भौतिकता के चक्रव्यूह में उलझ कर मानव का मन और मस्तिष्क अंतर्द्वन्द में उलझ जाता है, और तब व्यकorar अपने स्वार्थ और परमार्थ दोनों की भावनाओं से व्यक्ति यह विचार नहीं कर पाता कि जीवन में उसे क्या करना चाहिये, क्या नहीं करना चाहिये, क्या उचित है, क्या अनुचित हैं, और उस समय कभी-कभी ऐसा भाव आता है, कि क्या हमारा जीवन अपने-आप में एक क्षुद्रमय अस्तित्व व्यतीत करने के लिये है या जीवन को पूर्णता देने के लिये है।।।।।।।।।
आज हर तरफ विज्ञान हावी हो रहा है, और दूसरी तरफ जो हमारे खून में ज्ञान की गरिमा है, जो ज्ञान के कण हैं, वे भी बार-बार हम पर हावी हो रहे हैं, कि हमें श्रेष्ठ व्यक्तित्व के रूप में पूर्णता को प्राप्त करना है। व्यक्ति पूर्णता की ओर अग्रसर होता है, और वह इसलिये कि हमार marca क सदियोंatar. हमारे इन धमनियों में वशिष्ठ का खून प्रवाहित हो रहा है, जो निश्चय ही हमारे पिता के शरीर में भी प्रवाहित है, अर्थात हमारे शरीर में पचास-सौ पीढ़ी पहले का भी रक्त है, और यह रक्त निश्चय ही ऋषियों का रक्त हैं— इसलिये ज्ञानश्चेतना से अनुप्रagaणित है, इसलिये बार-ब fubar हमार marca मन, हमारaga ज्ञान हमें साधना के क्षेत्र में करने के लिये हमेशा प्रेरित कί gaste है है है है है है है है है। है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है objetivo तकि हम एक पंछी के तरह उड़ने की कला सीख एक सम्रagaट हुआ बड़ा विचारशील, चिंतन-मनन का प्रेमी, सत्य का खोजी उसे खबर मिली की दूर किसी गांव में कोई बड़ा दार्शनिक है, बढ़ ha ताellas है है, बड़ा बुद्धिम है। है है है है है है है है है है है।।।। है है है।। है है है।। है है है तो उसने अपना संदेशवाहक भेजा। अपने हाथों पत्र लिखा, मोहर लगायी, लिफाफा बंद का९
संदेशवाहक पत्र लेकर दूर की यात्रा पर निकल गया। जाकर दार pto के द्वार पर दस्तक दी, हाथ में पत्र दिया और कहा, सम्रagaट ने पत्र भेजा है।।।।।।।।।।।।।।। दार plary ने पत्र को बिना देखे नीचे रख दिया और कहा, पहले तो यह सिद्ध होना जरूरी है, कि सम्रagaट ने ही पत्र भेजा है या किसी और ने sirt? तुम्हारे प sigue. ¿Está bien? मेरे वस्त्र देखें। मैं संदेशवाहक हूं सम्राट का। दार्शनिक ने कहा? वस्त्र तो कोई भी पहन सकता है, धोखा दे सकता है। क्या सम्रagaट ने स्वयं ही तुम्हें अपने हाथों यह पत्र दिया है? संदेशवाहक भी थोड़ा संदिग्ध हुआ। उसने कहा, यह तो संभव नहीं है, क्योंकि मुझमें और सम्रagaट में तो दूरी हैं। प्रधान वजीर को पत्र दिया होगा सम्रagaट ने वजीecer सीधा तो मुझे नहीं मिला है। वह दार plary ने कहा, जिसे तुमने न देखा, जिसने तुम्हें न संदेश दिया तुम उसके सम्बन्ध में कैसे अधिकार पूर्वक कह सकते हो कि वह दियें है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है दियें है दियें है है है है है है है दियें.
