प्रवृत्तियों का यह संघर्ष मनुष्य के मन में चला करता है तथा उसका मन इन संघर्षों के मध्य चलता eccion va जब उसमें ज्ञान, बौद्धिकता तथा विवेकशीलता का उदय होता है तब वह प्रवृत्तियों से विलग होने की चेषgon. व्यक्ति धीरे-धीरे संयमित और नियमित वृत्तियों के द्वाisiones आध्यात haba धा sigya मोक्ष प्र sigue
आत्मा तथा परमात haber जीव ब्रह्म में लीन होकर तथा आवागमन के बंधन से मुक्त होकर मोक्ष को प्रagaप्त करता है।।।।।। आत्मा सीमित है तथा परमात्मा असीम। इसकी प्राप्ति की एकात्मकता स्था पित अतः मोक्ष परम ज्ञान और आनन्द की वह अवस्था है, जिसमें जीव (आतgon.
मनुष्य के जीवन क mí सत्व, रज एवं तम प्रवृत्तियां मनुष्य को प्रभावित करती हैं।।।।। जब मनुष्य की बुद्धि सात्विक वृत्ति से आवृत होती है तब वह विभिन्न विरोधी प्ág. यही सात्विक मार्ग मनुष्य को मोक्ष की ओर आकृषऍट ॰ााा स sigue. ऐसी परिस्थितियों में क्रियाओं का कर्त्ता पुरूष न हो कर प्रकृति होती।।।।।।।।।।।।। मनुष्य की बुद्धि तथा मन प्रकृति के द्वारा संचालित होते हैं, तो प्रकृति माया है, जब मनुष्य को सात्विक ज्ञान की प्राप्ति हो जाती है तब उस पर से माया का आवरण हट जाता है और उसकी मुक्ति या कैवल्य की स्थिति हो जाती है। यही प्रकृति और पुरूष का सम्बन्ध है।
गीता के अनुसार जो पुरूष सम्पूर्ण कर्मों को सब पต े प्रकृति द्वारा किया हुआ देखता है अर्थात् इस बस स लेता है, कि प्रकृति से उत्पन्न हुये सम्पूर्ण गु देखते हैं तथा आत्मा का अकर्त्ता देखता है वही ता ूप में देखता है।
La acción de la naturaleza es una acción procesable.
Yah pashyati tathamanamkartaram sa pashyati.
वस्तुतः प्रकृति तथा पुरूष के परस्पर सम्बन्ध से ही सम्पूर्ण जगत की स्थिति है।।।।।।।।। यही गीता का कथन है
क्षेत्रक्षेत्ivamente
व्यक्ति जब प्रकृति की शोभा व उसकी सुन्दरता पर म् ं मोहित हो जाता है तब वह आध्यात्मिक एवं उच्चकोकााा न द्वारा इसकी वास्तविक स्थिति को ज्ञात कर लेता उसके साथ तादात्मय स्थापित करता है और प्रकृचि स। ी बन जाती है ब्रह्म अथवा परमात्मा से आत्मा का सम्मिलन ही मोक्ष है।
आत्मज्ञान की पूर्णता ही ब्रह्म की निकटता है, जो कि मोक्ष भी।।।।।। अन्तस की अज्ञानता तथा भ्रagaमकता मनुष्य के लिए ब्रह्म प्रagaप demás में अवरोधक है।।।।।।।। अतः इस अज्ञानता का जब नाश हो जाता है तब वास्तविक अर्थों में ज्ञान की प्रagaप्ति होती है और इसे ही मोक्ष कहा जाता है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है. जो व्यक्ति निश्चयपूरorar
Yo'nt: Sukhantarayast Thantarjyotirev Yah.
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काम, क्रोध से रहित, विजित चित्त पर ब्रह्म परमात्मा का साक्षात quiblemente
काम क्रोध वियुक्तानां यती नां
अभितो ब्रह्म निर्वाणं वर्तते विदितात्मनाम्। ।
अपनी दुष्प्रवृतियों तथा अज्ञानताओं से रहित होने की सच्ची अनुभूति है है और तभी परब्رecer इसके साथ ही अपनी इन्द्रियों, मन और बुद्धि पecer
Yatendriyamano Buddhirmunirmokshaparayan:
विगतेच्छभयक्रोधो यः सदा मुक्त और सः।
इस प्रकार ब्रह्म को जानने वाला व्यक्ति स्हयं ह् म हो जाता है-
Brahmavid Brahmaiv Bhavati.
