यहां एक बात समझ लेनी जरूरी है कि कारागृह में तो कोई और आपको में में डालता है, जिस कारागृह की हम यहां चर importa क sigue मुश्किल इसलिये कि जब आपने ही अपने को बंधन में लाााााा ¡Adelante! मुश्किल इसलिए कि जब आपने ही अपने को ब mí. कोई दूसरा बांधता, तो आपको उस बंधन मे रस नहीं होता, आपने ही बांधा है, तो बंधन को प्रीतिकár. आसान भी है, क्योंकि आपने ही ब mí. किसी और ने बांधा होत mí अगर ब siguez
हमने ही बांधा है अपने को को, तो बंधन में जivamente कोई स endr चाहे रस भ्रांत ही क्यों न हो! चाहे रस प्रतीत ही क्यों न होता हो, वस्तुतः न ही हो फिर भी होगा-स्वप्न ही सही, चाहे मरीचिका दिखाई पड़ती हो मरूस्थल में न हो प प प प Nija औ प प प प प प प प प प प प प प प. निenas करने की सुविधा नहीं है कि वह तय करे कि जो जल दूर दिखाई पड़ता है वह है भी या नहीं? दौडे़गा।
यह सारी दौड़ सुख-दुःख के आसपास है। इसलिये सुख-दुःख के तत्व में भीतecer शायद सुख-दुःख की संभावना ही बंधन का कारण है। सुख क्या है? और दुःख क्या है? ऊपर से देखने पर लगता है, दोनों बड़े विपरीत है, एक दूसरे के बिल्कुल दुश्मन है।।।।।।। ऐसा है नहीं। सुख और दुख एक ही सिक्के के दो पहलू है। इसलिये एक मजे की घटना घटती है लेकिन हम ख्याल नहीं कर पाते कि जिसे हम आज सुख कहते हैं हैं वहीं कल दुःख हो जाता है और जिसे आज हम दुःख कहते है वह कल सुख सकत है।।।।।।।।।।।।।।।।। कल तो बहुत दूर है जिसे हम सुख कहते है, क्षण भर बाद दुःख हो सकता है। यह भी हो सकत mí जो गहन खोज करते है मनुष्य के मन की, वे तो यह कहते है कि जब कोई व्यक्ति कहता है, यह सुख, तभी वह दुःख हो गया होता है।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। eléctrica क्योंकि जब तक वह सुख होता है, तब तक यह कहने की भी सुविधा नहीं मिलती कि यह सुख।।।।।।।।
सुख-दुःख के संबंध में पहली बात समझ लेनी जरूरू है कि वे विपरीत नहीं है वे वे एक-दूसरे में रूपांतरित होते हते है, लहर की भ भ है-कभी इस किन किन किन किन किन किन कभी किन किन किन किन किन किन किन किन किन किन किन किन किन किन किन किन किन किन किन किन किन किन किन किन किन किन किन किन किन किन किन किन किन किन किन किन किन किन किन किन किन किन किन किन किन किन किन किन किन किन किन किन किन किन किन किन किन किन किन किन किन किन किन किन किन किन किन किन किन किन किन किन किन किन किन. हम सब जानते है, हमने अपने सुखों को दुःख में परिव compañía होते देख है।। लेकिन देखकर भी हमने निष्कर्ष नहीं लिये। श siguez एक सुख दुःख बन जाता है, तब हम तत्काल दूसरे सुख की तलाश में चल पड़ते है रूकते नहीं, ठहरकर देखते नहीं कि जिसे कल सुख जाना था, वह आज दुख हो गया, तो ऐसा तो नहीं है कि हम जिसे भी सुख जानेंगे, वह फिरदुःख हो जायेगा? ऐसा मन कहता है कि यह हो गया दुःख, कोई बात नहीं, कहीं कोई भूल हो गयी, यह दुख रहा ही होगा, हमने भ्रagaंति से सुख समझ लिया था ।ा। va
