ध्यान और शरीर दोनों अलग-अलग हैं, इस शरीर के माध्यम से ध्यान नहीं हो सकता, शरीर तो केवल बाह्य तरंगों को स्वीकार करता है और अपनी तरंगो को दूसरों की ओर प्रेषित करता है, जिसके माध्यम से उसके मन के भाव या अन्दर के विचार स्पष्ट होते हैं, कि वह क्रोध कर रहok है, प्रेम कर ominó बाहरी तरंगों के आदान-प्रदान की ये छोटी-मोटी अवस्थाये देह अवस्था में प्रagaप demás होती।।।।।।।
शरीर तो अपने आप में बहुत छोटा सा भाग है- जिसकी उम्र साठ साल है, पचास साल है सौ साल है।।।।।।।।।।।।।।।। शरीर के माध्यम से ध्यान प्रagaप्त नहीं किया जा सकता, इस शरीर से उसका कोई सम्बन्ध नहीं है— फिर भी प्राण को कह थित होने लिये कोई आध आध आधellas किसी देवता को बैठने के लिये सिंहासन होना चाहिये, उस सिंहासन को शरीर कहा गया है, वह सिंहासन अपने-में देवत देवत नहीं है सिंह सिंह इसलिये है कि उसके उसके ऊप देवत स स देवत सकें बैठ सकें।। है जिससे कि उसके उसके उसके उसके स स हो सकें बैठ सकें सकें सकें सकें सकें सकें सकें सकें सकें सकें सकें सकें सकें सकें सकें सकें सकें सकें सकें सकें सकें सकें सकें सकें सकें सकें सकें सकें
शरीर भी एक सिंहासन है- जिस पर प्रagaण अवस्थित है, शरीर तो एक धर marca खड़ा है। इसलिये खड़ mí एक पशु ही दूसरे पशु को समझा सकता है। एक बन्दर दूसरे बन्दर को समझा सकता है— एक बन्दर एक गाय को समझ समझा सकता। ठीक इसी प्عaga से एक मनुष्य ही दूसरे मनुष्य को समझा सकता है।
ब्रह्म को भी इसीलिये शरीर धारण करना पड़ता है जिससे उसके समान जो दूसरे मनुष्य हैं, उनको आस mí. इसलिये ¢ को को एक एक शरीर धारण करना पड़ा है, अतः उच्चकोटि के सद्गुरू को भी एक शivamente ध sigue उसे अपना ही एक हिस्सा मान सकें— और उसकी बात सुन सकें— और समझ सकें।।।।।। हजारों-लाखों व्यक्तियों में से कोई एक बिरला ऐसा निकल जाता है, जो उनकी उंगली पकड़ कर आगे बढ़ने की क्रिया प्रagauestas हजारों-लाखों व्यक्तियों में से किसी एक में ही चेतना प्रagaप्त होती है, जो उनकी उंगली कर क बढ़ने की क क्रिया प्रaga podende हजारों-लाखों व्यक्तियों में से किसी एक में ही ऐसी चेतना होती है, जो उनकी वाणी को समझ सकता है।।।।।।।।।।।। हजारों-लाखों व्यक्तियों में से किसी एक में ही ऐसे भाव जाग्रत होते हैं हैं जब पgon. उसकी आँख पहचान लेती है- 'यह व्यक्तित्व साधारण नह थह'
इसने का साधारण मनुष्य शरीर तो धारण किया है, इसके क्रिया-कलाप भी ही हैं हैं, जैसे आम आम गृहस्थ के होते हैं, इसकanzas इसक सहन वैस ह ह है ल ल है है है है है है ल ल ल ल ल ल ल ल ल ल ल ल ल ल ल ल ल ल ल ल ल ल ल ल ल ल ल. सुख-दुःख वutar.
वह इस विश्व की विभूति है, उसको पहचानने के लिये शरीर की आँखों से काम नहीं चलेगा, उसको पहचानने के लिये मन आँखें खोलनी पड़ेगी, उसको उसको उसको के ध थ की की N पहच ज ज ज noya तब विराट रूप का अपने-आप में दर्शन हो जाता है। अर्जुन, कृष्ण को एक सामान्य आदमी ही समझ रहok था, वैसा ही रोतok हुआ, वैसा ही उदास होता हुआ, वैसा ही मित्र, वैसा ही प्रेम करता हुआ।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। मगर कृष्ण ने जब अर्जुन को ध्यान की स mí सद्गुरू चाहें तो किसी योग्य व्यक्ति को छलांग लगवा कर सातवीं अवस्था में पहुँचा सकते हैं, जैसे कृष्ण ने व्यामूढ़ अर्जुन को, मोहग्रस्त अर्जुन को एक छलांग के माध्यम से ध्यान की सातवीं अवस्था तक पहुँचा दिया— और पहुँचाते ही उसकी जो हजार-हजार आँखे जाग्रत हुई, उसके म sigue. ठीक उसी प्रकार सद्गुरू, वह अद्वितीय विभूति, यदि चाहें तो किसी भी शिष्य, किसी भी व्यक्ति को ध्यान की उस अवस्था में पहुँचा सकते हैं, जहाँ उस व्यक्ति के सामने वास्तविकता स्पष्ट हो जाती है, उसकी अद्वितीयता स्पष्ट हो जाती है, उसकी महानता स्पष्ट हो जाती है।
प्रश्नः क्यanza स्त्री और पुरूष की ध्यान की विधियाँ अलग-अलग हैं?
