क्रिया योग को लाहिड़ी महाशय ने भी समझाने का प्रयास किया, विशुद्धानन्द ने भी समझाने का प्रयत haber इसको समझाने के लिये अपने-आप को समुद्रवत् बनाना ही पड़ता है। मैंने यह समझाया, कि व्यक्ति किस प्रकार से अपने जीवन में धारण tomar आप एक दिन गुंजरण करेंगे, तभी आपको एहसास होगा, कि इससे मानसिक तृप्ति भी अनुभव होती।।।।।।।।।।।।। एक ऐसा एहसास होता है, कि कुछ है जो हमारे जीवन में स्पष्ट नहीं है और यदि गुंजatar
इसलिये कि उसे सुख मिले और उस सुख और आनन्द की प्रagaप्ति के लिये अज्ञानवश अधोगामी पthág.
संतान पैदा करना अपने आप में सुख का अनुभव हो सकता है, परन्तु उसको बड़ा करना बड़ा ही श्रमस flavor है है।।।।।।। वह कोई आसान काम नहीं है, बहुत सी परेशानियां, कष्ट है इसमें औendr
सुख दूसरी चीज है और आनन्द दूसरी चीज है। पंखा चल ¢ है, यह मुझे सुख तो दे सकता है, मगर आनन्द नहीं दे सकता। यदि कोई मानसिक तनाव में है, तो बेशक ए-सी- लगा हुआ हो, नौकर चाकर हों- सब कुछ बेकार है।।।।।।।।।।। यदि व्यक्ति बीमार है, अशक्त है, हार्ट का मरीज है, तो उसको धन और मकान कहाँ से सुख देंगे देंगे देंगे देंगे देंगे देंगे देंगे देंगे देंगे देंगे देंगे देंगे देंगे देंगे देंगे देंगे देंगे देंगे देंगे देंगे देंगे देंगे ये सब उसे आनन्द नहीं दे सकते। आनन्द की जो प्रवृत्ति है, जीवन का जो सच्चिदानन्द स्वरूप है, जिसको सत् चित् औecer.
आप आसानी से गुंजरण क्रिया के माध्यम से ध्यान में सकते सकते हैं।।।।।।।।।।। ध्यान जहां अपने आपको अपना ज्ञान नहीं रहे, हम थॉटलैस माइण्ड बना सकें, अपने में ह endr. लेकिन हमने गुंजरण करना छोड़ दिया। हमारे शास्त्र, हमारे गुरूओं, राम, कृष्ण और पैगमutar
मैं आनन्द शब्द प्रयोग कर रहा हूँ सुख शब्द का प्रयोग नहीं कर रहा हूँ सुख तो आप पैसा खर्च करके भी प्राप्त कर सकते हैं, पर आनन्द नहीं। सुख के व्यूह में फंस कर तो आपको उन तृष्णाओं की ओर से भागना ही पड़ेगा। ऐसे जीवन का तो कोई अन्त है ही नहीं, क्योंकि जो सुख दिखाई दे रहok है वह सुख है।।।।।।।।।।।।।। यदि यही सब सुख होता तो जीवन में इतनी विसंगतियां, इतनी बाधायें, परेशानियां नहीं।।।।।।।।।।।।।
जीवन में आनन्द की प्रagaप्ति का पहला पड़ाव ध्यान है सत्, चित् और आनन्द। आनन्द तो बाद में है पहले हम अपने जीवन को सत्यमय बना सकें, उसके बाद ही quis यदि हम देखें, तो अपने जीवन-आनन्द की प्रagaप्ति के लिये नहीं भटक रहे हैं, इसके लिये आप प्águestos आप प्रयत्न कर ominal हैं- सुख की प प्रagaप sig के लिये लिये,- और सुख आप आप में संतोष संतोष संतोष आनन्द, धैर्य, मधु sigue.
ध्यान के बाद तीसरी स्टेज होती है, 'समाधि'। समाधि के बारे में याज्ञवल्क्य ने एक सुन्दर श्लोक में समझाया है-
चित्तं प्रदेव वदत sigue.
आत्मं परां परमतां परमेव सिन्धु, सिद्धाश्रमोद वरितं प्रथमे समाधि ।।
समाधि वह होती है, जब हम स्वयं को सुखों से बिलutar अलग अलगatar सुख से भोग पैदा होता है, भोग से रोग पैदा होता है और ¢ से मृत्यु पैदा होती है है— और वह ivamente मृत्यु को परे हटाकर हम प्रकृति से बातचीत करना से पुष्प को तोड़ कर कोट की जेब में डालने की जenas pod प्रकृति के बीच में यदि बैठ जायें- तो घंटे दो घंटे अपने आपको भुला सकें और उसके स mí.
