जिस परम seaत haber अगर हम यह जिद करें कि पता होगा तभी स्मरण करेंगे, तो बड़ी बड़ी कठिनाई है।।।।।।। क्योंकि पता हो जाने पecer जो जानता हैं, उन्हें प्रभु का नाम लेने की भी कोई जenas नहीं है।।।।।।।।।।।।। जो पहचानते हैं, उनके लिये प्रार्थना भी व्यर्थ है ¡Adelante! वे कैसे पुकारे उसे ! वे कैसे स्मरण करें! जिन्हें उसकी कोई खबर ही नहीं है, उसकी तरफ़ वे हाथ भी कैसे जोडे़ और सिर भी झुक झुकायें।
बूंद को स sigue. और अंधेरी ¢ में जलते हुये एक छोटे से दीये को क्या पता होगा कि सूरज के बिना वह न सकेग सकेगा। लेकिन सूर्य कितना ही दूर हो, वह जो छोटे से अंधेरे में जलने वाला दीया है, उसकी रोशनी भी सूenas की ही रोशनी है।।।।।।।।।। और आपके गांव में आपके घर के पास छोटा सा जो झरना बहता है, उसे क्या पता होगा कि दूर के सागरों से जुड़ा है! और स sigue. झरने को देखकर आपको भी ख्याल नहीं आता कि सागरों से उसका संबंध है।।।।।।।
आदमी भी ठीक ऐसी ही स्थिति में है। वह भी एक छोटा सा चेतन mí ऋषि एक यात्र पर निकले थे इस सूत्र के साथ। लेकिन यह सूत्र बहुत अदभुत है और बहुत अजीब भी, क्योकि जिसकी खोज पर जा रहok है, उसी से प्रagaacho कर íbO है।।।।।।।।।।।।।।। जिसका पता नही है अभी, उसी के चरणों में सिर रख रहै ¿Está bien? इससे समझ लें, क्योंकि जिसे भी साधना के में में प्रवेश करना है इस इस असंभव को संभव करना पड़ता है।।।।।।।।।
एक बात तय है कि बूंद को सागर का कोई भी पता नही है, लेकिन दूसरी बात भी इतनी ही तय कि बूंद बूंद सागर होना चाहती है।।। जो हम चाहते है, उसके समक्ष ही हमें प्रणाम करना होगा- हमें, वे जो हैं।।।।।।।।।।।।।।। उसे उसके समक्ष प्रार्थना करनी होगी, जो हम हो सथईथ जैसे बीज उस संभ siguez इस प्राagaado से परमात्मा को कुछ ल mí लेकिन इस प्रार्थना से हमारे पैरों में बड़ा बतज ाा यह प्रार्थना परमात्मा के लिये नहीं है, अपने ही थह परमात्मा के प्रति नहीं है, अपने ही लिये हैं।
अगर बूंद ठीक से प्राaga क sigue. और बूंद जब सागर को पुकारती है, तो किसी अज्ञात मारorar क्योंकि जिस बूंद ने श्रद्धा, आस्था और निष्ठा से कह सकी वो बूंद, प¢ म्म caso मुझे सहायता करना, यह श् razón.
प्रagaacho के क्षण में प्रagaacho थनरने वाला वही नहीं रह जाता, जो प्र sigue जैसे कोई द्वार खुल जाता है, जो बंद था। एक नया आयाम, एक नई यात demás और एक नये आकाश का दर्शन होना शुरू हो जाता है।।।।।।।। नहीं यह कि आप आक siguez आप कुछ दूसरे नहीं हो गये होते हैं.