देहगत अवस्था में ही स्त्री और पुरूष का भेद है, जब मनुष्य देह से आगे की स्थिति में पहुँचने लगत mí यह तो शरीर का भेद है, यह तो तलछट का भेद है, यह आत्मा का भेद है है है यह पthágaga क भेद भी नहीं है जब भेद ही नहीं है है तो फिर ध ध uto की विधिय विधिय अलग हो।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। जो स्त्री है, वही दूसरे शब्दों में पुरूष है, जो पुरूष है, वही दूसरे शब्दों में स्त्री है।।।।।।। तुम स्त्री acer आध्यात्मिक और चेतनात्मक दृष्टि से तो दोनों में कोई अन्तर है ही नहीं।।।।।।।।। दोनों एक ही स्थिति में एक ही प्रकार की भाव-भूमियों पर खड़े हैं। उच्चकोटि की स्त्रियां भी हुई हैं- कात्यायनी, मैत्रेयी, चैतन्या, वैचार्या, गौतमी— ये सब अपने आप में अद्वितीय विभूतियां थीं, उतनी ही ब्रह्म को प्राप्त होती हुई, उतनी ही मनुष्यता को प्राप्त होती हुई, उतनी ही ध्यान अवस्था को प्राप्त होती हुई , जैसे कि एक ऋषि हुआ है। इसलिये पुरूष और स्त्री को अलग-अलग देखन mí केवल बाह्य रूप से, केवल शारीरिक अवस्था से हम उसमें भेद करते हैं- यह तो ऊपरी भाग है, यह तोatar
इसलिये जिस तरीके से पुरूष ध्यान कर सकता है, ठीक उसी प्रकार से एक स demás. जिस प्रकार से एक ही छल mí
प्रश्नः कहते हैं कि ध्यान की गहर gaste
मैं इसका उत्तर ऊपर दे चुका हूँ, गहराई में उतरने का तात्पर्य यह नहीं है कि में छलांग लगानी है।।।।।।।।।।।।।।। गहर siguee यहां मेरे कहने का त mí. स्थितियों में से क्रमशः उतरते हुये, जिस जगह हम खड़े होते हैं- वह ध्यान की अवस्था है, वह पूर posterior इसी तरीके से, अभ्यास के माध्यम से उन सातों अवस्थाओं को प्रagaप्त करते हुये, हम स्थितियों को प्रagaप कर सकते हैं हैं जिसे श श favor जिसको पूर्णानन्द कहा गया है।
जिसको सही अर्थों में आनन्द की संज्ञा से विभूषित किया गया है। इस गहराई में उतरने का अपना ही एक आनन्द है, अपना ही आलौकिक आलौकिक सौन्दर्य है।।।।।। ज्यो-ज uto हम बाहर की ओर बढ़ते हते árहते हैं हैं, त्यों-त्यों झुर्agaं समय के के पr.ende भ से आती balte हैं हैं, त्यों-त विष के ज मुँह मुँह मुँह आते आते आते आते आते आते आते आते आते आते ज ज ज ज ज ज ज ज ज आती आती आती आती आती आती आती आती आती आती आती आती है है है है है है है है है है. अन्दर उतरते रहते है, त्यों-त्यों चेहरे की तेजस्विता बढ़ती रहती है, चेहरे का प्रभाव बढ़ता eccion endr अन्दर से जो ¢ श इस शरीर को भेद कर प्रवाहित होती हैं, वे आस-पास के वातावरण को स्वच्छ और पवित्र बना देती।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। है है है है है eléctrico eléctrica पवित demás
यदि एक आश्रम में च siguez उनको ऐस mí है, जिस तत्व को सद्गुरू कहा गया है।
ऐसी स्थिति में हम बाह्य दृष्टि से भी पहचान सकते हैं कि यह व्यक्ति आलौकिक य य mí. सामान्य गुरू या सामान्य साधु आश्रम से चला जाये, तो शिषgon. होगा अच्छा या बुरा कर सकेंगे। दूसरा सद्गुरू होता है, जिनके जाने से विषाद उत्पन्न होता है, दुःख उत्पन्न होता है।।।।।।। आँख में आँसू झलकने लगते हैं हैं, ऐसा लगता है, जैसे शरीर तो है, पर प्रagaण निकल गया- यह दोनों (सामान्य गुरू और सद्गुरू) में अन्तर होता है।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।.
पूरे महाभारत काल में केवल एकमात्र कृष्ण ही दिखाई दे रहे थे, एक अकेला व्यक्तित्व, जो आडम्बर युक्त नहीं था, प्η Dav. ठीक आश्रम में भी एक अद्वितीय विभूति— एक सामान्य दिखाई देने वाला व्यक्तित्व (सद्गुरू) भी हट ज जaños है, दूर चलात त है ज ठह ठह त किलोमीट razón है, सब कुछ सम sigue. ब sigue.
प्रश्नः कृपया आपने जो ध्यान की अवस्थाये समझाई हैं, क्या यह हमे कम समय में सम्भव है है है है है है है है है
मैंने अभी आपको समझाया, समय इसके लिये अपने-आप में कोई महत्वपूरorar यदि आप डरपोक है तो धीरे-धीरे कदम बढ़ायेंगे, यदि आप कायर हैं, तो धीरे-धीरे अपना हाथ गुरू के हाथ में सौपेंगे यदि आप दृढ़ चित्त हैं, तो एकदम से अपना सर्वस्व गुरू को सौंप देंगे। आप अपने आपको कितन mí
यह कोई एक पाठशाला नहीं है कि, पहली क्लास के बाद दूसरी, फिर तीसरी और चौथी क्लास पार करने पर ही सोलहवीं क क्ल Davidamente कर सकते हैं।।।।। ।ija यह तो एक क्रिया है, यदि सद्गुरू की कृपा हो गई, यदि उन्होंने एहसास कर लिया कि व व्यक्ति मुझे समझने की क् razón िय परने लग razón को यह विश्वास हो गया, कि यह मुझ में लीन होने की क्रिया प्रagaप demás करने लगा है— जब्गुरू यह अनुभव करने लगते हैं किatar प में श प razón णों ंट पellas क्रिया प्रारम्भ कर रहा है। जब प्रagaणों से जुड़ने की क्रिया प्रagaaga qued a समाने के ब siguez
शिष्य की भी यही अवस्था है, जब वह नदी की तरह अपने आप में निश्चिन्त होकर यह विचार कर लेता है कि मिल मिल जान • है, ूकन ही है है ज ज न न न न न न न न ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो. मिट जायेगा तो मिट जाएगा और ज्यों ही वह समुद्र में मिली, उसका गंगा नाम मिटा, वह समुद् pod देवत हो।।।।।।।।।।।।।।।। उसका मीठा पानी समाप्त हो गया और वह खारे पानी में गई गई— उसकी उसे कोई परवाह नहीं, क्योंकि सम्प होकर वह अपने में मह मह समुद कहल favor
शिष्य की भी यह अवस्था है, जब वह अपने आपको हटाकर पूर्णरूप से सद्गुरू के प्रagaणों में होने होने की कorar अवस्था है, जो पूर्णता की अवस्था है, जो चैतन्यता की अवस्था है।
वह जितना गुरू पर विश्वास करता जाता है, उतना ही गुरू उसको आगे बढ़ाता रहतok है।।।।।।।।।। वह जितन mí आधा-अधूरaga समर्पण है, तो गुरू तटस्थ भाव से, द्रष्टा भाव से देखता रहता है उनके विक विकija को, उसके उसके को को वह समझ ज त razón. तो वह दस प्रतिशत ही उससे गहर gaste
