जो भी हम जानते हैं जो भी हमारा ज्ञान है किसी कारण से बंधा है। यह सूत्र ऐसे तो सरल है, कि उस अगम अगोचर का जो दीय ा है, परमात्मा व गुरू की ज्योति है, वह बिना तेल, ब िना बाती के जल रही है, पर है कठिन बहुत, क्योंकि हम ारी कोई पहचान ऐसे किसी स्रोत से नहीं। हमारी जानकारी तो उन्हीं वृक्षों, से है े पैदा होते है, निर्बीज, अबीज वृक्ष से हमारा कोई परिचय नहीं। इसीलिये कठिन है।
तुम्हारे पास भी जो दीये हैं, जिनके सहारे तुम चल रहे हो, एक सवाल अपने से पूछ लेना कि वह दूसरों के दिये हुये हैं? और जब तुम्हें दीया दे, तो उसे धन्यवाद देना लेकि न दीया मत लेना। कहना, दीया तो में खुद ही खोजूंगा।
एक सद्गुरू के पास एक युवक कुछ जिज्ञासायें लेक र आया। उसके प्रश्न लंबे थे, जिज्ञासा गहरी थी और रात हो गई। तो सद्गुरू ने कहा कि रात अंधेरी, क्या ं भय तो नहीं लगता? उस युवक ने कहा, आपने ठीक पहचाना भय लगता है। गांव तक पहुंचने में बड़ा जंगल बीच में है, खूंखा र जानवर हैं। गुरू ने कहा काश मैं तुम्हारा साथ दे XNUMX लेकिन इस जगत् में सब अकेले हैं। जंगल घना है, जंगली जानवर, रास्ता उलझन से भरा है, भटकने की पूरी संभावना है, लेकिन काश, इस जगत मे ं कोई किसी का साथ दे सकता।
युवक थोड़ा हैरान हुआ कि ये भी खूब तरकीब निकाल रहे है, साथ दे सकते है, जा सकते है। जंगल से परिचित है, उसके मन में एक विचार आया कि ग ुरूदेव यह झोपड़ी बना कर रहते हैं। लेकिन कुछ कहना अशिष्टता होगी, तो वह चुप रहा। फिर गुरू ने कहा, लेकिन मैं एक काम कर सकता हूं, दी या तुम्हें दे सकता हूं।
La noche es oscura, tomas la luz de la lámpara.
गुरू ने युवक के हाथ में दीया दिया, तो युवक ने कह ा यही बहुत है, कुछ न होने से तो जैसे डूबते को तिनक ा भी सहारा है। कम से कम देख तो सकूंगा अंधेरे में हैं! लेकिन जैसे ही वह सीढि़यां उतरने लगा, सद्गुरू न े फूक मारी और दीया बुझा दिया उस युवक ने कहा, आप यह क्या कर रहें हैं? आप क्या मजाक कर रहें ¿?