जिस चीज को आप जितना बड़ा सुख मानते है, वह उतना बड़ा दुःख बदलेगा, जब बदलेगा। जिस चीज को आप ज्यादा सुख नहीं मानते वह बदलकर ज्यादा दुःख नहीं हो सकता। अनुपात वही होगा। इसलिये उदाहरण के लिये कहता हूं-अगर किसी का विवाह उसके माता-पिता ने कर दिया है, तो उसमें बहुत की की अपेक्षा ही नहीं होती, इसलिये दुःख भी फलित नहीं होत होत होत।।।।।।।।।।।।।।। होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत mar. प्रेम-विवाह जितना दुःख लाता है, उतना दुःख आयोजित विवाह नहीं ला सकता, क्योंकि आयोजित विवाह में बहुत बहुत सुख आश आश ही नहीं थी।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। तो टुटेगा क्या? बिगडेगा क्या? बिखरेगा क्या? जितनी बड़ी अपेक्षा, उतना बड़ा दुःख फलित हो सकथहै
इसलिये पश्चिम ने सोचा था इधर पचास-सौ वर्षो में कि प्रेम-विवाह बहुत ले आयेग gas।।।। आयेग।। उन्होंने ठीक सोचा था। लेकिन उन्हें दूसरी बात का पता नहीं था कि प्रेम-विवाह बहुत भी ले ले आयेगा और अनुपात सदा बर marca होग va।।।। जितना बड़ा सुख अपेक्षा में होगा, जब ivamente
पूरब के लोग होशियार थे एक लिहाज से, उन्होंने एक दूसरी कोशिश की उन उन्होंने कोशिश यह की की की अपेक्षा को ही कम कivamente त त त जब प प प हो हो औxto आयोजित विवाह न तो सुख दे सकत mí इसलिये आयोजित विवाह चल सकता है, प्रेम विवाह चल नहीं सकता, क्योंकि इतने सुख की आश gas
आदमी चल सकता है जमीन जमीन पर, जहां बहुत खाइंया और बहुत शिखर नहीं है। जहां शिखरों से खाइयों में गिरना पड़ता हो, उस पर ज hublo इसलिये सिर्फ सौ वर्ष के प्रयोग में पश्चिम प्रेम विवाह के बाद न विवाह की ह mí. पांच हजार वर्ष तक पूरब बिना प्रेम विवाह के बराबर विवाह को चलाया। समतल भूमि थी-न बड़ी खाइयां थी, न बड़े शिखर थे। लेकिन पश्चिम सौ वágamientos अब वहां का विचारशील आदमी कह रहा है, यह विवाह ही छोड़ देने जैसा है, इस विवाह को रखने की जरूरत नहीं।।।।।।।।।।। अगर सुख ज्यादा चाहिये तो विवाह छोड़ दो। अब फिर वहीं भूल हो रही है। क्योंकि ख्याल यह था कि सुख अगecer अब प्रेम विव siguez उस सुख की तुलना में यह खाई बहुत बड़ी मालूम पड़थै
अब फिर वही भूल पश्चिम की बुद्धि कर रही है, वह यह—- अगर और ज्यादा सुख चाहिये तो विवाह ही दो।।।।।।।।।।।।।। उन्हें पता नहीं वह वह औecer पर वह भूल स्वाभाविक है, क्योंकि हम सुख-दुःख को विपरीत म sigue. बदलते ही रहते है। एक क्षण को भी बदलाहट रूकती नहीं। इस समझ के कारण पूरब ने एक और प्रयोग किया। उसने यह प्रयोग किया कि जब सुख दुःख में बदल जाता है, तो क्या हम दुःख को सुख में नहीं बदल सकते सकते सकते सकते सकते सकते सकते सकते सकते सकते सकते सकते सकते सकते सकते सकते सकते सकते
तपश्चर्या का सूत्र इस समझ से निकला। बहुत अनूठा सूख है तपश demás का का - यह समझ समझ से निकला कि जब सुख दुःख में बदल जाता है तो कौन सी अड़चन कि दुःख सुख में में न बदल ज gaste! और हमने दुःख को भी सुख में बदल कर देखा। अगर आप दुःख में रहने को ¢ हो हो जाये, तो दुःख में में बदलने को तैयार हो जाता है।।।।।। अगर आप सुख में रहने को ¢ हो हो जायें तो सुख दुःख में बदलने को तैयार हो जाता है।
आपके ¢ होने से बदल बदलाहट होती है- आप जिसमें भी ¢ को को ¢ हो हो जायें, वही बदलने को तत्पर हो जाता है।।।।।। असल में आपके राजी होते ही बदलाहट शुरू हो जाती हैैैहैै जैसे ही आपने कहा कि बस सुख मिल गया, अब मै इसमें ही रहना चाहता हूं, अब मैं इसको बदलना नहीं चाहता—-बस समझिए कि बदलाहट शुरू हुई।।।।।।।।।।।।। अगर आप दुःख में भी यही कह सके कि दुःख मिल गया, मैं इसमें ¢ हूँ हूँ, अब मैं इसे बदलना नहीं चाहता- यही तपश्चacion -uta क va सूत्र है- कि आय आय आय मैं र हूँ हूँ बदलन नहीं च हत razón.