इतनी चर्चा होते-होते तो संदेशवाहक भी संदिग्त ह९ पत्र की तो जैसे बात ही भूल गया। दोनो निकल पड़े कि जब तक यह प्रमाणित न हो जाये कि सम्रagaट है, तब तक पत्र को खोलने की जरूरत भी क्या है? दोनों खोजने लगे। अनेक लोगों से पूछ mí. उसने कहा मैं सम्राट का सैनिक हूं। ¿Está bien? उस दार्शनिक ने कहा, वस्त्रों के धोखे में तो यह जो मेरे साथ खड़ा है? वस्त्रें से क्या होता ¿ ¿Está bien?
वह सैनिक भी थोड़ा डगमगाया उसने कहा नहीं मैने तो नहीं देखा, लेकिन मेरे सेनापति ने देखा है।।।।।। उस द sigue, ने पूछाकि तुमने सेनापति को अपनी आंख से देखा है? उसने कहा यह भी खूब! मैने सेनापति को तो नहीं देखा, सुना है कि सेनापति सम hubte मैं एक छोटा सैनिक हूं। उतनी पहुंच मेरी नहीं। महल के दरवाजे मेरे लिये बंद हैं। दोनों खिलखिला कर हंसे-संदेशवाहक और दार्शनिक। और कहा तुम भी हमारे साथ सम्मिलित हो जाओ। जब तक यह सिद्ध न हो जाये कि सम्राट है, तब तक यह सब झूठ का जाल फैला हुआ।।।।।।।।।।।।।।।
यह कभी सिद्ध न हो सका, क्योंकि जो भी मिल mí बनो और मैं तुम्हें राज्य का महागुरू बना देचा हाााथ लेकिन वह पन्ना तो पढ़ा ही नहीं गया। किसी से पूछने की जरूरत न थी। सीधा सम्रagaट का निमंत्रण था महल के द्वार खुले थे, स्वागत था।
जिनके मन में सन्देह है, बुद्ध के वचन उनके लिये संदेश्वाहक की तरह हैं।। ये वचन के पत्र बंद ही पड़े ¢ जायेगा तुम उसे खोलोगे ही नहीं क्योंकि पहले यह यह सिद्ध होना चाहिये कि बुद्ध बुद्धत्व को उपलब्ध हुये औ औ यह सिदículo होना करीब-क असंभव है है है है उपलब्ध हुये औ औ यह सिद सिद होनacho क sigue कौन सिद्ध करेंगा? कैसे यह सिद्ध होगा? शब्द बंद पड़े रह जाते है। कितना कहा जाता है। लेकिन तुमने उसे सुना नहीं। कितना शब्दों में भरा गया हैं, लेकिन वे शब्द तुमने कभी अपने मन के पन्नो को खोला ही नहीं, उनकी कुंजियां भी साथ ही लटकी थीं, लेकिन तुम्हारा सन्देह से भरा चित्त बुद्धत्व की कोई भी झलक को खोल नहीं पाया। तुम सूरज को उगता देख कर आंख बंद कर लेते हो और पूछते हो, सूरज कहां है?
मैं रोज बोलता रहok वही बार-ब fubar प्रवचन में भी बोलता ¢ हत, आकर बैठो सुनो तुममें से कुछ लोग थे थे कुछ नहीं क्योंकि तुम अपने मन के पन पन को खुल खुल न नहीं च च च तुम भी के प प। को खुल न च च च च च च च उड़ पन पन को को को को को खुल खुल च च च च च च च च पन पन को को को को को को को को को को को को को को को को को को को को को को को को को को को को ij. एक बार एक पक्षी वातायन पर आकर बैठ गया। उसने गीत गुनगुनाया और उड़ गया। मैं उस पक्षी को देखत sigue. मैं इतना ही कहता हूं कि संसार तुम्हारा वातायन है उस पर तुम बैठे हो उस पर तुम घर मत बना लो। वहां तुम थोड़ी देर विश्राम कर लो, लेकिन वह मनजऀॲह ह ह बैठ कर कहीं पंखों क mí तुम यो मत भूल जाना कि तुम उन ऋषियों की संतान हो– क्योंकि क्षमताये हमें वही याद ¢ हैं हैं, जिनका हम उपयोग करते हैं।।।। हैं। हैं हैं हैं हैं। हैं हैं हैं हैं हैं हैं
जिनका हम उपयोग नहीं करते वे विस्मरण हो जाती हैं, जिनका हम उपयोग नहीं करते वे धीरे-धी debe तुम अगर कुछ दिन नहीं चलोगे तो तुम्हारे पैर पंगु हो जायेंगे, तुम अगर अंधेरी कोठरियों में ही ¢ और देखो न तो आंखों जल्द ही अंधी हो ज •।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। objetivo तुम अगर शब्द ही न सुनों अगecer और न जाने कितने जन्म से तुम उड़े ही नहीं!