गुरू ने कहा दूसरों का दिया हुआ दीया काम ं आ सकता। हर रास्ता अकेला है, हर आदमी अकेला, अकेला चलता है, और अकेला मरता है, यहां उधार के ज्ञ ान से कुछ भी सुविधा नहीं बनती। Ver más ह भ्रांति नहीं दे सकता कि उधार का प्रकाश काम आ सक ता है। इसके पहले हवायें तुम्हारे दीये को बुझाये मैं स्वयं बुझा देता हूं, इस अंधेरे में ही जाओ, अपना र ास्ता खोजो। होश रखना वह तुम्हारे भीतर है। वह मैं नहीं दे सकता, और यह रात कीमती है क्योंकि अंधेरा घना है और जंगली जानवर निकट है। रास्ता अनजाना है, गांव दूर है। इस खतरे की स्थिति में हो सकता, तुम होश को imágenes कि हम हमेंशा ही दूसरों के बतायें हुये रास्तों प र गतिशील हो जाते हैं, जिसमें हमें होश ही नहीं रह ता।
इसीलिये दूसरे से कभी प्रकाश मत लेना। वह झूठा होगा, और तुम उसके कारण ही टकराओगे। लेकिन हमारे पास सारा ज्ञान उधार है। जो भी हम जानते हैं, वह किसी और का जाना आत्मा, परमात्मा या मोक्ष सुनी हुई बातें हैं। शास्त्रें में पढे़ हुये शब्द हैं, अनुभूतियां नहीं।
महाभारत में एक मधुर घटना है। एक भिखारी भीख मांग रहा था युधिष्ठिर के द्वार प र। पांडव, पांचों भाई अज्ञातवाXNUMX मांगनेवाले को भी पता नहीं छिपे हुये सम्राट है । युधिष्ठिर सामने ही पड़ गये, उन्होंने कहा, कल आ जाना, भीम खिलखिला कर हंसने लगा। युधिष्ठिर ने पूछा ¿¿ ¿Está bien? उसने कहा कि मैं जाता हूं गांव ढिंढोरी पीट आऊं क ि मेरे बड़े भाई ने समय को जीत लिया है। एक भिखारी को उन्होंने वादा किया है कि कल आ जाना । युधिष्ठिर दौड़े, उस भिखारी को वापस लाये और कहा कि भीम ठीक कहता है। ऐसे वह जरा बुद्धि मंद है, लेकिन उनकी थी। उनके पास स्वयं का प्रकाशमान दीया था।
इसलिये सद्गुरू तुम्हें शास्त्र नहीं देता वह त ो तुम्हें वह दीया बनाने की विधि का ज्ञान देता ह ै जिसके माध्यम से तुम स्वयं में ही प्रकाशवान दी या बन सको। वह तुम्हें यह नहीं बताता कि क्या ठीक है, वह तुम ्हें आंखें देता है, जो ठीक को देख सकें। जिससे तुम अपने जीवन में उस ध्यान, योग, साधना के Ver más सको।
इसलिये बुद्ध को जो जानते है, उन्होंने कहा है कि बुद्ध एक वैद्य हैं। नानक को जो लोग पहचानते थे, उन्होंने कहा है कि न ानक एक वैद्य हैं, वे जो दे रहे हैं, वह कोई सिद्धान ्त नहीं है, वे जो दे रहे हैं, वह एक तरकीब है, एक विध ि है, एक तकनीक है, जिससे बंद आंख खुल जाती हैं।
और तुम अंधे होते तो मुश्किल थी। तुम अंधे नहीं हो सिर्फ आंख बंद है। मगर इतनी सदियों से बंद है कि तुम भूल ही गये हो क ि पलक खोली जा सकती है। पलक को लकवा लग गया है बस और कुछ भी नहीं। पलक बोझिल हो गई है। बहुत-जन्मों से न खोलने की वजह से तुम खोलने का ख ्याल ही भूल गये हो। ध्यान, योग, साधना का अर्थ है, अपने भीतर के प्रका श का दीया प्रज्जवलित करने, पलको को खोलने की क्रि या।
जैसे ही तुम्हारी पलक खुल जाये, सब अंधेरा दूर हो जाता है। आंखहो तो अंधेरे में चलना आसान हो जाता है। आंख न हो तो प्रकाश में भी चलना मुश्किल है। इसलिये असली प्रकाश आंख है। आंख तुम्हारें भीतर सूरज का अंश है, और भीतर का स ूरज जल रहा हो तो बाहर के सूरज से संबंध जुड़ जाता है। भीतर का सूरज न जल रहा हो तो बाहर का सूरज व्यर्थ है, कोई सेतु नहीं बनता। इसलिये गुरू तुम्हें वह दीया बना देता है, जो बिन तेल के जलता है, बिना बाती के। वह जो तुम्हारे भीतर है, उसे तुमने कभी भी XNUMX हीं एक क्षण भी नहीं, तो तुम हो ही नहीं सकते थे।
इसलिये ध्यान एक प्रक्रिया, योग एक उपचार है, साध ना एक चिकित्सा है, उस अंतचक्षु की खोज की।
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