बड़े मजे की बात है कि दुःख सुख में बदल जाता है और अगर इन दोनों में ही चुनना हो, तो सुख को दुःख बदलने बदलने की कल कल बज बजguna दुःख को सुख में बदलने की की कल कल favor क्यों? उसका कारण है, क्योंकि दुःख को जो सुख में बदल लेता है, उसका सुख फिág. उसका कारण है कि जो दुःख तक को सुख में बदल लेता है, उसका सुख कैसे दुःख बन सकेगा? जो दुःख तक को सुख में बदल लेता है, उसका सुख अब उस पecer असल में जो दुःख को सुख में बदल लेता है, वह सुख की आकांक्षा ही छोड़ देता है, तभी बदल पाता है।।।।।।।।।।। और जब सुख की कोई आकांक्षा नहीं होती, तो सुख दुःख में बदलने की क्षमता खो देता है।
आकांक्षा से क्षमता निर्मित होती है। इसे कभी प्रयोग करके देखे और आप बहुत हैरान यह मनुष्य के भीतर रूपांतरण की गहरी कमियां के सूत्रें मे से एक है।।।।।।।।।।।। जब दुःख आपके ऊपर आये तो उसे स्वीकार कर लें। इनकार से ही वह दुःख है, अस्वीकार से ही वह दुःख है, उसे स्वीकार कर लें समग्र मन से र हो ज ज औ razón दुःख की तरह देखा था?
सुख दुःख में बदल सकता है? ¿? ¿Está bien? असल में जब एक आदमी सुख में जीता है, तो सुख से भी ऊब जाता है। जो चीज भी निरन्तर मिलती है उससे ऊब पैदा ऊब स्वाभाविक है। सुख भी ऊबाने लगता है। असल में जिसे भी आप जान लेते है, उसी से चित्त ऊबने लगत mí चित्त नये की तलाश प debe आज जो भोजन अच्छा लगा है, भूलकर कल उसे मत करना, परसों उसे मत दोहर marca, नहीं तो रूचि अरूचि बन जायेगी। यह ऋषि कहते है- '' जो रूचिकर वस्तु की इच्छा है, वही सुख है, और जो अरूचिकर वस्तु की कल्पना है, वही दुःख। '' किसी वस को को ूचिकenda कल्पित कatar. रूचि अरूचि में बदल जाती है, अरूचि रूचि में बदल जै जै
ऋषि ने कहा, इंद्रियों के लिये जो अनुकूल है, सानुकूल है, वह ¢ है।। आपके लिये नहीं, इंद्रियों के लिये जो अनुकूल है वह रूचिकर है, और इंद्रियों के लिये जो अनुकूल नहीं है वह अरूचिकर है।।।।।।।।। संगीत बज रहा है कान को रूचिकर है, क्योंकि उस संगीत की जो चोट है, वह कान के लिये है।।।।।।।।।।।।।।। उससे व्याघाद पैदा नहीं होता, उपद्रव पैदा नहीं होता, बल्कि विपरीत मन के भीतर चलता हुआ उपद्रव शिथिल होता है, शांत होता है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है. लेकिन जरूरी नहीं है। अगर बहुत श siguez
पश्चिम का एक बहुत बड़ा संगीतज्ञ सुबर्ट कहा करता था- संगीत संबंध में में, खुद बड़ा संगीतज्ञ था वह कहा करता था कि संगीत जो है, वह सबसे कमatar अ धguna ध क क है सबसे कम है है है है है है सबसे सबसे है है कम है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है. सबसे कम उपद्रव है उसमें। है तो उपद्रव क्योंकि है तो आखिर स्वरों इसलिये परम संगीत तो शून्य है लेकिन जिसने शून्य को जाना उसे संगीत भी अरूचिकर मालूम पड़ेगा, उसके कान को।।।।।।।।।।।।। चीन का एक बहुत बड़ा संगीतज्ञ हुआ, हुई हाई। जैसे जैसे संगीत उसका गहरा होता चला गया, वैसे-वैसे उसका वाद्य शांत होता चला गया। एक दिन उसने अपने वाद्य को उठाकर फेंक दिया। दूर-दूर लोक-लोकांतर तक उसकी खबर पहुंच गयी थी, हजारों मील चलकर लोग उसके पास आते।।।।।।।।।। और जब दूसरे दिन सुबह नये यात्री आये उसका संगीत सुनने और उसे उन्होंने बैठा वृक्ष के देख देख mí. तो हुई हाई ने कहा अब वाद्य भी XNUMX और हुई हाई ने कहा कि जब संगीत पूर्ण हो जाता है तो वीणा तोड़ देनी पड़ती।।।।।। उसका कारण है—-
अगर बहुत ठीक से समझें तो कान के लिये जो ध्वनियां प्रीतिकuestos लगती है, वे इसीलिए प्रीतिकár. उस अराजकता में यह सुलानेवाली दवा की तरह सुखद लगता हे, स sigue. रूचिकर है।
लेकिन, अगर संगीत अस्तव्यस्त हो, सिर्फ शोरगुल हो आवाजों का तो अरूचिकर हो जाता है, क्योंकि कान को पीड़ा होती है।।।।।।।।।।।।।।।।। पीड़ा इसलिये होती है कि क siguez सारे शरीर में जब हमने हमने— इंद्रियों की जो व्यवस्था है हमारी-इंद्रियां है, ग्रagaहक, बाहर के जगत में जो घटित हो हो ह है उसे भीतर ले ले ज के द है Dav razón इन इंद्रियों को जो प्रीतिकार मालूम होता है वह वही है जो इन इंद्रियों को शांत करता है, अप्रीतिकár. बस, इससे ज्यादा प्रीतिकर, अप्रीतिकर का कोई अरथहथहथह लेकिन जो चीज इंद्रियों को आज शांत करती है, कल अशांत कर सकती है, क्योंकि इंद्रियां स्वयं सरित्प्रव gas है है, वे बदली ज ज va endrada हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी.