तुमने पंख नहीं फड़फड़ाये, कितना समय बीता गया, जब से तुम खिड़की पर बैठे हो और तुमने खिड़की को ही घर समझ लिया है।।।।।।। ¡Adelante! पड़ाव के लिये रूके थे इस वृक्ष के नीचे, लेकिन कितना समय बीता, तब से तुमने इसे ही घर मान लिया है! पंख खोले ही नहीं, आगर मेरे पास आकर भी तुमने पंख फड़फड़ाना नही सिखा तो और कुछ सीख भी नहीं पाओगे।
भगवान बुद्ध का अंत समय आ चुका था, सभी शिष्य एकत्र हुये, शिष्यों के लिये उनका अंतिम संदेश थ gaste जब तक तुम सभी संयमी होकर मित्रभाव से ¢ endrado, एक साथ मिल बांटकर खाओगे और धर्म के र ¢ र पecer लेकिन जिस दिन तुम संगठित न होकecer ठीक इसी प्रकार जब हम अपने मन और शरीर, ज्ञान, चेतना को एक साथ योग, साधना, दीक्षा को म Dav ender
नेपोलियन ने युवावस्था में आठ वर्ष तक लेखक बनने की कोशिश की, हर बार उसे असफलता ही हाथ लगी, और उसने णक íbor. की ही नहीं अन्य देशों का भी भाग्य विधाता हमारे जीवन में साधना का मार्ग हो ये भौतिकता, असफलता मिलने पर निराश होकर नहीं बैठना चाहिये, अतः बार-बाocar कोशिश करनी ही चाहिये।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।.
ईसा सुबह भ्रमण के लिये जा ¢ हे थे, उनके साथ उनके शिष्य भी थे, हर तरफ प hubender. सुबह सूरज की किरणों का साथ पाकर घास पर पड़ी ओस की बूंदें मोतियों की तरह चमक रही थी, बगीचे में लिली के फूल खिल रहे थे, पक्षियों की कलरव ध्वनि मन में संगीत की मिठास घोल रही थी, एक शिष्य ने पूछा-भगवन्! ¿Está bien? ईसा ने हंसते हुये कहा-देख हे हो, इन लिली के फूलों को, ये सम्रagaट सोलोमन से भी ज्यादा सुखी और सुंदर है, क्योंकि न इन्हें अपने की कु कु है, ये ये अपने अपने razón जो इन फूलों की तरह भूत और भविष्य की चिंता किये बिना जीवन जीता है, जो वर्तमान में सत्कमों की बिखे बिखेivamente त, वह स स ही अपने के के सुख औecer
लेकिन तुम हमेशा भविष्य की चिंत mí जिसमें से सुगंध हमेशाप्रवाहित होती रहेगी। यदि तुम ऐसा नहीं कर पाओगे, तो तुम्हार marca जीवन बुझा-बुझा सा रहेगok। जीवन में जो कुछ पूर्णता होनी चाहिये, वह तुम्हें प्राप्त ही नहीं होगी, तुम्हें जीवन में जो कुछ प्राप्त करना चाहिये, वह नहीं कर पाओगे, क्योंकि बाहरी सभ्यता तुम्हारे ऊपर बहुत अधिक प्रतिकुल दबाव डाल देती है, क्योंकि तुम हमेशा जल्दी में रहते हो, कोई भी काम तुम धैरorar. यह याद ¢ जितनी जल्दी तुम करते हो उतना ही तुम आपने आप को भूल जाते है, उतनी ही तुम्हें परेशानिया उठानी पड़ती है है है है है है है है है है है है है है है है है है है
