को कहते है। इसका मतलब यह नहीं कि आप निर्लज्ज हो जायें, मगर इसका मतलब यह भी नहीं कि आप भयभीत हो जायें। जो कुछ करें बिल्कुल स्पष्ट व्यक्तित्व
बह sigueदु बनें तो त त mí के के स raz प्achoandouto करें और क्षमत efte, यह ताकत साधनाओं औuestos औ sig दीक्ष efओं के म मguna से से ही आ प प प प प प प प प प प प. और जो दीक्षायें मैं दे रहok हूँ यह परम्परículo आज की नहीं है, यह परम्परículo पिछले पच्चीस हजार, पचास हजार वर्षों की है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है eléctrico eléctrica आप इसको समझ नहीं प sigue. इसका मतलब यह है कि आपका ज्ञान बहुत अधिक ऊँचाई पर उठ गया है जो मेरी छोटी सी बात आपके में में पच प पा रही। क्योंकि आप इतने अधिक होशियार, इतने अधिक चतुर, इतने अधिक चालाक हैं कि जो मैं कह रहok हूँ वह बात आपको नहीं नहीं आ ¢ है है।।। है है है है है है है है है मगर एक क्षण आयेगा तब मेरी बात आपके मन में घूमेंगी, तब आप एहसास करेंगे कि किसी ने बहुत कह कहा था, हम नहीं नहीं पाये उस समय औatar Ver más उनकी स्मृतियां आ सकती हैं, उनकी यादें आ सकती हैंैं
जो कुछ भी मैं आपके सामने ज्ञान स्पष्ट कर रहा हूँ उसके पीछे मेरा तो कोई स्वार्थ है ही नहीं स्वार्थ यह है कि मैं कुछ निर्माण करूं, स्वार्थ यह है कि मैं कुछ मन्दिर बनाऊँ, कुछ देवालय बनाऊँ, कुछ ऐसा बनाऊँ, कहते हैं मूर्तियां बोलती नहीं पहले बोलती थी तो मैं सिद्ध करके दिखा दूं कि ये मूर्तियां बोलती हैं, ये मन्दिर सजीव हैं, सिद्ध हैं, जाग्रत हैं, चैतन्य है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है eléctrica उन लोगों की सहायता करूँ जो दरिद्र है, गरीब हैं, अशक्त हैं और किस वजह से हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं वे अपने खुद के कर्मों की वजह से है। न मैंने आपको गरीब बनाया न मैंने आपको अमीर बनाया गरीब बनें आप कोई कोई कोई पूर्व जन्मों के काnas तो मै वह चैतन्यता दूँगा ही दूँगा कि आपके जीवन के अभाव दूर हो सकें। आप मुझसे नहीं जुड़ें, एक साल नहीं आये मेरे पास, तो आपको एहसास होगा कि आप खोखले से हैं आपको लगेगा की प • कुछ ही नहीं।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। आप में और एक गली के सामान्य मनुष्य में फिर कोई डिफरेंस ivamente ही नहीं फिर चेंज क्या होगा आप में?
आज आप मेरे पास आते तो यह तो एहसास आप में है कि मेरे पास गुरूजी हैं, मुझे भी तो एहस एहसास है आप आप मेरे शिष शिष हैं मैं दूंग दूंगा और औ वे ग favor यह छोटी बात नहीं है। यह अपने आप में एक उपलब्धि है। गुरू से कुछ प्रagaप demás करना या नहीं करना यह बहुत बड़ी घटना नहीं।।।।।।।।।।।।।।। मेरा और आपका जुड़ना अपने आप में बहुत बड़ी घटना है, एकाकार हो जाना बहुत बड़ी घटना है, तब आपको वी वीरोचित बना सकूंगा, पौरूषवान बना सकूंगा, ब्रagaह Dav बनólogo सकूंग sigue
आपको परिवर्तित करने से पहले यह आवश्यक है कि पूर्णता के साथ अणुओं को परिवर्तित कर दूं।।।।।।। अन्दर से, जड़ से ही जब परिवर्तित हो जायेंगे तो एक जीवन में क्रagaंति हो पायेगी। किसी पेड़ पर एक गुलाब की कलम लगाने से गुलाब नहीं पैद mí तब आंख में चिंगारी होगी, तब आप में स्नेह होगा, प्यार होगा, एक पागलपन होगा, एक दृढ़ता होगी।।।।।।।।। एक ऐस Sजुनून जुनून होग जो जो आपके प प ही ही होगtan, तब आप आप मेरे बिन mí नहीं नहीं endrह पायेंगे और जब वह वह क क आये तब तब आप समझ समझ लीजिये आप आप मे मेरे शिष हैं हैं।।।। हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं शिष शिष मे मे मे मे मे मे मे मे मे मे. उससे पहले आप शिष्य नहीं हैं। उसके पहले आप केवल श demás हैं, जिज्ञासु हैं जानना चाहते हैं।