जैसे, एक नया आदमी रेलवे की नौकरी पर जाता है, स्टेशन पर सोता है, नींद नहीं आती-स्टेरश्न की आव • है, इंजन की आव आव है औ औ औ होते बड़े होते होते होते होते होते होते होते होते होते होते होते होते होते होते होते होते होते होते होते होते होते होते होते बड़े बड़े बड़े बड़े बड़े बड़े बड़े बड़े बड़े बड़े बड़े बड़े बड़े बड़े बड़े बड़े बड़े बड़े बड़े नींद नींद नींद नींद नींद नींद नींद नींद नींद नींद नींद नींद नींद नींद नींद नींद नींद नींद नींद नींद नींद नींद नींद नींद नींद नींद नींद नींद नींद नींद नींद नींद नींद नींद नींद नींद नींद नींद नींद नींद नींद नींद नींद नींद नींद नींद नींद नींद नींद नींद नींद नींद नींद नींद नींद नींद नींद नींद नींद नींद नींद नींद नींद — है कान। लेकिन नींद एक जरूरी चीज है। आज नहीं कल, इस बेचैनी को एक तरफ रखकर नींद आनी शुरू हो जाती है, लेकिन बहुत जल्दी वह वक्त आ जाता है कि यह आदमी अब अपने घर नहीं सो सकता, क्योंकि यह सब उपद्रव इसकी नींद का अनिवार्य हिस्सा हो गया। तो यह हो तो ही यह सो सकता है, यह न हो तो यह नहीं सथॕ सथो यह इसका क्रियाकांड का हिस्सा हो गया। इतना उपद्रव चाहिये ही।
बहुत लोग मेरे पास आते है, वे कहते हैं कि बड़ी मुसीबत है, बड़ी बेचैनी है, बड़ी शांति है। मैं भली भांति जानता हूं कि अगर उनकी सब बेचैनी और सब अशांति छीन ली जाये तो फौरन परमात hablo उनको पता नहीं है कि वह उनक mí इसलिये अगर उन्हें एकांत में भेज दिय mí सार वहीं है, जहां सारा उपद्रव चल रहा है। क्यो?
इंद्रिया - - अग उनको अरूचिकर का भी भोजन दिये चले जाये तो थोडे़ दिन में र र हो ज है है, क्योंकि मजबूरी है और जब र हो ज है म थ razón. आपका रूचिकर का भोजन बार-बार लेने से धीरे-धीरे इंद्रियो का स्वाद मर जाता है, वही रोज देने से उसकी संवेदना क्षीण ज जाती है, वहीरूचिकरूचिकर म म पड़ने लगत लगत लगत लगत लगतard.
एक बड़े कवि मुझे मिलने आये थे। बातचीत चलती थी, तभी एक संगीतज्ञ भी आ गये। उन संगीतज्ञ ने कवि को कहा कि कोई एकाध कविता सुयेा उन कवि ने कहा, क्षमा करें। कविता से बुरी तरह ऊब गया, कऀति बड़े कवि है, कविता से ऊब गये है। ऊब ही जायेंगे और इसलिये अक्सर दुनिया में एक अनूठी घटन mí
बड़े बुद्धिमान आदमी कई कई ब mí बड़े बड़े गैरबुदuestos के के काम करने लग जाते है, वह सिर्फ बदलाव है, वह सिर्फ बदलाहट है, ऊब है।।।।।।।।।।।।। इसलिये कभी-कभी दिखाई पड़ता है कि गांव क mí ¿Está bien? यह ऊब गया है बुद्धिमानी से। काफी बुद्धि इसने झेल ली। अब यह कोई गैecer फिर इसको देखकर न म sigue और उन्हें पत mí बुरी तरह ऊब गया है——!