मगर जिस क्षण गुरू यह निश्चय कर लेता है कि अब मुझे इसको उठाकर परम अवस्था तक पहुँचा देना है, तोर भले ही ही ही में ही सguna होंर हों razón उसको उठाता है और सीधे ही उसे उस ध्यान के महासमुद्र में उतार देता है— जो क्षीर सागर है— जहां पूर्णब्रह्म विराजमान हैं, जहां शेषनाग की शय्या पर ब्रह्म लेटे हुए हैं, जहां पूर्णता उनके चरण दबा रही होती है- उस अवस्था पर सद्गुरू चाहें तो सामान्य, अधम अजामिल जैसे पापी को भी एक छलांग में वहां उतार सकते।।।।।।।।।।।
ये दोनों स्थितियां हैं, शिष्य के तरफ से भी और गुरू के तरफ से।।।।।।।।।।।।। शिष्य कितना अपने आपको सौंपता है, गुरू कितना उसको उठाकर फेंकता है- दोनों बातें एक-दूसरे पर निर्भर है, यह दोनों का आपसी और आन्तरिक समझौत • है है है हत हत हत हत है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है बढ़त बढ़त बढ़त बढ़त बढ़त बढ़त बढ़त बढ़त बढ़त बढ़त बढ़त बढ़त बढ़त बढ़त बढ़त बढ़त बढ़त बढ़त बढ़त बढ़त बढ़त बढ़त बढ़त बढ़त बढ़त बढ़त बढ़त बढ़त बढ़त बढ़त बढ़त बढ़त बढ़त बढ़त बढ़त बढ़त बढ़त बढ़त बढ़त बढ़त बढ़त बढ़त बढ़त बढ़त बढ़त बढ़त बढ़त बढ़त बढ़त बढ़त बढ़त बढ़त बढ़त बढ़त बढ़त बढ़त बढ़त बढ़त बढ़त बढ़त बढ़त बढ़त बढ़त बढ़त बढ़त. इसलिये वहां- उस ध्यान की गहराई में एक सैकण्ड में भी पहुँच सकते हैं— औecer यह शिष्य के क्रियाकलापों पर, उसके चिन्तन पर— और सही शब्दों का प्रयोग करूं, तो समर posterir समर्पण के माध्यम से ही गुरू निश्चित कर सकता है कि, मुझे इसको धgon. कहा गया है।
जब एक मनुष्य ईश्वर बन जाता है, तब जीवन की सर्वोच्च स्थिति बन जाती है।।।।।।।। जब एक नर-ना Para बन जाता है, तब जीवन की एक सर्वोच्च स्थिति बन जाती है।।।।।।।। जब एक अदना सा व्यक्तित्व पूर्णता प्राप्त कर लेता है, तब पूरा संसार उसकी ओर ताकने लग जाता है, तब हजारों-लाखों लोगों का कल्याण करने में वह समर्थ हो पाता है, फिर भले ही वह गृहस्थ में दिखाई दे- वह शादी भी कर सकता है, वह ह siguez
आवश्यकता तो उस जगह पर पहुँचने की है है है उस जगह पर पहुँचने की क्रिया अत्यन्त कठिन।।।।।।।।। उस जगह पहुँचने के लिये केवल एक ही शब्द का प्रयोग किया जा सकता है, वह है- समर्पण। समर्पण के पहले गुरू उसकी सैकड़ों बार परीक्षा लेते रहते हैं, हजारों बार उसकी परीक्षा लेते जैसे जैसे सोने क मुकुट मुकुट बन पहले सैकड़ो ज ब आग आग आग आग आग आग आग आग आग आग आग आग आग आग आग आग आग आग आग आग आग आग आग आग आग आग आग आग आग आग आग आग आग आग आग आग ब ब ब ब ब ब ब ब ब ब ब ब ब ब ब ब ब ब ब ब ब ब ब ब ब ब ब ब ब ब ब ब ब ब ब ब ब ब ब. उसको तोड़ा जाता है, खींच कर तार बनाया जाता है, मगर फिर भी वह सोना उफ् नहीं करता, क्योंकि उसने समर्पण कर दिया है स्वर्णकार के हाथों में— और स्वर्णकार उसको ऐसा मुकुट बना देता है, जो मनुष्य नहीं देवताओं के सिर पर शोभायमान होता है। इसीलिये कबीर ने कह mí भीतर भीतर सहज के बाहर बाहर चोट।
जिस प्रकार कुम्हार घड़े को बनाते समय उस पर बाहर से चोट करता रहतok है और अन्दर से उसे सहार necesita. यदि मैं इसको तोड़ता हूँ? ¿? शिष्य निरन्तर सजगता के साथ जुड़े रहने की प्रक demás करता है। इस कशमकश में जो शिष्य जीत जाता है, वही सफल हो जाता है, उसे ही गुरू दोनों हाथों में उठाकर सीधे ध्यान की अवस्था में पहुँचा देते।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। हैं हैं हैं हैं हैं eléctrico शिष्य जितना टूटेगा, जितना समर्पण की कसौटी पर खरा उतरेगा, उतना ही गुरू उसको एक-एक सीढ़ी पार कर sigue.
प्रश्नः आपने सजगता शब्द का प्रयोग किया है और साक्षीभाव शब्द का भी प्عL.
सजगता का त marca त है- हर समय अपने आपको सहज ¢ endr. कुछ ऐसा करना चाहता हूँ जो अपने आप में अद्वितीय हो, जो मेरी पच्चीस पीढि़यों में नहीं हुआ।।।।।।।।।।।।।। जिस समय यह भ siguez ¿? ¿? सजगता के लिये उसको अपने माँ-बाप, भाई-बहन, संबंधी-correspontar तीर तो एक ही है, मगर तीर का अगला हिस्सा नुकिला है, धारदार है— और पीछे का हिस्सा फलक।।।।।।।।।।।।।।। यदि शिष्य फलक में ¢ हेग पीछे ही ही रहेगा, जिस प्रकाgres से पीढि़यां समाप्त हुई, उसी प्रकार वह भी समाप्त हो जायेगा, वैसे ही श्मशान की की यguna कर कर ।ा जायेगा, वैसे श्मशान की की यίavor क rodriba ।ा लेगा, जो अगले नुकिले भाग पर है, उसको चुभेगा भी, दरorar. जो सजग रहेगok उसे निरन्तर यह ध्यान रहेगok- मुझे समर्पण करना है। वह चाहे कुछ भी आदेश दे- मुझे इस पर विचार नहीं करना है, कि गुरू ने मुझे क्या आदेश दिया है? क्यों आदेश दिया है? यह उनका काम है। ¿?
मैं तो एक शिष्य हूँ मैं तो मिट्टी का एक लौंद mí यदि दीपक बनायेंगे तब भी मैं अंधकार को दूर कर साूू सुराही बना देंगे- तब ही मैं सैकड़ों लोगों की प्यास बुझा सकूंगा। मिट्टी को चिन्तन करने की आवश्यकता नहीं है है, सजग रहने की आवश्यकता है मुझे मुझे निरन्तर कुम्हार के हाथों में रहना है।।।।।।।।।।।।।।।।।। साक्षीभाव का तात demás है है- सब कुछ सामने होते हुये भी निरन्तर द्रष demás भाव में हें चह है भ भ भ N N J N N. मालूम है, मैं टिकट लेकर यहां बैठा हूँ और मुझे तीन घंटे ब siguez इसी प्रकाocar जीवन में भी भी म mí जो उसमें लिप्त नहीं है, जो देखता रहतok है, माँ कहती है- उसका भी कहना मानता है, पत्नी कहती उसक उसक उसक भी कहना मा है, सबका मेानत • नहीं Dav. ये कह रहे हैं, मैं सुन ivamente ह ये कह हे रहे हैं, मैं कर ¢ हूँ बस खत्म।।।।।।।।।। मेenas मूल लक्ष्य इनके बीच में स्वयं को समाप्त करना नहीं है। इस शरीर के तल पर जीवित रहकर समाप्त होना नहीं है॥
इस शरीर के तल से नीचे उतर कर उस जगह पहुँचना है— जहाँ पहुँचने पर ब्रह्मत्व प्राप्त होता है— जहाँ पहुँचने पर ईश्वरत्व प्राप्त होता है— जहाँ पहुँचने पर नारायणत्व प्राप्त होता हैं— और उस जगह पहुँचने पर ही पूरा संसार उसे देखेगा और आने वाली पीढि़यां उसकी सर marca करेंगी, उसकी ही नहीं अपितु उसके माता-पिता की भी, उसके कुटुम्ब की भी, उसके परिवारजनों की।।।।।।।।।।।।।। जब कृष्ण को स्मरण करते हैं तो ivamente र va को भी स्मरण करते ही है है, कृष्ण को स्मरण करते हैं तो यशोदा और ननر को भी स्मरण करते हैं हैं क वे जुड़े हुये।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।.