अंधेरे में खड़ा है एक आदमी अपने ही मकान में और पिफ़र अपने द्वार को खोल लेता है। वही आदमी है, वही मकान है, वही जगह है। कहीं कोई परिवर्तन नहीं हो गया है, लेकिन अब बहुत दूर का आकाश दिखाई पड़ने लगता है।।।।।। और मार्ग अगर दूर तक दिखाई न पड़े तो चलना बहुत शथथहईह और मंजिल हम जहां खड़े है, अगर वहीं से दिखाई पड़नी न शुरू हो जाये तो यात्र असंभव।।।।।।।।।।।।।।
दीये की ज्योति बुझ जाती है, मिट नही जाती। दीये की ज्योति खो जाती है, समाप्त नहीं हो जाती। हमारी तरपफ़ से जो खोना है, वह किसी दूसरे की तरपफ़ कहीं बन बन जाता है। वह ज्योति आई थी, किसी विराट से और पिफ़र विराट में लीन हो जाती है।।।।।।। असीम से आती है और फिर असीम में चली जाती है। सागर से ही आती हैं वे बूंदें, जो आपके घर पर बरसती हैं और आपके खेत, बाग और बगीचे में, और फिर सागर में लीन हो जाती है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है ज ज objetivo
यह भी ध्यान रखें, एक शाश्वत सूत्र है कि जो चीज जहां लीन है है, वह लीन होने का स्थान वही जो जो उद्गम का है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है. उद्गम और अंत सदा एक हैं। जहां से जन्म पाता है, वहीं समाप्त, वहीं लीन, वहीं विदा हो जाता है।।।।।। आने के द्वार एक ही है। ज्योति खो जाती है वहीं, जहां से आती है। ज्योति के इस खो जाने को मैं कहता हूं दीये का नताव् किसी दिन जब अहंकार भी इसी तरह खो जाता है, महाविantemente
परमात्मा से प्रार्थना करनी हो, तो कुछ और कहना हथ ¿? परमात्मा शांत है। लेकिन इसे कहा हैं, शांति पाठ। जानकर कहा है, बहुत सोच -समझकर। वह इसीलिये कह mí और हम अशांत हैं और अशांत रहते हुये यात्र नहीं सॕ सॕ अशांत रहते हुये हम जहां भी जायेंगे वह परमात्मा से विपरीत होगा। अशांति का अर्थ है, परम seaत haber
असल में जितना अशांत मन, उतना परमात्मा से दूर। अशांति ही डिस्टेंस है, दूरी है। जितने आप अशांत हैं, उतना ही पफ़ासला है। अगर पूरे श siguez तब ऐसा भी कहना ठीक नहीं कि आप परम seaत haber नहीं, तब आप परमात्मा में, परमात्मा ही हैं। शायद यह कहना भी ठीक नहीं, क्योंकि परमात्मा में होना भी एक फ़ासला है।।।।।।। तब कहना ठीक है कि आप परमात्मा हैं। या तो फिर आप हैं, और या परमात्मा है। फिर दो नहीं हैं, क्योंकि जहां तक दो हैं, वहां तक कोई तल पर फ़ासला कायम बना रहता है।।।।।।।।।
ध्यान रहें जहां भी अर्थ होता है, वहां सीमा आ जाथै अर्थ ही होता है सीमा। जब भी अर्थ होता है, तो उससे विपरीत भी हो सकता है। सभी शब्दों के विपरीत शब्द होते हैं। ¿Está bien? जीवन है तो मृत्यु है, अंधेरा है तो प्रकाश है, अद्वैत है तो द्वैत है, और मोक्ष है संस संसguna है।।।।।।।।।। ¿Está bien? अगर अर्थ हो तो विपरीत शब्द निर्मित हो जायेगा। लेकिन ओम में कोई अर्थ ही नहीं। यही उसकी महत्ता है।
लोग कहते है, मेरी वाणी मेरे मन में स्थिर हो जाये॥ कभी आपने सोचा, आप बहुत सी बातें कहते हैं, जो आप कहना ही नहीं चाहते थे। वह बड़ी अजीब बात है। जो आपने कभी नहीं कहनी चाही थीं, वे भी आप कहते हैं, आप खुद ही कहते हैं। और पीछे यह भी कहते सुने जाते हैं कि मैं इन्हे कहना नहीं चाहता था। यह वाणी आपकी है! आप बोलते हैं वाणी से कि कुछ और बोलता है
