यह समस्त अंतरिक्ष अत्यन्त विस्तारित है— इसका कोई ओर-छोर नहीं— अनन्त-अनन्त ब्रह्माण्डों से निर्मित हुआ है यह यह इसकी अप हस अप य छुपे इसमें अनगिनत अनगिनत औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ. इन विभिन्न ivamente में से सबसे अधिक हस ender स्वयं -
जैसे यह ब्रह्माण्ड बाहर है, वैसे ही पूर्ण सौन्दर्य के साथ पूरी तरह से शरीर में भी स्थापित है है सब कुछ कुछ कुछ कुछ! और ऐसा नहीं, कि यह वक्तव्य केवल कृष्ण ने ही दिया हो, ऐसा नहीं केवल केवल कृषgon.
इसलिये वास्तविक रूप में जो कुछ भी बाहर दृष्टिगोचर होता है, वही हमारे शरीर में भी स्थापित है और अगर ब्रह्माण्ड अनन्त है, तो हमारे शरीर की सीमाये भी अनन्त हैं— परन्तु आजकल लोग अत्यधिक 'धार्मिक'(धर्म संकीर्ण) हो गये हैं और धर्म से उनका सहज-मतलब होत mí है, वह अचेतन पड़ी हुई है—
तभी तो उनके लिए हिंसा, लूटमार, दंगे एक सहज कार्य हैं हैं— पर वास्तव में धर्म का अर्थ होता है खुद को जानना, स्वयं स वभ व से अवगत होन में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में मेंella. कृष्ण, महावीर, बुद्ध, क्रagaइस्ट को जानने से भी क्या हो जाएगा? और ये नाम उन गिन-चुने लोगों के हैं, जिन्होंने दूसरे को जानने की अपेक्षा स्वयं को ज जाना था, जो अपने वास्तविक स्वभ Chr.
और यह स्थिenas तभी पाई जा सकती है है, जब व्यक्ति केवल बाहर न भटक कर अपने अन्दर उतरने कीgonya हैί, क razón है खोज अन स हैं श razón. हमने पहले कभी अनुभव नहीं किया और जिनका अनुभव ही स्वयं को जान लेने की प demás.
और ठीक ऐसे ही स siguez आज के युग में मानव के बाह्य शरीर ही अधिक जाग्रत रहते हैं, क्योंकि जन्म से लेकर मृत्यु तक उसकी सारी खोज बाहर की ही है, बाह्य है— उसे धन चाहिये, पद चाहिये, प्रतिष्ठा चाहिये, प्रेमिका चाहिये और चूंकि ये सब बाहरी भावनाये हैं , अतः मानव के ब sigue.
फिर भी चाहे वह कितनी ही कोशिश कर ले, उसके ये शरीर भी पूर्ण ूप से विकसित नहीं हो पाते और इसलिये जीवन से च चाहे कितन ही प प प नहीं नहीं क क क कभी कभी कभी कभी कभी कभी कभी कभी कभी कभी कभी कभी कभी कभी कभी कभी म म म म म म कभी कभी कभी कभी कभी कभी कभी कभी कभी कभी कभी कभी कभी कभी कभी कभी कभी कभी कभी कभी कभी कभी कभी कभी कभी कभी कभी कभी कभी कभी कभी कभी कभी कभी कभी कभी कभी कभी कभी कभी कभी कभी कभी कभी कभी कभी कभी कभी कभी कभी कभी कभी कभी कभी कभी कभी कभी कभी कभी कभी कभी कभी कभी कभी कभी — उसे और अधिक धन चाहिये और बड़ा पद चाहिये और अधिक प्रतिष्ठा चाहिये तथा ऐसे ही वह अपना सoque जीवन एक मृगतृष्णा में बिता देता है।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।.