रूचिकर सदा रूचिकर नहीं रहता। इसके और भी कारण है, क्योंकि आप पूरे समय विकसित हो हो बच्चा है, खिलौन sigue. खिलौने फेंकने ही पडेंगे और ये वे ही खिलौने है जो अगर टूट जाते तो बच्चा समझता कि जैसे उसका प्रियजन मर गया है। इन्हीं को वह छोड़कर एक दिन हट जायेगा। क्योंकि उसकी चेतना विकसित हो रही है।
जो कल रूचिकर था, वह आज रूचिकर नहीं रहा। आज वह नये खिलौने खोजेगा, ह sigue. कल उसने गुडि़या सजाई थी, आज वह पत्नी सजायेगा। सजावट वही होगी, ढंग वही होगा। लोग उसकी गुडि़या की प्रशंसा करें, यह कल चाहा था, आज उसकी पत्नी की प्रशंसा करें, यह चाहा जायेगा। लेकिन गुडि़या थी गुडि़या, इसलिये किसी दिन फेंक दिया तो कठिनाई हुई। अब यह पत्नी को फेंकना इतन mí तब अपने से ही बंधा हुआ आदमी पाता है–– कि यह तो मैंने ही कहा था, अब इसको मुकरना भी मुश्किल है और बात भी खा गयी, यह सजावट भी खो, अब भी कोई कोई स न ह ह।।।।।।।।।।। सज भी खो गयी अब भी कोई कोई स स ह।।।।।।
जवान आदमी था, मंदिर ¢ नहीं मालूम पड़ता था, निकला था उसके सामने से, समझता था पागल उसके भीतर गये।।।।।।।।।।।।।।।।।।। अभी मंदिर बिलकुल नासमझों की जमात दिखाई पड़ती थी लेकिन आज नहीं कल, मंदिर सार्थक हो जायेगा। कारorar. उनकी अड़चन नहीं, एक ही उनकी बीमाisiones बच्चे के खिलौने है, जवान के खिलौने है, बूढे़ के खिलौने है और एक दिन उससे ऊब ऊब आ जाती है और जब खिलौनों से ही कोई मुक मुक नहीं नहीं हो ज ज • तब तब तक बदल होतella नहीं नहीं नहींella
जो आज मेरी इंद्रिय को इस क्षण में सुखद म siguez सुख को मैं चाहता हुं, दुख को मैं नहीं चाहता हूं, सुख मुझे मिल जाये पूरा और दुःख मुझे बिलकुल न मिले, यह मेरी आकांक casoष है।।।।।।।।। यह आकांक्षा ही शरीर से बंधने क mí इसलिये चेतना श¢ के साथ सम्मिश्रित होकर बंध जाती है और जब कोई कोई सुख दुःख दोनों को से समझकर पार न हो, तब तक श शरीacer के प प हो सकत सकत।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। eléctrica
इसलिये पांच शरीरों के ब mí यह सुख-दुःख की चर्चा अर्थपूर्ण है इसलिये कि यह पांच शरीर की चर्चा से भी न होग होग जब तक कि शरीर ी बंधने क कguna ही ही हम हम ख ख ख में में ज ये ये ये है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है ये ये ये ये ये ये ये ये ये ये ये ये ये ये ये ये ये ये इससे विपरीत अगर हम कर सकें, उसी का नाम तप है। सुख की आक sigue. सुख को जो मांगेगा, दुःख से जो बचेगा, वह शरीर से बंधा ¢।। सुख की जो मांग नहीं करेगा, दुःख मिल जाये तो ¢ हो हो जायेगा, वह शख्स—– वह व्यक्ति शरीर से लगेग लगेगा।
सुख की की अपेक uto, दुःख से भय भय भय— शरीacer के बाहuestos ले ज जellas है, सुख की अपेक a। नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं. भोग और तप का यही भेद है। सुख मांगते है तो बाहर संघर्ष करना पड़ेगा-सुख को बचाना पड़ेगा, दुःख से बचना पड़ेगा, गहन संघर्ष होगा बoque।। इसलिये चेतना को सद mí तप का अर्थ है— कि नहीं, सुख की कोई आकांक्षा नहीं है क्योंकि बहुत सुख जाने और उनको दुःखों में बदलते देखा। अब सुख को नहीं जानना और अब दुःख को भी हटाने की कोई इच्छा नहीं है।।।।।।।। ¡Adelante! वह बना ही रहा चला जाता है। उलटे उसे हटाने में और सुख भोगन mí न ही दुःख को हटाते है, न ही सुख को मांगते है, अब हम राजी है, जो जैसा है।।।।।।।।। यात्र भीतर की तरफ शुरू हो गयी, बाहर कोई संघर्ा हह यह अंतर्यात्र ही शरीरों से छुटकारा दिला सकती है