जब वह हृदय कमल अपने आप में प्रस्फुटित होने लग जाता है, तब अमृत वर्षा होने लगती।।।।।।।।।।।।। नाभि में अमृत है है, जिसके माध्यम से पूरा जीवन संचालित होता है। चित् ज्यों ही अपने आप में जाग्रत अवस्था में पहुँचता है, आनन्ददायक अमृत की बूंदें बूंदें्तृत होकर पूरे शरीर ी कोर चित् को पguna देती देती ज ज हम हम N ° त हम चितella. ।
चित् के निकट पहुँचने पर आप उस समाधि में लीन होंगे, जहां, आपको तीन अवस्थाये प्रagaप्त होंगी।।।।।।।।।।। पहली अवस्था में हम गुंजरण क्रिया करें, शंख और सोऽहं मंत्रोंच demás च के माध्यम से देर तक हो सके, करें। बत्तीस मिनट की गुंजरण क्रिया पूर्ण कहलाती है। उच्चकोटि का योगी बत्तीस मिनट तक सांस को नहीं टूटने देता। प्रagaacho में में व्यक्ति एक मिनट या दो मिनट गुंजरण क्ágamientos इस क्रिया को करने के लिये किसी पाठशाला में बैठने की जरूरत नहीं है, मात्र 'सोऽहं' के गुंजरण के सहारे इस सारे शरी compañía को च marca ज किया सकता सकत सकत है।।।।।।।।। स sigue.
इस क्रिया के माध्यम से योगी शून्य में आसन लगा लेते हैं, जमीन के ऊपर उठकर साधना कर लेते हैं।।।।।।।।।।।।।।।।। जब भरorar. पूरी पृथ्वी पर हजारों बार आबादियां बनी और नषगऍो जमीन का कोई भी हिस्सा ऐसा नहीं है, जिस पर थूक, लार, रक्त नहीं गिरा हो, कौन सा स्थान पवित्र है, जहां पर बैठकर सोऽहं साधना की की ज ज ज N.
भर्तृहरि ने कहा- मुझे तो पृथ्वी पर ऐसा कोई भी स्थान दिखाई नहीं दे रहok है, जहां पर किसी प्रकार की नहीं नहीं ही हो।।।।।।।।।।।।।। हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो eléctrica eléctrica eléctrica गुरू ने बताया- केवल एक ही स्थान है जमीन से ऊपर उठकर ही यह साधना सम्पन्न हो है।।।।।।।।।।। गुंजरण क्रिया के माध्यम से शरीर के अन्दर उतनी विद्युत, उतनी ऊर्जा पैदा हो जाये, जिससे वह हल्का हो, ऊपर उठ सके।। सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके उठ उठ उठ उठ उठ सके eléctrico eléctrica
अभ्यास तो आपके हाथ में है, क्योंकि यह तो क्रिगथह आप करके तो देखें और नहीं, तो फिर
फिर मैं आपके प्रति जिम्मेदार हूँ, मगर आप करेंगे ही नहीं और खड़े होकर आलोचना कर देंगे तो फिर आलोचना करना कोई बड़ी बह बहादु razón और विशेषता की ब ब नहीं है है है है है है है है है है की की।।।।।। हमने इसे एक फैशन सा बना रखा है।
हम जो कुछ भी कहें, पहले हम स्वयं दमखम के XNUMXाथ उस गुंजरण क्रिया को इतनी तेजी के साथ करें, जिससे अन्दर विद्युत पैदा हो सके, हीट पैदा हो सके और वायुयान में जब हीट बनती है, तो उस विद्युत प्रवाह के कारण से ही इतना बड़ा हवाई जहाज ऊपर उठ जाता है, यदि उसमें एक छेद कर दिया जाय, हीट निकलने क sigue.
आपने अपने जीवन में किसी मरते हुये आदमी को देखा नहीं, वह भी अपने आप में अनुभव अनुभव है। जब आदमी मरता है, तो उसके अन्दर जो प्रagaण है, वे दस में से भी भी द्वार से बाहर निकल जाते हैं और उसकी मृत्यु ज गुद है मुंह मुंह औ एक एक एक एक एक एक एक एक एक एक एक एक एक एक एक एक एक एक एक एक एक एक एक एक एक एक एक एक एक एक एक एक एक एक एक एक एक एक एक एक एक एक एक एक एक एक एक एक एक एक एक एक एक एक. एक लिंग, एक नाभि और दो कान। इन दसों द्वारों से अंदर की विद्युत बाहर निकलतै ै ै यह विद्युत का प्रवाह है, जिसके द्वारा मैं तुम्हें देख रहा हूँ आंखो के माध्यम से, ये विद्युत ही है, कि मैं तुम्हारी बात को सुन रहा हूँ ये अन्दर से निकलती तरंगें हैं, जो मैं बोल रहा हूँ। अन्दर से ब sigue.