सौ में से निन्यानवे मौकों पर दूसरे लोग आपसे बुलवा लेते हैं, आप नहीं।। पत्नी भली भ siguez पति भी भली भ siguez हमारे मन- मन का अर्थ है, हमारे मनन की, चिंतन की क्षमता का भी हमारी वाणी से संबंध नहीं है है, वाणी हमारी यांत Davaga हो है।।।।।।।।।।।।।।।।। हम बोले चले जाते हैं, जैसे यंत्र बोल रहा हो। एक शब्द भी शायद ही आपने बोला हो जो मन से एक हो। कई बार तो ऐसा ही होता है कि मन में ठीक विपरीत चलता होता है और वाणी में ठीक विपरीत होता है।।।।।।। किसी से आप कह रहे होते हैं कि मुझे बहुत प्रेम है आपसे, और भीतर उसी की जेब क काटने का विचार कर रहे है या धोखा देने का। va जेब काटना मैंने कहा कि बहुत अतिशयोक्ति न हो जा९९९ मन में घृणा चल रही होती है है, क्रोध चल रहा होता है और आप प्रेम की बात भी बताते रहते हैं।।।।।।।। आप मित्रता की बातें भी चलाते रहते हैं और भीतर शत्रुता चलती रहती है।।।।। तो ऐसा आदमी अपने को भी कभी न जान पायेगा। ऐसा आदमी दूसरों को धोखा नहीं दे ¢ ह, अंततः अपने को धोखा दे रहok है।
मन की वाणी में ठहरने का अर्थ यह है कि जब मैं बोलूं, तभी मेरे भीतर मन हो! और मैं जब न बोलूं तो मन भी न रह जाये। ठीक भी यही है। जब आप चलते हैं तभी आपके पास पैर होते हैं। आप कहेंगे, नहीं जब नहीं चलते हैं तब भी पैर होतइ है लेकिन उनको पैर कहना सिर्फ कामचलाऊ है। पैर तो वही है जो चलता है। आंख तो वही है जो देखती है। कान तो वही है जो सुनता है। तो जब हम कहते हैं अंधी आंख, तो हम बड़ा गलत शब्द कहते हैं, क्योंकि अंधी आंख का कोई मतलब ही नहीं होता। अंधे का मतलब होता है, आंख नहीं। आंख का मतलब होता है आंख, अंधे का मतलब होता है आंथह लेकिन जब आप आंख बंद किये होते हैं तब भी आप आंख का उपयोग अगर न कenas हे हो तो आप बिलकुल अंधे होते।।।।।।।।।।।।।।।।।।
आंख का जब उपयोग होता है तभी आंख आंख है। एक पंखा रखा हुआ है, तब भी हम उसे पंखा कहते है। कहना नहीं चाहिये। पंखा हमें उसे तभी कहना चाहिये जब वह हवा करता हो। नहीं तो पंखा नहीं कहना चाहिये। तब वह सिर्फ बीज रूप में पंखा है। उसका मतलब यह है पंखा कहने क mí बस इतना ही। अगर आप एक कित siguez जब वाणी के लिये जरूरत हो बोलने कि, तभी मन को होना चाहिये, बाकी समय होन होना चाहिये। पर हम तो ऐसे हैं कि कुर्सी पर बैठे रहते हैं तो टांगें हिलाते रहते हैं। कोई पूछे कि क्या कर रहे हैं आप, तो रूक जाते हैं। क्या करते थे आप? बैठे-बैठे चलने कि कोशिश कर रहे थे या टांगे आपकी पागल हो गई हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं ठीक ऐसे ही हम बोलते रहते हैं। ठीक ऐसे ही, बाहर कोई जरूरत नहीं रहती है वाणी की तो वाणी भीतर चलती रहती है।।।।।। बाहर नहीं बोलते तो भीतर बोलते हैं। दूसरे से नहीं बोलते, तो अपने से बोलते रहते हैं।
धैर्य का अर्थ है, अनंत प्रतीक्षा की क्षमता आज ही मिल जाये सत्य, अभी मिल जाये सत्य, ऐसी कि वा हो तो सत देखतguna मैं मैं, य य ह, ह ग य कभी, ह य य य, ह य य, भी य य, भी य य यija भी य य. भी अनंत-अनंत जन्मों में, कभी भी जब उसकी कृपा हो मिल जाये, तो अभी औág. जितना बड़ा धैर्य, उतनी ही जल्दी होती है घटना, जितना छोटा धैर्य, उतनी ही देर लग जाती है।।।।।।।।।
प्रभु की तरफ़ पहुंचने के लिये प्यास तो गहरी चाहिये, लेकिन अधैenas नहीं।।।।।। अभीसिप्ता तो पूर्ण चाहिये, लेकिन जल्दबाजी नहीं जितनी बड़ी चीज को हम खोजने निकले हों हों, उतना ही मार्ग देखने की तैयारी चाहिये और कभी भी घटे घटना, जल्दी ही है, क्योंकि जो मिलता है उसे समय से नहीं तौला जा सकता।।। ।ा।।।। fl. अनंत-अनंत जन्मों के ब siguez कभी भी देर नहीं है। क्योंकि जो मिलता है, अगर उस पर ध्यान दें, तो अनंत-अनंत जन hubte जो मंजिल मिलती है, उस पर पहुंचने के लिये कितना भी भटकाव ना कुछ।।
सन्यासी के कंधे पág. वस्तुतः सन्यासी की जो झोली है, वह तो धैर्य है। और धीरज की इस गुदड़ी में बड़े हीरे आ जाते हैं। लेकिन धैरorar. एक व्यक्ति साधारण सी शिक्षा पाने विश्वविद्यालय की यात्र पecer पता कुछ भी नहीं, कचरा लेकर घर लौट आता है।
लेकिन अगर कोई व्यक्ति ध्यान कि यात demás पर निकलता है, तो वह पहले दिन ही आकर मुझे कहता है कि एक दिन बीत गया, अभी कुछ नहीं।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। हुआ हुआ हुआ हुआ हुआ हुआ हुआ हुआ eléctrica eléctrica क्षुद्र के लिये हम कितनी प्रतीक्षा करने को तैयार हैं, विराट कि लिये कोई प्रतीक्षा नहीं! इससे एक ही ब siguez और शायद हमारी च siguez क्षुद्र की हमारी चाह बहुत है, इसीलिये हम प्रतीक्षा करने को राजी हैं।।।।।।। एक आदमी आदमी थोड़े से से रूपए कमाने कि लिये जिंदगी जिंदगी दtan दtan प sig लग así así— है है औ bal प्रतीक -spil ender करत veo sigहत है कि आज आज नहीं तो तो कल, कल नहीं तो प। चाह गहरी है धन को पाने की, इसलिये प्रतीक्षा कर हॾ ले परमात्मा के लिये वह सोचता है कि एकाध बैठक में ही उपलब्ध हो जाये और वह बैठक में भी तब निकलत निकलत निकलत है उसके प पguna अति अतिû समय समय हो हो जो की से बच ज ज ज।।।।।।। अति समय हो हो जो धन खोज से बच ज ज त।।।।।।।।। अति समय हो हो जो धन विदा का दिन हो, अवकाश का समय हो, और फिर वह चाहता है, बस जल्दी निपट जाये। वह जल्दी निपट जाने की बात ही यह बताती है कि ऐसी कोई च sigue.
और ध्यान रहे, विराट तब तक उपलब्ध नही होता, जब तक कोई अपना सब कुछ समár. नहीं तो कोई कहे कि मैंने सब कुछ समenas कर दिया, अभी तक नहीं मिला। अगर इतना भी सौदा मन में है कि मैंने सब समर्पित कर दिया तो मुझे प्रभु, परमात्मा मिलना चाहिये, तो भी मिल सकेग।।। ¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿ क्या छोड़ेगे आप? ¿Está bien? आपका कुछ है ही नहीं, जिसे आप छोड़ दें। सभी कुछ उसी का है। ¿Está bien? ¿Está bien? ¿Está bien, está bien, está bien? और हो सकता है, धन भी हमारा हो, जमीन भी हमारी हो, लेकिन एक बात पक्की है किatar क्योंकि न तो हमने उसे बनाया है, न हमने उसे खोजा है, न हमने उसे पाया है।।।।।।।। वह है।
तो धन तो हो भी सकता है आपका, लेकिन आप अपने बिलकुल नहीं हैं। क्योंकि कह सकते हैं, धन मैंने कमाया। लेकिन यह जो भीतर दीया जल ¢ ह है चेतना का, वह तो परमात haber आपका इसमें कुछ भी नहीं है। इसलिये देंगे क्या? म sigue, तिब्बत का एक बहुत अद्भुत ऋषि जब अपने गुरू के पास पहुंचा, तो उसके गुरू ने कहा, तू दान कर दे।।।।। मारपा ने कहा? गुरू ने कहा, तो तुम कम से कम अपने को समर्पित कर दो तो मारपा ने कहा, मैं! मैं तो उसका ही हूं। ¡Adelante! तो उसके गुरू ने कहा, भाग जा, अब दुबारा इस तरफ़ आत आत आत आत क्योंकि जो मैं तुझे दे सकता था, वह तो तुझे मिल ह। ह९ ह९ वह तेरे पास है ही। म sigue, ने कहा, मैं सिर्फ कोई जानने वाला पहचान ले, इसलिये आपके चरणों में आया हूं।।।।।।।।। अनजान हूं जो मिल गया है, उसे भी पहचान नहीं पाता, क्योंकि पहले वह कभी मिला नहीं था। आपने कह दिया, मुहर लगा दी।