सुख-दुःख के लिये जो क्रियाएं करता है व्यक्ति, ऋषि ने उसे ही कर्ता कहा है-द डुअर, जो सुख-दुःख के लिये क्रuestos लेकिन जो कहता है कि जो मिले ठीक, न मिले, ठीक, दोनों में भेद ही नहीं करता, यह अकivamente हो हो जाता है, यह नॉन डुअर हो हो हो है औ वguna अक अक अक।। N. इसी से भाग्य की कीमती धारणा पैदा हुई।
भ sigue. उसका हाथ की रेखाओं से कुछ लेना-देना नहीं, उसका भविष्य से कोई संबंध नहीं, उससे रास्ते के किनारे पर बैठ हुये ज्योतिषी से कोई संद संदर्भ नहीं है उसक gas भाग्य की धारणा इससे पैदा हुई कि जब मैं कर्ता नहीं हूं, और चीजें तो हो ही रही है, चीजे तो घटित हो ही रही है और मैं कर्ता नहीं हूं क्योंकि कर्ता तभी तक मैं होता हूं, जब तक मैं मांगता हूं कि सुख मिले और दुःख न मिले, तब तक संघर्ष करता हूं तो कर्ता अब कर्ता नहीं रहा, अब जो मिल जाये ठीक है, न मिल जाये ठीक है, मैंने फिक्र ही छोड़ दी मिलने न मिलने की-सुख आये मैं मैं फिक्र नहीं करता कि सुख है, दुःख मैं मैं मैं मैं फिक फिक नहीं क है दुःख क razón त है, दुःख मैं मैं मैं मैं फिक फिक नहीं क है है क त त है है आये मैं मैं फिक फिक नहीं नहीं कि कि त त त त त त त त त त त त त त त त त त त त त त त त त त त त त त त त त त त त त त त त त धीरे-धीरे भेद ही गिर जाता है और पहचानना ही मुश्किल हो जाता है कि क्या सुख है और क्या दुःख है, दोनों के बीच आदमी आदमी निरículos हो हो ज त है।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। eléctrica
ऐसी जो निर्लिप्तता है, इसमें कर्ता तो खो ज mí. करना था ही क्या? एक ही था, सुख कैसे पाये और दुःख से कैसे बचें——- अब कर्म का कोई उपाय न रहा—– फिर भी चीजें तो होती ही चली जाती है-जब व्यक्ति कर्ता नहीं रह जाता तो परमात्मा कर्ता हो जाता है और जब परमात्मा ही कर्ता हो जाता है, इस भावदशा का नाम ही भाग्य है, विधि है । ऐसे व्यक्ति की गर्दन काट दो तो वह कहता है, कटनी थी थी वह इसमें उसको भी दोषी नहीं ठहराता है जिसने काटी, क्योंकि अब वह मानता है, कर्ता कोई है नहीं।। कटनी थी, कर्ता विलीन गय गया।।। गय गय गय गय razón ऐसे व्यक्ति को जहर पिला दो तो वह कहता है— पीना था, होना था और जो व्यक्ति जहर पिलाते वक्त भी जानता हो कि होना था, क्या उसके मन में क्षण भर को भी क्रोध आ सकता है उसके प्रति जिसने जहर पिला दिया?
क्योंकि अब वह मानता ही नहीं कि कोई कर्ता है, इसलिये अब दोषारोपण समाप्त हुआ, इसलिये कोई जिम जिम्मेवार है यह बात ही खत हुई-अब जो भी हो हो ह देनella लेन व कोई कोईella ऐसा व्यक्ति अगर परम शांति को, परम संतोष को उपलब्ध हो जाये तो आश demás.
