मातृ-पितृ ऋण से मुकutar साधक यज्ञ से देवता, स्वाध्याय औecer लेकिन ऐसी कोई क demás नहीं कर पाता जिससे वह पितृ ऋण से मुक्त हो सके।।।।।।। कुछ लोग पंडितों, पुरोहितों से पूजन करवाकर या कुछ ब्राह्मणों को क कराकर अपने कर्त्तव्य की इतिश्री कर लेते हैं।।। हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं। हैं।।।। लेकिन पितरों की मुक्ति और उनके कोप से आपका बचाव नहीं हो पाता। जिसके परिणाम स्वरूप जीवन उन्हीं मलिन शक्तियों, प्रेतादि आत्माओं और दूषित वातावरण में क कर रह जाता है।।।।। इन्हीं कारणों से जीवन की प्रगति में बाधा, गृह कलह-क्लेश, पुत्र-पुत्रियों में संस्कार का अभाव, हमेशoque ोग ग्रस हन ब ब ध भ razón.
पितृ दोषों में मुकutar "
इस हेतु साधक सद्गुisiones जिससे पूर्वजों का आशीर्वाद तो प्राप्त होता ही है, साथ ही मातृ-पितृ ऋण से मुक्त होकर साधक भौतिक और आध्यात्मिक उन्नति और सुख-समृद्धि, धन-धान्य, पारिवारिक सामंजस्य बनने से प्रगति की ओर अग्रसर होता है और इसी से साधक के जीवन में शतायु जीवन की निरन्तर वृद्धि होती है।
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