अर्थात् गृहस्थ के बाद वानप्रस्थ ग्रहण करना थइाह इससे समस्त मनोविकार दूर होते है और वह निर्मलता आती है जो सन्यास के लिये आवश्यक है।।।।।।।।।। यो तो श sigue. किन्तु मनु स्मृति ने इस संबंध में बहुत उचित व्थव्थা
अर्थात् जब गृहस्थ के शरीर पर झुर्रियां पड़ जायें, बाल सफेद हो जाये, पुत्र के भी पुत्र हो जाये, तो गृहस्थ जितेन्दorar. यदि पत्नी स siguez
प्राचीन ऋषियों इस इस संस्कार का विधान बहुत सोच विचार कर किया था। पचास पचपन वenas की आयु में इन्द्रियाँ शिथिल होने लगती है। परिवार के प्रति अपने कर्तव्यों को व्यक्ति अधिकांशतः पूर्ण कर लेता है।।।। अतः तब उसे लोभ, मोह आदि को त्यागने का उपाय करना य॥ा थे वानप्रस्थ संस्कार समाज के विकास के लिये अति तथशक्
प्राचीन समय में वानप्रस्थ संस्कार के बाद व्यक्ति वन में रहकर धीरे-धीरे काम, क्रोध, मोह आदि से मन को हट हट ध flor. समाज निर्माण और समाज में फैली कुरीतियों को दूर करने का जिम्मा वानप्रस्थी और साधु सन्यासियों पर ही था।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। अपने जीवन काल में व्यक्ति जो भी सीखत mí
अन्य संस्कारों की भ sigue. इसके लिये व sigue. आवश्यक हो तो पीले रंग का यज्ञोपवीत भी धारण करवाया जाता है।। पीला वस्त्र लिया जाता है जिसमें पवित्र पुस्तक, वेद आदि होते है, उनकी पूजा की जाती है।।।।।।।।।।। वानप्रस्थी को सर्वप्रथम स्नानादि के पश्चात् पीले वस्त्र धारण करने चाहिये इसके बाद संस्काहिये के के्थल पर आसन्रहण के समय पुष्षत से मंगल razón. व sigue. इस प्रक्रिया के पश्चात् संकल्प करवाया जाता है और तिलक व रक्षendr. वानप्रस्थी हाथ में पुष्प अक्षत एवं जल लेकर वानप्रस्थ व्रत ग्रहण करने की सार्वजनिक घोषणा करते हुये संकल्प लेता है कि उसका जीवन अब उसका अपना या परिवार का न होकर समस्त समाज का है, अब वह स्वयं या पारिवारिक लाभ के लिये नहीं बल्कि विश्वकल्याण के लिये अपने दायित्वों का निर्वाह करेगा।
En este momento se toma la siguiente resolución.
इसके पश्चात् वानप्रस्थी अपना ज्ञान व समय उच्च आदर्शो के अनुरूप जीवन ढ़ालने, समाज में निरंतर सद्ज्ञान, सद्भाव एवं लोकोपकारी रचनात्मक सत्प्रवृत्तियां बढ़ाने तथा कुप्रचलनों, मूढ़ मान्यताओं आदि के निवारण हेतु कार्यो में व्यतीत करते है। जो सम्पूर्ण मानवजाति के लिये एक वरदान स्वरूप कार्य करते है।।।।।
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