जब तक तुम अपने आपको नहीं जान पाओगे तब तक तुम्हारे अन्दuestos मैं तुम्हें वहीं सिखाना चाहता हूं, मैं तुम्हें बताना चाहता हूं कि तुम्हारें अन्दर भी वशिष्ठ, विश्वमित्र, गौतम आदि ऋषि ऋषि-मुनियों क ही ibilidad है है है है है है।। है है है। है है है है है।। जो तुम्हारी नसों में बह रहा है, तुम उसे जब तक नहीं पहचान पाओगे तबतक तुम अपने जीवन में योग, ध्यान, साधना के मार्ग पर गतिशील नहीं हो पाओगे, पर ये भी एक दुविधा है, तुम साधना भी करते हो एकदम भागदोड़ जैसे करते हो 11 años XNUMX años XNUMX años XNUMX años याद रखनok की तुम उस मंत्र को, उस साधना को, अपने गुरू के हर एक शब्द को को, अपने भीतर-हृदय में उत उतί ने क् razón नहीं क लिये तोguna स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स. ध्यान में उतरने की क्रिया करनी पड़ेगी, तभी तुम अपने आप को पहचान पाओगे।
यही तो उद्देश्य है मेरा, यही तो हमा rod " तुम मुक्त गगनके पक्षी हो। तुम व्यर्थ ही चिंता लिये बैठो हो, डरे हुये हो, तुम भूल ही गये हो कि तुम demás ह पास पंख।।।।।।।।।।।।।।।।।।। तुम पैरों से चल रहे हो। तुम आक mí. आत्मविश्वास और पूरी श्रद्धा के साथ साधना करने की आवश्यकता है। मैं तुम्हें सिखाना चाहता हूं, अपने प्रवचनों के माध्यम से, पत्रिका के माध्यम से, शक्तिपात दीक्षा कि क्रियायों से, ताकि विस्मृति मिट ज ज सguna जग ज ज ज ज ज। ।ija. संतों ने, कबीर ने, नानक ने शब्द का उपयोग किया हथसथसथॿ सुरति का अर्थ है, स्मरण आ जाये। जो भूला है, उसका ख्याल आ जाये। तुमने कुछ खोया नहीं है, तुम सिर्फ भूले हो। खो तो तुम सकते भी नहीं। ¿? कितने ही जन्मों तक तुम न उडे़ तो भी अगर उड़ने क mí
विवेकानंद जी की एक छोटी से कहानी कहा करते थे। वे कहते थे, ऐसा हुआ कि एक सिंहनी एक पहाड़ी से छलांग लगा रही थी, गर्भवती थी और छलांग के बीच में उसे बच्चा हो गया। वह तो छलांग कर चली गयी। बच्चा नीचे से गुजरती हुई भेड़ों की भीड़ में गिर गया, फिर भेड़ों ने उसका पालन किया, वह सिंह का बच्चा था, लेकिन याद कौन दिलाये? उसे पहचान कौन कराये? सुरति कैसे मिले? वह भेड़ों के स siguez
तुम जिनके बीच बड़े होते हो, वही तुम अपने आपको समझ लेते हो। क्योंकि तुम भूल जाते हो की तुम हो कौन और वही भूल उस सिंह के बच्चे की थी।।।।।। ¡Adelante! उसने समझा कि मैं भेड़ हूं। वह भेड़ों के बीच ही चलता, भेड़ों जैस mí
एक दिन सिंह ने देखा भेड़ों की कतार गुजर रही थी, इनके बीच में एक सिंह! बड़ा हैरान हुआ। यह असंभव घटना घट रही थी। न तो भेड़ उससे घबड़ा रही है, न वह भेड़ों को खा रहै ठीक भेड़ो की भीड़ में घसर-पसर-जैसे और सब भेड़ें चली जा रही हैं, ऐसे ही वह भी चल रहा है।।।।।।।।। वह सिंह इस भेड़ों की भीड़ में आया। भेड़ों में भाग चीख-पुकार मच गयी। वह सिंह का बच्चा जो बड़ा