मगर मैंने कह siguez साधारण रूप से तो बाहर निकलेगी, क्योंकि भगवान ने ढक्कन तो दिये नहीं।।।।।।।।।। इसलिये जब सामान्य गुंजरण का आठ मिनट का अभ्यास हो जाये तो उसके बाद उन दसों द्वारों को बन्द करके गुंजरण क्रिया का अभ्यास किया जाना चाहिये- यह इसकी दूसरी अवस्था है और जब दसों द्वार बन्द करके गुंजरण करेंगे, तो फिर वह हीट बाहर निकल नहीं सकती , वह अन्दर ही रहेगी। उस गुंजरण के माध्यम से उत्पन्न हुई विद्युत ऊर्जा को अन्दरोकने की क्रिया अपने में चैतन्य क्रिया कहलाती है, यह सम अवसguna का पा प्भिक बिन बिन है है।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।
¿Está bien?
चैतन्य का मतलब है- अन्दर के चित्त को, अन्दर के समस्त चक्रों को क्रिय flavor कुण्डलिनी ज sigue. एक साथ ही पूरे चक्र जाग्रत किये जा सकते हैं। कुण्डलिनी ज sigue. कुण्डलिनी ज sigue. मगर इस क्रिया के माध्यम से एक-एक चक्र नहीं, अन्दर के सारे चक्र एक साथ जाग्रत हो जाते हैं, जिसको 'पूर्ण कुण्डलिनी' जागरण कहते हैं या सहस्त्रार जागरण कहा जाता है और यह इस चैतन्य क्रिया के माध्यम से ही संभव है।
¿Está bien?
मैं प्रैक्टिकल विधि समझा रहा हूं। इन दसों द्वाisiones उसके ऊपर बैठ जायें और दाहिने पैर को लिंग स्थार पार यह सीधी क्रिया है और इस क्रिया में व्यक्ति दस घंटे बैठे तो भी थक नहीं सकता। हाथ के दोनों अंगूठों से दोनों कान के परदे बंद क॰ दोनों तर्जनी उंगलियों के माध्यम से दोनों आंखों को बंद कर दें। मध्यमा के माध्यम से दोनों नथुने और अनामिका व कनिष्ठिका के माध्यम से होठों को कर दें।।।।।।।।। अब उसके बाद गुंजरण क्रिया प्रारम्भ करें। यह एक मिनट का अभ्यास करके देखें, पांच मिनट के अभ्यास के बाद आसन के नीचे से स्पेस बनेग mí आप करेंगे तो आपका शरीर ऊपर उठने की ओर अग्रसर गाोगाोग
दसों द्वाisiones इस अवस्था में पूर्ण समाधि लग जाती है, उसमें शरीर को पूर्ण शून्यवत् बनाते हुये, जमीन से ऊपर उठने को समाधि क्रिया कहते हैं। समाधि क्रिया में आवश्यक है, अन्दर के सारे चक्र जाग्रत हों।।।।। हम अन्दर के सारे चक्रों को जाग्रत रखते हुये, अन्दर से पूर्ण जाग् razón हते हुये बί debe
अब आप प् Est.
ऐसा नहीं है, क्योंकि साधक जमीन से अधिक से अधिक चार फिट ऊपर उठने से शून्य-आसन लगा सकता है और जहाँ आदमी चा rod ऊपendr की तीव्रता पर निर्भर है और फिर जितना ही गुंजरण कम करेंगे, उतना ही वापिस नीचे ज जायेंगे।
¿? क्या आभ sigue.
समाधि का तात्पर्य - अन्दर की सारी चेतना जाग्रत रहना। बाहर से आप कट आफ होते है और अन्दर एक प्रकाश बिखर जाता है और प्रकाश जब अन्दर बिखरता है, तो वह चेहरे के ऊपर भी दिख दिख देने ज ज Sहै है है है है है तो वह चेहरे के ऊपर भी दिख दिख देने ज ज ज sabe है है है है है है है है है है. भगवान ¢ और श्रीकृष्ण के चित्रों के चारों ओर एक वर्तुल, प्रकाश की गोल रेखा देखी।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। वह प्रकाश की रेखा अगर उन लोगों के मुख पर बन सकती है, तो लोगों के के भी बन है है, क्योंकि आप स्वयं ब्रह्म हैं।।।।। हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं। अन्दर का जो आनन्द है, वह शरीर के ऊपर से जब बाहर बिखरने लग जाता है, तो सामने वाला देखते ही एकदम से ठगा सा ह ज gaste। है।।।।।।।।।।।।।।।।। objetivo इतना तेजस्वी चेहरा, इतनी दिप दिप करती आंखें, क्या चेहरaga है, क्या प्रकाश है, जरूर कोई बहुत बड़ा आदमी है, क्या आनन्द का प्रस्फुटन है है है है!