असल में गुरू की अंतिम जरूरत साधना के शुरू के चरणों में पड़ती पड़ती, अंतिम जरूरत तो उस दिन पड़ती है दिन घटना घटती है।।।।।।।।।। है है है है है है है है है है है है है है eléctrica उस दिन को चाहिये, जो कह दे कि हां, हो गया। क्योंकि अपरिचित, अनजान, पहले तो कभी जाना हुआ नही है, उस लोक में प्रवेश हो जाता है।।।।।।।।।। पहचान नहीं होती कि जो हो गया है, वह क्या है। तो गुरू की जरूरत पड़ती है प्रagaथमिक चरणों में, वह बहुत साधारण है।।।।। अंतिम क्षण में गुरू की जरूरत बहुत असाधारण है कि वह कह दे कि हां, हो गई वह बात जिसकी तलाश थी।।।।।।।।। वह गवाही बन जाये, वह साक्षी बन जाये।
धैर्य का अर्थ है, हमारे पास न दांव पर लगाने को है है, न परमात hablo और मांग हमारी है कि परमात्मा मिले। प्रतीक्षा तो करनी पडे़गी। ैर्य तो रखना पडे़गा और अनंत रखना पड़ेगा। ऐसा नहीं कि चूक जाये कि दो-चार दिन बाद फिर हम पलतथ तो उसमें वैसा ही नुकसान होता है, जैसे छोटे बच्चे कभी आम की गुठली को बो देते हैं जमीन में और दिन में चाnas अधैर्य, अंकुर कभी नहीं निकलेगा। यह चार दपफ़े उखाड़ने में अंकुर कभी नहीं निकलेगागा अंकुर निकलने का मौका भी तो नहीं मिल पा रहok है, अवसर भी नहीं मिल पा रहok है।
जमीन में बीज को बोकर भूल जाना चाहिये, प्रतीक demás करनी चाहिये। हां, पानी डालें जरूर, पर अब बीज को उखाड़-उखाड़कर मत देखते रहें अभी तक बीज फूटा, नहीं फूटा! नहीं तो फिर कभी नहीं फूटेगा बीज खराब हो तो ध्यान करके हर बार न पूछें कि अभी पहुंचे, कि नहीं।।।।।।।। बोते जायें, सींचते जायें। जब अंकुर निकलेगा, पता चल जायेगा। जल्दी ना करें, बार-बार उखाड़कर मत देखें।
एक सन्यासी था, अपने गुरू के आश्रम में बा rod " बारह वर्षों तक उसने यह भी न पूछा कि मैं क्या करूा बारह वर्ष बाद एक दिन गुरू ने कहा, किसलिये आया है यहां, कुछ पूछता भी नहीं।।।।।।।।। तो सन्यासी ने कहा, प्रतीक demás करता हूं, जब आप पायेंगे कि मैं योग्य हूं, तो आप खुद ही कह देंगे।।।।।।।।।
यह सन्यासी का लक्षण है। सांझ में आकर पैर दबा जाता है, सुबह कमरा साफ़ कर देता है, चुपचाप बैठ जाता है, दिनभर बैठा रहता है।।।।।।।।। रात जब गुरू कह देता है कि अब में सो जाता हूं, तो चला जाता है। बारह वर्ष बाद गुरू पूछते है, बहुत दिन हो गये तुझे आये हुये, कुछ पुछता नहीं है! तो सन्यासी कहता है, जब मेरी पात्रता होगी, अब आप कि कि क्षण आ गया कुछ कहने का, तो आप कह देंगे।।।।।।।।।।।।।।।। मैं राह देखता हूं। और सन्यासी ने कहा कि जो मैं पूछता उससे मुझे जो मिलत mí अब मैं बिल्कुल शांत हो गया हूं। यह बारह वर्ष कुछ किया नहीं, बैठकर बस प्रतीक्तहै क तो मैं एकदम शांत हो गया हूं। भीतर कोई विचार नहीं रहे हैं।
उदासीनता अचुनाव है। उदासीनता क sigue. मन क mí न हम मन के पहले हिस्से की सुनते हैं, न हम दूसरे हिस्से की हैं हैं। हम दूर खड़े होकर दोनों हिस्सों को देखते हैं। न हम यह किनारा चुनते हैं, न वह किनारा चुनते हैं। हम कुछ चुनते ही नहीं। अचुनाव उदासीनता है। और प्रतिपल मन द्वंद्व खडे़ करता है, क्योंकि मन का स्वभाव द्वंद्व है।।।।। मन एक से जीत नहीं सकता। मन दो होकर ही जीता है।
