सेवा समर्पण और श्रद्धा- ये तीनों ही रास्ते हैं जिसके माध्यम से शिष्य अपने खून को शुद्ध कर सकता है।।।।।।।।।।।।।।।।।।।
जो गुरू कहे वह करे, उसे सेवा कहते हैं। जो तुम्हारी मर्जी हो वह करना सेवा नहीं
शिष्य को ज्ञान देने से पहले उसका अहं गलाना जर॰ह शिष्य का कर्तव्य है कि वह इस कार्य में गुरू का पूरा सहयोग करें।
शिष्य को च siguez
ज्ञान के को को प्रagaप्त करने के लिए जरूरी है कि शिष्य को कसौटी पर कसा जाये। शिष्य को चाहिए कि वह गुरू की हर कसौटी पर
शिष्य पर गुरू क mí ज्ञान केवल गुरू की सेवा से प्राप्त हो सकता है।
शिष्य के मानस में, चिंतन में, विचार में, ज्ञान की गरिमा स्थापित गुरू करता है, इसलिए शिष्य का धर्म है कि वह गुरू सेवा क sig.
शिष्य का लक्ष्ण, शिष्य का चिन्तन, शिष्य का विचार मधुर होना चाहिये हर क्षण गुरू की आज्ञा पा पालन करें भी भी तerm. य य य वि में।।।।।।।।।।।।।।।।। सेवा, समर्पण और श्रद demás से ही तुम लोहे से कुन्दन बन हो हो।।।।।।। हो
शिष्य को चाहिये कि गुरू जो भी मंत्र दे, उसे पूर्ण भक्तिभाव से ग्रहण करें, कभी मन में गुरू या मंत्र के प Davidamente
गुरू तो हर क्षण ही शिष्य को अपने समकक्ष ा प्रयास करते हैं और इसी कारण उन्हें स्वयं सर्व प्रथम शिष्य के अनुरूप स्वरूप धारण करना पड़ता ह ै परन्तु यह शिष्य की अज्ञानता होती है ू को सामान्य मनुष्य के रूप में देखता है, उसके लिए ऐसा चिन्तन दुर्भाग्यपुर्ण होता है।
Es obligatorio obtener Gurú Diksha del venerado Gurudev antes de realizar cualquier Sadhana o tomar cualquier otra Diksha. Por favor contactar Kailash Siddhashram, Jodhpur a Correo electrónico , Whatsapp, Teléfono or Enviar para obtener material de Sadhana consagrado, energizado y santificado por mantra, y orientación adicional,
Compartir vía: