जीवन का सर्वाधिक मूल्यवान सूत्र चित्त के अंधेरे कक्षों में रोशनी को ले जाना है।।।।।।।।। ज्ञान के उस प्रकाश के पहुँचते ही चित्त में परिवर्तन होना शुरू हो जाता हैं।।।।।। जो कलियां सुप्त थी वह खिलकर फूल बन जाती मनुष्य के भीतर जो प्रagaण शक्ति सुप्त थी, वह जाग उठती हैं और जिस दिन प्रagaण शकutar फिर मनुष्य विभिन्न हिस्सों में खंडित नहीं रह जाता है उसके भीतर फिर कोई द्वंद्, कोई कलह, कोई नहीं नहीं ivamente।। उसके भीतर एक शांति स्थापित हो जाती हैं। थोड़ा प्रकाश मौजूद है। यदि उतना भी प्रकाश मौजूद न होता तो फिर हम कुछ भी नहीं कर सकते थे।।।।।।।। लेकिन थोड़ा प्रकाश मौजूद है हमारे मन के किसी कोनो में एक दीया जला हुआ है है है वह gas. वह हो ही है।।।।। उसी रोशनी में आप सद्गुरूदेव जी की बात सुन ¢ है है ोशनी में आप चल चल रहे है।।।।।।। उसी रोशनी में आप जी रहे है, विचार कर रहे है, उठ रहे छोटी सी रोशनी में।
मनुष्य अनन्त संभावनाओं, अनन्त बीजों के चिंतन के साथ पैदा होता है फिर जिस बीज पर श्रम करेगा वही उसमें खिलेंगे।।।।।।।।।।।।।।।।।।। हम स्वयं प्रतिपल अपने प्रत्येक विचार, चिंतन निर्माण कर रहे है इसलिये एक-एक कार्य को अत्यन्त धैर्य, निष्ठा, चिंतनशील होकर सम्पन्न करना चाहिये जिसने अपने भीतर के ज्ञान को जान लिया, दृष्टा को जान लिया उसकी सारी ग्रन्थियाँ कट गई, उसके जीवन में कोई गांठ न रही, उसका जीवन सापफ़ सुथरा हो फिर वह जैसा भी जीता है उसमें एक सरलता है, एक विनम्रता है, उसके जीवन में एक सादगी है।।।।।।।।।।।
यदि व्यक्ति में संतुष्टि का भाव जाग्रत हो जाये, तो उसके आत्मबल में वृद्धि होनी सुनिश्चित है और वह कठिन से कठिन कार्य को सरलता पूर्वक सम्पन्न कर सकता है और यदि अपनी योग्यता से निराश है, धनहीनता से दुखी हैं, बाधाओं से परेशान हैं, असफलता के कारण नक sigue, विचारों से ग्रस्त हैं, तो जीवन में श्रेष्ठता नहीं आ।।।।।।।।।।।।। क्योंकि मानव जीवन है ही संघर्ष करने के लिये और व्यकن sup las स्वयं को श्रेष्ठ बनाने का हर संभव प्रयास जारी रखो, उसमें कहीं से भी न्यूनता ना आये, साथ ही निरन Davidamente बनी हे।।।।।।।।।।।।।।।।।। बनी बनी बनी बनी बनी बनी बनी बनी बनी बनी बनी बनी बनी. यह जीवन का मूल्यवान सूत्र है। लेकिन तुम करते क्या हो, सिरorar. यदि अपने सutar.
सद्गुरू तुम्हारी भौतिक, आध्यात्मिक इच्छाओं को पूर्ण करने में तत्पर है, पर पहले तुम उनके चिंतन, ज्ञान, आदû अपने जीवन।। ध ध ध ये ये ये ये ये ये ये ये ये ये ये ये ये ये ये ये ये ये ये ये ये ये ये ये ये ये ये ये ये ये ये ये ये ये ये ये ये ये ये ये ये ये ये ये ये ये ये ये ये ये ये ये ये ये ये ये ये ये ये ये ये ये ये ये ये ये ये ये ये ये ये ये ये ये ये ये ये ये ये ये ये ये ये ये ये ये ये ये ये ये ये ये ये ये ये ये ये ये ये ये ये ये ये ये ये. प्रकाश को भीतर आत्मसात नहीं कर रहे हो, क्योंकि यदि भीतर प्रकाश प्रवेश कर गया तो तुम्हारी निंदा करने की प्रवृत्ति का सर्वनाश हो जायेगा, विश्वासघात, छल, झूठ, ईर्ष्या, वासना और तुम्हारे अहंकार की मृत्यु हो जायेगी। फिर अनुभव कर सकोगे कि वास्तव में तुम्हाisiones अहंकार त्याग करने योग्य था। लेकिन प्रagaendo. लेकिन यदि तुम ने ऐसा किय mí
एक व्यक्ति ने विभिन्न विद्याओं का अध्ययन पूरकल अब वह आत्मविद्या का ज्ञान प्राप्त करना चाहता था इसलिये वह एक प्रसिद्ध ऋषि के प mí ऋषि ने उसे आश्रम में रहने की आज्ञा दी। उसे वहाँ कई प्रकार के सेवा कार्य दिये गये। इस प्रकार सेवा में कई दिन बीत गये लेकिन अध्ययन आरंभ ना हुआ। उसके मन में शिक्षा को लेकर कई प्रकार की शंकाये उठने लगीं, कहाँ वह सर्वोच्च कही गयी आत्मविद्य्या प्रaga प्त करने आया औा कहां वह स स स क क स Ndos; में ंस ंस पड़ पड़ झमेले ंस ंस ंस iones
एक दिन वह घड़ा लेकर प siguez उसने जोर से घड़ा रेत पर पटका और एक ओर बैठ गया। घड़े से आवाज आयी- बटुक, तुम इतना क्रोध और उतावलापन क्यों दिखाते हो? गुरू ने तुम्हें शरण दी है तो निश्चित ही तुम्हाendr वह बोल siguez घड़े ने कह siguez इन सबकी बदौलत मैं इस रूप में तुम्हारे सामने खड़ा हूँ यदि तुम भी आगे बढ़ना चाहते हो, भट्टी के ताप से घबराना नहीं, बस अपने क क में लगे हन razón कठिनाइयों को देखकर भयभीत नहीं होना, सद्गुरू रूपी चेतना जीवन के प्रत्येक पथ पर तुम्हारे साथ है, बाधाओं से विचलित नहीं होना, न ही कभी निराश होना, धैर्य, साहस और अपनी पूरी क्षमता के साथ अपनी समस्याओं से संघर्ष करना मैं तुम्हें विश्वास दिलाता हूँ कि यदि तुमने ऐसा किय mí जिसकी संकल्प शक्ति प्रबल है वे प्रगति, सफलता को गुरू कृपा से अपने अधीन करते ही है।।।।।।।।।।
शिष्य के जीवन क mí उसे प्रगति पथ पर गुरू कृपा ईश्वरीय कृपा की आवश्यकता होती ही है।।।।।।।। लेकिन बिना कर्मशील हुये कृपा की पवित्रता को धारण नहीं किया जा सकता। याद ¢ खन में में श्रेष्ठता और सफलता वही प्रagaप्त कर सकता है, जो क्रिया शक्ति को जीवन में पूर्णता के साथ आत्मस Davमस का है।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। uto।।।।।।।।।।। uto अकर्मण्य व्यक्ति निराशा व असफलता से घिरा होता है तथा उसके स्वयं के जीवन और परिवार में किसी भी प्عaga की समृद्धि आती।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। कर्मयोग ही भौतिक और आध्यात्मिक जीवन की मूलभंथजपथज गुरू मार्ग बताता है, गुरू उंगली पकड़कर चलना सिखाता है, एक आत्मविश्वास जगाता है।।।।।।।।। यह विश्वास ही जीवन का सम्बल और आधार बनता है जिसने भी इस आधार को धारण किया वह लक्ष्य तक अवश्य पहुँचा। गुरू की डाँट, फटकार सहने वाला ही आनन्द, पूर्णता प्रagaप करता है।।।। गुरू हमेशा शिष्य को सत्माisiones
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