समाधि में अन्दर तो साisiones भूमिगत मेंढक ऑक्सीजन लेते ही नहीं। मेढ़क को यदि आप छः महीने तक बंद कर दें, तो वह बिन mí ¿? क्योंकि बार-बार हाथ हिलाता है, पांव हिलाता है, देखता है, चलता है— और उसकी शक्ति समाप्त होती जाती है, इसीलिये आपको बाendr. जब शक्ति खत्म होगी ही नहीं, तो अन्दर जो ऑक्सीजन है, वह आपको जीवन्त बनाये रखने के लिये पenas प य होगी।।।।।।।।।।।।।।।
इसीलिये समाधि दो दिन की भी ली जा सकती है। और समाधि के आगे की क्रिया को अमृत्यु कहा गया है। समाधि तो कितने ही वर्षों की हो सकती है और जितने वर्षों की आपकी समाधि है, उससे कई गुना ज demás हो आयु हो है है।।।।।।।।।।।।। है है शरीर को चैतन्य करने के लिये, सारे चक्रों को जाग्रत करने के लिये और अमृत ततutar
इस क्रिया के माध्यम से अन्दर गुंजरण को निरन्तर प्रवाहित किया जा सकता है, जिसकी वजह से व्यक्ति शून्य समाधि लगा पाता है, जमीन से ऊपर उठकर समाधिस्थ हो सकता है और ऐसा होने पर उसके अन्दर, एक प्रकाश का उदय होगा, चेहरे से एक मस्ती झलकेगी। आपने भगवान कृष्ण की आंखों में कभी एक उदासी या खिन्नता नहीं होगी।। जब भी आँखों में देखते हैं, एक मस्ती दिखाई देती है, यह अन्दर का प्रभाव है। वही प्रभाव जीवन में प्रagaप्त हो सके, इसी प्रagaप्त होने की क्रिया को समाधि कहते।।।।।।।।।।।।।।। यह तो सीधी स siguez
क्रिया तो आप ही करेंगे, यदि आपको जीवन में ऐसा आनन्द प्रagaप्त करना है, जीवन में यदि पूर्णता प्रagaप्त करनी है, तो आपको क्रिया करनी ही।।। ।gon. गुरू तो आपको केवल रास्ता दिखा सकते है। घोड़े को आप लगाम पकड़ करके तालाब के किनारे ले ज mí आप गुरू की बात सुनकर हूं-हूं करते रहें और घर चले जायें, फिर चार-छः महीने बाद में, कि गुरूजी बहुत दुःखी।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।
अरे! गुरू जी ने तो चार घंटे गला फाड़-फाड़ कर क्रिया योग की विधि को समझाया था, उसका क्या हुआ? अरे गुरू जी! वह तो सब ठीक है, मगर अब व्यापाgres चलाने के लिये मैं क्या करूं?
ये तो आपकी अधोग siguez गुरू तो आपको ऊर्ध्वगामी प्रवृत्तियों की ओर बढ़ा ही हैं हैं।
यह सीधे सादे शब्दों में क्रिया योग है है, यही अपने आप में क्रिया योग की पूर्णता, सिद्धाश्रम प्रagaप क का चरण है, इसी को सिद्ध Dav no स स स हैं हैं।।। हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं ib. यदि आपने लाहिड़ी महाशय का ग्रंथ पढ़ा हो, तो उसमें क्रिया योग के बारे में लिखा है और उन्होंने प्रagauestas कितनी परेशानियाँ हुईं, किस-किस प्रकार से मेरी परीक्षायें ली गयीं।।।।।।।। मेरे गुरू ने मुझे कितना ठोक बजा कर देखा, तब उन्होंने मुझे दीक्षा के योग्य पात्र समझा और इसी परिश्रम की वजह से, श्य य razón क क भी भी भीellas मांआनन्दमयी का नाम मुझको और आपको उत्तम कोटि के व्यक्ति वे होते हैं, जो अपने नाम से दुनियां में छा जाते है।
आपके सामने कई रास्ते हैं। मान लीजिये की आप चालीस वर्ष की अवस्था में पहुथथह चालीस वर्ष की अवस्था के बाद आप जीवन की अधोगामी प्रवृत्तियों में चलेंगे, तो किसी ह हालत में बिड़ला तो बन नहीं सकते, टाटा भी नहीं सकते सकते सकते। सकते सकते सकते सकते सकते सकते सकते सकते सकते सकते सकते सकते सकते सकते सकते सकते सकते सकते सकते सकते सकते सकते सकते बन बन बन बन eléctrica eléctrica लूनी गांव में एक व्यक्ति थे, उनकी उन्नीस संताने आज भी जिंदा हैं, चौबीस पैद mí भौतिकता के रास्तों पर तो असंख्य लोग चले हैं, परन्तु ये ऊर importaमी र बिलकुल हैं।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। इन रास्तों पर बहुत ही कम लोग चल सके हैं। इन ¢ filzos
मैंने जैसा कहा, कि चौबीस घंटों में से केवल आधा घंटा भी ऐसा करेंगे, तो यह भी गुरू सेवा ही।।।।।।।।।।।।।।।।। इतना तो गुरू दक्षिणा लेना गुरू का हक है। गुरू दक्षिणा के रूप में आप से गुरू न धोती चाहते हैं, न कुरता चाहते हैं, न पांच ूपये चाहते हैं, वे तो तो च लिये नित नित नित आधे आधे आधे आधे आधे आधे आधे आधे आधे आधे आधे आधे आधे. उत्तर marcaacho की की दीक्षा अपने आप में ही अत्यन्त अद्वितीय है। जैसा कि मैंने बताया, कि क्रिया योग का पूरा तथ्य समझाने पर ही उत्तर sigue
इसलिये मैंने आपको समझाया, कि समाधि अवस्था कैसे प्रagaप्त की जाती है, शून्य में कैसे कैसे लगाया जाता है और शून्य आसन के म।। से नभ हज हज हज कemente मील ज razón के सकते।। से से से से के के के के के के के के के के के के के के के के के के के के के के के के के के. सशरीर जाने की क्रिया कौन सी है, उसको समझाने पर ही उत्तर्द्ध दीक्षा दी जाती है और यह यहgon.
