¡Adelante! ताकि सारा जीवन-ऊर्जा, देखने की सारी शक्ति और क्षमता अंतर्मुखी हो जाए। ताकि जो प्रकाश वस्तुओं पर पड़ता था वह स्वयं पर पड़ने लगे। अपनी मशाल में अपने को देखने की क्षमता। अभी अपनी मशाल में तुमने दूसरों को देखा है औरों को देखा है, सanzas संसार छान डाला है।।।।।।।। लेकिन दिया तले अंधेरा। दिये से तुम सब खोजते फिर रहे हो और खुद दिये के तले अंधेरा इकट्ठा करते चले जा रहे है।।।।।।।।। यह दीप समान ज्योति अंतर्मुखी होनी चाहिए।
नींद में तुम हो और किसी का निशाना अचूक हो, तब बचने बचने का उपाय भी।।।।।।।।।।।।। ऐसी ही दशा है। माया से तलाक लो। माया से तलाक का नाम ही जीवन की बन्धन मुक्त स्थितियां है और माया से तलाक का अर्थ क्या होता है? यह नहीं होता कि भाग खड़े हुये जंगल की तरफ। माया के तीर जंगल तक पहुँच जायेंगे, अगर तुम नीहथे ऋ ऋ माया का फैलाव काफी बड़ा है। दूर-दूर तक उसके तीर पहुंच जायेंगे। इसलिये सवाल भागने का नहीं है, जागने का है। तुम जहाँ भी हो ज siguez माया ही मर जाती है। इधर तुम जागे कि उधर माया मरी। तुम जब तक सोये हो, माया जीवित है। तुम्हारी निद्रा ही माया है।
संसार की दृष्टि में अंधे बन जाओ। आँख बंद कर लो, अंतर्यात्र पर चलना प्रारम्भ करो। लोग पागल कहेंगे, दीवाना कहेंगे, सब कुछ कहेंगे। उनकी टेन्शन मत करना, क्योंकि वे बहुत कम लोग ही हैं, जो इतनी हिम्मत करते हैं, बाहर के प्रति अंधे हो जाने की स्वयं को जानने की और जिसने यह मान लिया कि कोयल की कूक में भी उसका अपना ही कंठ है और फूल की सुगंध में अपनी सुगंध है और पहाड़ों की ऊंचाइयों में अपनी ऊंचाई है औecer तब स sigue, अस्तित्व उसे स्वयं का विस्तार मालूम होता है कि वह अहं ब्रह्म्मास्मि! स्वरूप है। जहां ध्यान नहीं वह sigue. ध्यान का ही संगीत है ज्ञान। ध्यान की वाणी पर ही जो संगीत उठता है उसका नाम ज्ञह्ञाै
कोई भी नहीं मरता, सिर्फ शरीर और आत्मा का संबंध छूट जाता है और तुम को ही अगर जीवन समझते हो, तो संबंध छूटने को तुम मृत्यु समझ हो।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। संबंध को जीवन समझने की भ्रांति से मृत्यु पैदा हो संबंध यानी तादात्मय। तुमने अगर यह मान रखok है कि मैं शरीर हूँ, तो फिर मृत्यु बढे़गी और तुम अगर जान लो मैं श शivamente नहीं हूं, फिर कैसे मृत्यु! शenas मरेगा, मरा ही हुआ था और आत्मा मर नहीं सकती, आत्मा अमृत।।।।।।।। अगर हम संसार की वस्तुओं को अपने भीतर अत्यधिक भर लें कि उन में ही जीवन आसक्त हो जाए, तो जीवन में उन वस्तुओं के कम या ज्य होने होने से संतोष उत्पन ender है।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। इसलिये संसार की वस्तुओं की चिन्ता न करते हुए अपने भीतर एक आनन्द को उत्पन्न करना, अपने भीतर एक पूर्णता को बनाना ही तो संन्य Davस है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है.
सन्यास तो शक्ति और परमात्मा से मिलने की स्थिहै॥ परम seaत haber जीवन में संकट से भागना सन्यास नहीं है, क्योंकि भले ही वो सन्यासी बन जाये परन्तु व्यक्ति अपने आप नहीं नहीं भाग सकता है।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। है है है है है है है है है है है है है है objetivo जो व्यक्ति जीवन में लड़ने क mí ? वही तो सन्यासी है। सन्यास तो संसार की सम्पूर्ण समझ और संघर्ष का थफै सन्यास मे संसार नहीं, अज्ञान का त्याग करना होथहै अपने ज्ञान का जागरण ही तो सन्यास है, अपने आपको पूर्ण मौलिकता से परिवर्तन कर देना ही सन्यास है।।।।।।।।।।
जिस प्रकार प्रकाश के आगमन पर अंधकार चला जाता है, वैसे ही ज्ञान के आगमन पर जीवन जो जो कलुषित है, वह वह सम सम हो ज ज • है औ शुद शुद शेष शेष है वही संन है है है है है है है है हैija सन्यास 'स्व शुद्धि' है, अपने आप को संसार की आग और जलन में तपाकर शुद्ध होना है, परिवर्तित कर देना है, वहीं संन्यास।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है. जब सन्यस्त भ siguez सन्यासियों का बढ़ता हुआ सैलाब, उनकी बढ़ती हुई बाढ़, हजार -हजF तरह की गालियां मेरे लिए लायेगी। तुम उनकी चिंता मत लेना। वे गालियां मेरे पास आकर गालियां नहीं रह जाती। जैसे कि तुम सरोवर में अगर अंगारे भी फेंको तो सरोवर में गिरते ही बुझ जाते हैं, अंगारे नहीं रह जाते। मेरी तरफ आने दो गालियों को जितना आये। जितनी ज्यादा आये उतना अच्छा, क्योंकि उतना तहलका मचेगा, उतना तूफान उठेगा।