हो गया था वह भी भागा, चीख-पुकार मचoque, उसकी आवाज भी की की हो थी।।।।।।।।।।। क्योंकि भाषा भी तो तुम उनसे सीखते हो, जिनके तुम पास होते हो। भाषा कोई जन्म साथ लेकर तो पैदा नहीं होता। भाषा भी सीखी जाती है। वह भी संस्कार है। तुम हिन्दी बोलते हो, मराठी बोलते हो हो, अंग्रेजी बोलते हो, तुम वही सीख लेते हो जो तुम demás. पैदा तो तुम खाली स्लेट की तरह होते हो।
उसने भेड़ों की भाषा ही जानी थी, वही सुनी थी, वही थी थी थी वह भी मिमि-याने लगा, रोने लगा, भागने लगा। यह नय mí पकड़ा तो वह गिड़गिड़ाने लगा, छूटने की आज्ञा चलाॹ चलाह घबड़ा गया, जैसे मौत सामने खड़ी हो गयी है। ¡Adelante! तु भेड़ नहीं है! लेकिन वह कैसे माने? इसमें उसको कुछ जालसाजी दिखायी पड़ी। यह सिंह कुछ ऐसी बात समझा रहा है, जो सच हो नहीं सऀ। उसके जीवन भर के अनुभव के विपरीत है।
जब तुमसे कोई कहता है, तुम शरीर नहीं हो, क्या तुम्हें विश्वास आता है? जब मैं तुमसे कहता हूं की तुम आत्मा हो तो क्या तुम्हें भरोसा होता है? अगर उस भेड़ सिंह को भी भरोसा न आया तो आश्चर्य तह नह लेकिन यह दूसरा सिंह भी जिद्दी था। मैं भी बड़ा जिद्दी हूं, तुम जागो या न जागो मैं तुम्हें जगाते रहुंगा। तुम कितन mí क्योंकि यह तो नित्य शाश्वत सनातन संबंध है। उस सिंह ने भी उसे घसीटते हुये एक सरोवर के किनारे छोड़ा वह कितना ही ivamente, चिल्लाया, आंख से आंसू झरने लगे, लेकिन वह सिंह उसे घसीटता ही ले गय गय इच इच favor
बहुत बार गुरू शिष्य को उसकी इच्छा के विपरीत दर्पण के ले ले जाता है।।।।।। शायद बहुत बार नहीं, हर बार क्योंकि शिष्य तोदर्पण के निकट जाने से डरता है, क्योंकि दर posterir जो भी उसने समझा-बुझा है, वह व्यर्थ हो जायेगा। जो भी उसकी धारणाये है, टूटेगी, खंडित होगी। सारे जीवन की प्रतिमा बिखर जायेगी। दर्पण के सामने आने से सभी डरते है। अपना चेहरा देखने से सभी डरते है। क्योंकि तुम सब ने कुछ और चेहरे बना रखें है, जो तुम्हारे नहीं हैं।।।।।।।।।।।।। तो वह सिंह भी डर रहा था। लेकिन गुरू माना नहीं। गुरू सिंह ने उसे खींचा और सरोवर के किनारे ले ज mí ¿? जो मैं हूं, वही तु है। ''तत्त्वमसि'' यही मैं कहा रहा हूं कि जो मैं हूं, वहु यही उपनिषद कह रहे हैं कि जो मैं हूं वही तुम हो, जenas भी भेद नहीं है। डरते-डरते उस सिंह ने देखा, लगा जैसे कोई सपना दहख। क्योंकि हम उसी का यथ marca यथ कहते हैं, जिसको हमने बहुत बार पुनरूक्त किया है। नया तो सपना ही मालूम पड़ता है। भरोसा न आया, आंख मीड़ी होगी, पुनः देखा होगा। जीवन भर का अनुभव तो यह था कि मैं भेड़ हूं हूं, लगा होगा, यह कोई कोई तरकीब तो नहीं कenas! कोई जादूगर तो नहीं! कोईहिप्नोटिस्ट तो नहीं है!