वह व्यक्ति जो सजग है, सद्गुरू के चरणों में लीन होकर ध्यान अवस्था और समाधि तक पहुँचता है, तो उसके सguna-स उसके अहोभ ब बनते भी भी ग ग ग ग हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं. - और उस पीढ़ी का वह एक वरदायक व्यक्तित्व बनता है, क्योंकि अपनी पीढ़ी में वह उस जगह पहुँच mí निरन्तर उनके बारे में सोचते हुये भी वह शरीर से गुरू के चरणों में बना ¢ है va है, क्योंकि सिंहासन तो वही है, जिस पर देवता को्थ Chrriba करन¬ है है पन पellas थ सellas जब सिंहासन ही हजार मील दूर होगा, तो फिर देवता को कहां स्थिापित किया जायेगा?
इसलिये विचार माँ-बाप, भाई-बहन तक रखते हुये भी वह साक्षीभाव से देखता रहतok है- माँ अपन va सुख-दुःख भोगते हती है, ब सुख दुःख-भोगत भोगत razón. वह खड़ा-खड़ा देखता रहतok है— मगर अपने सिंहासन रूपी शरीर को, गुरू के हाथों में ही ¢ endr गया है, जिस मूर्ति को ब्रह्म कहा गया है।
¿Está bien? ¿Está bien? साधु क्या है, क्या ध्यान के लिये साधुता या ब्रह demás आवश्यक है है है है है?
ब्रह्मचर्य का तात्पर्य गलत लगा लिया गया है और सैकडों वर्षों से शब्द की दु दुivamente हुई है, उतनी किसी शब शब की हुई है।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। हमने अविवाहित रहने को ब्रह्मचर्य म sigue. जबकि, ब्रह demás का तात्पर्य है- जो ब्रह्म के अनुसार चले, जो ब्रह्म जैसा आचरण करे, वह ब्रह्मच Davidamente है।।।।।। है है है है है है है है है है है है है eléctrica जब व्यक्ति ब्रह्म तक पहुँचेगा, तभी ब्रह्मचर्य अवस्था पow. ब्रह्मचारी का ध्यान से कोई सीधा सम्बन्ध नहीं है, ध्यान के लिये जरूरी नहीं है कि वह ब्रह्मचारी बने, क्योंकि ध्यान की अंतिम अवस्था ब्रह्मचर्य है— जब वहाँ पहुँचेगा, तब वह ब्रह्मचारी कहला सकेगा, प्रारम्भ में ब्रह्मचारी कैसे कहला सकेगा? प्रija podinar
साधुता का तात्पर्य—भगवे कपड़े पहनने की क्रिया को साधुता नहीं कहते हैं, जो एकाग्र रह सकता है, जो निर्विकार रह सकता है, जिसके मन में, जिसके चित्त में किसी प्रकार का विकार उत्पन्न नहीं होता, जो किसी स्त्री को देखकर मोहान्ध नहीं होता , जो विषय-वासनाओं में लीन नहीं होता, जो अपने आप में साक्षीभाव सीख गया है, जिसने अपने स साध लिया है, जिसने मन को साध लिया है वह स स है है है है है है है है है है है है है है है है है है
यह आवश्यक नहीं है कि, केवल साधु ही ध्यान कर सकता है— और सही अर्थों में कहा जाये तो, साधु ध्यान कर ही सकत इचguna स ओं ओंella क पन पनella इसक पन पनella न क कella तात्पर्य यह नहीं है कि, संन्यासी नहीं उतर सकता। यदि वह सही अर्थों में न्यास कर चुका है, छोड़ चुका है, साक्षीभाव में आ चुका है, तो वह सनervOय है है और यदि संन संन्यासी है तो तो वह ध य की की मेंenda है है।।।।।। सकत।।।।।। ।enda।।।।।।।। ।enda।।।।।। ।enda इसलिये ध्यान के लिये लिये न कुंआरे रहने की जरूरत है है है विवाह करने की जरूरत है है नnas स्त्aga होन जरूantemente एक भावना हो, एक दृढ़ निश्चय हो- समर्पण का।
यहां तीनों चीजें आवश्यक हैं। एक पहला साक्षीभाव- जहां आप अपने परिवार को साक्षीभाव से हुए हुए सद्गुरू के पास खड़े हैं।।।।।।।।। दूसर marca, समर्पण- अपने आपको साक्षीभाव में रखते हुए मन से, विचारों से, प्रaga से से, भoque वन को अपने आप को समatar. गुरू क्या कर रहा है? इसकी तुम्हें गणित करने की जरूरत नहीं है, गुरू क्या कह रहok है, तुम्हें ये देखने की जरूरत है।।।।।। और तीसर marca, प्रबल इच्छाशक्ति- मुझे इसी जीवन में इस शरीर से आगे बढ़कर उस जगह ज जाना है, जो पूर्णता प्रaga की की है है है है है आप ध ध ध ध ध की जगह है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है eléccular
प्रश्नः क्या ध्यान में जप करने से जल्दी सफलता औरसिद्धि मिलती है?
जब आप ध्यान में पहुँच गये, तब जप हो ही नहीं सकत mí एक तरफ आप आँख बंद करेंगे और दूसरी तरफ आप लक्ष्मी की माला जपेंगे—आप चिन्तन, आपकी विचारध tomar- ध तो लक्ष्मी में है, मanzas में हैं, फिर ध्य कह कह कह हुआ हुआ हुआ हुआ हुआ हुआ है में है है है है है है में हैं हैं फि ध कह कह कह कह हुआ हुआ हुआ हुआ म है है में है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है. ध्यान का ध्येय है 'न' जहाँ कुछ भी अहस siguez लक्ष्मी कहाँ से आ गई? फिर मंत्र-जप कहाँ से आ गया? ध्यान जहाँ है वहाँ पर मंत्र जप की आवश्यकता नहथै ध्यान जहाँ है वह sigue.
क्योंकि इनको तो हम पहले शरीर पर ही छोड़ चुके हैं और वहाँ से आगे बढ़कर हमने जिस भाव-भंगिमा को स्पba क क razón, वह क वगै सब क सija थित स ° य स noya. ऋद्धि-सिद °, मह mí. भी। जनक अपने आप में पूर्ण ¢ थे va थे, उनकी सैकड़ों रानियां थी, परन्तु उसके बाद भी वे पूर्ण ब्रह्मचारी थे।।।।।।। कृष्ण सोलह हजा rod " इसलिये पत्नी होन mí इसलिये ध्यान में माला, मंत्र-जप की आवश्यकता होती ही नहीं और जहाँ पर मंत hubte ध्यान और बाहरी क्रियाकलाप दोनों अलग-अलग तथ्य है
प् Est.
