जीवन के अंत को श्राद्ध के रूप में व नई शुरूआत को नवरात्रि के स्वरूप में मनाया जाता है, यह कोई संयोग नहीं अपितु सृष्टि का नियम है कि हमे जीवन कि हर नकारात्मक मृत्यु तुल्य परिस्थितियों को वश व समाधान करने के लिये उनका श्राद्ध-निराकरण करना चाहिये, जिसके फलस्वरूप हम त्रुटियों की क्षमा प्रार्थना कर अपने जीवन में दीर्घायु, सम्पन्नता, सुख-समृद्धि कि प्राप्ति करे- हमारे पितृ जो हमारे होने का मूल है, उनही के होने से आज हमारा अस्तित्व है, जिनके जीवन त्यागने के उपरान्त हम तर्पण, श्रijaध, एकादशाह, सपिण्डीकरण, अर्घ्वदैहिक संस्कार, पिण्डदान, अशौचादि निर्णय, कर्मपिताह, पितृ शांति, देह शुद्धिकरण कई विध विधान, संस्कार सम्पन्न क हैं।।।।।।।।।।।।। हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं। हैं।।।।।।।।।।।।।। वही इस पक्ष कि अन्तिम तिथी के उपरान्त नवरात्रि का पर्व मनाते हैं व चतुर्थ मास के अंतिम दिवसों को हम अपने पापों का तर्पण कर नव-निधि कि शुरूआत करते हैं- जो सभी प्रकार कि ग्रह स्थितियों को सौभाग्यमय बना देती हैं, जिसका हर दिन एक उत्सव व सर्व सुखों को भोगने के लिये उपयुक्त स्थितियों का समागम होता है व सभी ¢ endr. जो समय आपने साधना, तप, त्याग, व्रत में साधा है उसी के फल प्राप्ति का समय और उस सुख कि प्राप्ति तभी सम्भव है जब हमने शुद्ध अन्तर करण से वे सभी वैदिक क्रिया श्राद्ध पक्ष के समय कि है उसका प्रय व प्राप्ति का समय, सभी लौकिक सुखों कि प्राप्ति के साथ शारीरिक, मानसिक एवं आत्मिक सुखों को भोग।।।।।।। रजस-तमस-सत्तव के संतुलन को स्थापित कर जीवन कि चेतना को आत्मसात हम इन पर्वों में करने से हमे जीवन में एक दिक्षा मिलती है साथ ही हमारा मनोबल हमे विजयश्री बनाती है, सर्व दुःखों का नाश व जीवन को कायाकल्प करने का समय है। दुःखों की प्रagaप demás कोई नहीं चाहता परन्तु सुखों की प्रagaप्ति के लिये हमें कर्मशील होना पड़ेगा।
जीवन में कर्मठ होने के लिए शुरूआत आपको ही कऱी थथी इसी प्रagaendo. में सर्व पितृ शांति पूर्णिमा शक्ति धनदा साधना महोत्सव 31-10 सितम्बर को धार (mp)
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Vineet Shrimali
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