एक जिज्ञासु और शिष्य में हजारों मील का डिफरेंै अगर आप गुरू के साथ सामीप्यता नहीं अनुभव करते तो और एक इंच का डिफरेंस है।।।। अगर आप गुरू से एकाकाgres होना अनुभव कर लें, जब आपकी आंखों में आंसू छलक जाये जब आपको एहसास हो जाये कि अन्दर घटना घटित हो हो ही है समझें आप आप शिष हैं।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। अन्दर जो कुछ घटित होगा वह अणु के परिवर्तन से गाोग अणु परिवर्तन की यह क्रिया एक ऐसी क्रिया है कि हमारे अनutar जो थिरकन नहीं है, हमारे चेहरे पर जो उल्लास नहीं है और ये जो सब माइनस पॉइंट्स है ये समाप्त हो जायें, ऐसी यह क क्ya है।।।।।। है है है है है है है है है है है है है है है क यह यह यह यह यह ऐसी ऐसी ऐसी
मैं आपको बताना चाहता हूँ कि निर्मुक्त बनिये, स्वच्छंद बनिये, मस्ती के साथ रहिये। जो क्षण मेरे साथ बायें वे धरोहर होंगे। न जाने कौन सा क्षण ऐसा हो सकता है। कृष्ण ने कहा- मैं ज sigue. अब पूरे संसार को सुधाisiones मुठ्ठी भर लोग ही सुधरेंगे और वे मुठ्ठी भर लोग ही संसार में परिवर terca ल सकते।।।।।।।।।।।। एक चाँद ही पूरे आकाश को रोशनी देगा, हजारों तारे मिलकर भी रोशनी नहीं प पायेंगे। कणाद ने पूर्ण रूप से अणु की थ्योरी बताई थी कि आदमी पूर्ण रूप से परिव compañía होत होत हुआ चीज बनन • च • वह बन सकता है औरू जो चीज बन च च च च वह सकत है है।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। मैं आपको वैसा ही पूर्ण बनाना चाहता हूँ । मगर आपको मेरे प्रत्येक शब्द को endramente केवलसुनना नहीं हैं, आप श्रोता नहीं हैं। मैं रामायण की कथा नहीं सुना रहok हूँ कि रावण सीता को उठा कर ले गया और र gaste मैं जो कुछ दे रहा हूँ बिल्कुल नवीनता के साथ दे रहok हूँ, शास्त्रेचित दे रहा हूँ, मर posterir जो कुछ छिप mí
यह दीक्षा गुरू से लेने के बाद आप खुद अपने आप में एक परिवर्तन अनुभव करेंगे, एहसास करेंगे कि हम अपने Sअन द बहुत कुछ प परिव razón हो प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प. बिखरते-बिखरते जितने बच जायेंगे वे ही वास्तव में शिष्य कहलाने के योग्य होंगे क्योंकि हंसी की पंक्तियां नहीं होती, बहुत झुण्ड हँस के होते।।। होते होते होते होते होते होते होते होते होते होते होते होते होते होते होते होते होते दो चार हँस कहीं-कहीं दिखाई देते हैं। दो चार शेर दिखाई देते हैं। कई सौ वर्षों में जाकर एक व्यक्तित्व पैदा होता है सिर्फ, जो पूरे देश को एक नेतृत्व दे, वह पैदा नहीं हुआ।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। नेताओं की बात नहीं कर रहां हूँ। नेता एक अलग चीज है। वह तो आज है, कल नहीं है। कल लोक सभा अध्यक्ष थे आज सड़क पर खड़े हैं।