मन में कामुक और बुरे विचार इसलिये उठ रहे हैं, क्योंकि आपने स्वयं को पहचानने की क्षमता को भुला दिया है।।।।।।।। आपको इस बात का अहसास नहीं है कि हीरा क्या है, और कंकड क्या है? उज्ज्वलतम हीरा कोयले की खदान से ही निकलता है। जहां कोयला पैदा होता है, वहीं हीरा पैदा होता है, एक ही धरती पर एक ही खान में, किन्तु उसे पहचानने की क्षमता होनी चाहिये चाहिये यह इस बात पर निरorar. ज्यादा उभर कर सामने आयेंगे। गेंद को पृथ्वी पर जितना जोर से माisiones म, वह उतनी ही ज्यादा दबेगी और वह जितनी ज्य Chr.
यदि आपके कामुक विचार हैं तो आप उनको ivamente यदि स्त् razón काम में रूपान्तisiones व sigue.
इसलिये इन कामुक और बुरे विचारों को दबाने की आवश्यकता नहीं है, इनको रूपान्तरित करने की आवश्यकता है— और रूपान्तरित करने के लिए संगीत आपका सहारा बन सकता है, चित्रकारी आपका सहारा बन सकती है, गायन आपका सहारा बन सकता है, प्रकृति आपका सहारा बन सकती है—और सबसे ज्यादा आप अपने आपका सहारा बन सथइथ जब आप अपने आप से प्रेम करने लगेंगे, फिर आपको दूसरों से प्रेम करने की जरूरत ही नहीं होगी।।।।।।।।।।।। जब आप अपने आपके प्रति मोहग्रस्त होंगे, तो आपको दूसरों के प्रति मोहग्रस्त होने की जरूरत ही नहीं रहेगी। इसलिये इन विचारों को दब siguez यह बाहरी भेद है है है है है है है है है भेद भेद भेद आन Flav भीezas
प्रश्नः क्या कोई ऐसा मंत्र-जप या विधि है, जिससे ¿Está bien?
पिछले पच्चीस हजार वर्षों में ऐसा कोई मंत्र-जप या ऐसी साधना विधि बनी बनी है है, जिसके द्वारuerzo जल्दी से जल्दी ध्यान लग जाये।।।।।।।।।।। ज ज ज जguna। ज ज जguna। ज ज • ध्यान ऊपर तलछट से हो ही नहीं सकता और मंत्र जप ऊपरी तलछट जैसे ही होते हैं, ऐसे विचारों सेthत होते हैं, ऐसी इच्छ ओं से की होते हैं मैं हूं हूंija मैं लक तella. और लक्ष्मी का मंत्ág. मैं बलवान होना चाहता हूँ, मैं ताकतवान होना चाहता हूँ, मैं शत्रुओं को परास्त कecerg
और ऊपरी तलछट अपने-आप में बाहरी कार्यों पर नियन्त्रण प्रagaप demás करने की अदम्ब इच्छा है, वहाहे लोभ हो हो औ हो हो ध razón ध्यान के लिये इन वस्तुओं की आवश्यकता है ही नहीं, मंत्र जप से ध्यान संभव ही नहीं है, ध्यान के लिये तो अपने आपको भुला देना ।ा ।ा ।ा। va। va जिसने अपने आपको भुला दिया, उसने ध्यान की ओर पहली बार कदम बढ़ा दिया। सजग रह कर अपने दोनों हाथों को सद्गुरू के हाथों में सौंप देने की क्रिया को ध्यान की स्थिति कहते।।।।।।।।।।।।।।।।।। अपने आप को उनके चरणों में समर्पित कर देने की क्रिया को ध्यान की दूसरी सीढ़ी कहते।।।।।।।।।। अपने आपको मिट mí उनके सुख और दुःख में ही अपन mí और इसके लिये कोई मंत्र जप है ही नहीं, इसके लिये कोई माला है ही नहीं, इसके लिये किसी भी प्रकार के क्रियाकलाकल की आवश्यकता है नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं
इसलिये मंत्र जप के माध्यम से ध्यान नहीं हो सकत mí यह छल है, यह गुमराह करने की प्रकृति है, क्योंकि जहां विचार है, वहां ध्यान नहीं सकत सकता, जहां कुछ पाने की इच इच्छा है वहां ध्यान हो।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। elécánico जो सब कुछ छोड़ देता है वह सब कुछ प्राप्त टुकड़ों-टुकड़ों में खाने से सब कुछ प्रagaप्त नहीं हो सकता, क्योंकि हम कंकड-पत्थर तो इकट्ठे कर सकते हैं, मगर मूल ¢ से से जो कुछ प प प ender uto करना है, उसको हैं हैं।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। eléctrico eléccular ज्योंही हम पत्नी को प्रagaप्त करना चाहते हैं, ज्योंही हम पुत्र को प्रagaप्त करना चाहते हैं, तो इस ूप में कंकड कंकड-पत्थर ही हम इकट्ठे करते है है।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। एक पत्नी, दो पत्नी, दस पत्नियां, प्रेमिकायें, बीस प्रेमी, पांच लाख रूपये, दस लाख ूपये ये सब कुछ तो ऐस ही है नहीं प है है है ज ज जे जे जे जे जे जे जे जे जे— सकत सकत जे जे— सकत— तो आपकी अर्थी अकेली ही जायेगी।
वह धन जो अद्वितीय है, जिसको आन्नद कह mí जिसने अखण्ड प्रagaप demás कर लिया, उसके सामने ऐसे ध्येय तो कंकड पत्थर की तरह ही हैं।।।।।।।।।। वह ठोकर मार देगा हीरों को, क्योंकि उसके स mí हैं। और आप ज्यों ही नर से नाisiones आप शांत समुद्र बन सकेंगे, तभी आप उस जहर— जो शेषनाग का जहर है, उस पर आराम से लेट, जहर आपके शरीर में में में नहीं सकत सकतaños इसलिये ऐसी किसी भी विधि के माध्यम से भूलकर भी ध्यान की ओर बढ़ने की कोशिश मत कûendr
¿Está bien?
ध्यान से आगे की जो स्थिति है, वह धारणा है। " गुरू तुम्हें उस जगह ले जाकर खड़ा कर देता है, जहाँ गुरू बनने की क hubte जब तक तुम शिष्य हो, तब तक तुम उसकी उंगली पकड़कर चल रहे हो, मगर ध्यान की अन्तिम अवस्था पर पहुँच कर गुरू तुम्हें छोड़ देता है Dav उसे उसे है है है razón उसको मैं सूर्य बनाने की ओर प्र वृत्त अभी तक तो यह दीपक था, मगर अब इसमें इतनी क्षमता आ गई है कि, जो कुछ मैंने दिया है वह खो सकत सकतguna, इसके हृदय में जम गई है मे मेरी बात।।।। ध्यान की जिस अवस्था में वह पहुँचा है, उस अवस्था से वापस नहीं आयेगा। संसार में ¢ हेग तो तो, साक्षीभाव में ही रहेगok, एक दिखावे के रूप में ही ¢ endr. साक्षीभ razuar. यह बस ब sigue.