मोक्ष प्रagaप Est के इच्छुक व्यक्ति के लिये यह आवश्यक है है, कि वेदों का ज्ञान प्रagaप्त करें, धर्मानुसार पुत्रों उत्पन Davelar
अधीत्यविधिवद्वेदान्पुत्रंश्चोत्पाद्य धर्म।
इष्ट्वा च शक्तितोयज्ञैर्मनो मोक्षे निवेशयइत्
मनु के अनुसार तीनों ऋणों- देवऋण, ऋषिऋण, पितृऋण को पूर्ण करके ही व्यक्ति को अपना मन मोक्ष में लगाना चाहिये। इन ऋणों का शोध किये बिन mí
रुणokनि त्रिन्यपकर्त्य मनो मोक्षे निवेशयेत्।
Anapakritya Mokshan Tu Sevmano Vrajtyadh.
विष्णु पुराण के अनुसार सभी कार्यों अर्थात सभी आश्रमों के काisiones
Mokshashram Yascharate Yathoktam. Shuchisukham imaginario sabio.
अविन्धनं ज्योतिरेव प्रशांतः स ब्रह्मलोकं श्रयते द्विजातिः ।।
वायु पुराण में कहा है, कि अंतिम आश्रम का अनुवर्ती व्यक्ति शुभ तथा अशुभ कर्मों का त्याग कर जब अपना स्थूल शरी compañía मुक है तब जन्म-मृत तguna त sigue
Meditación de ubicación: Jitendriya:. Shubhashubhe Hitya Cha Karmani Ubhe.
Idam Shariram Pravimuch Shastra. No morirá o tal vez.
ब्रह्माण्ड पुर marca
कर्म तथा ज्ञान के अतिरिक्त मोक्ष प्रagaप्त करने के लिये एक अन्य साधन भक्ति का मार्ग है।।।।।।।।।। गीता में इस विषय को लेकर विशद चर्चा की है है तथा भक्ति को अपेक्षाकृत श्रेयस demás माना गया है।।।।।।।।। भक्ति मार्ग में मनुष्य ब्रह्म के सगुण ूप की परिकल्पना करके उपासना करता है और अपने को पूर्ण रूप से ब ब्रह्म की सेवा में समecer. ब्रह्म ही जीव का सब कुछ हो जाता है- स्वामी, गुरू, माता, पिता, सखा आदि।।।।।।।।।।। उसके साकार रूप की उपासना होती है तथा उस तक पहुँचने के लिये अपार भक्ति की जाती है।।।।।।।।। मनुष्य अपनी सब इच्छाओं को त्याग कर तथा फल की आकांक्षा किये बिना अपने को ईश्वर के प्रति उत्सर्ग कर देता है, ऐसी्थिति में वह सुख-दुःख ऊंचguna तथ सचella ची मृत वहella. है।
मोक्षाकांक्षी व्यक्ति के लिये रागद्वेष, लोभ-मोह पर नियंत hubte इन कर uto त का पालन करने से वह अपनी अपनी आत्मा को शुद्ध, उदात्त एवं दिव्य बना कर ही मोक्ष की ओर अग Nuestzo हो सकेग।।।।।।।।।।।। Jow
विष्णु पुराण में भी कहा गया है, कि मोक्ष के आकांक्षी व्यक्ति को शत्रु-मित्र सभी समभ समभ mí. मत्स्य पुराण काम के त्याग पर भी बल देता है। मनु ने भी कहा है-
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संन्यासेनापहत्यैनः प्राप्नोति परमांगतिम्। ।
अर्थात् 'स्पृहाहीन समभाव वाला व्यक्ति निश्चित रूप से आत्मज्ञान प्रagaप्त करता है एवं अपने लक्ष्य प्र में सफल होत • है।।।।।। है अपने अपने लक्षella. अन्ततः उसे परमगति अर्थात् मोक्ष प्राप्त होती होतै ह
ama a tu madre
Shobha Shrimali
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