वास्तव में जिंदगी को दो हिस्सों में बांट दिया। एक को हमने चुन लिय mí ¿Está bien? वह हमारे साथ रहेगा। फिर हमें डर लगेगा। चाहे हम लोगों के स siguez आपकी भाव-दशा में निर्भर करता है। दुःख-दुःख है, क्योंकि आप दुःख को नहीं चाहते और सुख को चाहते हैं- इसलिये दुःख है। दुःख इसलिये है कि उसके विपरीत को चाहते नहीं तो क्या दुःख है? विपरीत में ही छिपा है दुःख। अशांति क्या है? क्योंकि आप शांति को चाहते हैं, इसलिये अशांति हैैैैे हमारे चुनाव में हमारा संसार है।
जो चुनाव रहित और निर्विकल्प हो जाता है, उसे आत्मा का दर्शन होता है।।।। क्योंकि जो सुख-दुःख, प्रेम, घृणा, संसार, परमात्मा को बाहर चुनाव नहीं करता, जो बaños बर चुनता ही नहीं, जिसके सब चुनाव होículo जί ender
अपने अन्दर सद्गुण जो अच्छाइयाँ औecer जो मिले उन पecer गुणों को विक siguez गुण, कर्म, स्वभाव में आवश्यक सुधार किये बिना प्रगति नहीं हो सकती है।।।।।।।।।।। दुर्व्यवहार का कुफल दुःख और बैचेनी है, फिर वह चाहे अपने साथ हो या दूसरे के साथ।
जब शरीर की व्यर्थता दिखाई पड़े, शरीर का असर न होना दिखाई पड़े और शरीर केवल गंदगी गंदगी का ढ़ेर मालूम होने लगे और जब शivamente सेरी बढ़ने लगे तभी तभी तभी म त त म है है है है है म म Nr.. प्रत्येक इंद्रियों का अलग-अलग काम है और अलग-अआय ईै आंख देखती है, कान सुनते हैं परन्तु कान देख नहीं सकते और आंख सुन नहीं सकती है।।।।।।।।।।।।।।। हाथ छूते है और नाक गंध-सुगंध देती है। नाक छू नहीं सकता, हाथ गंध नहीं दे सकते। हर इंद्रिय स्पेशलाइज्ड है, उसका एक विशेष काम हैै उसे इन सभी इंद्रियों को एकाग्र करना सीखने की क्रिया ही ध्यान में गहरे जाना है।।।।।। हम शरीर के जितने निकट होते हैं परमात्मा से ही ही दूर होते हैं। लेकिन यदि व्यक्ति शरीर से दूर होने की क्रिया प्रagaendo. शenas से जितने जोर से हम बंधे हैं, उतने ही उस चैतन्यता से हमारी दूरी है।।।।।।
जब कोई व्यक्ति अपने acer इस शब्द को ठीक से समझ लें। जब कोई व्यकorar है, वह ब्रह्म-ज्योति का है। आत्मा और परमात्मा में इतना ही फर्क है। आत्मा का मतलब है, आपको छोटी सी ज्योति का अनुभव हु परम seaत haber अपने शरीर से छूट कर आत्मा का अनुभव होता है और ब्रह demás म से छूट कर परमात्मा का अनुभव होता है है है है है है है है है है है पर दोनों में मात्र का ही फर्क है। इसलिये जो आत्मा तक पहुंच गया, उसे कोई अड़चन नहीं है, उसे कोई ब mí.
¡Adelante! देह के साथ रहने का जो व्यक्ति का मन है, वह शरीर के संबंध में हमारी अज्ञानता के कारण ही।।।।।।।।।।।। व्यक्ति को पता ही नहीं कि शरीर क्या है। यदि शरीर को अन्दर से देखे तो चमड़ी के अन्दर जो हड्ड़ी, मांस, मज्जा, मल, मूत्र छिपा है, यदिर marca का पूर marca मूल मंत्र ज्ञात हो जायेगा। व्यक्ति शरीर को केवल दर्पण में देखकर जानता हैं लेकिन दर्पण में जो दिखाई देता है, वह हमारे शरीर का बाह्य आवरण है।।।। है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है ब बanda. व्यक्ति को अपने शरीर की पूरी स्थिति पता चल जायेगी तो व्यक्ति और शरीर के बीच में फासला हो जायेगा, जो जुड़ाव, लगाव बना हआ है वो खत्म हो ज razuaría तब देह की ठीक-ठीक स्थिति मस्तिष्क में आने लगेगी तो देह से दूरी स्वतः ही प्रaga podrtar जैसे किसी महल की बाहरी दीवारों को देख ले और समझे की यही महल है है, उसी प् razón बाहर से जो दिखाई देता है, वह ढ़का हुआ, आवृत रूप है शरीर नहीं।
संसार में कोई को को उतना परेशान नहीं करता, जितना कि मनुष्य के अपने दुर्गुण और दुर्भावन va।। दुगुenas ूपी शत्रु मनुष्य के पीछे लगे रहते हैं, वे हर समय बेचैन बेचैन रखते हैं।।।।।।।।। सुखी जीवन की आकांक्षा सभी को होती है, पर सुखी जीवन तभी संभव हो पाता है जब हमारaga दृष्टिकोण व विचारों, भावों की त्रुटियों को समझें औ औ उन enderacho सुधारने का प प uto पرagaन क क क।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। क क. अल्प साधन औecer सद्गुणों के विकास का उचित मार्ग है कि विशेष रूप से विचार किया जाये, आध्यात्मिक ग्रंथ पढ़े, प्रवचन सुनें, अच्छे शब्दों का प्रयोग करें और अच्छा ही सोंचे साथ ही क्रियान्वित करने की निरन्तरता रखें, जो सद्गुणों को बढ़ाने में सहायक हों।
अशांति हम sigue, स्वभाव बन गई है और स्वाभाविक है कि शांत होने का एक अ अivamente है जब गंगा सागर में गिरती, उन दोनों बीच जो जो घटन घटती है है उसकguna है श श।।।।।। के बीच जो घटन घटन है है है न श श श श।।।।।।। जब आपकी सरिता भी सागर में गिरती है, तब घटन घटनija घटती है उस के के क्षण में उसका नाम है शांति। हमारी आत्मा में कोई चीज प्रवेश नहीं करती है मन में सब चीजें प्रवेश करती हैं और जब तक हम मन को हटाने की क्रिया सिख लेते लेते लेते तब ज ज ञ होग कि कि कुछ आ आ।।।।।।। होग कि कुछ आ आ।।।।।।।।।।।।।।।।. मैं ही ब्रह्म हूं, चैतन्य हूं ये शरीर नहीं। लेकिन वातावरण के अभावों से ज्ञात यही ¢ endr. वही चित्र आत्मा में झलकता है। मन में काम, क्रोध, मोह, लोभ सब है और सारे चित्र भीतर झलकते है और इतने क काल से आ आ ¢ थे थे, कि कि स्व Davभ है भ भ भ स ज ज ज झलक नहीं है है है है है है है स स सella.
ध्यान रहे, शरीर तो आपका हर जन्म में मिट जाता है। लेकिन मन? मन नहीं मिटता, मन आपक mí जब आप मरते हैं तो शरीर छूटता है, मन नहीं छूटता। मन तो तब छूटता है, जब आप मुक्त होते हैं। केवल समाधि में ही सामर्थ्य है मन को भी मिटा दााथे के इसलिये जो जानते हैं, उन्होंने समाधि को महामृत्यु कहा है। क्योंकि मृत्यु में केवल शरीर मरता है और समाधि में शरीर और मन दोनोंatar
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