मगर अन्तः स्थल में वह ध्यान की अतल गहराइयों में है, धारणा में।।।।।।।।।।।।।। पूर्णता के साथ में है, अब यह वहां से हट नहीं सकताॾ अब बाहरी मोह-माया इसको व्याप्त नहीं हो सकती, अब यह मुझसे परे नहीं हो सकता, अब इसके की की क्रिया नहीं।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। eléctrica जब उसमें द्रष demás भाव आ जाता है— तब गुरू उंगली छोड़ देता है, तब गुरू उसका हाथ छोड़ देता है। जब वह धारणा शक्ति में खड़ा हो जाता है, उसके पांव में मजबूती आ जाती है, तब वह आगे की स्थिति प्राप्त कर लेता है— और जहाँ आगे की स्थिति प्राप्त होती है, वहां स्थिरता आने लग जाती है, जब हृदय में धारणा शक्ति प्रारम्भ हो जाती है, तब वह विचलित नहीं होत mí
इस अवस्था में पहुँचने पर, इससे आगे का कदम है- धारणा शक्ति। यहाँ पहुँचने के बाद वह पीछे हटता ही नहीं है। जिसने एक बार उस आनन्द को चख लिया, उसे ऐसा लगेगा बहुत गंदा समाज है, घिनौना और घटिया, झूठ, छलर औ कपट से भर ve हुआ—वह उस अवस ध हो ज ज त N, की की होने क कहते हैं हैं ज ण त, की होने कहते कहते क क Nija हैं क कella ध sigue, शक्ति ध्यान के आगे की क्रिया है, वहाँ ध्यान अपने आप आगे बढ़ेगा, उस समय उसकोatar वह स्वयं अपने आप में रूपान्तरित हो जाता है— तब उस में ivamente वह नर से नार marca बनने की ओर आधी से ज्यादा दूरी पार कर लेता है और धीरे-धीरे परिव compañía होत होत हुआ धारण शक में में ही अपने आप परमहंस अवस्थ में पहुँच ज। tan
'परमहंस'- हंस के समान स्वच्छ और निर्मल, जिसमें किसी प्ηaga का मैल नहीं है, छल नहीं है, छूठ नहीं है, कपट है है, मोह है है औ औ किसी भी प प कृष कृष कृष कृष कृष कृष कृष कृष कृष कृष कृष कृष कृष कृष कृष कृष कृष कृष कृष कृष कृष कृष कृष कृष कृष ण ण ण ण ण ण ण ण ण ण ण ण ण ण ण ण ण ण ण ण ण ण ण ण ण ण ण ण ण ण ण ण ण ण ण ण ण ण ण ण ण ण ण ण ण ण ण ण ण ण ण ण ण ण ण — आप में योगेश्वर हैं— राधा से प्रेम करता हुआ भी वह अपने आपमें ब्रह्मचारी है— हजारों रानियों का पति होते हुए भी वह अखण्ड ब्रह्मचारी है- और महाभारत का युद्ध करते हुये भी वह अपने आप में जगद्गुरू है- 'कृष्णं वंदे जगद्गुरू' यह स्थिति धारणा शक्ति के माध्यम से ही सम्भव है। धारणा शक्ति तक पहुँचने के लिये कुछ प्रयत्न करने की आवश्यकता नहीं है, लेकिन ध्यान तक पहुँचने के लिये तो सद्गुरू की जरूरत है और ध्यान के आगे धारणा तक पहुँचने के लिये सद्गुरू नहीं है, क्योंकि वहां तो अकेले ही यात्र करनी है, क्योंकि वहां से आगे का रास्ता उसका ¢ है है, कोई पगडंडी नहीं है, अटपटी जगह नहीं है, अस्पष्ट नहीं, यह सीधा राजपथ है, जहां चलते चलते है— उस पर अपने आप पै पै बढ़ेंगे बढ़ेंगे उसकी मस तिय तिय बढेंगी अपने अपने अपने अपने उसके आप आप मस मस तिय तिय तिय बढेंगी अपने अपने अपने अपने आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप उस जगह खड़े हो जायेगा- जिसे परमहंस अवस्था कहा है
¿?
चौबीसों घंटे सजग रहने के लिये किसी किसी प्रकार का प्रयत्न करने की आवश्यकता नहीं है, तुम्हें साक्षीभाव से रहना है, सजग तो तुम तुम्ह्ह अनículoदár. जब गुरू को तुमने अपने अपने अपने अन Sअनlesia ध sigue Siempre क sig तो तो वह अपने आप में में सजग है ही ही ही ही क्योंकि वह गुरू शरीरीर नहीं है है है, क क क क क वह वह गु की से N ' अवस्था है, वह 'पूर्णता' की अवस्था है— जब वह अन्दर है, तो जितनी बार भी हृदय धड़केगा, तो सद्गुरू की ही धड़कन होगी, गुरू शब्द के बिना हृदय धड़क ही नहीं सकता, धड़कन तभी होगी जब गुरू होगा— क्योंकि गुरू उस धड़कन के साथ एकाकार हो जाता है।
प्रत्येक धड़कन के साथ गुरू को सजग ominó , सजगत marca तुम्हारी धड़कन में है है है—और धड़कने के लिए हृदय को कहना नहीं पड़ता- तुम धड़को धड़को वह तो ऑटोमेटिक क्रिया है, आप सोते हैं तब भी हृदय धड़केग ही ही आप हैं तब तब हृदय धड़केग धड़केग धड़केग धड़केग आप क चल चल चल तब आप जगते हैं हैं तब तब हृदय धड़केग धड़केग धड़केग आप धड़केग ija चल तब तब भी जगते हृदय धड़केगा --और जब वह धड़केगा— और गुरू जाग्रत है, अतः वह तुम्हें अपने आप जाग्रत रखेगा ही।।।।।। पल-पल तुम्हें उस रास्ते पर बढ़ायेगा ही। आवश्यकता केवल इतनी ही है कि, तुम्हें अपनी धड़कन में गुरू को एकाकार कर देना है।।।।।। यह सजगता जीवन की एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है।
¿?
