इसके बाद समुद्र मंथन से श्रेष्ठ रूप में ऐरावत हाथी, कल्पवृक्ष आविर्भाव हुआ।।।।।।। फिर क्षीर सागर से लक्ष्मी का प्रagaदुर्भाव हुआ, जो खिले हुये कमल पर विराजमान और हाथ में, लिये थीं।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। सबसेआखिरी में अमृत का प्रादुर्भाव हुआ। समुद्र मंथन का मर्म गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा जिस प्रकार सैकड़ों नदियों का जल अचल प्रतिष्ठा वाले समुद्र में विलीन होकर भी समुद्र को विचलित नहीं करते और उसी में समाहित हो जाता है, उसी प्रकार मनुष्य को जीवन में सभी भोग प्राप्त करते हुये विकार उत्पन्न नहीं करने चाहिये। जो ऐसा कर पाता है, वही पुरूष पूर्णता को प्रagaप्त कर परम श्águestos
इसी प्रकार मन रूपी समुद्र का मंथन आवश्यक है और मंथन करने के लिये परिश्रम। इतना परिश्रम जितना उस समय देवताओं और र gasato जब परिश्रम से मंथन होत mí
इसके साथ ही मंथन और परिश्रम करते हुये बल और बुद्धि से जीवन में विषमता रूप जो विष प्र sigue. उस विष को अर्थात् विपरीत परिस्थितियों को धारण करते हुये जो निरन्तर क्रियाशील रहतok है, उसे पूatar.
लक्ष्मी की पूर्ण व्याख्या के प्रारम्भिक श्लोक में यही विवरण आया है कि लक्ष्मी जो 'श्री' से भिन्न होते हुये भी 'श्री' का ही स्वरूप है, जो पालनकर्ता विष्णु के साथ रहती है, जिनके चारों ओर सृष्टि स्वरूप में सारे नक्षत्र, तारे विचरण करते है, जो सारे लोकों में विद्यमान है, उन्हीं 'श्री' की मैं वन्दना करता हूँ अर posterior इसीलिये भारतीय संस्कृति में नाम के आगे 'श्री' लिख mí
ब्रह demás, विष्णु, शिवात्मिका त्रिशक्ति स्वरूप में लक्ष्मी को ही महादेवी कहा गया है।।।।।।।।। 'श्री सूक्त' जिसे 'लक्ष्मी सूक्त' भी कह mí मन और वाणी के दीपक को प्रज्ज्वलित करती है, जिनके आने से दानशीलता प्राप्त होती है, जो वनस्पति और वृक्षों में स्थित है, जो कुबेर, इन्द्र और अग्नि आदि देवता को तेजस्विता प्रदान करने वाली है, जो जीवन में कर्म करने का ज्ञान कराती है , कर्म भाव के फलस्वरूप जीवन के प्रति सम्मोहन आकर्षण शक्ति स्थित होती है, जिनकी कृपा से मन में शुद्ध संकल्प और वाणी में तेजस्विता आती है, जो शरीर में तरलता और पुष्टि प्रदान करने वाली है, उस 'श्री' को जीवन में स्थायी रूप से आत्मसात् करने के लिये साधनात haba
इस सूक्त में धन के स mí. लक्ष्मी श्री स्वरूप में वहीं स्थायी रूप से रहती है, जहां लक्ष्मी को इन 9 शक्तियों की चेतना व्य Daviblemente हो।।।।।।।।।।।।
जिस व्यक्ति में लक्ष्मी की इन नौ कल siguez
Aquellos que tienen estados conscientes de Vibhuti, Humildad, Kanti, Tushti, Kirti, Sannati, Afirmación, Excelencia y Riddhi con Lakshmi en su vida, solo ellos se vuelven Lakshmiwan completos y su vida es para ellos mismos, así como para la familia y la sociedad. útil.
प्रत्येक साधक को अपने जीवन में दिव्य लक्ष्मी स्वरूपों को पूर्णता से उतारने की क्रिया और समुद्र रूपी बल-बुद्धि व कर्मशक्ति के मंथन द्वारा अमृतमय लक्ष्मी सद्गुरूदेव के सानिध्य से ही पूर्णता स्वरूप प्राप्त होती है, क्योंकि गुरू ही वो पारस है जो सभी प्रकार के ज्ञान , चेतना शक्ति का स्पदंन प्रदान करते है, जिससे साधक-शिष्य में जागृति के फलस्वरूप अपने की की अलक्ष्मी, दूषितता, मलिनत sigue
जीवन में सभी शुभ स्थितियों व सर्वमंगलयता को धारण करने के लिये तीन सिद्धांत बताये गये।।।।।।।।।
संकल्प- संकल्प शक्ति अर्थात् ऐसी मानसिक दृढ़ता कि हर तरह की सम-विषम स्थितियों में अपने आपको सर्वश्ometaso बन बन • के लिये संकल्प भाव के स नि नि razón क sigue.
समय- समय क mí
स्थान- किसी भी शुभ स्थिति, चेतना, ज्ञान, ऊर्जा, शक्ति, जप, स marca जिससे कि साधक-साधिका अपनी करorar. क्योंकि अन्य सामान्य स्थलों पर भूमि दोष, व sigue. अतः देवालय, पवित hubte
सद्गुरूदेव नार marca व मां भगवती के आशीर्वाद से दीक्षा साधना महोत्सव कैलाश सिद्धाश्रम जोधपुर, में 03-04 नवम्बर को सद्गुरूदेव जी सानिधguna में सम सम सम होग uto।।।।। favor इस महोत्सव में प्रवचन, हवन, अंकन पूजन, साधना सामग्री युक्त विशिष्ट दीक्षायें शुभ सांध्य बेला में 05:32 pm से 07:12 pm प्रदान कीायेगी।।।।।।।।।।।।।।।।।।। जिससे जीवन सभी व्याधियों, अभ sigue
प्रत्येक साधक का भाव चिन्तन रहतok है कि ऐसे अलौकिक दिव्य महालक्ष्मी पर्व पर सभी शुभमंगलमय आशीर्वाद से युक्त सके।।।।।।।।।।।।।।।।। सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके। eléctrica अतः सपरिवार गुरूधाम के चेतन्य, पावन, निर्मल भूमि पर आना ही चाहिये।
साधना सामग् Estatero
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