एक पुरूष, एक युगपुरूष, एक अद्वितीय व्यक्तित्व पांच सौ, छः सौ, हजार वर्षों के ब mí. उस समय अगर हम उसको नहीं पहचान पायेंगे तो हम चूक जायेंगे, हम पिछड़ जायेंगे। कितने बुद्ध पैदा हुये, कितने ईसा मसीह पैदा हुये, कितने मोहम्मद स sigue. एक व्यक्ति ने पूरा परिवर्तन कर दिया और हम उसको नहीं समझ पाये तो हमारे जीवन की न्यूनता रही है और न्यूनता यह रही कि हमने कणाद को नहीं समझा अन्दर के अणुओं को परिवर्तित नहीं किया इस बात का आप क्या ध्यान रखें कि कोई उम्र का व्यक्ति ही गुरू नहीं होगा। आपकी धारणाओं को मैं तोड़ रहां हूं। मैं आपमें उतनी शक्ति दे दूं कि आप कुछ भी कर लेंगे, अगर मैं कहूं कि जूझ जाओ तो आप जूझ जायेंगे। तुममें ताकत है, बल है तुममें एहसास है कि पीछे कोई खड़ mí मैं साक्षीभूत हूं आपके प्रत्येक शब्द का, प्रuestos
मैं पीछे हटने की क्रिया नहीं करता हूं। मैं जम करके जूझने की क्रिया करता हूं। मैं जिदंगी भर जूझा हूं। जितना मैं जूझ mí हरदम अपने आपको तोड़ा है और जोड़ने की क्रिया की है, यह मैं ही जानता हूं कि हिमालय कितना ऊबड़ खाबड़ है, यह मैं ही जानता हूं कि हिंसक पशु कैसे होते हैं, यह मैं ही जानता हूं कि गृहस्थ जीवन को संभालना कितना कठिन है, यह मैं ही जानता हूं कि दुष्ट व्यक्तियों के बीच जिंदा रहनok सांस लेना कितना कठिन होता है, शिव अगर जहर जहा होगा तो बहुत कठिनाई के साथ पिय va। va।।।।।।।।।।। mar. मगर उन्होंने चहरे पर उफ् नहीं आने दी। और ऐसा कहकर मैं कोई एहसान भी नहीं थोप ivamente हूं हूं और जहर मिल जाये कोई बात नहीं।।।।।।। एहसास तो हो जाये कितना जी सकता हूं। शायद इससे दस हजार गुना मैं पी सकता हूं। इतनी क्षमता है मुझमें, जूझूंगा और पूरी क्षमता के साथ जूझूंगा।
यह तो एक गुरू शिष्य, पिता-पुत्र के बीच का संवाद है जहां पुत्र होगा तो पिता कहेगा और डांटेगा भी पुचकारेगा भी, सीने से लगायेगा और थप्पड़ भी मारेग gaste। मगर उसे अपने समान बन siguez इसलिये नहीं की वह स्वाisiones शिष्य को अपने आप में पुत्र कहा गया है, तनय कहा गया है, उसके शरीर के सदृश्य कहा गया है आप पुत्र हैं मेरे, आप शिष्य नहीं।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। है है है है है है है है है है eléctrico मेरे शरीर के किसी न किसी भाग है हिस्से हैं आप।
ब्रह्मरंध्र marca जो है उसके माध्यम से हम पूरे शरीर के अणुओं को परिवर्तित कर सकते।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। पूरे शरीर के अणु अगर एकत्रीभूत हैं तो आज्ञा चक्र में हैं या नाभि में।।।।।।।।। दो जगह ही हैं। एक बच्चा अपनी मां से पूरी तरह से नाभि से जुड़ा होता है, और किसी जगह से जुड़ा नहीं होता वो और जब जन्म लेता है।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। objetivo तो नाभि के साथ नाल आती हैं। उस नाल से ही वह सारा रस ग्रहण करता हुआ जिंदा रहथा हथा सांस भी उससे ही लेता है। और बड़े होने के बाद आज्ञा चक्र जो है दोनों भौहो के बीच में पूरे शरीर के अणु वहां पूंजीभूत है है।।।।।।।।।। इसलिये औरत वहां बिन्दी लगाती है कि वह भाग ठंडह ॰ा ॰ इसलिये ब्रagaह्मण यहां चंदन लगाते हैं कि यह भी ठंडा बना रहे। गर्मी में एकदम विस्फोटक न हो जाये। बिंदी लगाने के पीछे या चंदन लगाने के पीछे तर्ह य कोई सुन्दरता की बात नहीं है।
अगर कुछ गुरू से ज्ञान लें या दीक्षा जो इसी आज्ञा चक्ág. इसी के माध्यम से पूर्ण अणु परिवर्तन मैं आपको आशीर्वाद देता हूँ और कामना करता हूँ कि एक सक्षम गुरू आपको मिले मिले औatar मैं एक बार फिर आपको हृदय से आशीर्वाद देता
परम् पूज्य सद्गुरूदेव
Sr. Kailash Shrimali
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