आरती में पर्दा खुलते ही सर्वप्रथम भगवान का दर्शन होता है, फिर प्रथम तत्व गुणाक आकाश का प्रतीक शंख बजाया जoque है है है है है है है है है है है है है है है हैija है है है है है है हैija है है है है हैija है है है हैija है है हैija पुनः दूसरे तत्व व sigue. फिर तीसरे तत्व अग्नि का प्रदर्शन धूप से आरती, फिर चौथे तत्व जल का प्रदर्शन कुंभरती या जल आरती के ूप प ंचवे तत तत तत तत Nacho क त त त त N N N ° अपनी उंगली उंगली ओं ओं alo
द sigue, सिद्धांत है कि जिस क्रम से ये तत्व उत्पन्न होते हैं, उसी क्रम से एक दूसरे में भी हो हो जाते हैं, अंत में एक एक आत आत्व जोश हत हत है।।।।।।।।।।।।।।।।। में में एक आत आत mund जोश जोश हत है है।।।।।। इसलिये आरती में भी पूर्वोक्त क्रम से तत्वों का प्रदर्शन करने के बाद व्यूत्क्रम आरम्भ होता है- पुनः प्रथम मुद्राये, फिर जलपूरितशंख घुमाना, फिर दीप आरती, चौथे क्रम पर वही चंवर अथवा वस्त्र डुलाना और अंत में शंख का जल अपने एवं अन्य लोगों के ऊपर छिड़क कर खाली शंख का प्रदर्शन करना।
सब हो जाने पर अंत में फिर वही एकमात्र भगवान कर्मकाण्डीय विस्ताículo
अर्थात् जैसे दीपक की लौ नित्य ऊपर की ओर जाती है, उसी प्रकार आरती करने वाले भक्त को भी ऊर्ध्वगति प्रijaत होती।।।।।।।।।।।।। कर्मकाण्ड के क्षेत्omin ऐसे प्रतीकों के नित्य दर्शन से उस भाव की पुनरावृत्ति होती है।
दीपक की निरन्तर ऊँची उठती हुई लौ यह भावना दृढ़ करती है कि जैसे यह ज्योति शिखा चा rodendr विराजमान है। अतः यह अग्नि सूर्य की ओर ही सदैव अभिमुख होती है। इसी प्रकार आरती करने वाले भक्त को भी अपने उद्गम अर्थात् ईश्वuestos ¿Está bien?
देवताओं की स्तुति के लिये आरती एक विधिवत् क्हा९ जिस देवता की आरती करनी हो, उस देवत mí आरती करते समय भी पूजित देवता को प्रसन्न करने के लिये सम्बन्धित बीज मंत्ág. इसके लिये आरती के थाल को उसी बीजाक्षर की आकृति के अनुरूप घुमाया जाता है।
कितनी बार आरती इन बीजाकृतियों के अनुरूप घुमाया जाये, यह भी निर्भर करता है कि किस देवता की आरती की जा रही है।। जैसे दुर्गा के सन्दर्भ में नौ संख्या प्रसिद्ध है (नवार्ण मंत्र, नवरात haber गणेश चतुर्थी तिथि की अधिष्ठात haber रूद्र एकादश अथवा शिव चतुर्थी तिथि के अधिष्ठात्र हैं इसलिये 9 या 8 आवर्तन होने चाहिये। इसी प्रकार सभी देवताओंें के बारे में भी समझना या या या या
यदि बीज मंत्र का या संख्या का ज्ञान न हो, तो भी ऊ ँ प्रणवाक्षर है, उसके अनुरूप हर प्रकार की आरती 7 puntos XNUMX puntos पर्याप्त है, जिसमें चार बार चरणों में एक बार नाभ ि में और दो बार मुखमण्डल का किया जाता है।
अर्थात समस्त कामनाये संकल्पमूलक ही हैं। सब यज्ञ संकल्प के अनन्तर ही सम्पन्न होते हैं। व्रत, उपवास, सन्धयादि सभी धर्मानुष्ठान संकलऍह स sigue " संकल्प लेने से जब साधक कोई प्रतिज demás करता है तो उसके कहे गये शब्दों का उसके मनatar फिर चाहे कोई विघ्न भी उपस्थित हो, उसे अपना संकल्प स्मरण रहतok है और वह साधना पूर्ण कर के ही रहता।।।।।।।।।।।।।।।।।। संकल्प लेने के पीछे यही विचार है।
वेदादिशास्त्रें में जल लेकर संकल्प करने का विधान इसलिये है, क्योंकि जल में वरूण का निवास होता है और उसके स सίtern में प प प. प प प प. जल, वायु, अग्नि ये प्रत्यक्ष देवता हैं जो हैं हैं, जिन्हें देख mí इसलिये इन प्रत्यक्ष देवों की साक्षी में संकल्प लिया जाता है।। जल, वायु आदि सर्वत्र उपस्थित रहते हैं, अतः जब भी साधक अपने संकल्प से चgon. ही रहती है।
¿Está bien? सोते समय दक्षिण की ओर प siguez आज से कई हजार वर्ष पूर्व ऋषियों ने यह बता दिया था कि जिस प्रकendr सूर्य इसी आकर्षण के अन्तर्गत एक जगह स्थिर न रहकर समस्त सौर जगत को अपने साथ लिये बराबर गतिशील।।। वह ध्रुव पृथ्वी के सापेक्ष उत्तर दिशा में स्थथहई
इसलिये यदि कोई व्यक्ति दक्षिण दिशा की ओर पांव व उतutar इससे हृदय, फेफड़े और मस्तिष्क पर बुरा असर पड़ता है, स्वास्थ्य क्षीण होता है, मन पर भी प्रभाव पड़ने से बुरे स्न्न आते हैं औecer
nidhi shrimali
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