भगवान शिव की उपासना करना विश्व का सर्वाधिक प्रagaचीनतम कृत्य है और यदि शिव उपासना शoque श्भवी विद्य Chr. इसके महत्व का आभास एक बात से ही हो ज mí va
यह दीक्षा गुरू के प्रagaणों से साधनाओं के मंथन की क्रियendr जब गुरू अपने शिष्य को हजारों लोगों की भीड़ में अपने-सामने आसन पर बिठा कर उसे पवित्र और दिव्य बनाकर 'दिव्य पात क्रिया' से उसके प्राणों को चेतना प्रदान करता है, उसकी सुप्त कुण्डलिनी को जाग्रत करता है और अपनी दुर्लभ संचित साधानात्मक ऊर्जा अंश विशिष्ट ऊर्जा शिष्य के नेत्रें के द्वारा उसके प्राणों में समाहित करता है और ऐसा करते ही जिस प्रकार लोहे का टुकड़ा चुम्बक से घर्षण करने पर खुद चुम्बकीय बन जाता है, उसी प्रकार वह मूढ़ और सिद्धि-हीन शिष्य अचानक दिव्य और उदात्त बन जाता है, उसके पूरे शरीर में थिरकन प्रaga podrtar गंभीरता आ जाती है, उसके नेत्रें में एक अग्नि स्फुलिंग पैदा हो जाती है, जिसके माध्यम से समस समस्त संसार को अपने नियंत्रण में की की साम razón थय eccion है।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। eléctrico
निश्चय ही शिवशक्ति युक्त शांम्भवी दीक्षा एक कठिन क्रिया है, परन्तु समर्थ गुरू अपने शिष्य पर प्रसन्न होकर ऐसा करता ही है, ऐसा करते ही शिष्य के लिये सब कुछ संभव हो जाता है, समस्त सिद्धियां उसके लिये संभव प्रतीत होती हैं और उसके प्राण गुरू के प्राण से एकाकार होकर सही अर्थो में वह गुरूमय हो हॾ
पशु जीवन भी क्या है और साधानात्मक जीवन का भी तब तक कोई मूल्य और महत्ता नहीं है, जब वह जीवन में कम से कम एक ब अपने होते से यह यह यह यह दीक दीक न न न न न न ग ग ग न न न न न न न न. सौभाग Estamente
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