धenas हमारी चीज नहीं है, हमने धर्म को स्वीकार नहीं किया है, धर्म तो हम पर थोप दिया गया है।।।।।।। मेरे म siguez ये तो जिन मां-बाप के घर में जन्म लिया और वे जो थे, वही मुझे बनना पड़ा, इसलिये धर्म आन्तरिक प्रवृत्ति नहीं।।।।।।।।।।।।।।।।।।।
धर्म बाह्य प्रवृत्ति है— और जो बाह्य प्रवृत्ति है, उसके माध्यम से ध्यान प्रagaप नहीं हो हो सकत वह श razón श अवस अवस है है है हैellas. जब शरीर समाप्त हो जायेगा, तब तुम न हिन्दू रहोगे, न मुसलमान रहोगे, क्योंकि शरीर है तो तुम्हारaga धर्म है— क्योंकि शरीर के मbar uto से ध ध ध razón को पहचguna है है। ।ecer मैं हिन्दू हूँ, इसलिये मुझे मंदिर के सामने झूकना चाहिये। मैं मुसलमान हूँ इसलिये मुझे मस्जिद के सामने झूकना चाहिये। यह 'हूं' शब्द अहंकार का द्योतक है, अहंकार तुम्हाisiones जो शरीर धारण कर सकता है, वह ध्यान कैसे बना सकता है, ध्यान तो उसके बहुत आगे की है, सातवें तल पर है।।।।।। इसलिये धर्म के माध्यम से ध्यान की अवस्था प्रagaप demás नहीं हो।।।।।।।। इसलिये ध्यान के लिये- न हिन्दू है, न मुसलमान है, न ईसाई है, न सिख।।।।।।।।।।।।।।।।। eléctrica न निराकार है, न साकार है, न सगुण है, न निर्गुण है। न देवता है, न दानव है, न राक्षस है। न भाई है, न बहन है, न सम्बन्धी है, न रिश्तेदार है।
कुछ भी नहीं है, इसलिये धर्म के माध्यम से तुम ध्यान प्राप्त नहीं कर सकते, धर्म के माध्यम से धारणा भी संभव नहीं है, यह तो केवल बाह्य शरीर की अवस्था है— और शरीर की अवस्था से शांति और ध्यान को प्राप्त नहीं किया जा सकता ।
प्रश्नः कई साधु-संत और गुरू ध्यान की और ध marca ण अलग-अलग विधियां बताते हैं हैं आपकी पद्धति सर posterir
मेरी राय में कोई पद्धति गलत नहीं है। वह व्यक्ति गलत है, यदि उसे ज्ञान नहीं है, यदि वह केवल शब्दों के माधutar तिब्बत में ध्यान करने की विधि अलग है, वहां पर इन चित्त अवस्थाओं की आवश्यकता है ही नहीं, उन लामाओं की की की बिलकुल हटकर है है मguna से से ध भी भीella न Estellas
इसलिये मैं यह नहीं कहता- कोई विधि गलत है। विधि तो सभी सही हैं मगर व्यक्ति को ज्ञान नहीं उस उस साधु को, योगी को या गुरू को ज्ञान नहीं है, वह जो कुछ कुछ देत प कguna है है है है है है है है N प पella. सही रासن sup sin साधु या संत नहीं बन सकता।
ब sigue. - 'ध्यान क्या चीज है?' वह तो शब्दों के माधutar — शब्द अपने आप में ध्यान नहीं है।
मैं किसी भी विधि को गलत नहीं कहता हूँ। इसलिये उन व्यक्तियों को वे चाहे साधु हैं, चाहे संन्यासी हैं, च siguez प्रश्न यह है कि? यदि वे जानकार है और उनको किसी अन्य विधि का ज्ञान है, तो सही हैं हैं बारह सौ विधियां हैं्ञ ज में uto ञ प tercículo क की एक नहीं अपने प प प प प प ब ब म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म. । देखना यह है- उस व्यक्ति के प siguez देखना यह है है, कि क्या वह रास्ते पर चला हुआ है या केवल भ्रमित कर omin "है।।।।।।।।।। इसलिये मुझे किसी साधु-संन्यासी से विरोध नहीं है, मुझे केवल उसके अहंकार से विरोध है, उसकी नासमझी से विरोध है, उसकी लफ्रफाजी से विatar
¿Está bien?
जब ध्यान के बाद व्यक्ति धारणा शक्ति में पहुँच जाता है, तब गुरू अपने आप में निश्चिन्त हो जाता है- अब यह अपने रास्ते पर निरन्तर गतिशील होगा ही, क्योंकि बाहरी संसार की कोई विषय वासना, कोई भावना इनको गंदा नहीं कर सकती, इसको मैला नहीं कर सकती, इसको हटा नहीं सकती— और वह उसका साथ छोड़ देता है— मगर वह देखता रहतok है सजग दृष्टि से, वह सही र íbor गतिशील नहीं होगा, तो फिर पीछे की ओर हटेगा, गति तो है ही, चाहे आगे की ओर हो, या पीछे की ओर हो।
यदि वह आगे की ओर गतिशील नहीं हुआ, तो पीछे की ओर वापिस लौटकर एक साधारण सी स्थिति में आ सकता है, यहर है— उस गुरू को ड ड है है हैella है ध धella. है— और उसको ध धellas की कीág ओ sig बढ़ sigue देत mí है— ज ender वह पीछे पीछे हटता है, त्योंहि गुरू उसको उसको धक uto देक sig ध sig ध sigue की बढ़. यद्यपि ऐसे क्षण बहुत कम होते हैं, मगर फिर भी एकाध बार ऐसा हो सकता है।।।।।।।
इसलिये गुरू की क्रिया बहुत कठिन होती है, उसको बिल्कुल सजग ivamente हन पड़तguna - उस उस फिर भी उसके मन एक एक ही बात हती है, कहीं अधोग अधोग अधोग नहीं बन ज ज, उस गु बिल बिल बिल बिल खड़ खड़ खड़ खड़ खड़ खड़ खड़ खड़ खड़ खड़ खड़ खड़ खड़ खड़ खड़ खड़ खड़ खड़ खड़ खड़ खड़ खड़ खड़ खड़ खड़ खड़ खड़ खड़ खड़ खड़ खड़ खड़ खड़ खड़ सजग खड़ सजग सजग खड़ खड़ सजग सजग सजग सजग सजग सजग सजग सजग सजग सजग सजग सजग सजग सजग सजग सजग सजग सजग सजग सजग सजग सजग सजग सजग सजग सजग सजग सजग सजग सजग सजग सजग सजग सजग सजग सजग सजग सजग सजग सजग सजग सजग सजग सजग सजग सजग सजग सजग सजग सजग सजग सजग सजग सजग सजग खड़ खड़ सजग खड़ खड़ खड़. ओर एक खतरनाक ढलान होती है। मगर ऐसा बहुत कम हो पाता है, जिसने ब बार उस आनन्द को चख लिया, अनुभव कर लिया, वह विषय विषय-वासनाओं में हो हो पायेगा—? वह तो बढ़ेगा ही और निरन्तर बढ़ता रहेगok और जब धारणा शक्ति हो हो जाती है, तो गुरू निशि्ंचत हो जाता है- वह र र हैर हैículo क क क क क क क Nija. - समाधि के पांच -
- समाधि का अर्थ है- अपने आपको पूर्णता
समाधि का अर्थ है- पूरे ब्रह्माणutar
-
समाधि का अर्थ है- समस्त ब्रह्माण्ड को अपनी से से देखना।
समाधि का अर्थ है- उस ब्रह्माण्ड की किसी भी हलचल में हस्तक्षेप करके उसको अपने या सामने वाले के बन बना देना।