सन्यास सर्व विजयश्री का नाम है और विजयश्री के लिए संकल्पवान होना आवश्यक है।।।।।।।। जीवन की शिथिलता और निराशा को मिटाने के लिए पहले सन्यास की आवश्यकता है और सन्यास के उन क्षणों में उसे सांस • सन Dav. जब तक व्यक्ति के जीवन में दुविधा, संघर्ष, बेचैनी, तन sigue. उस समय उसके भीतर की आत्मा शक्ति को जाग्रत कर उसे विषाद और संताप से मुक्त करना ही गुरू का कर्त्य है है है है गु कguna. निराशा तो कोई भी दे सकता है, पूरा संसार देता ही है, यहाँ नास्तिक भाव और दासता का चिंतन मिलने पर कुविचार और संताप की स्थितियां बनती है और इन भावों को तोड़ना और अपने आप को दूसरो से ऊंचा उठाना ही सांसारिक स्वरूप में सन्यस्त भाव की क्रिया है।
गुरू जब अपनी दिव्य शक्ति से उस 'अहं' भाव को सम sigue. अपने आत्म ज्ञान को चैतन्य करनok और उस आत्म ज्ञान के माध्यम से केवल मनुष्य ही देव भी सहयोग देने के लिए आतु आतुर हो उठें, वही तो सच सच avor सन्य।।।।।।।।।।।।।।।। लिए आतु आतु उठें उठें वही तो सच सच च ija सन है।।।।।।। लिए. सन्यास के लिए तो अपनी शारीरिक और मानसिक रूग्णता को संकल्प के साथ मिटाने की स्थिति बनानी आवश्यक है।।।।।। ऐसा ऊर्ध्वमुखी जीवन जीने के लिए जिसमें निरन्तर उन्नति हो, तो को को मिटना ही पड़ता है, बीज मिटकर ही अपने आप में विशाल वृक्ष बन सकता है।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। objetivo बीज में जीवन है, लेकिन उसके ऊपर कड़ा आवरण है। सद्गुरू अपनी शक्ति द्वाisiones इस कठोर आवरण को तोड़ देते।। स sigue " इन आवरणों को फोड़कर जो प्रस्फुटित हो जाता है, वह जीवन में सन्यासी बन जाता है, उसके लिए हिमालय में और दिल्ली में अंतर नहीं रह जाता, क्योंकि उसने 'स्व' का विकास करना सीख लिया है और जब स्व विकास की सन्यासी प्रक्रिया प्र्रारम्भ हो जाती है, तो सांसारिक बंधन उसे तुच्छ और बौने अनुभव होते हैं।
अपनी अलग पहचान स्थापित करना ही तो सन्यास है और शिष्य या साधक ही अपनी पहच पहचान विशाल स्वरूप में कर सकत है वह गु विस से से प प प। सकत सकत सकत सकत सकत सकत है है है है है है है है है है है है है है है।।।।।।।।।।।।. गुरू द्वार marca सन्यास दिवस एक नूतन पर्व है, यह तो सड़ी-गली मान्यताओं, जर्जर व्यवस्थाओं का त्याग कर अपने भीतर नूतनता अनुभव करने का पर्व है।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। संन्यास की शक्ति एक सर्वथा अद्वितीय अनुभव है, उसमें और सांसारिक जीवन मे वैसा ही अंतर है जैसा एक बदबूदoque नाली और सुगन्धित उपवन है।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। है है है है है है eléctrico eléctrica इसलिए इस बात के लिए सहज रहनok होगा कि सामाजिक सुरक्षा कवच इतना भी तीव्रतम रूप में नहीं जकड़ कि कि व्यकorar समाज में रहकर बन्धन मुक्त होना ही तो सन्यास पर्व है और यह पर्व दो में में समेटा नहीं जा सकता, लेकिन पर्व की शुरूआत तो कहीं से करनी आवश है।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। electrónico eléctrica प demás
यदि आप जब देवभूमि की ओर कदम ही नहीं बढ़ायेंगे, अपने गुरू का सgon य और सहयोग ही नहीं लेंगे तो अपने उन लक्ष्यों को कैसे प्रagaप क।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।. ठिठक कर रह जाना, डर से अपने आप को नपुंसक या कमजोर बना देना ही की की न्यूनता है और ऐसी न्यूनत आप अनेक-अनेक ूपों में तीस च व व औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ फलस फलस फलस फलस फलस फलस फलस फलस फलस फलस फलस फलस फलस फलस फलस फलस फलस फलस फलस फलस फलस फलस फलस फलस फलस फलस फलस फलस फलस फलस फलस फलस फलस फलस फलस फलस फलस फलस फलस फलस फलस फलस फलस फलस फलस फलस फलस फलस फलस फलस फलस फलस फलस फलस फलस फलस फलस फलस फलस फलस फलस फलस फलस फलस फलस फलस फलस फलस फलस फलस फलस — रहे हैं। यदि अब भी आप ठिठक कenas ह गये तो जीवन में कोई चेतना, कोई परिवर्तन नहीं आयेगा। देह आपकी है, जीवन आपका है विचार आपको ही करना है कि मैं कहां हूं? और कहां मुझे पहुंचना है, मुकाम किस तरह हासिल कथर२
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