Kundalini y Kriya Yoga
क्रिया योग जीवन का एक ऐसा सत्य है, जिसके मgon ender से हम स्वयं एक्टिविटी करते हुये, स्वयं क्रियendr. जीवन में और हृदय में आनन्द क mí ऐसी क्रिया योग दीक्षा प्रagaप्त करके साधक निरन्तर क्रिया करता हुआ अपने जीवन में उन्नति की ओर अग्रसर हो सकत mí है है है है है जीवन मगर इसके साथ ही साथ कुण्डलिनी जागरण के बारे में भी मैंने पहले विवेचन किय mí वह तब तक तो बहुत जरूरी है, जब हम क्रिया योग की तरफ बढ़े हो हो, जब हमने क्रिया योग देखा नहीं हो, समझा नहीं हो, सीखा नहीं हों उसक उसक अनुभव हो होguna की की कीella फ dom. जाते हैं, तो कुण्डलिनी अपने आप में एक सामान्य सी स्थिति बनकर ज जाती है।।।।
हमारे शरीर में ऐसे कई चक्र हैं, जिनको नाडि़यों का गुच्छा कहते हैं और वे चक्र यदि स्पन्दनयुक्त हो जायें, जैसा कि मैंने प्रारम्भ में सहस्त्रर के बारे में कहा कि वह यदि जाग्रत हो जाता है, तो उसके माध्यम से जो क्रिया होनी होती है, वह हो जाती है, और वह क्रिया है- भूतकाल को देखने की शक्ति और सामर्थ पैदella करना। जिस प पúmacho uto सहस्तr.acho ग्रंथि श sigue. मूलाधार से लगाकर सहस्त्र pod तक की की क्रिया को कुण्डलिनी जागरण कहते।।।।।।।।।
¿? हमारे शरीर में बहत्तर हजार नाडि़यां हैं औecer तीनों नाडि़यों का प्रagaendogio ीढ़ की हड्डी जहां समाप्त होती है, वहां से होता है और पूरे शरीर में ये नाडि़यां व्य Daviblemente है।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। eléctrica
आज्ञा चक्र में केवल सुषुम्ना नाड़ी पहुँचती है और इड़ा मस्तिष्क तक पहुँचती।।।।।।।।।।।।।।।।। इन तीनों का अलग-अलग स्थान है। हृदय पक्ष में XNUMXमाप्त हो जाने वाली जो केवल बुद्धि से ही ज्यादा कार्य करते हैं, उनकी इड़ा ज्यादा जाग्रत होती।।।।।।।।।।।।।।।।। जो हृदय पक्ष को लेकर चलते हैं, उनकी पिंगल mí यदि हम किसी वैदutar प्रकार का रोग है?
इसका मतलब यह हुआ कि ह siguez हृदय को, दिम siguez
मगर उस सम sigue. जैसा कि मैंने बताया, पिंगला नाड़ी ominó और मस्तिष्क में घूमती हुई, फिर हृदय पक्ष में जाकर समाप्त होती है।।।।।।।।
यदि आपने रीढ़ की हड्डी देखी हो, तो वह बिल्कुल खोखले बेलन की तरह है, जिसमें बत्तीस छल्ले हैं, बिल्कुल गोल। इन छल्लों में से होती हुई ये नाडि़यां आगे की ओecer यह तो मैंने पहले ही बताया था कि हमारा अट्ठानवे प्रतिशत शरीर सुप्तावस्था में है, चेतनायुक्त नहीं।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। उसी जड़ अवस्था में ये तीनों नाडि़यां भी हैं हैं, और तीनों को जिस प्रकार से जाग्रत किया जाता है, उस क्रियendr इसका मकसद है है, पूरे शरीर को चेतनायुक्त बनाकर ऊर्ध्वगामी पथ पर अग्रसर होना।
नृत्य करना किसी प्रकार का भोंडापन नहीं है, यह तो जीवन का एक उद्वेग है है है अपने प प्रस demás करने की क्रिया है।।।।।।।।।।।।।। यदि जीवन में नृत्य नहीं होता, तो कुंठायें व्य Chr compañ हो जाते है।
हमारे पूर्वजों ने होली का एक त्योहार रखा। आज से चालीस साल पहले जैस mí मैंने चालीस साल पहले की होली भी देखी है और आज भी देख रहendr यह उच्च वर्ग की घटना है- कोई मजदूर या कृषक वर्ग की बात नहीं कर ¢ ह हूँ।।।।।।।
¿Está bien?