जब तुम गुरू के पास पहली दफा जाओगे तो तुम्हें अनेक बार लगेगा कि कोई सम्मोहित तो नहीं कर रहा है? ¿Está bien? ¿Está bien? क्योंकि तुम्हारे अनुभव के प्रतिकूल है। लेकिन सिंह ने कहा की तु देख देख, फिर से देख उस उस ने ने गivamente जन की उसकी गर्जना सुनते ही सivamente के दर्पण में अपने चेहरे को ठीक से देखकर ही दूसरे सिंह क razón भेड़ की खल तो ऊपर थी, उसे तो हटना ही था। संस्कार तुम्हारी आत्मा तो नहीं बन सकते। तुम कुछ भी उपाय करों, तुम रहोगे तो आत्मा तुम कितनी ही चेष्टा करोगे जन्मों-जन्मों तक, तो तुम तुम शरीर न हो सकोगो।।।।।।।।।।। आत्मा और शरीर तो अलग-अलग है। विचार ऊपर ही ऊपर है। मन ऊपर ही है और जिस दिन गुरू तुम्हें दिखायेगा सरोव¢ उस हूंकार के साथ ही भेड़ सिंह की तरह अन्दर की आत्मा जाग जायेगी। हूंकार उठी, सारा जंगल, पहाड़ पर्वत, हूंकार से गत्े ¡Adelante! वापिस उसने पानी में झांक कर देखा। मुस्कुराया होगा। ¡Adelante! कैसा अपने आप को धोखा दिया!
एक आदमी ऊंट पर चढ़कर अपने गांव जा रहा था। रात्रि के समय वह एक गांव में पहुंच mí । जो ब्याह के समय ब्रagaह्मणों को दी जाती हैं, वह ब्रagaह demás ऊंट को बाहर खड़ा करके भूर लेने के लिये भीतर चला ।ा ।ा ।ί भूर चला ।oque चोरों ने ऊंट को बाहर देख तो वे उसको भगाक¢ ले गये, इधर भूर बंटी तो सब ब्रagaह्मणों को चार-चार आने मिले मिले, चाendr आने वहgunaya च razón रूपयों का ऊंट गया।
इस तरह संसार में तो तुच्छ सुख मिला, थोड़ा धन मिल गया थोड़ा मान मिल गया, थोड़ा आदर मिल गया, थोड़ा भोजन बढि़या मिल गया पर उधर ऊंट चला गया परमात्मा की प्राप्ति चली गयी, यही दशा है, तुम तुच्छ सुख में आनन्द को खो देते हो। तुम्हारे मोह के का rod " थोड़े से आदर-सत्कार में चार आने भूर के लिये ¢ हो हो जाते हो।।
एक संत को किसी ने कहा कि हम आपक mí ¿Está bien? ¿Está bien? ¿Está bien? व sigue.
आप जो सरorar. इस इच्छा को ज्ञान की इच्छा कहो या प्रेम की, सुख की इच्छा या ईष्ट दर्शन की भगवत भगवतgunaya लक्ति की इच्छ दो लक ष razón । अधूरे को ले लोगे, तो वहीं अटक जाओगे, यह मनुष्य शरीर उत्तम से उत्तम है।।।।।।।। अतः इसका लक्ष्य पूरvert.