जब ऐसtan हो हो जtan है, तो फिág मृतár मृतutar यु उसे नहीं नहीं छू सकती सकती, क ender वह वह मृत मृत से से ऊपág उठ उठ जtan है, क mí ल से भी भी ऊपर उठ उठ ज ज है, प sig हजendr समय समय समय प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प. प प प प प प प प प प प प प. प प प प प प प प. सामने कोई मायने नहीं रखते। दस हजार साल भी उसके लिये उतने ही होते हैं, जितना कि एक सैकण्ड या एक मिनट होता है, फिर वह अजन्मा होता है, निर्विकार होता है, निश्चिन Dav "है।।।।।।।।।।।।।।।।
यह अलग बात है, यदि वह च mí. कृष्ण ने जन्म नहीं लिया, कृष्ण अवतरित हुये, ऐसा लगा देवकी को कृष्ण मेरे गर्भ से उत्पन्न हुआ— ऐसा अहसास हुआ हुआ हुआ हुआ हुआ हुआ हुआ हुआ वेदव्यास ने कहा- नवें महीने तक भी देवकी को यह अहसास ही नहीं हुआ कि, वह गर्भवती है। अचानक उसकी आँख खुलती है, तो समाने रोतok हुआ कृष्ण उसे दिखाई देता है— और उसका मातृत्व, वात्सल्य जgonya हो हो ज है जन से से निकलने निकलने निकलने निकलने निकलने निकलने निकलने निकलने निकलने निकलने निकलने निकलने निकलने निकलने निकलने निकलने निकलने निकलने निकलने निकलने निकलने निकलने निकलने क क क क क क क क क क जन जन जन जन. है - यह अवतरित होने की क्रिया है— और उस एक क्षण के लिए वह विस्मृति में डूब गई गई— क्षणमenda में एक ऐस ऐसguna घटन घटित गई गई, जो आप में अद अद क क क क क गय गय गय गय गय गय गय गय गय गय गय गय गय गय गय गय गय गय गय गय गय गय गय गय गय गय गय गय गय गय गय गय गय गय गय गय गय गय गय गय गय गय गय गय गय गय गय गय गय गय गय गय गय गय गय गय गय गय गय गय गय गय गय गय गय गय गय गय गय गय गय गय tima गय गय गय गय गय गय गय गय गय गय गय गय गय गय गय गय गय गय गय गय गय गय गय. समाज ने उसको जन्म कहा पर योगियों ने उसको अवतरह का
समाधि अवस्था तक पहुँचा हुआ व्यक्ति जन्म नहींलॾलॾ वह चाहे तो अवतरित हो सकता है। उसका चेहरा अपने आप में दैदीप्यमान हो जाता है, वह अपने आप में उस आनन्द को प्रagaप्त कर लेता है, जिसे ने--
पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णदमुच्यते पूर्णस्य पूर्णमendr
उस पूर्ण में यदि पूर्ण मिला दें, तब भी पूर्ण रहेगा और निकाल दें तब भी पूर्ण ही रहेगा, क्योंकि ब्रह्माण्ड पूर्ण है, यह पृथ्वी पूर्ण है, मनुष्य पूर्ण है— और वही मनुष्य यह यात्र पूर्ण करता हुआ उस समाधि अवस्था तक पहुँचा जाता है - बूंद अपने आप में समुद्र बन जाती है- इस बूंद से समुद्र बन जाने की क्रिया को ध्यान, धारणा और समाधि कहते।।।।।।।।।।।।।।।।।।।
वास्तव में ही वे व्यक्ति- वह चाहे पांच साल का हो, वह चाहे साठ स mí. का सौभ marca हो कि कि, उसको जीवन में सद्गुisiones वह हंसता है, ¢ है, खिलखिलाता है— और उसके बावजूद भी वह अपने में अलग अलग बना रहतok है, अपने अन्दर साक्षीभाव रखतok हुआ हुआ हुआ हुआ हुआ हुआ हुआ हुआ हुआ हुआ हुआ हुआ हुआ हुआ हुआ हुआ हुआ हुआ
लोग उसको कामी कह सकते हैं हैं, लोग उसको दुर marca • कह सकते हैं, उसको गालियां दे सकते हैं हैं उसको हल्का कह सकते हैं हैं ब • बार उनके में विभ विभ विभ पैद पैदा होता हैा है औ इस भ भ भ भ ही ही।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। यह व्यक्ति बार-बार अपने आस-पास के परिवेश पर माया का आवरण डालेगा, क्योंकि वह हजार लोगों की को को उस नहीं पहुँच ंटेगा— संभव नहीं है लिये लिये लिये ही ही दो दोenda उन दो-चार हीरो को छाटने के लिये बार-बार उसको माया का आवरण डालना ही पड़ेगा। ज्यों ही माया का आवरण डाला त्यों ही आस-पास के व्यक्ति, शिष्य, समुदाय सोचेंगे- यह व्यक्ति इतना मह मह हो नहीं भी उद होत स स स स होत होत होत होत स स स स स स स स स स स स स स स स आदमी आदमी स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स -यह भी चिन्तित होता है, फिर इस में महापुरूष जैसे कौन-कौन से चिह्न हैं? -
जिसके पास बैठने से ही एक आनन्द, एक सुख की अनुभू ति होती है।
जिसके पास बैठने से ही एक तृप्ति सी अनुभव होती हैैैैै
Sentándose al lado de quien se experimenta la perfección.
जिसके चले जाने से एक खालीपन,
जैसे सब कुछ तो वही है, लेकिन सब कुछ खत्म हो गया, यह घर वही है, आश्रम वही है, क्रिया वही है, भोजन वही है, सब वही है है है वह आनन आनन अनुभूति नहीं है।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।. शरीर तो वैसे का वैसा है मगर उसमें स्पन्दन नहीं ॹ
उस स्पन्दन को गुरू कहते हैं— उस स्पनorar सर्वोच्च निधि है, यदि वह आपको अपने पास खींच ले।
यह हजारों-हजारों जन्मों के पुण्य की प्रतीति है कि वह आपकी उंगली पकड़ कर उस रास्ते पर गतिशील करे- जो रास्ता मनुष्यता से समाधि अवस्था का है, जो रास्ता बूंद से समुद्र बनने की प्रक्रिया है, जो रास्ता जमीन से गौरी-शंकर पर्वत के शिखर तक पहुँचने की क्रिया है और जब आप गौरी-शंकर के शिखर पर पहुँच कर खड़े हो सकेंगे, वह आपके क का श्रेष्ठतम क्षण होगा, तब पूरे विश्व की आप प टिकी टिकी होगी होगी।।। क होग होग razón.
आप सभी मेरे साथ उस गौरी-शंकर शिखर तक पहुँचे, संसार की आँखे आपकी ओर टिकी हों आपके आपके मguna-ब धन धन हों हों, पिछलीर औ व व पीढिय अवस आपकी के के के के के के के के के के के के के के के के के के के के के बन बन बन बन बन बन बन बन बन बन बन बन बन बन बन बन बन बन बन बन बन बन बन बन बन बन बन बन बन बन बन बन बन बन बन बन बन बन— बन बन बन— बन बन बन— हृदय में आप स्थापित हो सकें। मैं ऐसा ही आपको आशीर्वाद देता हूं।
परम् पूज्य सद्गुरूदेव
Sr. Kailash Shrimali
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