यदि आपने होली गीत सुने हों तो उसमें आपने देख mí व्यक्ति की दमित दमित इच्छायें होती हैं, उनके पूर्णरूप से प्ág. अगर वह जगह नहीं बनेगी, तो व्यक्ति अन्दर से दमित और कुंठाग्रस्त हो जायेगा, इसलिये ये दो-दिन बन बन दिये कि वthयक अपनी ब ब को खुल खुल से कह दे जो है है दे दे।। ब ब खुल खुल से दे जो है है दे दे दे।।। ब ब खुल खुल से कह दे बोल दे दे दे दे।।।।।।।।।।।। objetivo
नृत्य भी उन्हीं भ sigue. यह कोई भोंडा प्रदर्शन नहीं हैं यह तो जीवन की भावनाओं का उद्वेग है और जीवन भ भावनाओं क्वेग वही प्रagaप कर सकत क हो सुषुम न न favor जो हृदय से जाग demás होते हैं हैं, वे ही अपने आप में मुस demás सकते है।।।।।।।।।।।
आपने अट्टहास शब्द तो सुना ही होगा कि हमा rod " आज यह शब्द हम केवल सुनते है। ऐसा देखते नहीं, आज अगर कोई व्यक्ति जोरों से हँसे, तो हम कहते हैं- यह तो असभ्यता है, बड़ा ही असभ्य है, गंवार की तendr घर की बेटी अगर जोर से हंसने लग जाय तो कहेंगे- तुझे शर्म नहीं आती, क्या घर की बहू-बेटियों के ये लक्षण हैं? रोती हुई लड़की य mí व्यक्ति अट्टहास के साथ अपनी भावनाओं को व्यक्त कecer
होली का त्योहार नृत्य, कलाओं का चिन्तन और अपने आप में निमग्न हो जाने की क्रिया तो चैतन्य महाप्रभु से प्रम हुई।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। है है है है है है है है है है eléctrico eléctrica।।।।।। eléctrica हमारे शास्त् Prod. अब तो सब कुछ बदल गया है, क्लब में जाना, पत्ते खेलना, शराब पीना, सिगरेट के छल्ले उड़ाना- ये सब आज के जीवन क क gusta
इस कुण्डलिनी ज sigue. नृत्य करना है- आँखो के माध्यम से नृत्य करता है- शरीर के माध्यम से नृत्य करता है- चेतना के माध्यम से नृत्य करता है- बातों के माध्यम से, बात ऐसी सटीक करता है, कि सामने वाला एहसास करता है, कि कुछ उत्तर मिला । तुरन्त उत्तर दिया जाये और सटीक उत्तर दिया जाय, यह अपने आप में बहुत बड़ी कला होती।।।।।।।।।।।।।।।।।
मैंने सुख और आनन्द में अन्तर बताया। सुख तो हम पैसे से प्रagaप्त कर सकते हैं, क्योंकि हम ब sigue. आनन्द प्राप्त नहीं कर सकते, क्योंकि आनन्द प्राप्त करने के लिये तो अन्दर की सारी प्रवृत्तियां जाग्रत करनी पड़ती है और वे सारी वृत्तियां जिस प्रकार से जाग्रत होती हैं, उसको कुण्डलिनी जागरण कहा जाता है, यह उसका मूल आधार है।
कुण्डलिनी का मूल आधार मूलाधार चक्र है। उसके बाद स्वाधिष्ठान चक्र है। एक-एक करके चक्रों को जाग्रत करने की क्रिया का बेस क्या है, आधार क्या है, यह मैं पहले ही स्पष्ट कर चुका हूँ।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। चुक चुक echos.