एक चरवाहा आया और ब्र sigueal इधर का तो छोड़ दें और उधर का मिले ही नहीं, तो फिर रोते रह जायेगे न? ब्रagaह demás न उत्तर दिया कि अर्जुन ने भी यही प्रश्न किया था कि अगर साधक को की की प्रaga प न हो हो तो और वह में में मर जर जxto ज उस बेच की की क क क गति गति है में में ही ज ज य की क य क क क गति गति गति गति गति गति गति है है है है की की क क क की क गति क गति गति गति गति गति गति गति गति गति गति गति गति गति गति गति गति गति गति गति गति गति गति गति गति गति गति गति गति गति गति गति गति गति गति गति य य गति य गति गति य य य गति य य गति य. ¿Está bien? संसार को तो छोड़ दिया और परमात haber भगवान बोले- नहीं पार्थ! उसका न तो इस लोक में और न परलोक में ही पतन होता है क्योंकि जैसे हम कर्म करते है है, वैसा ही हमें प्रija होता है है।।।।।।।।।।।।।।।।।।
दो शिष्य अपने गुरू के आश्रम में थे, दोनों को एक घंटे बगीचे में घूमने का समय मिलता था। दोनों को सिगरेट पीने की आदत थी। वही एक घंटा था जब वे पी सकते थे। लेकिन वह घंटा भी मिलता थ mí ¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿ तो दोनों ने तय किया कि गुरू से पूछ लेना तो पहले ने जाकर पूछा। गुरू ने कहा नहीं बिलकुल नहीं। यह बात पूछने की है? शर्म नहीं आती? नालायक कहीं के! जाओ ध्यान करो! वह तो बड़ा दुःखी होकर वापिस लौट आया। एक बैंच पर आकर बैठ गय mí पहले ने पूछा कि मामला क्या है, मुझ पर तो बहुत नार marca हुये गुरू जी! ¿Está bien?
उसने कहा हां मैंने पूछा तो उन्होंने कहा हां मसे उसने कहा यह तो हद हो रही है! यह कैसा पक्षपात! ¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿ उसने कहा मैंनेपूछा था कि मैं ध्यान करते समय सिगरेट पी सकता हूं? वे एकदम नाisiones दूसरा हंसने लगा, उसने कहा वहीं भूल हो गयी। मैंने गुरू जी से पूछा कि क्या मैं सिगरेट पीते समय ध्यान कर सकता हूं। ¡Adelante! अरे कम से कम ध्यान तो कर रहे हो।
तुम कहते हो मैंने बार-बार भागना चाहा औecerg मैंने तुम्हें बांधा नहीं है। किसी को बांधो तो वह भग सकता है। जंजीरें हों तो तोड़ सकता है। मैंने तुम्हें पूरी स्वतंत्रता दी है, तुम भागना चाहो तो म मालिक हो।।।।।।।।।।। हो।।। हो मैं तुम्हें तुम्हाisiones सारा स्वर यही है मेरा कि तुम्हारी परम स्वतंतऍथ॰ा
¡Adelante! कोई भी अप marca नहीं, आनन्द किरण हो तुम मेरी, तुम्हाisiones लेकिन इस समाज ने तुम्हें यह समझा दिया है की तुम प mí मैं तो सिर्फ तुम्हें एक ही बात का स्मरण दिलाना चाहता हूं। तत्त्वमसि कि तुम हंस हो, मेरे राज हंस हो। तुम अपने आप को भूल चुके हो क्योंकि तुम सो रहे हो, मूर्छित हो, निद hubte में।।।।।।।।। जाग जाओगे ध्यान में तो अपने-आप में साधु हो जाओगे एक सम्रagaट को उसके ज्योतिषी ने कहा कि इस वर्ष जो फसल आयेगी उसे जो भी खायेगा, पीयेगा वह पागल हो जायेगा। तुम कुछ बचाने का उपाय कर लो। सम्रagaट ने कहा, तो पिछले वर्ष की फसल हम बच mí केवल महल में रहने वाले लोग तुम, मैं, तुम्हारी रानी, तुम्हारों बच्चें, थोड़े से लोग बच।।।।।।।।
¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿ जब मेरा पूरा साम्रija ही ही प mí तो तुम एक काम करो, सिर्फ पूरानी फसल को बचा लो, पूenas अनाज को और हम सब को पागल हो जाने दो, एक बात याद खें तुम प प नहीं होगे।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। तुम तुम. तो तुम एक-एक व्यक्ति को जो भी तुम्हें मिले उसे हिला कर कहना कि तू पागल नहीं।।।। बस इतनी कसम खा लो।
सम्रagaट ने ठीक कह siguez Ver más ऐसा हुआ सारा साम्राज्य पागल हो गया। सिर्फ ज्योतिषी बचा गया। बड़ी कठिन उसकी यात्र थी, क्योंकि पागलों को हिलाना बड़ा मुश्किल था। कितना ही उनको कहो, वे सुनते नहीं थे। कितना ही जगाओ वे जगते नहीं थे, कितना ही हिलाओ, हिलते नहीं थे। लेकिन कुछ लोग हिले, कुछ लोगों को याद आयी और जिनको याद आया, उनको वह ज्योतिषी कहता तुम भी यही करो। दूसरों को हिलाओ, क्योंकि जो अन्न है वह भीतर तक नहीं जा सकता। वह आत्मा नहीं बन सकता। ऊपर बेहोशी तन्द्रा ही तो है.