आपने मन में कभी कोई ऐसी लहág. जहां आकर्षण होता है, तत्काल विकर्षण वहीं पैदा हॾ हो मन का एक हिस्सा कहता है, बायें चलो, दूसरा तत्काल कहता है, दायें चलो।।।। मन सदा ही द्वंद्व खडा करता है। मन का स्वभाव द्वंद्व है और जिसको आप चुनेंगे, उसके विपरीत जो है वह मौजूद हेग ender, वह मिटेगा नहीं।।।।।।।।।।।। वह प्रतीक demás करेगा आपकी कि ठहरों, थोड़े दिन में ऊब जाओंगे उस चुनाव से, फिर मुझे चुन।।।।।।।।।।।।। यही तो हो रहा है पूरे वक्त।
मन द्वंद्व में जीता है। आप ऐसी कोई चीज च siguez आप ऐस mí आप ऐसा कोई मित्र नहीं बना सकते, जो किसी दिन शत्रु न हो जाये। जो भी चाह जागेगा, उसका भ्रम टूटेगा आप ऐसी कोई चीज पा नहीं सकते, कि एक दिन ऐसा न लगे कि गले में फ़ांसी लग।।। इतनी मेहनत करके जो हम पाते हैं, आखिर में हम पाते हैं, अपनी ही फांसी बना ली। हम जीते हैं ऐसे ही । सब जड़ हो जाता है, सब बंध हो जाता है, एक लीक हो जाती है, उस पर हम चलते हैं।।।।।।।।। बाहर की जिंदगी में ठीक भी है। काम करना मुश्किल होगा। लेकिन भीतर की जिंदगी में बहुत खतûendr इसीलिये बच्चे जितने विचारशील होते हैं, बूढ़े उतने विचारशील नहीं होते, यद्यपि बच्चों के पास विचार कम हैं और औ बूढ़ों के पास बहुत हैं।।।।।।।।।।।।।।
इसलिये फर्क को ख्याल में ले लें। बूढ़े के प siguez क्योंकि सब विचार उसकी आदत बन गये होते हैं, अब उसे विचा rod कenas नहीं पड़ता। विचार आ जाते हैं, वे नियमित हो गये हैं। बच्चे के पास विचार तो बहुत कम होते हैं, इसलिये विचारशीलता बहुत है।।।।।।। है फिर धीरे-धीरे विचारों की पर्तें जमती जायेगी। वह भी कल बूढ़ा हो ज mí. विचार रहेंगे उसके पास। जब जिस विचार की जरूरत होगी, वह अपनी स्मृति के खाने से निकालकर और सामने रख देगा।ध्यान ¢, बूढ़े के पास अनुभव होता है, विचoque होते हैं लेकिन विच विच शीलत कम होती ज।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। क्योंकि बहुत पत्ते झील पर जमा हो जाते है। बच्चे खाली झील की तरह है जिस पर पत्ते अभी नहीं है
अपने विचार के प्रति भी तटस्थता का नाम विचारशहथलथाला दूसरे के प्रति तो हम तटस्थ होते ही हैं। अपने विचार को भी पुनर्विचार करने की क्षमता का नाम विचारणा है। और प्रतिदिन, आदतवश नहीं, होशपूर्वक। क्योंकि कल का कोई विचार आज काम ंनहीं पड़ सकता है सब बदल गया होता है, विचार स्थिर हो जाता है, जड़ हो वह पत्थर की तरह भीतर बैठ जाता है। और जिंदगी तो हर तरह से, वह बदलती जाती है, और हम कंकड़-पतgon.
विचार भी पत्थरों की तरह भीतर जमा होते चले जातै ह जिंदगी बहुत तरल है, विचार बहुत ठोस हैं। फिर आखिर में हम उन्हीं कंकड़-पत्थरों को गिनकर जिंदगी का हिसाब रखते हैं। और जैस sigue. आखिर में आप के घड़े मे जो पत्थर निकलते हैं, वे सब आपके भी नहीं हैं हैं। सब डाल रहे है, पत्नी पति के घड़े में पति पत्नी के घड़े में। वे कंकड़-पत्थर जमा हो जायेंगे। उनका नाम विचार नहीं है। विचारों के संग्रह का ना होना विचार नहीं है।
विचार एक शक्ति है-सोचने की, देखने की, निष्पक्ष होने की, अपने ही विचार के प्रति तटस्थ होने।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। वह जो जो कल क कtan विचाár थ sigue, वह भी भी पivamente प sigue हो गय गयtan, उसके प्रति भी पुन पुन balte।।।।।।. सोचकर चलने का अर्थ जड़ता नहीं है।
El más venerado Sadhgurudev
Sr. Kailash Shrimali
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