श sigue. आप सांस ले रहे हैं, मगर जैसा मैं पहले ही उल्लेख कर चूका हूँ। आपको सांस लेना आता ही नहीं, क्योंकि सांस का सम्बन्ध सीधा नाभि से।।।।।।।।।।।।।। जब आप सांस लेते हैं, तो आपके नाभि प्रदेश में स्पन्दन होना चाहिये।
यदि आपको देखना है, तो केवल चार-छः महीने के बच्चे को देखें, कि वह सांस ले रहा है और उसकी नाभि थर-थर हिलती है, स्पन होती है है पू पू है है औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ लेते लेते लेते लेते लेते लेते लेते लेते लेते लेते लेते लेते लेते लेते लेते लेते लेते लेते लेते लेते लेते लेते लेते लेते लेते लेते लेते लेते लेते लेते लेते लेते लेते लेते लेते लेते लेते लेते लेते लेते तो केवल गले तक ही लेते हैं। सांस लेना आपको एक बच्चे से सीखना चाहिये और व्यक्ति सांस लेकर अपनी नाभि को स्पन्दित कर सकता है तो वह व्यक्ति स Dav.
मगर हमारे सारे शरीर में दुर्गन्धयुक्त वायु तहीु जहां कोई चीज नहीं होती, वहां वायु होती है। जब सांस लेते हैं, तो कंठ तक यह वायु जाती है। कंठ के बाद में वह वायु नीचे उतरती ही नहीं। इसीलिये मैं कह ह रहा हूँ, नाभि तक सांस लेना चाहिये, क्योंकि नाभि तक सांस लेंगे, तो पूरे शरीर में स्वच्छ वायु का संचरण होगा और मूलाधाatar ज sigue. मूलाधार जाग्रत करने के लिये कुछ फोenas तो तो लगाना ही पड़ेगा।
आपने सपेरे को देखा होगा, जब सांप कुण्डली मा¢ बैठ जाता है।।।।। तो सपेरा बीन बजाता है और यदि फिर भी नहीं उठता है, तो वह हाथ से छेड़ता है, तब सांप फन फैला करके खड़ा होता है।।।।।।।।।।।।।।। इसी प्रकार वह कुण्डलिनी भी सुप्तावस्था में है, इसलिये उसको छेड़ने की जûendr आप सांस इतनी गहराई से लें कि नाभि में स्थित जो चक्र हैं, सीधा उस पर धक्का लगे और जब धक्का लगेगा तो वह अपने आप ज ज होग होग।।।।।।।।।।।।।।।।।।। dos
सबसे पहले कठिन क्रिया यही है, कि हम धक्का लगायेंगे, जोर से सांस लेने और छोड़ने की क्रियendr यदि आप भस्त्रिका करते रहेंगे, तो महीने दो महीने बाद आप उस सutar. पूरे फोर्स के साथ बाहर निकालें। इसलिये हमारे पूर्वजों ने कहा है कि सुबह उठकर गहरी सांस लेनी चाहिये। गहरी सांस लेने का मतलब है, कि अन्दर तक पहुँच सके, मगर पहुँच नहीं पा ¢ है है है पहुँच नहीं पा रही— इसीलिये सैकड़ों प्عL
यदि व्यक्ति को कुण्डलिनी ज sigue. इसलिये इतने फोर्स से सांस बाहर निकालें कि ऐसा लगे, जैसे सीना फट जायेगा और उतनी ही जोर से सांस को वापिस खींचें।।।।।।।।।।। इन दोनों क्रियाओं को निरन्तर करने से एक स्टेज ऐसी आती है कि कुण्डलिनी जाग्रत होकर खड़ी हो जाती है।।।।।। यह कोई ऐसी विशेष कठिन क्रिया नहीं है। आवश्यकता इस बात की है कि हम अपने पेट को पूरा इस भस्त्रिका से पूर्व पेट को खाली करने के दो तरीके हैं, एक तरीका तो यह है कि व्यक्ति को कम क कár. यदि व्यक्ति अन siguez वह आटा खाता है, इसलिये मर जाता है। जो वutar.