तुम सो गये हो जैसे ही तुम हिलते हो जग जाते हो तो जागरण कभी खोत mí तुम्हेंधुयें से भर दिया है। बस तुम्हाisiones कोई तुम्हें हिलाये, जगाये, बस तत्क्षण में क्रagaंति घट है है। उसी क्षण में तुम हंस बना जाओगे, तुम स्वयं बुदऍथ जा जथ क्योंकि तुम्हाisiones थोड़ी सी हवायें च siguez सिर्फ भूली आत्मा की पुनःआत्मबोध, स्मृति है, सहतथ॰॰
तो मैं जो कह रहा हूं वह तुम्हें हिलाने इसलिये जब भी तुम सद्गुरू के पास पहुंच जाओगे बड़ा संघर्ष पैदा होता है। आधे रास्ते से तुम भागना च mí ¿Está bien? और आधे से तुम रूके रहोगे, भागोगे तो भी वापिस आ जाओगे, क्योंकि मन कहेगा, कहीं और जाने का कोई अर्थ नहीं, वह मंजिल है, जिसकी तलाश थी थी थी थी थी थी थी थी थी थी थी थी थी थी थी थी थी थी थी थी थी
गुरू पुर्ण है, अद्वैत है, शिष्य अपुर्ण है, शिष्य द्वैत है। प sig तुम्हारे भीतर जो व ender-ár. तुम्हें आग में डालना होगा, ताकि तुम्हाisiones स्वर्ण निखर आये, स्वर्ण तो जलता नहीं, सिर्फ निखरता है है है है है है है है है है है है है है है है है
मैं तुम्हें वह मंत्र, साधना, दीक्षा दे रहा हूं जिसके माध्यम से तुम इसी जीवन में पूर्ण हो सको, जिससे तुम्हारी चिन्तायें, तुम्हारी बाधायें, तुम्हारी परेशानी सब मैं अपने ऊपर झेलूंगा, तुम्हें मुक्त होना है, मेरे प्राणों के साथ रहना है, हर क्षण और ह debe
इस दीपावली महापर्व पर अपने मन का दीप जलायें, जो आपको आन्तरिक ूप से आलोकित करें, आपके को को एक नयी ऊर्जा, नयी, नयी नये के स स स स स स न न न जिससे। न न न न न न न न न न न।।।।।। न।।।।। न। न न। न।।।. जिससे तुम्हारículo प्रत्येक कutar.
El más venerado Sadhgurudev
Sr. Kailash Shrimali
Es obligatorio obtener Gurú Diksha del venerado Gurudev antes de realizar cualquier Sadhana o tomar cualquier otra Diksha. Por favor contactar Kailash Siddhashram, Jodhpur a Correo electrónico , Whatsapp, Teléfono or Enviar para obtener material de Sadhana consagrado, energizado y santificado por mantra, y orientación adicional,
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