जो सुख-दुःख के बीच चुनाव करता है, वह कभी संतोष को उपलब्ध नहीं हो सकता, जो सुख-दुःख में क कivamente है वह कभी संतोष नहीं पा सकता। जिसने सुख-दुःख का भेद ही छोड़ दिया, वह संतुष्ट है इसलिये लोग जो समझ siguez
लोग कहते है, संतोष में ही सुख है। पागल है बिलकुल, उन्हें संतोष का पता ही नहीं, अभी भी वे सुख को ही संतोष के साथ एक कर रहे है! और वे जिसको समझा रहे है, इसलिये समझा रहे है कि अगर सुख चाहते हो संतोष संतोष रखो और जो सुख चाहता है वह संतुष्ट हो नहीं सकत सकता क्योंकि असंतोष क का सूत्र है।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। eléctrica जो सुख चाहता है वह दुःख से बचेगा ही, नहीं तो सुख चाह नहीं सकता। ¿Está bien? सुख संतोष नहीं है। संतोष सुख नहीं है, संतोष सुख-दुःख के पार है। और संतुष्ट वही है, जिसने सुख-दुःख का भेद ही त्गताा संतोष दोनों को अतिक्रमण करता है। इसलिये आप अगर कभी सुख मानकर संतोष कर रहे हों तो भ्रagaंति में मत पड़ना आपका संतोष निपट धोखा है।।।।।।। नियति, भाग्य, विधि, परम आध्यात्मिक शब्द है। व्यक्ति अहंकार से मुक्त हुआ, यह उनका प्रयोजन है, अस्मिता नहीं है।।।।।।।।
इंद्रियां ही सुख और दुःख के कारण है। '' शब्द, स्पर्श, ominó, रस और गंध -ये ही सुख दुःख के कारण है।। '' 'पुण्य और पाप कर्मो का अनुसरण करने वालाल पيavor तब उसे उपाधिग demás जीवन कहते।। '' शरीर में हूं मैं, लेकिन शरीर में होना एक बात है, शरीर हो जाना बिलकुल दूसरी।।।।।। शरीर में हूं, ऐसा जो जानता है, वह आत्मा है, शरीर ही हूं, ऐसा जो जानता है, वह है-उप • उपguna हो गय जो भ भ में गय गय गय गय में में है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है. अपने को और जो नहीं है वह समझने लगा।
शरीर हूं मैं? वही सुख-दुःख के कारण, क्योंकि जिससे सुख-दुःख मिलते है, जब सुख-दुःख की की की आंक आंकgonder इसीलिये जिससे हमें सुख मिलता है उससे हम अपने को एक कर लेते है। जिससे दुःख मिलता हो, उससे बड़ mí अब यह बहुत मजे की बात है, जब भी हमें सुख मिलता है तो हम समझते है वह हमारे gres यह बहुत मजे का मामला है। यह बहुत ही मजे का राज है। जब भी हमें सुख मिलत mí सुख के लिये हम कभी किसी दूसरे को जिम्मेवार नहीं ठहराते, सुख के लिये हम सदा स्वयं ही जिम्मेवार होते है है है औ, दुःख के लिये हम सदा दूसरे को जिम्मेव Dav no ठह है।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।.
लेकिन हमारी तरकीब यह है कि हम अपने को समझ लेते लेते है कि मैं समस्त सुखों को पाने का अधिकारी हूं हूं औ अग मुझे दुःख मिलते है तो दूस दूसरों की कृप से, सदा दूसरे क क क है।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। इसीलिये कोई आदमी यह नही पूछता कि संसार में सुहथऍकैकै ¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿ अभी मुझे एक आदमी नहीं मिला जिसने आकर पूछा हो कि संसार में इतना सुख क्यों है? उसको तो वह मानता ही है कि अधिकारी है, उसमें कोई पूछने का सवाल ही नहीं नहीं टेकन फॉर ग्रaga।।।।।।।। टेकन demás होना ही चाहिये, ऐसा है। दुःख क्यों है यह सवाल है। ¿Está bien? ¿? जीवन तो होना ही चाहिये? ¿Está bien? ऐसा लगता है कि जीवन तो हमारे भीतर है, मृत्यु कहीं ब sigue. तो मृत्यु को हम सदा दूर सोचते है— कहीं बाहर से आती है और हमको मार डालती है मेंर जीवन है औatar आती है, लेकिन है बाहर। ¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿ और हम है जीवन।
हमारी सदा की तरकीब यह है कि जो प्रीतिकर है, जो सुखद है उसे अपने से जोड़ लेते है, जो अप्रीतिकár है, दुखद है, उसे किसी और से जोड़ है।।।।।।।।।।।।। है है है है है है है देते देते देते देते eléctrico इसीलिये धर्मो को ईश्वर के साथ-साथ शैतान की भी कल्पना करनी पड़ती।।।।।।।।।।।। यह सब कठिनाई इसी तरorar भगवान दयालु है समझ में आता है। लेकिन फिर एक छोटा सा बच्चा कैन्सर से मर जाता है, तो अब क्या करे? कि इस बच्चे ने न अभी कोई पाप किया, न अभी इसने कोई चोरी की, न हत्या की, न कुछ किया औecer. यह मरा हुआ ही पैदा हुआ। अगर मरा हुआ ही पैदा होना था, तो इस भगवान ने इसको पैदा ही किसलिये क्या? ¿Está bien? याने कम से कम भगवान को तो इतना पता होना ही चाहिये कि मरा हुआ ही पैदा होगा, तो यह पैदा करने का उपद्रव क्यो करना?