अब आप कहेंगे, आपने यह सलाह तो दे दी, पर भूख लग जाती है, उसका क्या करें? तो मैं कहता हूँ, कि आट mí प siguez इसलिये पेट में ज्यादा फालतू का सामान नहीं जाये और जो हो, पहले पच पचा लें।।।।।।। दूसरी जो क demás है, उसमें शवासन में लेटकर पांवों को छः इंच ऊपर उठा लें, तो आप देखेंगे देखेंगे कि पैरों में खिंचाव महसूस हो ¢ है।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। eléctrica केवल एक-दो मिनट में ही ऐस mí जितना भी पेट में में स्टोuestos शरीर को तो चाहिये ही, ऊ¢ ज अब या तो आप रोटी के द्वारा दे देंगे देंगे नहीं जो जमा है, उससे शरीर प्रagaप कguna का riba।। जब पेट अपने आप में दबेगा, तब आप जो सांस लेंगे वह सीधा ही नांभि तक पहुँचेगा।
दूसरा आसन है कि आप सीधे बैठ कर के पेट को बहुत अंदर खींचें, गहरी सांस छोड़ करके ऐसे कि पीठ से चिपक जाय, क्योंकि आपने अंदर से दीव • बहुत की हुई है।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।
इन तीनों क्रियाओं के माध्यम से मूलाधार जागरण की क्रिया प्रारम्भ होती है और कुण्डलिनी जागरण का विशेष मंत्र, भस्त्रिका के बाद में उच्चारण करने से भी अंदर की सारी गन्दगी, जो गैस, चर्बी है, जितना भी फालतू है, वह ऊर्जा के माध्यम से जल्दी से जल्दी पिघल करके साफ हो जाता है और फिecer ये दोनों का मूल भेद है, जिसके माध्यम से व्यक्ति कुण्डलिनी जागरण कर सकता है।
Mantra Siddhi - Logro de la Perfección
मैंने आपको कुण्डलिनी ज sigue. ¿Está bien? इससे तुम्हारा कोई मतलब नहीं है, क्योंकि जब तुमने उस साधना को समझा है, जिसके माध्यम से पूरा शरीर अपने आप में चैतन्य किया जाता है, तो मैट्रिक की परीक्षा देने की कोई आवश्यकता नहीं है।
क्रिया योग के माध्यम से भी पूरी कुण्डलिनी जाग्रत होती है, जिसकी कुण्डलिनी जाग्रत होती, वह अपने आप में ही तीन तीन कल से पहुँचन ज ज है है है है है है औ औ औ औ आपको आपको है है है कल कल पहुँचन पहुँचन सोलह सोलह है है है है है है है है है है है है है है कल कल कल कल कल कल कल कल कल कल आपको आपको आपको आपको आपको आपको आपको आपको आपको आपको आपको आपको आपको आपको आपको आपको आपको आपको आपको आपको आपको आपको आपको आपको आपको आपको आपको आपको आपको आपको आपको आपको आपको आपको आपको आपको आपको आपको आपको आपको आपको आपको आपको आपको आपको आपको आपको आपको आपको आपको आपको आपको आपको आपको आपको आपको आपको आपको आपको आपको आपको आपको आपको आपको. सोलह कलाओं तक पहुँचने के लिये प्ágamientos
'चेतना सिद्धि', प्रagaणमय सिद्धि ', ब्रह्मवर्चस्व सिद्धि' और तांत्रोक्त गुरू सिद्धि 'ये चार कुण्डलिनी जागरण पू razón पί supagautoendo क razón.
चेतना सिद्धि का तात demás है- पूरे शरीर को चैतन्य करने की क्रिया। यदि हम sigue, शरीर चैतन्य होगा तो हम कुण्डलिनी जागरण कर सकेंगे, शरीर चैतन्य होगा तो जीवन में में ivamente रोग रहित हो सकेंगे, शरीर चैतन्य होगा तो हम कbar योग ओ ओ अग अग अगguna हो हो।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। उन जड़ शरीर को चेतना युक्त बनाने के लिये 'चेतन mí यह मंत्रagaत्मक प्रयोग है, मंत्रत्मक प्रयोग के माध्यम से भी क्रिया योग हो सकता है।।।।।।।।।।।।। चेतना -
इसका यदि आप निरन्तर एक म mí. इसकी पहचान कैसे होगी? यदि आपकी स्मरण शक्ति कमजोर है तो आपकी स्मरण शक्ति अपने आप ही तीव्रता की ओर अग्रसenas होगी।।।।।।। एकदम से आपको नई चेतना, नये विचार, नई भावनायें, नई कल्पनायें प्रagaप demás हो सकेंगी- इसको चेतना प्रयोग कहा जाता है।।।।।।।।।
दूसरी प्रagaणमय सिद्धि, जब शरीर चैतन्य हो जाय तो उससे प्रagaण संस्कारित करने पड़ते।।।।।।।।।।।।।।।। यद्यपि हमारे शरीर में जीव संस्काisiones प्रagaणों का संचार करना एक अलग चीज है, जीवन का संचार तो भगवान ने किया ही है।।।।।।।।।।। इस शरीर में जो कुछ है, केवल आत्मा है और वह जीवमै ॹ इस 'प्राणमय यंत्र' को सामने रखकर इक्कीस बार प्राणश्चेतना मंत्र उच्चारण करना चाहिये और प्राणश्चेतना मंत्र है-
इन दोनों स्थितियों को प्राप्त करने से पहले दे ह और मन को साधते हुये जीवन को बहिर्मुखी बनाने के बजायअर्न्तमुखी बनाने हेतु क्रियारत हो ्रिया में संलग्न हो जायेंगे तो निश्चय ही आपकी स ारी क्रियाये योग बनकर आपके जीवन में क्रिया योग सिद्धि प्रदान करेंगी।
मैं आपको पूर्ण आशीर्वाद देता हूँ कि आप अपने अपने शिष्यत्व को उचgon. आशीर्वाद आशीर्वाद आशीर्वाद
परम् पूज्य सद्गुरूदेव
Sr. Kailash Shrimali
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