पर यह उसकी सबसे बड़ी बेवकूफी होती है, क्योंकि वह हव mí जब कोई इमारत बनती है, तो पहले नींव खोद कर उनकी बुनियाद तैयार की जाती है और जितनी गहरी और मजबूत नींव होती है, उतनी ही मजबूत इमारत बनती है— अर्थात् धरती के अन्दर जितनी गहरी और मजबूत नींव होगी, उतनी ही मजबूत इमारत धरती के बाहर होगी।
इसी तरह व्यक्ति को छायादाgres वृक्ष प्रagaप्त करने के लिए पत्ते-पत्ते में पानी देने आवश आवश्यकता नहीं।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। इसकी अपेक्षा अगर जड़ों में ही पानी दे दिया जाय, जो वृक्ष सutar ठीक इसी प्रकार व्यक्ति बाहर की दौड़ में ही लगा हुआ है है जो भी काम करता है, बाह्य करता है, उसक स हमेशguna ब ब क क क क क क क क क क है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है क क क क क क क क क. जाता है, जड़ों को भूल ही जाता है।
मूenas खत वह यह भूल भूल जाता है, कि बाहर जो कुछ भी है, मात्र अन्दर का प्रतिबिम्ब है।।।। यदि वह अपने आनutar.
este cuerpo (CUERPO BRUTO) है, यह ठीक मध्य में है और इसके अन्दर सात सूक्ष्म शरीर हैं, जो कि ऊपर उल्लेख किये जा चुके हैंatar
तो जो व्यक्ति भौतिकत mí (CUERPO FÍSICO) में है, उसका आभामण्डल बैंगनी रंग लिये होगा— अगर व्यक्ति मनस शरीरriba (CUERPO MENTAL) में है, तो उसका रंग नारंगी होगा आदि। व्यक्ति यदि च siguez
और यह सब सम्भव है 'ध्यानातीन साधना' से— ध्यानातीन साधना का अर्थ है- अपने आन्तरिक शरीरों को झंकृत करने की साधना, उनको जाग्रत कर उनमें एक अद्वितीय संगीत पैदा करने की साधना, क्योंकि आज का मानव एक पशु की तरह बन्धनग्रस्त जीवन जीते हुए अपने वास्तविक स्वरूप को ही भूल गया है, अपने वास्तविक परिचय एवं स्वभाव को विस्मृत कर दिया है, वह भूल गया है, कि उसक Davecc.
इस साधना से एक-एक तह पार करता हुआ व्यक्ति अपने आन्तरिक शरीर में उतर सकता है, यह बड़ी बड़ी बात नहीं है और जैसे-जैसे को्द razón उत sigue आध्यात्म की सबसे बड़ी घट sigue " जब आन्तरिक शरीर विकसित एवं पुष्ट होंगे, तो स्वतः ही आभामण्डल भी पूर्ण विकसित हो जायेगा। फिर व्यक्ति के अन्दर अपूर्व सम्मोहन की स्थिति हो जायेगी, बुद्ध के समान ही उसकी वाणी अत्यन्त मधुर हो जाएगी और सारे शरीर से एक अपूर्व गंध निःसृत होने लगेगी, उसका सारा शरीर स्वस्थ, निरोग, दर्शनीय बन जायेगा, लोग उसके पास आने के लिये, उससे ब ब करने के के लिये लtan ल raz होंगे होंगेrag हमेश sigue उसके उसके इर द-गि carta मंड मंड pro लगेंगे, उसका समervपूomía व व uto वerv. Uto अनिव bal बन बन जtan ।timtan ।timta ।timta बनtimta बनtimtan बनtimtan बनtimtan बनtimtan बन razuar येग razuar येग razaron ज razuar येग razaron ज razuararon जtan येग razomo जna येग razuar येग razaronamente येग razomo जna येग razuararon जna येग razuar येग razaronamente येग razaron जna येग razuararon जna येग razuararon जtan येग razomo जna येग razuararon.
ऐसे व्यक्ति को यश, सम्मान, धन, ऐश्वर्य सहज ही प्रagaप demás हो जायेगा। सांसारिक पर marca • ठ पellaacho होने होने पर भी वह उसमें अलिप्त ominó
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