हमें एक दूसरा व्यक्तित्व खोजना पड़ता है, क्योंकि भगवान से हम अपने को जोड़ना चाहते है।।।।।।।। अगर भगवान भी ऐसा करता है कि बच्चो को कैन्सर दे देता है, बूढे़ मरना चाहते है और मर नही सकते, घसिटते रहते है, सड़ते हते है करोड़ों लोग भूखे है है है है है ल ल ल ल है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है अगर भगवान को भी यह सब कुछ है तो फिर हम भगवान से अपने को नहीं नहीं कर पायेंगे। इसलिये भगवान को हमें बिलकुल अच्छा बनाकर रख़ा पुा पुा अब यह बुरा कहां जाये? यह कौन कर रहा है? तो इसके लिये एक दूसरा भगवान पैदा करना उसको हम शैतान कहते है। वह बुराई का भगवान है। वह करवा रहा है। डेविल-वह यह सब काम कर रहा हैं
हिन्दू धर्म एकमात्र धर्म है पृथ्वी पर, जिसने अपने पû endr. इसीलिये मैं मानता हूँ, कि हिन्दु, जितने गहरे जा सके है जीवन के सत्य को समझने में, उतना कोई भी नहीं जा सका। जिसे हिंदुओं ने 'मह siguez वही— जहर भी, अमृत भी-एक। बड़ी हिम्मत की बात है यह कहनी और ऐसे भगवान के साथ अपने को एक समझना बड़ी क्रांति है, क्योंकि हमारा सारा तर्क गिर जायेगा वह जो तर्क है हमारा अच्छे को अपने साथ जोड़ने का और बुरे को कहीं और हटा देने का, वह तर्क गिर जायेगा । अगर आप चोरी करते है तो आप कहते है शैतान ने करवायी और अगर प्रaga- करते है आप आप कर रहे! बहुत मजेदार आदमी है! अगर द mí.
भले से हम अपने को जोड़ना चाहते है, बुरे से नहीं। लेकिन जगत दोनों का जोड़ है। या तो दोनों को इनकार कर दो य mí इस शरीर के साथ हमारा बंधन इसलिये निर्मित हो जाता है हम हम कहते है, सुख मिलत मिलता है है कोई दूसरे देते।।।।।।।।।।।।।।।। सुख इससे मिलता है, इसलिये दूसरों से बचो, या दूसरों को बदलते जाओ, या जब तक दूसरे सुख देते मालूम पड़ते है तक उनके स साथ हो, जब दुःख म म म पड़ते है तो ज ज ज ज ज जija। ज जija. विवाह और तल siguez
एक मित्र मेरे पास आते थे, सदा आकर कहते थे कि मेरी बुद्धि कैसे विकसित हो, वे कैसे जागे? मैं उनको कहता था, जागेगा, संभावना है, प्रयास करथे बड़े खुश लौटते थे-संभावना से, जागता-वागता नहीं संभावना से, जगाना पड़ता है, लेकिन बडे़ खुश थे।।।।।।।।।।।।।। यह भी काफी उनकी प्रसन्नता थी। महीने-पन्द्रह दिन में आकर मुझसे वे यह सुन जाते । इससे उनको फि bal से गति मिल मिल ज mí. काफी दिन यह चला, मैंने कहा कि अब यह कोई संभावना तो कोई वास्तविक भी बन नहीं सकती इस ढंग।।।।।।।।।।।।।।।।।। ¿Está bien? कहा, कोई भी संभावना नहीं, बुद्धि तुम में है ही नहीं, जो विकसित हो सके और विवेक इतनी आसान बात? तुम्हारे बस की नहीं, तुम छोड़ो यह ख्याल। एकदम चेहरे पर से उनका रंग उड़ गया, बड़े दुःखी लौट अब मेरे खिलाफ हो गये है कि यह आदमी ठीक नहीं है। तब तक मैं ठीक था, जब तक कहता था, संभावना है। ¡Adelante! अब मैं बुरा हो गया हूँ।
यह बड़े मजे की बात है, मैं तब तक ठीक था, जब तक सुखद था और जब तक में सुखद था तब तक वे अपने को ही श श्रेष्ठ मान हे थे थे संभ संभ gaste है।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। objetivo अब मैं दुःखद हो गया, क्योंकि मैंने कह mí हम उससे अपने को जोड़न • च mí सुख मिल रहा है, हम शरीर के साथ बंध जाते है।
आत्मा जब शरीर को समझने लगती है कि मैं शरीर ही हूं तो इसको ही उपाधि, बीमारी, द वेरी डिजीज, द ओनली डिजीज-एकमात्ículo यही है उपाधि, यही है बीमारी। इस बीमारी से छुटने का एक ही उपाय है– कि शरीर से सुख भी मिलता है तो दुःख भी मिलता है-इस पूरे सत्य को देख— तो औ औatar जिससे न दुःख मिलता, न सुख मिलता, जिससे आनंद मिलथा था आनंद न दुःख है, न सुख, आनंद दोनों का अभाव है। उस खोज पर हम निकलें।
परम् पूज्य सद्गुरूदेव
Sr. Kailash Chandra Shrimali
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